विभिन्न प्रकार की सब्जियों की खेती सिंचाई की सुविधा होने पर वर्षभर की जा सकती है| सब्जियों की फसल लेने के लिए इनकी नर्सरी या सीधे खेत में बुवाई करनी पड़ती है| सब्जियों की फसलों को हानिकारक कीटों, रोगों, सूत्रकृमि तथा चूहे इत्यादि से बचाव करके ही अच्छी उपज सम्भव है| फसल का मुख्य रूप से कीटों, रोगों, सूत्रकृमि तथा चूहे इत्यादि से बचाव करना ही पौध संरक्षण’ कहलाता है|
हानिकारक कीट पौधों से रस चूसकर, पौधों की पत्तियों को खाकर, फलों को खाकर तथा पौधों की जड़ों को खाकर नुकसान पहुंचाते हैं| कीट, रोग, सूत्रकृमि तथा चूहों आदि के प्रकोप के कारण पौधों की उचित बढ़वार नहीं हो पाती है| इसी के साथ-साथ पौधों की संख्या में कमी होने के कारण सब्जियों की फसल की पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है| इसीलिये सब्जियों की फसल में समय-समय पौध संरक्षण कार्य करना जरूरी होता है|
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सब्जियों की फसलों में कीट समस्या
सब्जियों की फसल को हरा तेला (जेसिडस), सफेद मक्खी (व्हाइट फ्लाई) तथा पर्णजीवी (ग्रिप्स) कीट पौधों से रस चूसकर, लाल मूंग कीट (रेड पम्पकिन बीटल) पौधों की नई कोमल पत्तियों को खाकर, फल एवं तना छेदक कीट (फूट एण्ड स्टेम बोरर) तथा फल मक्खी कीट (फूट फ्लाई) फलों को खाकर तथा सफेद लट (व्हाइट ग्रब) पौधों की जड़ों को खाकर नुकसान पहुंचाते हैं|
रोकथाम-
1. हरा तेला, सफेद मक्खी तथा पर्णजीवी कीटों के नियंत्रण, रस चूसने वाले इन कीटों के लिये फल लगने से पहले फास्फेमिडॉन 85 एस एल कीटनाशक दवा की एक मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें|
2. लाल भृंग कीट के नियंत्रण के लिये कार्बारिल 5 प्रतिशत या मिथाइल पैराथियॉन 2 प्रतिशत कीटनाशक पाउडर की 20 किलोग्राम मात्रा प्रति हैक्टेयर के हिसाब से फसल पर भुरकाव करें|
3. कीटनाशक पाउडर के स्थान पर कार्बारिल 50 डब्ल्यू पी दवा की 2 किलोग्राम मात्रा प्रति हैक्टेयर या एसीफेट 75 एस पी दवा की आधा ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी के हिसाब से भी फसल पर छिड़काव किया जा सकता है|
4. फल एवं तना छेदक कीट का प्रकोप कम हो तो कीट से प्रभावित शाखाओं एवं फलों को तोड़कर नष्ट करें| फल बनने पर कार्बारिल 50 डब्ल्यू पी कीटनाशक दवा की 4 ग्राम मात्रा या एन्डोसल्फॉन 35 ई सी दवा की 1.5 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें|
5. यह अवश्य ध्यान रखें कि उपरोक्त छिड़काव के कम से कम 10 दिन पश्चात् ही फलों की तुड़ाई करें|
6. फल मक्खी कीट से प्रभावित फलों को तोड़कर नष्ट करें| इस कीट का फसल पर प्रकोप होने पर मेलाथियॉन 50 ई सी या डाईमिथोएट 30 ई सी कीटनाशक दवा की एक मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी के हिसाब से फसल पर छिड़काव अवश्य करें|
7. फल मक्खी कीट का प्रकोप होने पर इस कीट के नियंत्रण के लिये शक्कर का एक लीटर घोल बनाकर उसमें मेलाथियॉन 50 ई सी कीटनाशक दवा की 10 मिलीलीटर मात्रा मिलाकर इस घोल को चौड़े मुँह के बर्तनों में डालकर खेत में कई स्थानों पर रखकर भी फल मक्खी कीट का नियंत्रण किया जा सकता है|
8. सफेद लट कीट के नियंत्रण के लिये फोरेट 10 जी या कार्बोफ्यूरान 3जी कीटनाशक कण की 25 किलोग्राम मात्रा प्रति हैक्टेयर के हिसाब से खेत में मिलायें|
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सब्जियों की फसलों में रोग समस्या
सब्जियों की फसल में मुख्य रूप से अर्दगलन एवं जड़ गलन रोग, विषाणु रोग, झुलसा रोग, श्याम वर्ण रोग, तुलासिता रोग तथा जीवाणु धब्बा रोग का प्रकोप अत्याधिक पाया जाता है| विषाणु रोग रस चूसने वाले कीटों द्वारा फैलता है| झुलसा रोग में पत्तियों पर भूरे रंग के छल्ले बनते हैं|
श्याम वर्ण रोग के कारण पत्तियों और फलों पर गहरे-भूरे से काले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं| तुलासिता रोग में पत्तियों की ऊपरी सतह पर पीले रंग के धब्बे तथा पत्ती की निचली सतह पर फफूंदी की वृद्धि दिखाई पड़ती है| जीवाणु धब्बा रोग में पत्तियों पर जलीय धब्बे बनते हैं जो बाद में गहरे-भूरे से काले रंग के उठे हुये होते हैं|
रोकथाम-
1. विषाणु रोग की रोकथाम के लिए यदि संभव हो तो रोग-ग्रसित पौधों को उखाड़ कर नष्ट करें| फल आने से पहले डाईमिथोएट 30 ई सी कीटनाशक दवा की एक मिलीलीटर मात्रा तथा यदि फलों की तुड़ाई चल रही हो तो मेलाथियॉन 50 ई सी दवा की एक मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर फसल पर छिड़काव अवश्य करें|
2. झुलसा, श्याम वर्ण तथा तुलासिता रोगों की रोकथाम के लिए यदि इन रोगों में से किसी भी रोग का प्रकोप हो तो मेन्कोजेब फफूंदीनाशी दवा की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करना लाभप्रद रहता है|
3. जीवाणु धब्बा रोग की रोकथाम के लिये स्ट्रेप्टोसाइक्लिन दवा की 2 मिलीग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें या कॉपर आक्सीक्लोराइड दवा की 3 ग्राम मात्रा तथा स्ट्रेप्टोसाइक्लिन दवा की 1 मिलीग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर भी फसल पर छिड़काव किया जा सकता है|
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सब्जियों की फसलों में सूत्रकृमि समस्या
सब्जियों की फसलों में सूत्रकृमियों द्वारा पौधों में होने वाली समस्या को ‘जड़-गाँठ रोग’ से जाना जाता है| इस रोग के कारण पौधों की जड़ों में गांठे बन जाती हैं, जिस कारण से पौधे सूखने लगते हैं|
रोकथाम-
1. जड़ गाँठ रोग की रोकथाम के लिए नर्सरी में कार्बोफ्यूरॉन 3 जी दवा के कण की 6 से 9 ग्राम मात्रा प्रति वर्गमीटर क्षेत्रफल के हिसाब से जमीन में मिलायें|
2. खेत में रोपाई से पहले कार्बोफ्यूरॉन 3 जी कण की कम से कम 33 किलोग्राम मात्रा प्रति हैक्टेयर के हिसाब से भूमि में मिलाये|
3. फसल चक्र अवश्य अपनायें तथा फसल चक्र में बाजरा, गेहूं, जौ तथा सरसों की फसल को अवश्य शामिल करें|
4. खेत में नीम की खल 500 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर के हिसाब से प्रयोग करें| 6. सब्जियों के साथ में गेंदे के पौधे लगाने से भी सूत्रकृमि की समस्या को कम किया जा सकता है|
5. यदि सम्भव हो तो सब्जी की फसल लेने वाले खेत की गर्मियों में जुताई करके कुछ समय के लिए खुला छोड़ दें| ऐसा करने से भी सूत्रकृमियों की संख्या कम होती है|
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सब्जियों की फसलों में चूहों की समस्या
सब्जियों में चूहों से औसतन 4 से 10 प्रतिशत तक नुकसान होता है| खेतों में चूहे बोये गये बीजों को खाकर पौधों की संख्या को कम कर देते हैं| जिससे फसल की पूर्ण पैदावार नहीं मिल पाती है| खेतों में चूहे जमीन के नजदीक से अंकुरित पौधे के तने को काट कर भी फसल को नुकसान पहुंचाते हैं|
रोकथाम-
1. चूहों की समस्या से निदान के लिए खेतों में पिंजरों की सहायता से चूहों की संख्या कम की जा सकती है|
2. खेतों में मेड़ों की ऊँचाई ज्यादा नहीं रखें|
3. चूहों की संख्या को कम करने के लिये खेतों में जिंक फास्फाइड विष की 20 ग्राम मात्रा तथा खाने के तेल की 20 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम अनाज के हिसाब से मिलाकर बिलों में प्रयोग करें|
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