लोकाट फल एक सदाबहार और उपउष्णकटिबंधीय फल का वृक्ष है| लोकाट फल की खेती भारत के वातावरण में सफलतापुर्वक की जा सकती है| भारत में इसे मुख्यत: लुकाट या लुगाठ के नाम से जाना जाता है| यह 5 से 6 मीटर कद प्राप्त करता है और इसकी प्रकृति फैलने वाली होती है| लोकाट फल का मूल स्थान केंद्रीय पूर्वी चीन है और यह मुख्य तौर पर ताइवान, कोरिया, चीन, जापान देशों में उगाया जाता है| भारत में लोकाट फल की खेती हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, आसाम, और उत्तर प्रदेशों राज्यों में की जाती है|
लोकाट फल के स्वास्थ्य लाभ भी हैं, जैसे त्वचा को स्वस्थ करता है और आखों की दृष्टी में सुधार करता है, भार कम करने में मदद करता है, ब्लड प्रैशर को बरकरार रखता है और रक्त को बढ़ाता है| यह दांतों और हड्डियों की शक्ति को मजबूत करने में भी मदद करता है| इस लेख में किसान भाई जानेगे की लोकाट फल की खेती कैसे करें और इसके लिए जलवायु, भूमि, किस्में, देखभाल, पैदावार आदि का वर्णन किया गया है| जिससे वे इस खेती से उत्तम पैदावार प्राप्त कर सकें|
उपयुक्त जलवायु
लोकाट फल की खेती समुद्रतल से 1200 मीटर तक की ऊंचाई तक की जा सकती है| यह फल कोहरा प्रतिरोधी है|
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भूमि का चयन
लोकाट फल की खेती के लिए सामान्य उपजाऊ भूमि उत्पादन के लिए उपयुक्त होती है यानि की लोकाट को अच्छे निकास वाली रेतली दोमट मिट्टी जिसमें जैविक तत्व उच्च मात्रा में होते हैं, की आवश्यकता होती है|
उन्नत किस्में
लोकाट फल की खेती के लिए आपको अनेक किस्म मिल जाएंगी लेकिन व्यवसायिक खेती के लिए कुछ गिनी चुनी किस्मों का उपयोग होता है, जो इस प्रकार है, जैसे-
अगेती किस्में- पेल यलो, गोल्डन यलो, बेहतर गोल्डन पीला, थाम्स गौरव और बड़ा दौर|
मध्य समय की किस्में- विशाल, बेहतर पीला पीला, सफेदा, फायर बॉल, मैचलेस और बड़ा आगरा|
पछेती किस्में- कैलिफ़ोर्निया एडवांस और तनाका|
लोकाट फल की खेती के लिए प्रमुख किस्मों का वर्णन इस प्रकार है, जैसे-
गोल्डन यलो- मध्यम आकार का फल, पीले रंग का गूदा, चार से पांच तक बीज, मार्च के मध्य तक पक कर तैयार होने वाली किस्म है|
पेल यलो- फल बड़े आकार का, गूदा सफेद, खटास वाला, 3 से 4 बड़े-बड़े बीज, मार्च के अन्त तक पक कर तैयार होती है|
कैलिफोर्निया एडवांस- मध्य आकार का फल, क्रीम रंग का सफेद गूदा, खटास वाला, 2 से 3 तक बड़े-बड़े बीज, मध्य अप्रैल तक पक कर तैयार होती है|
उपरोक्त किस्मों में स्वयं परागण क्षमता नहीं है, इसलिए कैलिफोर्निया एडवांस किस्म को परागण के रूप में लगाना चाहिए|
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पौधारोपण
खेत की तैयारी- लोकाट फल की खेती के लिए, अच्छी तरह से तैयार ज़मीन की आवश्यकता होती है| मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए 2 से 3 गहरी जोताई करें और समतल करें|
फासला- पौधे से पौधे में 6-7 मीटर फासले का प्रयोग करें|
बिजाई का समय- बिजाई के लिए जून से सितंबर का महीना उपयुक्त होता है, लेकिन यदि सिंचाई की व्यवस्था नही है, तो पौधे फरवरी में भी लगाएं जा सकते है|
बिजाई का तरीका- प्रजनन विधि का प्रयोग किया जाता हैं|
पौधों की संख्या- लोकाट फल की खेती के लिए 95 से 96 पौधे प्रति एकड़ में प्रयोग किए जाते है|
पौधे तैयार करना- लोकाट फल की खेती के प्रजनन के लिए, एयर लेयरिंग विधि का प्रयोग किया जाता है, बिजाई के लिए बडिंग किए हुए और कलम वाले पौधों का प्रयोग किया जाता है, क्योंकि वे जल्दी फल देते हैं|
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खाद और उर्वरक
लोकाट फल की खेती के लिए प्रति पौधा 1 से 5 वर्ष आयु तक गोबर की खाद 10 से 30 किलोग्राम, नाईट्रोजन 70 से 400 ग्राम, फास्फोरस 30 से 150 ग्राम, पोटाश 90 से 400 ग्राम, कैन 320 से 1600 ग्राम, सुपर फॉस्फेट 200 से 1000 ग्राम और पोटाश 150 से 750 ग्राम देनी चाहिए, 5 से 10 वर्ष और उससे आगे गोबर की खाद 30 से 60 किलोग्राम, नाईट्रोजन 400 से 800 ग्राम, फास्फोरस 150 से 300 ग्राम, पोटाश 400 से 500 ग्राम, कैन 1600 से 3200 ग्राम, सुपर फॉस्फेट 1000 से 2000 ग्राम और पोटाश 750 से 1500 ग्राम देनी चाहिए|
अच्छी तरह से गली हुई गोबर की खाद, फासफोरस और पोटाशियम को सितंबर महीने में डालें और यूरिया को दो भागों में बांटकर पहले भाग को अक्तूबर महीने में और बाकी की मात्रा को फल बनने के बाद जनवरी से फरवरी महीने में डालें|
खरपतवार और सिंचाई
खरपतवार- लोकाट फल की खेती में खरपतवार को हाथ से गोडाई करके या रासायनों द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है ग्लाइफोसेट 1.6 लीटर को प्रति 150 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें| ग्लाइफोसेट की स्प्रे सिर्फ खरपतवार पर ही करें, मुख्य फसल पर ना करें|
सिंचाई- लोकाट फल की मिट्टी और मौसम के आधार पर सिंचाई की जाती है| मुख्यत: तुड़ाई के समय तक 3 से 4 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है|
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कीट और रोग रोकथाम
पत्ता लपेट सुंडी- ये कीट पत्तों को लपेटकर पौधों को प्रभावित करते हैं| इसकी रोकथाम के लिए क्विनलफॉस 400 मिलीलीटर को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में सिंचाई करें|
चेपा- प्रौढ़ और छोटे कीट दोनों ही पौधे का रस चूसकर उसे कमज़ोर कर देते हैं, गंभीर हमले में, इनके कारण पत्ते मुड़ जाते हैं और नए पत्तों का आकार बेढंगा हो जाता है, ये कीट प्रभावित पत्तों पर शहद की बूंद जैसा पदार्थ छोड़ते हैं, जो कि बाद में काले रंग की फंगस में विकसित हो जाते हैं| इसकी रोकथाम के लिए डाइमैथोएट 300 मिलीलीटर को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में छिड़काव करें|
काले रंग के धब्बे- यह रोग फंगस के कारण होता है, इसके कारण पत्तों पर काले रंग के धंसे हुए धब्बे पड़ जाते हैं| इस रोग की रोकथाम के लिए कार्बेनडाज़िम 4 ग्राम या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम या मैनकोजेब 3 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें|
फल तुड़ाई और पैदावार
लोकाट फल का पौधा मुख्य तौर पर पौध रोपाई के तीसरे वर्ष में फल देना शुरू करता है और 15 वें वर्ष में पौधा अधिक उपज देना शुरू कर देता है| फलों के पूरी तरह पकने पर तीखे यंत्र से तुड़ाई करें, तुड़ाई के बाद छंटाई की जाती है| इसकी औसतन उपज 7 से 10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|
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