लीची के बागों में विभिन्न प्रकार के कीटों और रोगों का प्रकोप होता है| जिससे उत्पादन और गुणवत्ता प्रभावित होती है| अतः बागवानों को लीची में समय-समय पर लगने वाले कीट एवं रोगों के बारे में जानकारी होना आवश्यक हो जाता है| ताकि समय पर लीची में प्रभावी प्रबंधन किया जा सके और फलों को नुकसान होने से बचाया जा सके| सौभाग्य से लीची में रोगों की समस्या अपेक्षाकृत कम है, लेकिन, नाशीकीटों के अत्यधिक प्रकोप से अक्सर बागवानों को आर्थिक हानि उठानी पड़ती है|
निरंतर और अधिकाधिक रासायनिक कीटनाशी तथा कवकनाशी दवाओं के प्रयोग के दुष्परिणाम के रूप में पर्यावरण प्रदूषण, नाशीजीवों में दवाओं में प्रति प्रतिरोधक क्षमता का विकास, कम महत्व वाले नाशीजीवों का भीषण रूप धारण करना और उपयोगी परजीवी और परभक्षी जीवों का नाश प्रमुखता से सामने आये हैं| इसलिए यह आवश्यक हो गया है, कि कम से कम रासायनिक दवाओं का प्रयोग किया जाये और जहां तक संभव हो प्रबंधन के वैकल्पिक तरीकों जैसे- जैविक नियंत्रण (बायो पेस्टीसाइड और बायो फन्जीसाइड), कृषिगत क्रियाएं, यांत्रिक उपायों आदि को अपनाया जाये|
इस दिशा में समेकित नाशीजीव प्रबंधन एक अच्छी पहल है| जिसमें दो या दो से अधिक प्रबंधन विधियों को समन्वित रूप में इस प्रकार प्रयोग करते हैं, ताकि हानिकारक नाशीजीवों की संख्या में इतनी कमी आ जाये कि वे फसल को अर्थिक हानि न पहुंचा सकें| इस लेख में लीची में समेकित कीट एवं रोग रोकथाम की जानकारी का उल्लेख किया गया है| लीची की वैज्ञानिक तकनीक से बागवानी कैसे करें की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- लीची की खेती कैसे करें
लीची में कीट नियंत्रण
फल और बीज बेधक
लक्षण- ये लीची के सबसे अधिक हानिकारक कीट हैं जो व्यापक और बहुभक्षी हैं| एक साल में इस कीट की कई पीढ़ियां होती हैं, पर फलन के समय दो पीढी महत्वपूर्ण होती हैं| पहली, जब लीची के फल लौंग के दाने के आकार के होते हैं (अप्रैल प्रथम सप्ताह) तो मादा पुष्पवृंत के डंठलों पर अंडे देती है, जिनसे दो-तीन दिन में पिल्लू (लार्वा) निकलकर विकसित होते फलों में प्रवेश कर बीजों को खाते हैं, जिसके कारण फल बाद में गिर जाते हैं| अगर ऐसे फलों को गौर से देखा जाए तो फलों पर छिद्र दिखाई देते हैं|
दूसरी पीढ़ी, फल परिपक्व होने के 15 से 20 दिन पहले (मई प्रथम सप्ताह) जब इसके पिल्लू डंठल के पास से फलों में प्रवेश करते हैं और फल के बीज और छिलके को खाकर हानि पहुंचाते हैं| पिल्लू लीची के गूदे के रंग के होते हैं| ये अपनी विष्ठा फल के अंदर जमा करते हैं जो ग्रसित फलों में डंठल के पास छिलने से दिखाई पड़ती है| लीची फलों के परिपक्व होने से पहले वातावरण में नमी की मात्रा अधिक होने से प्रकोप की संभावना बढ़ जाती है|
रोकथाम-
1. वैकल्पिक नियंत्रण जैसे- ट्राइकोग्रामा चिलोनिस परभक्षी 50,000 अंडे प्रति हैक्टर (बौर निकलने के बाद, मार्च प्रथम सप्ताह) और फेरोमोनट्रैप 15 प्रति हैक्टर वृक्ष की मध्य ऊंचाई पर प्रयोग करें|
2. मंजर निकलने और फूल खिलने से पहले निम्बीसीडीन 0.5 प्रतिशत या नीम तेल या निम्बिन 4 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल या वर्मीवाश 5 प्रतिशत के छिड़काव करें|
3. पहला कीटनाशी छिड़काव-कार्बारिल 50 डब्ल्यू पी दो ग्राम प्रति लीटर (0.1 प्रतिशत) का प्रयोग लीची फल जब मटर के दाने के आकार के हो जाये तब करें|
4. जमीन पर गिरे सभी फलों को इकट्ठा करके नष्ट करें या गहरे गड्ढे में दबा दें|
5. दूसरा कीटनाशी छिड़काव फल पकने के 15 से 20 दिन पहले साइपरमेथ्रीन 10 ई सी 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर या डेल्टामेथ्रिन 2.5 ई सी 1.0 मिलीलीटर प्रति लीटर या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर या क्लोरपाइरीफॉस 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल का छिडकाव करें|
यह भी पढ़ें- लीची की उन्नत किस्में, जानिए उनकी विशेषताएं और पैदावार
छाल खाने वाला पिल्लू
लक्षण- इनके पिल्लू बड़े आकार के होते हैं, जो वृक्षों के छाल खाकर जीवन निर्वाह करते हैं| यह वृक्ष के मोटे धड़ों और शाखाओं में छेदकर दिन में छिपे रहते हैं और रात्रि में बाहर निकलते हैं| ये अपने बचाव के लिए टहनियों के ऊपर विष्ठा और छाल के बुरादे की सहायता से जाला बनाते हैं| इनके प्रकोप से टहनियां कमजोर हो जाती हैं और कभी भी टूटकर गिर सकती हैं| इसके प्रकोप से पौधों में पोषक तत्वों की आवाजाही बाधित हो जाती है| एक वर्ष में इस कीट की एक ही पीढ़ी होती है|
रोकथाम-
1. तने और टहनियों पर लगे जाले को साफ कर प्रत्येक छिद्र में तार डालकर खुरचने से कीट के पिल्लू मर जाते हैं|
2. नारियल झाडू से पहले जाला साफ करके प्रत्येक छिद्र के अंदर मिट्टी तेल, पेट्रोल, फिनाइल, डी डी वी पी या नुवान 5.0 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल से भीगी रूई को ठूसकर भर दें और छिद्रों के ऊपर गीली मिट्टी या गोबर का लेप लगा दें|
3. इन कीटों से बचाव के लिए बगीचे को हमेशा साफ-सुथरा और स्वस्थ रखें|
यह भी पढ़ें- सेब में कीट एवं रोग नियंत्रण कैसे करें, जानिए आधुनिक तकनीक
पत्ती काटने वाली सुंडी
लक्षण- यह कीट बड़े आकार के चांदी के रंग जैसा चमकदार होता है, जो 2 से 3 महीने पुरानी पत्तियों के बाहरी किनारे को काट-काट कर खाता हैं, जिससे पत्तियां दोनों किनारे से कटी-फटी दिखती है| छोटे पौधों के लिए ये कीट घातक सिद्ध हो सकते हैं|
रोकथाम-
1. नये बागों में वर्षा के बाद खेतों की जुताई अच्छी तरह करें, ताकि इनके नवजात और वयस्कों को जो घास-पात की जड़ों को खाकर अपना जीवन यापन करते हैं, उन्हें नष्ट किया जा सके|
2. छोटे पौधों या टहनियों को हिलाने से ये कीट नीचे गिर जाते हैं, फिर गिरे कीट को इकट्ठा कर नष्ट कर दें|
3. नीम आधारित रसायनों या नीम बीज अर्क का प्रयोग कर इनके नवजात या वयस्कों को पौधों पर आने से रोका जा सकता है|
4. अधिक प्रकोप की स्थिति में कार्बारिल 50 डब्ल्यू पी 2.0 ग्राम प्रति लीटर या नुवान 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें|
टहनी छेदक
लक्षण- इस कीट के पिल्लू वृक्ष के नई कोपलों की मुलायम टहनियों में प्रवेश कर उसके भीतरी भाग को खाते हैं| फलस्वरूप, प्रभावित टहनियां मुरझाकर सूख जाती हैं और साथ ही साथ पौधों की बढ़वार रुक जाती है| अगर ध्यान से देखा जाये तो नई टहनियों में कहीं कहीं छिद्र नजर आते हैं| ऐसी जगहों से अगर टहनी तोड़कर और चीरकर देखें तो इसके सफेद रंग के पिल्लू और विष्ठा नजर आयेगा|
रोकथाम-
1. लीची के बाग में से प्रभावित टहनियों को काटकर जला दें|
2. कीड़ों की तीव्रता की स्थिति में कार्बारिल 50 डब्ल्यू पी दो ग्राम प्रति लीटर (0.1 प्रतिशत) घोल का छिड़काव करें|
यह भी पढ़ें- नींबू वर्गीय फसलों के रोग एवं दैहिक विकार और उनकी रोकथाम कैसे करें
लीची मकड़ी
लक्षण- लीची मकड़ी अत्यंत सूक्ष्म होती है, जिसका शरीर बेलनाकार, चार जोड़े पैर और सफेद तथा चमकीले रंग के कीट होते हैं| नवजात और वयस्क दोनों लीची में कोमल पत्तियों की निचली सतह, टहनी और पुष्पवृंत से चिपक कर लगातार रस चूसते रहते हैं| ग्रसित पत्तियां उत्तेजित हो जाती हैं और मोटी और लेदरी होकर सिकुड़ जाती हैं|
निचली सतह पर मखमली रूआंसा (इरिनियम) निकल आता है, जो बाद में भूरे या गहरे भूरे-लाल रंग का हो जाता है और प्रभावित पत्तियों में गड्ढे बन जाते हैं| प्रभावित टहनियों में पुष्पन और फलन नहीं या कम होता है| मखमली इरिनियम उच्चताप, वर्षा और आर्द्रता से वयस्क मकड़ी को सुरक्षा प्रदान करती है|
रोकथाम-
1. जून (फल तुड़ाई उपरांत) और दिसंबर से जनवरी में प्रभावित टहनियों को कुछ स्वस्थ हिस्से के साथ काट कर जला दें|
2. सितंबर से अक्टूबर और फरवरी में डायकोफॉल या केलथेन 3.0 मिलीलीटर प्रति लीटर का एक छिड़काव करें|
पत्ती लपेटक कीट
लक्षण- इस कीट के पिल्लू (लार्वे) लीची में मुलायम पत्तियों को रेशमी धागों से लंबवत लपेटकर जाले बनाते है और अंदर ही अंदर पत्तियों को खाते रहते हैं| अधिक प्रकोप होने पर पत्तियां समय से पूर्व ही सूखने लगती हैं| बाग की उपज क्षमता कम हो जाती है|
रोकथाम-
1. अगर लीची के बाग में प्रभावित पत्तियां कम हो तो हाथ से तोड़कर ऐसी पत्तियों को नष्ट कर दें|
2. यदि 50 प्रतिशत कोपलों पर आक्रमण हो तो कार्बारिल 50 डब्ल्यू पी 2 ग्राम प्रति लीटर (0.1 प्रतिशत) या फॉस्फोमिडान 85 ई सी 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल का एक से दो छिड़काव 7 से 10 दिनों के अंतराल पर करें|
यह भी पढ़ें- आम के विकार एवं उनका प्रबंधन कैसे करें, जानिए अधिक उपज हेतु
पत्ती सुरंगक कीट
लक्षण- इसका वयस्क कीट आकार में बहुत छोटा और लंबा होता है| मादा कोमल पत्तियों की निचली सतह पर उत्तकों के बीच अंडे देती है| लार्वा (पिल्लू) पत्तियों के निचली सतह के उत्तकों को खाकर आगे बढ़ते हुए पत्ती के मध्य सिरे में सुरंग बनाता है और उसे खाता है| प्रभावित पत्तियां सूखने लगती हैं और पौधा दूर से झुलसा हुआ दिखाई देता है|
नये कोपलों के निकलने के समय आक्रमण की तीव्रता बढ़ जाती है| इस कीट का आक्रमण नई पत्तियों पर अधिक होता है| खासकर सितंबर से अक्टूबर में कोपलों को इस कीट के प्रकोप से बचाना बहुत जरूरी है, क्योंकि इन्हीं कोपलों में आगे चलकर मंजर और फल लगते हैं|
रोकथाम-
1. ग्रसित टहनियों को निकालकर या काटकर नष्ट कर दें|
2. खेत की जुताई के साथ-साथ जल और पोषक तत्वों के प्रबंधन को समयानुसार करें, ताकि नयी कोपलें (फ्लश) सितंबर से पहले निकल जाये|
3. नयी कोपलों के निकलने के समय नीम बीज से बने 4.0 प्रतिशत अर्क का 7 दिन के अंतराल पर दो छिड़काव करें| इसके अभाव में नीम आधारित रसायन जैसे- निम्बीन, अचूक, वेनगॉर्ड आदि 4 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल का 7 दिनों के अंतराल पर दो छिड़काव करें|
4. बहुतायत की अवस्था में फॉस्फोमिडॉन 85 ई सी (0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर) या कार्बारिल 50 डब्ल्यू पी 2 ग्राम (0.1 प्रतिशत) के घोल का छिड़काव करें|
यह भी पढ़ें- आम के बागों का जीर्णोद्धार कैसे करें, जानिए उपयोगी जानकारी
खर्रा कीट
लक्षण- मुख्यत: यह कीट आम के वृक्षों पर आक्रमण करता है पर लीची के बाग आस-पास होने के कारण कभी-कभी इस कीट का प्रकोप लीची पर भी देखा गया है| इसका प्रकोप दिसंबर से मई तक पाया जाता है| ये कीट उजले रंग के होते हैं तथा मुधुस्राव भी करते हैं, जिस पर चींटी और काली फफूंदी लगने लगते हैं| वयस्क होते कीट अपनी ऊपरी सतह को उजले पाउडर जैसे आवरण से ढक लेते हैं|
इसके वयस्क बड़े आकर (0.8 से 1.5 सेंटीमीटर) के होते हैं और नवजात के साथ पत्तियों और कोमल टहनियों से लगातार रस चूसकर हानि पहुंचाते हैं| यहां तक कि ये धीरे-धीरे चलकर शुरुआती फलों से भी चिपककर रस चूसते हैं| रस चूसने के कारण पेड़ पीलापन लिए और अस्वस्थ प्रतीत होते है| अपरिपक्व अवस्था में पत्तियां और फल गिरने लगते हैं|
रोकथाम-
1. जून में खेतों की जुताई करने से इस कीट के अंडों और नवंबर से दिसंबर में जुताई करने से इसके नवजात को काफी हद तक पेड़ों तक पहुंचने से रोका जा सकता है|
2. पेड़ों के तनों में 2 फीट ऊंचाई पर मोटी प्लास्टिक बांधकर उस पर ग्रीस लगा दें, जिससे जमीन से ऊपर चढ़ते समय कीट चिपककर नष्ट हो जायें|
3. इस कीट का शरीर मोम जैसा (वैक्सी) होने के कारण रासायनिक दवाओं का प्रभाव कम होता है|
4. बहुतायत की अवस्था में कार्बारिल 50 डब्ल्यू पी 2 ग्राम प्रति लीटर या मानोक्रोटोफॉस 36 डब्ल्यू एस सी 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें, सर्फ या कोई डिटर्जेन्ट पाउडर एक चम्मच प्रति 10 लीटर पानी के घोल में अवश्य डालें|
लीची बग
लक्षण- इस कीट का प्रकोप अब लीची में कम होने लगा है| भूरे या लाल मटमैले रंग का यह गंधी बंग 10 से 12 मिलीमीटर लंबा और 6 से 8 मिलीमीटर चौड़ा होता है| जिसके नवजात और वयस्क दोनों ही पत्तियों से रस चूसकर उन्हें हानि पहुंचाते हैं| वयस्क कीट पत्तियों कि निचली सतह पर झुण्ड में हल्के पीले रंग के अंडे देती है|
रोकथाम-
1. नीम आधारित रसायनों या नीम बीज अर्क का प्रयोग कर इस कीट को पौधों पर आने से रोका जा सकता है|
2. बहुतायत की स्थिति में कार्बारिल 50 डब्ल्यू पी 2.0 ग्राम प्रति लीटर या नुवान 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल छिड़काव करें|
यह भी पढ़ें- बागों के लिए हानिकारक है पाला, जानिए इसके प्रकार एवं बचाव के उपाय
लाल सुंडी
लक्षण- यह एक नई कीट प्रजाति (ऐपोडेरस ब्लांडस) है, जिसका प्रकोप पिछले कुछ सालों से लीची में पौधों पर देखा गया है| वयस्क कीट (विभिल) चमकीले भूरे लाल रंग के, 5 से 7 मिलीमीटर लंबे आकर के होते हैं और इनका लंबा चूंढ़ (स्नाउट) बैठने की स्थिति में हमेशा ऊपर उठा होता है| यह कीट बिलकुल नई पत्तियों की सतह पर हरित भाग (क्लोरोफिल) को खाता है|
जिससे भूरे लाल रंग के खाये हुए चित्ती पत्तियों पर जहां-तहां बिखरे नजर आते हैं| प्रभावित पत्तियों के ऊपर बाद में ऐसे खाये हुए भाग पर छिद्र बन जाते हैं| प्रकोप की तीव्रता की स्थिति में नई कोपलें और पत्तियां सूखी और सूर्यप्रकाश से जली प्रतीत होती हैं| इस कीट के प्रकोप से पांच वर्ष से छोटे पौधों को अत्यधिक नुकसान होता है|
रोकथाम-
1. लीची में नीम आधारित रसायनों या नीम बीज अर्क के प्रयोग से कीट को पौधों पर आने से रोका जा सकता है|
2. बहुतायत की स्थिति में कार्बारिल 50 डब्ल्यू पी 2.0 ग्राम प्रति लीटर या नुवान 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें|
लीची सेमीलूपर
लक्षण- सेमीलूपर कीट का प्रकोप लीची की फसल के लिए एक नया खतरा है| इनके पिल्लू (लार्वा) नई पत्तियों को बहुत तेजी से खाकर उन्हें खत्म कर देते हैं| इसके प्रकोप से अक्सर वृक्ष के छत्रक (कैनोपी) पर प्ररोहों के ढूंठ दिखाई देते हैं, जिस पर पत्तियों के सिर्फ मध्य शिरे बचे होते हैं| ये लीची में शत-प्रतिशत नई पत्तियों को खा जाते हैं| दूर से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है, कि वृक्ष के ऊपरी हिस्से को कोई जानवर चर गया हो| बाद में ऊपरी प्ररोह सूखने लगते हैं| नजदीक जाने पर हजारों की संख्या में सेमीलूपर पिल्लू प्ररोहों पर लटके नजर आते हैं|
वृक्ष के पत्तों पर इनके प्यूपे भी नजर आते हैं, जिससे 2 से 3 दिन में ही वयस्क निकल जाते हैं| इस कीट का जीवन चक्र 14 से 17 दिनों में पूरा हो जाता है| अध्ययन के आधार पर यह कीट नियोगेलिया सुनिया और ओयनोस्पीलैस्प स्पिसिज के काफी करीब प्रजाति का लगता है| इसके पूर्ण विकसित लार्वा 1.7 से 2.2 सेंटीमीटर तक लंबा और 2 मिलीमीटर चौड़ा होता है जो धुंधला होने के साथ-साथ शरीर पर काले धब्बे लिए होते हैं|
प्यूपा लगभग 0.8 से 0.9 सेंटीमीटर और वयस्क 2.1 से 2.3 सेंटीमीटर (पूरे फैले पंख की अवस्था में) होते हैं| इस कीट का प्रकोप सितंबर से नवंबर के बीच होता है| चूंकि इन्हीं कोपलों में अगले वर्ष फूल (मंजर) आते हैं और फल लगते हैं| इसीलिए इस कीट से बचाव नहीं करने पर उत्पादन में काफी ह्रास हो सकता है|
रोकथाम-
1. बचाव के लिए नीम आधारित रसायनों या नीम बीज अर्क का प्रयोग करें या बी टी आधारित बायोपेस्टीसाइड (हाल्ट) 1 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें|
2. बहुतायत की स्थिति में कार्बारिल 50 डब्ल्यू पी 2.0 ग्राम प्रति लीटर या डेल्टामेथ्रिन 2.5 ई सी 1 मिलीलीटर प्रति लीटर या क्लोरपाइरीफॉस 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें|
यह भी पढ़ें- बागवानी पौधशाला (नर्सरी) की स्थापना करना, देखभाल और प्रबंधन
कवच वाला पिल्लू
लक्षण- इस कीट का प्रकोप जहां-तहां कुछ लीची के वृक्षों पर देखा गया है, पर जिस वृक्ष पर ये एक बार आ जाते हैं, उनकी पत्तियों को धीरे-धीरे चट कर जाते हैं| अन्य कीटों के विपरीत, ये पुरानी होती पत्तियां जिनमें ज्यादा टैनिन होती है, को खाते हैं| इनके प्रकोप से दूर से पौधों की पत्तियों जली हुई या किसी पोषक तत्व की कमी का शिकार प्रतीत होती हैं| इस कीट के पिल्लू (लार्वा) के ऊपर कीप के आकार का कवच होता है, जो हमेशा ऊपर उठा रहता है|
इनकी पिल्लूएं घोंघे की तरह बहुत ही धीरे चलती हैं और जब पत्ती की ऊपरी सतह पर एक जगह की सारी हरित भाग (उत्तक) को खत्म कर लेते हैं| तब थोड़ा आगे बढ़कर नई जगह के हरित भाग को खाना प्रारंभ करते हैं| ये खुरचकर पत्तियों के हरित भाग को खाते हैं जिससे शुरुआत में पत्ती पर लाल चित्ती नजर आती है| पत्तियों के ऊपरी सतह पर बहुत सारे कवच वाले पिल्लू उर्द्ध चिपके रहते हैं|
रोकथाम-
1. लीची में बचाव के लिए नीम आधारित रसायनों या नीम बीज अर्क का प्रयोग करें|
2. बहुतायत की स्थिति में कार्बारिल 50 डब्ल्यू पी 2.0 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें|
यह भी पढ़ें- नींबूवर्गीय फसलों में समन्वित रोग एवं कीट नियंत्रण कैसे करें
लीची में रोग नियंत्रण
श्यामवर्ण रोग
लक्षण- यह रोग कोलेटोटाइकम ग्लिओस्पोराइडिस नामक कवक के संक्रमण से होता है| इस रोग के लक्षण लीची में फलों पर दिखाई देते हैं| रोग के संक्रमण की शुरुआत फल पकने के 15 से 20 दिन पहले होती हैं पर कभी-कभी लक्षण दृष्टिगोचर फल तुड़ाई-उपरांत तक हो सकते हैं| फलों के छिलकों पर छोटे-छोटे (0.2 से 0.4 सेंटीमीटर) गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई पड़ते हैं, जो आगे चलकर एक दूसरे से मिलकर काले और बड़े आकर के (0.5 से 1.5 सेंटीमीटर) धब्बों में परिवर्तित हो जाते हैं|
रोग तीव्रता की स्थिति में काले घब्बों का फैलाव फल के छिलकों पर आधे हिस्से तक हो सकता है| उच्च तापमान और आर्द्रता रहने पर रोग का संक्रमण और फैलाव बड़ी तेजी से होता है| अक्सर रोग के कारण फलों के छिलके ही प्रभावित होते हैं, पर इस वजह से ऐसे फलों का बाजार मूल्य गिर जाता है|
रोकथाम-
1. बचाव के लिए मैन्कोजेब या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल (0.2 प्रतिशत) का छिड़काव करें|
2. रोग की तीव्रता ज्यादा हो तो रोकथाम के लिए कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत डब्ल्यू पी या क्लोरोथैलोनिल 75 प्रतिशत डब्ल्यू पी 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करना चाहिए|
पर्णचित्ती
लक्षण- यह रोग लीची में कवक की मुख्यतया दो प्रजातियों से होता है यथा- बोट्रायोडिपलोडिया थियोब्रोमे और कोलेओट्राइकम ग्लिओस्पोराइडिस| पर्ण चित्ती जुलाई में अक्सर दिखने शुरू होते हैं और अगले 3 से 4 महीनों में प्रभावित पत्तियों की संख्या बढ़ती जाती है| पत्तों पर भूरे या गहरे चॉकलेट रंग की चित्ती सामान्यतया पुरानी पत्तियों के ऊपर प्रकट होती है| चित्तियों की शुरुआत पत्तियों के सिरे से होती है| यह धीरे-धीरे नीचे के तरफ बढ़ती हुई पत्ती के किनारे और बीच के हिस्से में फैलती जाती है| इन चित्तियों के किनारे अनियमित दिखते हैं| रोगकारक कवक वर्ष भर पत्तियों में निष्क्रिय पड़े रहते हैं|
रोकथाम-
1. लीची में प्रभावित भाग की कटाई-छंटाई कर, जमीन पर गिरी हुई पत्तियों के साथ समय-समय पर जला देना चाहिए|
2. लीची में बचाव के लिए मैन्कोजेब या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल (0.2 प्रतिशत) का छिड़काव करें|
3. रोग की तीव्रता ज्यादा हो तो रोकथाम के लिए कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत डब्ल्यू पी या क्लोरोथैलोनिल 75 प्रतिशत डब्ल्यू पी 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करना चाहिए|
यह भी पढ़ें- अनार में कीट एवं रोग रोकथाम कैसे करें, जानिए आधुनिक तकनीक
पत्ती और कोपल झुलसा
लक्षण- यह रोग लीची में कवक की कई प्रजातियों से हो सकता है यथा- डिक्टियोआरथ्रिनम स्पिसिज, कवुलेरिया स्पिसिज आदि| इस रोग से पौधों की नई पत्तियां और कोपलें झुलस जाती हैं| रोग की शुरुआत पत्ती के सिरे पर उत्तकों के मृत होने से भूरे धब्बे के रूप में होती है| जिसका फैलाव धीरे-धीरे पूरी पत्ती पर हो जाता है| रोग की तीव्रता की स्थिति में टहनियों के ऊपरी हिस्से झुलसे दिखते हैं|
रोकथाम-
1. बचाव के लिए मैन्कोजेब या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल (0.2 प्रतिशत) का छिड़काव करें|
2. रोग की तीव्रता ज्यादा हो तो रोकथाम के लिए कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत डब्ल्यू पी या क्लोरोथैलोनिल 75 प्रतिशत डब्ल्यू पी 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करना चाहिए|
फल विगलन
लक्षण- लीची फलों का विगलन रोग कई प्रकार के कवकों जैसे- एस्परजिलस स्पीसीज, कोलेटोटाइकम ग्लिओस्पोराइडिस, अल्टरनेरिया अल्टरनाटा आदि द्वारा होता है| इस रोग का प्रकोप उस समय होता है, जब फल परिपक्व होने लगता है| सर्वप्रथम रोग के प्रकोप से छिलका मुलायम हो जाता है और फल सड़ने लगते हैं| फल के छिलके भूरे से काले रंग के हो जाते हैं| फलों के यातायात और भंडारण के समय इस रोग के प्रकोप की संभावना ज्यादा होती है|
रोकथाम-
1. फल तुड़ाई के 15 से 20 दिन पहले पौधों पर कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें|
2. फल तुड़ाई के दौरान फलों को यांत्रिक क्षति होने से बचाएं|
3. फलों को तोड़ने के शीघ्र बाद पूर्वशीतलन उपचार (तापमान 4 डिग्री सेंटीग्रेट नमी 85 से 90 प्रतिशत) करें|
4. फलों की पैकेजिंग 10 से 15 प्रतिशत कार्बन डायऑक्साइड गैस वाले वातावरण के साथ करें|
ध्यान देने योग्य बातें
लीची के नये पौधे लगाने के समय ट्राइकोडर्मा संवर्धित वर्मीकम्पोस्ट या सड़ी गोबर की खाद का प्रयोग करें| इसके लिए 50 किलोग्राम वर्मीकम्पोस्ट या सड़ी गोबर की खाद में 500 ग्राम ट्राइकोडर्मा का व्यावसायिक फार्मुलेशन मिलाएं| अगर ये मिश्रण सूखी लगे तो थोड़ा पानी का छिड़काव कर दें और मिश्रण को छाव में कम से कम एक हफ्ते के लिए रख दें|
लीची में मंजर या फूल खिलने से लेकर फल के दाने बन जाने तक कोई भी रासायनिक दवाओं का प्रयोग न करें, क्योंकि इससे मधुमक्खियों का भ्रमण प्रभावित होता है| जो लीची में परागण के लिये जरूरी है| जब भी रासायनिक दवाओं का छिड़काव करें तो घोल में स्टीकर या डिटर्जेट सर्फ पाउडर (एक चम्मच प्रति 15 लीटर घोल) जरूर डालें|
रासायनिक दवाओं का छिड़काव अपराह्न में करना बेहतर होता हैं| रोकथाम वाली रासायनिक दवाओं के प्रयोग के संबंध में ध्यान रखें कि एक ही दवा का प्रयोग बार-बार न करें| इससे नाशीकीट एवं रोगकारक जीवों में दवाई के प्रति प्रतिरोधक क्षमता का विकास होने से बचा जा सकता है|
यह भी पढ़ें- आंवला में कीटों की रोकथाम कैसे करें, जानिए लक्षण और पहचान
यदि उपरोक्त जानकारी से हमारे प्रिय पाठक संतुष्ट है, तो लेख को अपने Social Media पर Like व Share जरुर करें और अन्य अच्छी जानकारियों के लिए आप हमारे साथ Social Media द्वारा Facebook Page को Like, Twitter व Google+ को Follow और YouTube Channel को Subscribe कर के जुड़ सकते है|
Leave a Reply