सब्जियों में भारत पूरे विश्व में महत्वपूर्ण स्थान रखता हैं या यु कहें की सब्जियां पूरे विश्व में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं, और मनुष्य के भोजन का एक अभिन्न तत्व हैं| दिन प्रतिदिन बढ़ती हुई जनसंख्या के साथ-साथ सब्जियों की आवश्यकता भी हर रोज बढ़ती जा रही है, लेकिन कृषि योग्य भूमि की एक सीमा है, जिसे हम बढ़ा नहीं सकते है|
ऐसी स्थिति से निपटने के लिये कृषि वैज्ञानिकों ने नई-नई मौसमी एवं बेमोसमी सब्जियों की किस्मे तैयार की है| सब्जियों में किसानों ने अधिक आर्थिक लाभ कमाने के लिए पैदावार बढ़ाने हेतु रासायनिक खादों का प्रयोग शुरू किया, जिसके परिणामस्वरूप फसलों में नई-नई बीमारियां और कीटों का प्रकोप बढ़ने लगा|
सब्जियों में इन कीड़ों एवं बीमारियों से छुटकारा पाने के लिये किसान ने रासायनिक दवाईयों को मुख्य हथियार के रूप में अपनाया| शुरू-शुरू में तो यह कीटनाशक किसानों के लिये वरदान सिद्ध हुए लेकिन आगे चलकर इनसे अनेक समस्याएं पैदा हो गई|
आई पी एम का महत्व सब्जियों की फसल में ओर भी ज्यादा बढ़ जाता है| क्योंकि इनका प्रयोग भोजन में आमतौर पर खेत से निकालने के बाद तत्काल ही होता है एवं कई सब्जियों का प्रयोग सलाद के रूप में बिना पकाए ही किया जाता है, बहुत से किसान जाने-अनजाने में तथा मजबूरी में ज्यादा मुनाफा पाने की कोशिश में अपनी फसल का रसायनों के प्रयोग से कुछ दिन बाद ही सब्जी मण्डी ले आते हैं|
जबकि रसायनों के अवशेष उन सब्जियों में काफी मात्रा में मौजूद होते हैं, ऐसी सब्जियों को प्रयोग में लाने से मनुष्य पर कई तरह के तत्काल और दूरगामी दुष्परिणाम होते हैं| इन समस्याओं के समाधान के लिए कृषि विभाग किसानों पर एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन अपनाने के लिए समझा रहा है|
जिसमें फसल बोने से पहले खेत की तैयारी से लेकर फसल की कटाई तक विभिन्न प्रबंधन विधियां जैसे- व्यवहारिक, यांत्रिक, जैविक एवं रासायनिक अपनाई जाती है|
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सब्जियों में नाशीजीव
फसल- टमाटर
कीट एवं रोग- फलछेदक, फलमक्खी, कटुआ कीड़ा, जड़ गांठ सूत्रकृमि, सफेद मक्खी, दीमक, कमरतोड़ रोग, वकाई राट, आल्टरनेरिया रोग, बैक्टीरियल विल्ट,ब्लाइट, पत्ती और फल सड़न रोग आदि मुख्य है|
फसल- बंद गोभी,फूल गोभी एवं गांठ गोभी
कीट एवं रोग- इन सब्जियों में फल छेदक, सैमीलूपर, डायमण्ड बैक मॉथ, तेला, थ्रिप्स, पेंटिड बग, कैबेजबटर फ्लाई, कटुआ कीड़ा, कमरतोड़ रोग, ब्लैक रॉट, फूल तथा तना सड़न, डाऊनी व पाउडरी मिल्ड्यू, आल्टरनेरिया रोग आदि मुख्य है|
फसल- भिण्डी
कीट एवं रोग- फल छेदक, बलिस्टर बीटल, सफेद मक्खी, ग्रीन बग, यैलोमोजेक वायरस, कमरतोड़ रोग, फल सड़न आदि प्रमुख है|
फसल- बैंगन
कीट एवं रोग- टहनी व फल छेदक, हड्डा बीटल, जैसिड, माइटस, जड़गांठ सूत्रकृमि, तना छेदक, सफेद मक्खी, फल सड़न, ब्लाइट, कमरतोड़ रोग एवं कीट इत्यादि प्रमुख है|
फसल- मटर एवं फ्रांसबीन
कीट एवं रोग- इन सब्जियों में फली छेदक, लीफ माइनर, थ्रिप्स, माइटस, बलिस्टर बीटल, बीन बग, चूर्णलासिता रोग, ब्लाइट, कमरतोड़ रोग, बिल्ट, बैक्टीरियल ब्लाईट, एन्थ्राक्नोज, लीफस्पॉट आदि मुख्य है|
फसल- कद्दू एवं खीरा
कीट एवं रोग- इन सब्जियों में फल मक्खी, लाल बीटल, हडडा बीटल, माइटस, पाऊडरी एवं डाऊनी मिल्ड्यू, ऐन्थाक्नोज, मोजेक वायरस आदि मुख्य है|
फसल- पत्ती वाली सब्जियां
कीट एवं रोग- इन सब्जियों में हैलीकोवरपा, हेयरी कैटरपीलर्ज, ग्रासहोपरज, ब्लाईट, आल्टरनेरिया आदि मुख्य है|
फसल- शिमला मिर्च एवं लाल मिर्च
कीट एवं रोग- इन सब्जियों में तेला,थ्रिप्स, दीमक, सफेद मक्खी, जैसिड, माइटस, कमरतोड़ रोग, फल सड़न, पाऊडरी व डाऊनी मिल्ड्यू, ब्लाइट, एन्थाक्नोज, डाईवैक, विल्ट, मौजेक आदि मुख्य है|
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सब्जियों में एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन विधियां
फसल- टमाटर, आलू और गोभी
नाशीजीव प्रबंधन विधियां- बीजाई से पहले बीज को वैवस्टीन या कैपटॉन (2 से 3 ग्राम प्रति किलोग्राम) से उपचारित करें|
फसल- मटर, प्याज (फफूंद रोग)
प्रबंधन विधियां-
1. सब्जियों में गली सड़ी गोबर की खाद या केचुआ खाद तथा संतुलित खाद का प्रयोग करें|
2. पौधे निकलने पर क्यारियों को इण्डोफिल एम- 45 (2 ग्राम प्रति लीटर) या बैविस्टिन (0.5 ग्राम प्रति लीटर) या ट्राइकोडरमा विरिडी (10 ग्राम प्रति लीटर पानी) के घोल से सींचे या छिड़काव करें|
3. सब्जियों में केवल उपचारित पौधों का रोपण करें|
4. सब्जियों में बीमारी के लक्षण आने पर इण्डोफिल एम- 45 (25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) या ब्लाइटोक्स 30 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी का छिड़काव करें|
5. पौधे के रोगग्रस्त भागों को और फलों को इक्ट्ठा करके गहरे गढे में दबा दें|
6. बीज रोगमुक्त फल से ही तैयार करें|
7. फसल चक्र अवश्य अपनाएँ|
8. सब्जियों में नाईट्रोजन खादों का ज्यादा मात्रा में इस्तेमाल न करें|
9. अगर बीमारी का प्रकोप आर्थिक हानि स्तर से ज्यादा हो तो सिफारिशशुधा दवाईयों का प्रयोग कृषि विशेषज्ञ की सलाह पर करें|
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फसल- टमाटर, मटर, फ्रासबीन एवं भिंडी में लगने वाला फल एवं फलीछेदक कीट|
प्रबंधन विधियां-
1. सब्जियों में प्रकाश प्रपंच एवं फिरोमोन ट्रेप का प्रयोग करें और एकत्रित कीटों को नष्ट करें|
2. कीड़ों के प्राकृतिक शत्रु ट्राइकोग्रामा क्लिोनिस (50,000 अण्डे प्रति हेक्टेयर) तथा क्लिोनिस ब्लैकवर्नि (15,000 व्यस्क प्रति हेक्टेयर) को खेतों में दो से तीन बार छोड़े एवं उनको संरक्षण दें|
3. सब्जियों में अण्डों, सुण्डियों और छेदे हुए फलों को इक्ट्ठा करके नष्ट करें|
4. कीट का प्रकोप आर्थिक हानि स्तर से ऊपर होने पर एन पी वी (विषाणु जल) या वी टी या नीम पर आधारित कीटनाशक या साइपरमैथरिन का घोल बनाकर फूल आने पर छिड़काव करें|
5. जैविक कीट एवं रोगनाशी दवाईयां जैसे की मैटारिजियम, ब्यूवेरिया को गोबर या केचुआ खाद में मिलाकर खेता में डालें|
फसल- बैंगन में टहनी और फल छेदक कीट|
प्रबंधन विधिया-
1. सब्जियों में फिरोफोन टैप का प्रयोग करें|
2. कीट से प्रभावित फल एवं टहनी को इक्ट्ठा करके नष्ट कर दें|
3. प्रभावित फसल में ट्राइकोग्रामा क्लिोनिस (50,000 अण्डे प्रति हेक्टेयर) 2 से 3 बार छोडें|
4. पौधे की एक साल की जड़ को दूसरे साल तक न रहने दें|
5. सब्जियों में नीम आधरित दवाईयों का इस्तेमाल करें|
6. प्रकोप अधिक होने पर रसायनिक कीटनाशक का प्रयोग कृषि विशेषज्ञ की सलाह पर करें
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फसल- गोभी का डायमल्ड बैक मॉथ
प्रबंधन विधियां-
1. सब्जियों में फिरोमोन ट्रेप का प्रयोग करें|
2. गोभी और टमाटर या गोभी एवं सरसों की फसलों को एक लाइन के बाद दूसरी फसल की लाइन बुआई को बढ़ावा दें|
3. सब्जियों में नीम आधारित दवाईयों का इस्तेमाल करें|
4. प्रकोप अधिक होने पर 50 मिलीलीटर डाईक्लोरोवास (न्यूवान) को 100 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें|
नाशीजीव एवं फसल- मटर में चूर्णलासिता एवं लीफमाईनर नाशीजीव|
प्रबंधन विधियां-
1. चूर्णलासिता रोग प्रतिरोधी किस्मों की बिजाई करें|
2. नीम आधारित कीटनाशक या कीट व्याधिकारक मैटरिजीयम का इस्तेमाल करें|
3. चूर्णलासिता रोग के लिए बैबीस्टिन दवाई का प्रयोग करे|
4. अधिक प्रकोप होने पर कृषि विशेषज्ञ की सलाह पर रासायनिक दवाई का इस्तेमाल करें|
5. रोग को आश्रय देने वाले खरपतवारों को नष्ट कर दें|
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फसल- टमाटर वैक्टीरियल विल्ट|
प्रबंधन विधियां-
1. रोग प्रतिरोधी किस्मों की बिजाई करें|
2. सब्जियों में तीन वर्षीय फसल चक्र अपनाएँ|
3. रोगमुक्त एवं स्वस्थ पौधे का ही रोपण करें|
4. नाइट्रोजन युक्त खाद का अधिक प्रयोग न करें|
5. पानी को रोगग्रस्त खेत से स्वस्थ खेतों में न जाने दें|
फसल- टमाटर का पत्ती मुड़न वायरस तथा भिण्डी व फ्रासबीन का यैलो मोजेक
प्रबंधन विधियां-
1. रोग प्रतिरोधी किस्में लगाएँ|
2. रोग को आश्रय देने वाले खरपतवारों को नष्ट कर दें|
3. रोग को फैलाने वाले कीटों का समय पर नियन्त्रण करें|
4. खेतों में येलो स्टीकी ट्रेप का प्रयोग करें|
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नाशीजीव एवं फसल- कद्दू प्रजाति की फसलों में फल मक्खी|
प्रबंधन विधियां-
1. सब्जियों में 5 फिरोमोन ट्रेप प्रति हेक्टेयर प्रयोग करें (एम सी फेल ट्रेप, पालम ट्रेप)|
2. ग्रसित फलों को इक्ट्ठा करके नष्ट कर दें |
3. जब कीट के प्रौढ़ फसल में दिखाई दें तो 1 किलो चीनी या गुड़ और 200 मिलीलीटर मैलाथियोन को 100 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें|
नाशीजीव- कटुआ कीड़ा|
प्रबंधन विधियां-
1. पूर्णतया गली सड़ी गोबर की खाद का प्रयोग करें|
2. सब्जियों में प्रकाश प्रपंच का प्रयोग करें|
3. कीड़ा जो प्रायः जड़ों के पास होता है ढूंढकर नष्ट करें|
4. बीजाई से पहले खेत में कीट व्याधिकारक मेटरीजियम को गोबर की खाद या केंचुआ खाद में मिलाकर प्रयोग करें| कटुआ सुंडी से पौधों को बचाने के लिए 4 इंच चौड़ा पाइपदार यंत्र बनाएं जोकि पुरानी अखबार के कागज या एलूमिनीयम फोइल का हो या प्लास्टिक कप को काट के बनाएं| इसे पौधे पर इस तरह रखे, ताकि पौधे का तना चारों तरफ से ढक जाऐं, इस यंत्र को मिटटी में एक इंच दबाए ताकि सुंडी पौधे तक न पहुंच पाएं|
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नाशीजीव- जड़गांठ सूत्रकृमि|
प्रबंधन विधियां-
1. सूत्रकृमि से प्रभावित खेतों में टमाटर और उसके वंश के अन्य पौधे जैसे शिमलामिर्च, लाल मिर्च, बैंगन, आलू इत्यादि से एक फसल लेने के बाद तुरन्त दूसरी फसल न लें|
2. फसल काटने के बाद जड़ों को निकाल कर नष्ट कर दें|
3. फेरबदल के लिए प्रभावित खेतों में अनाज वाली फसलें उगाएँ|
4. रोगग्रस्त खेतों में 2 से 3 वर्ष के लिए सूत्रकृमि प्रतिरोधी किस्में ही उगाऐं|
5. प्रतिवर्ष पौधशाला का स्थान बदलें|
6. गहरी जुताई के साथ रोगग्रस्त खेतों में ट्राईकोडरमा को गोबर के साथ मिलाकर खेतों में डाले|
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