सरसों की उन्नत किस्मों का चुनाव क्षेत्रीय अनुकूलता और बीजाई के समय को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए, ताकि इनकी उत्पादन क्षमता का लाभ लिया जा सके| भारत का सरसों उत्पादन में अहम स्थान है| भारत में सरसों की उत्पादकता और उपज को और अधिक बढ़ाने की अपार संभावनाएं है| इसलिए किसानों को अधिक उपज और आय में वृद्धि हेतु वैज्ञानिक विधि से खेती करने की आवश्यकता है| यदि आप सरसों की खेती की आधुनिक जानकारी चाहते है| तो यहां पढ़ें- सरसों की खेती की जानकारी
सरसों की खेती अधिकांशतः सिंचित क्षेत्रों में की जाती है| सरसों की किस्में अधिक उपज देने वाली और उनसे अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने के लिये उन्नत विधियों का विवरण यहां प्रस्तुत किया जा रहा है| सरसों की उन्नत किस्में और उनका विवरण इस प्रकार है, जैसे-
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सरसों की किस्में
आर एच 30- इस किस्म की सारे उत्तरी भारत के बारानी एवं सिंचित क्षेत्रों के लिए सिफारिश की जाती है| पछेती बिजाई में भी यह अन्य किस्मों से अधिक पैदावार देती है| इसको नवम्बर के अन्त तक बोया जा सकता है| इसका बीज मोटा होता है, 5.5 से 6.0 ग्राम प्रति 1000 बीज का वजन, पकने के समय फलियां नहीं झड़तीं, मिश्रित खेती के लिए यह एक उत्तम किस्म है, यह 135 से 140 दिन में पकती हैं, इसकी औसत उपज 9 से 10 क्विंटल प्रति एकड़ है, और तेल अंश 40 प्रतिशत है|
टी 59 (वरूणा)- यह किस्म कानपुर (उत्तर प्रदेश) में विकसित की गई है| यह उत्तरी भारत में सभी स्थितियों के लिए एक उपयुक्त किस्म है, यह 140 से 142 दिन में पकती है, इसका बीज मोटा होता है, 5 से 5.5 ग्राम प्रति 1000 दानो का वजन, और पैदावार 8 से 9 क्विंटल प्रति एकड़ है और तेल अंश 40 प्रतिशत है|
आर एच 8113 (सौरभ)- यह किस्म 150 दिन में पक कर तैयार हो जाती है, यह लम्बी बढ़ने और घनी शाखाओं वाली किस्म है, जिसके नीचे के पत्ते चौड़े, धारियां लम्बी तथा मध्य-शिरा चौड़ी होती है| इसकी औसत उपज 9 से 10 क्विंटल प्रति एकड़ है, बीज मध्यम आकार के बीज भार 3.5 ग्राम प्रति 1000 दाने एवं गहरा-भूरा रंग लिए होते हैं, जिनमें 40 प्रतिशत तेल की मात्रा होती है, इस किस्म की विशेषता यह है, कि आल्टरनेरिया, सफेद रतुआ तथा डाऊनी मिल्ड्यू रोगों की मध्यम प्रतिरोधी है|
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आर.बी. 50- इस किस्म को 2009 में भारतवर्ष के जोन-2 (हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, उत्तरप्रदेश व राजस्थान के कुछ हिस्सों) में बारानी क्षेत्रों के लिए केन्द्रीय किस्म विमोचन समिति ने विमोचित किया है| इसकी फलियां लम्बी और मोटी है, यह अधिक बढ़ने वाली 194 से 207 सेंटीमीटर मध्यम समय में पकने वाली 146 दिन व मोटे दाने 5.5 से 6.0 ग्राम प्रति 1000 दाने वजन, वाली किस्म है, समय पर बिजाई से बारानी क्षेत्रों में इसकी औसत पैदावार 7.2 क्विंटल प्रति एकड़ है| इसमें तेल अंश 39 प्रतिशत है|
आर.एच. 8812(लक्ष्मी)- यह अधिक उपज देने वाली किस्म है, जिसकी सारे उत्तरी राज्यों में समय पर बिजाई और सिंचित क्षेत्रों के लिए सिफारिश करते हैं, इस किस्म की पत्तियां छोटी, शाखाओं का रुख ऊपर की ओर एवं तना और शाखायें चमक रहित होती है, फलियां मोटी, बीज मोटे व काले रंग के होते है, इसकी औसत पैदावार 9 से 10 क्विंटल प्रति एकड़ हैं, यह किस्म 142 से 145 दिन में पकती है और तेल अंश 40 प्रतिशत है|
आर एच 781- इस किस्म की मुख्य विशेषतायें इस प्रकार हैं, पकने में 140 दिन, ऊँचाई मध्यम 180 सेंटीमीटर भरपूर फुटाव एवं टहनियां, मध्यम आकार का दाना 4.2 ग्राम प्रति1000 बीज वजन, और तेल अंश 40 प्रतिशत, इसकी औसत पैदावार 7 से 8 क्विंटल प्रति एकड़ है एवं यह पाला व सर्दी की सहनशील है|
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आर एच 819- यह किस्म बारानी क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से उपयुक्त है, यह लम्बी 226 सेंटीमीटर मध्यम समय 148 दिन में पकने वाली और मध्यम आकार के दानों 4.5 ग्राम प्रति 1000 बीज वजन, वाली किस्म है, इसका तेल अंश 40 प्रतिशत है, इसके पत्ते गहरे रंग के, टहनियां भरपूर एवं छोटी होती हैं, बारानी क्षेत्रों में इसकी औसत पैदावार 5.5 क्विंटल प्रति एकड़ है जो कि आर एच 30 तथा वरूणा से क्रमश: 10 तथा 30 प्रतिशत अधिक है|
आर एच 9304 (वसुन्धरा)- इस किस्म को वर्ष 2002 में केन्द्र ने भारतवर्ष में जोन-3 (उत्तरप्रदेश, उत्तरांचल, मध्यप्रदेश व राजस्थान के कुछ हिस्सों के लिए अनुमोदित किया है और इसकी सिफारिश हरियाणा राज्य के भी सिंचित क्षेत्रों के लिए की गई है, इस किस्म की मुख्य विशेषतायें इस प्रकार हैं- पकने में 130 से 135 दिन, ऊँचाई मध्यम 180 से 190 सेंटीमीटर भरपूर फुटाव एवं टहनियां, मोटे दानों वाली, 5.6 ग्राम प्रति 1000 बीज वजन और तेल अंश 40 प्रतिशत, इसकी औसत पैदावार 9.5 से 10.5 क्विंटल प्रति एकड़ और पकने के समय इसकी फलियां नहीं झड़तीं एवं उच्च तापमान के प्रति मध्यम सहनशील है|
आर एच 9801 (स्वर्ण ज्योति)- इस किस्म को आर.सी. 1670 से विकसित किया गया है और केन्द्र ने देश के जोन-3 (उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, मध्य प्रदेश व राजस्थान के कुछ हिस्सों) के लिए वर्ष 2002 में अनुमोदित किया है, इस किस्म की सारे उत्तर भारत के सिचिंत क्षेत्रों के लिए पछेती बिजाई में सिफारिश की जाती है, इसकी औसत उपज 8 से 9 क्विंटल प्रति एकड़ है और इसको नवम्बर के अन्त तक भी बीजा जा सकता है, यह 125 से 130 दिन पककर तैयार हो जाती है, तेल की मात्रा 40 प्रतिशत है|
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आर एच 0406- इस किस्म का भारतवर्ष के जोन-2 हरियाणा, पंजाब, दिल्ली और राजस्थान के कुछ क्षेत्र के बारानी क्षेत्रों में समय पर बिजाई के लिए अनुमोदन सन् 2012 में किया गया है, इस किस्म की ऊँचाई मध्यम है एवं यह पकने के लिए 142 से 145 दिन लेती है, यह किस्म मोटे दानों वाली 5.5 ग्राम प्रति1000 बीज वजन और इसमें फलियों की स्थिति में झुकाव प्रतिरोधकता भी है, इस किस्म में तेल अंश 39 प्रतिशत तथा इसकी औसत उपज 8.5 से 9.5 क्विंटल प्रति एकड़ है, यह किस्म सिंचित अवस्था में भी अच्छी पैदावार दे देती है|
आर एच 0749- इस किस्म की सन् 2013 में भारतवर्ष के जोन-2 हरियाणा, पंजाब, दिल्ली और राजस्थान के कुछ क्षेत्र के सिंचित क्षेत्रों में समय पर बिजाई के लिए सिफारिश की गई है, यह 145-148 दिनों में पकती है एवं इसकी मध्यम ऊँचाई होती है, इस किस्म की फलियां लंबी और मोटी होती हैं, वे दाने का आकार भी बड़ा 5.8 ग्राम प्रति 1000 बीज वजन होता है, इसमें तेल मी मात्रा 39 से 40 प्रतिशत तथा इसकी औसत पैदावार 10.0 से 11.5 किंवटल प्रति एकड़ है|
आर बी 9901 (गीता)- यह किस्म भारत के उत्तरी राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली एवं राजस्थान के कुछ हिस्सों में बारानी क्षेत्रों के लिए केन्द्रीय किस्म विमोचन समिति द्वारा दिसम्बर 2002 में विमोचित की गई है, इसके पौधों की फलियों में दाने चार पंक्तियों में होते हैं, यह किस्म समय पर बिजाई करने पर बारानी क्षेत्रों में अन्य सिफारिश की गई किस्मों से अधिक उपज देती है, यह किस्म 140 से 147 दिन में पक कर 7 से 8 क्विंटल प्रति एकड़ औसत उपज देती है, इस किस्म के दाने मोटे होते हैं तथा इनमें तेल की मात्रा 40 प्रतिशत होती है, यह किस्म सफेद रतुआ के लिए मध्यम रोधी है|
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भूरी सरसों हरियाणा 1- हरियाणा में खेती के लिए यह किस्म 1966 में दी गई थी, यह लगभग 136 दिन में पकती है, इसकी प्रति एकड़ औसत पैदावार 5 क्विंटल है और तेल की मात्रा 45 प्रतिशत है|
वाई एस एच 0401- इस किस्म को 2008 में सम्पूर्ण भारतवर्ष के पीली सरसों बोने वाले क्षेत्रों के लिए और सिंचित क्षेत्रों के लिए समस्पर बिजाई के लिए अनुमोदित किया गया है, यह कम अवधि 115 से 120 दिन में पकने वाली एवं अधिक तेल मात्रा 45 प्रतिशत वाली किस्म है, इसकी औसत पैदावार 6.5 से 7.5 क्विंटल प्रति एकड़ है|
पूसा संस्थान द्वारा विकसित उन्नत किस्में-
पूसा सरसों- 26 (एन.पी.जे. 113)- औसत पैदावार 16.04 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, 126 दिनों में पकने वाली, तेल की औसत मात्रा लगभग 37.6 प्रतिशत, देश के उत्तर पश्चिमी राज्यों में कपास, धान और ग्वार की कटाई के बाद बुआई के लिए उपयुक्त, पकाव के समय उच्च तापमान तथा लवणीयता के प्रति सहिष्णु
पूसा सरसों- 27 (ई.जे. 17)- औसत पैदावार 15.35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, तेल की औसत मात्रा लगभग 41.7 प्रतिशत, तोरिया फसल का एक अच्छा विकल्प, देश के उत्तरी मध्य भारत में बहु फसलीय चक्र में विशेषतः सितम्बर से मध्य दिसम्बर तक बुआई के लिए उपयुक्त, अंकुरण के समय उच्च तापमान तथा लवणीयता के प्रति सहिष्णु|
पूसा सरसों- 25 (एन.पी.जे. 112)- राया की कम समय 107 दिन में पकने वाली किस्म, औसत पैदावार 14.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, तेल की औसत मात्रा लगभग 39.6 प्रतिशत, तोरिया फसल का एक अच्छा विकल्प, देश के उत्तर पश्चिमी राज्यों में बहु फसलीय चक्र में विशेषतः सितम्बर से मध्य दिसम्बर तक बुआई के लिए उपयुक्त|
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पूसा तारक (ई.जे.-13)- औसत पैदावार 19.24 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, तेल की औसत मात्रा लगभग 40 प्रतिशत, पकने की अवधि 121 दिन, बहु फसलीय चक्र के लिए उपयोगी|
पूसा महक (जे.डी.-6)- औसत पैदावार 17.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, तोरिया फसल का अच्छा विकल्प तेल, की औसत मात्रा लगभग 40 प्रतिशत, 118 दिनों में पकने वाली है, देश के उत्तर-पूर्वी व पूर्वी राज्यों में धान की फसल के बाद बुआई के लिए उपयुक्त|
पूसा अग्रणी (एस.ई.जे.-2)- औसत पैदावार 17.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, कम अवधि 110 दिन में पकने वाली, तेल की मात्रा 39 से 40 प्रतिशत, तोरिया फसल का एक अच्छा विकल्प|
पूसा विजय (एन.पी.जे.-93)- औसत पैदावार 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, दाने मोटे 6 ग्राम 1000 दाने, तेल की औसत मात्रा 38. 5 प्रतिशत, 140 दिनों में पकने वाली, अंकुरण के समय उच्च तापमान और लवणीयता के प्रति सहिष्णु|
पूसा सरसों-24 (एल.ई.टी.-18)- औसत पैदावार 20.25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, कम इरूसिक अम्ल 2 प्रतिशत से कम वाली किस्म, पकने की औसत अवधि 140 दिन, दाने छोटे 4.0 ग्राम/1000 दाने, तेल की मात्रा 36.55 प्रतिशत|
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पूसा सरसों-22 (एल.ई.टी.-17)- समय पर सिंचित अवस्था में बुआई के लिए उपयुक्त, औसत पैदावार 20.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, कम इरूसिक अम्ल 2 प्रतिशत से कम वाली किस्म, पकने की औसत अवधि 142 दिन, दानों में तेल की औसत मात्रा 35.5 प्रतिशत|
पूसा सरसों-21 (एल.ई.एस.-1-27)- औसत पैदावार 18-21 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, कम ईरूसिक अम्ल 2 प्रतिशत से कम वाली किस्म, 133 से 142 दिनों में पकने वाली, दाने छोटे 4.3 ग्राम/1000 दाने, तेल की औसत मात्रा 36 प्रतिशत|
पूसा करिश्मा (एल.ई.एस.-39)- औसत पैदावार 22.0 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, कम इरूसिक अम्ल 2 प्रतिशत से कम वाली किस्म, पकने की औसत अवधि 145 दिन, दाने पीले रंग और छोटे आकार के तेल की औसत मात्रा 38 प्रतिशत, सफेद रतुआ रोग के प्रति सहिष्णु|
पूसा आदित्य (एन.पी.सी.-9)- औसत पैदावार 14.0 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, दाने छोटे 4.0 ग्राम/1000 दाने, तेल की मात्रा 40 प्रतिशत, पकने की औसत अवधि 166 दिन, बारानी अवस्थाओं और कम उपजाऊ भूमियों में अच्छी पैदावार, डाउनी मिल्ड्यू एवं सफेद रतुआ रोग के प्रति प्रतिरोधक, झुलसा रोग, तना गलन व पाउडरी मिल्ड्यू के प्रति सहिष्णुता|
पूसा स्वर्णिम (आई.जी.सी.-01)- सरसों की औसत पैदावार सिंचित 16 से 17 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, बारानी 14 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, दानों का रंग पीला, तेल की मात्रा 40 से 43 प्रतिशत, पकने की औसत अवधि 165 दिन, उच्च दर्जे की सूखा सहिष्णुता, सफेद रतुआ रोग रोधी और झुलसा रोग के प्रति सहिष्णु|
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