भारत धान उत्पादन करने वाला विश्व में एक प्रमुख देश है| धान की खेती असिंचित एवं सिंचित दोनों स्थितियों में की जाती है| धान की विभिन्न उन्नतशील प्रजातियाँ जो कि अधिक उपज देती हैं| उनका प्रचलन सिंचित क्षेत्रों में भी धीरे-धीरे बढ़ रहा है| परन्तु प्रमुख समस्या कीट ब्याधियों की है, यदि समय रहते इसका प्रबंधन कर लिया जाये तो अधिकतम उत्पादन के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है|
सिंचित धान की फसल को विभिन्न हानिकारक कीटों जैसे- तना छेदक, गुलाबी तना छेदक, पत्ती लपेटक, धान का फूदका तथा गंधीबग द्वारा नुकसान पहुँचाया जाता है| इस लेख में सिंचित क्षेत्रों में धान की फसल के कीट एवं उनका प्रबंधन कैसे करें का उल्लेख है| धान की खेती के लिए यहाँ पढ़ें- धान (चावल) की खेती कैसे करें
यह भी पढ़ें- असिंचित क्षेत्रों में धान की फसल के कीट एवं उनका प्रबंधन कैसे करें
दीमक का प्रकोप
पहचान एवं हानि की प्रकृति- यह एक समाजिक कीट है और समूह में रहते है| श्रमिक कीट पंखहीन छोटे पीले, सफेद रंग के होते है एवं समूह के लिए कार्य करते है| श्रमिक कीट अंकुरित बीजों की जड़ों को खाकर नुकसान पहुंचाते हैं| ये पौधों को रात में जमीन की सतह से भी काटकर गिरा देती है| पौधे अनियमित आकार के कुतरे हुए दिखाई देते हैं|
गोभ गिडार
आर्थिक क्षति स्तर- सिंचित क्षेत्रों में 20 प्रतिशत प्रकोपित पत्ती|
पहचान और हानि की प्रकृति- सिंचित क्षेत्रों में प्रौढ़ मक्खी धूसर भूरे रंग वाली एवं सुंडियां पाद हीन पीले रंग की होती है| सुंडियां गोभ से बन रही पत्तियों के किनारों को खाती है| ये पत्तियां निकलने पर किनारे से कटी दिखाई देती है|
धान का मूलधुन
आर्थिक क्षति स्तर- सिंचित क्षेत्रों में 5 प्रतिशत प्रकोपित पौधे|
पहचान और हानि की प्रकृति- सिंचित क्षेत्रों में प्रौढ़ छोटा भूरे रंग का 3 से 4 मिलीमीटर लम्बा कीट होता है| सूड़ियाँ पाद रहित सफेद रंग की होती है, सूड़ियाँ जड़ के मध्य में रहकर नुकसान करती है| जिसके फलस्वरूप पौधों की गोलाई में पीले पड़ जाते है| अधिक प्रकोप होने पर पौधों का संख्या घट जाती है एव उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है|
यह भी पढ़ें- धान में खरपतवार एवं निराई प्रबंधन कैसे करें
पत्ती लपेटक कीट
आर्थिक क्षति स्तर- सिंचित क्षेत्रों में 2 ताजी प्रकोपित पत्ती प्रति पूंजा|
पहचान और हानि की प्रकृति- सूड़ियाँ प्रारम्भ में सुनहरे पीले रंग की और बाद में हरे रंग की हो जाती है| प्रौढ़ कीट लगभग 1 सेंटीमीटर लम्बा पीले हल्के भूरे रंग का पतंगा होता है| जिसके अगले पंखों पर 3 टेढ़ी मेढ़ी रेखाएं होती है| इनकी सूड़ियां पत्तियों को लम्बाई में मोड़कर अन्दर से उनके हरे भाग को खुरच कर खाती है|
हिस्पा कीट
आर्थिक क्षति स्तर- सिंचित क्षेत्रों में 1 से 2 प्रकोपित पत्ती या 2 प्रौढ़ प्रति पूंजा|
पहचान और हानि की प्रकृति- प्रौढ़ लगभग 3 से 4 मिलीमीटर लम्बा कॉटेदार चमकीले काले रंग का कीट होता है| इस कीट की सूड़ियां पत्तियों की ऊपर एवं निचली परत के मध्य रहकर हरे भाग को खाती है, जिससे उन पर फफोले जैसी आकृति बन जाती है| प्रौढ़ कीट पत्तियों के हरे पदार्थ को खुरचकर खाता है|
बंका कीट
आर्थिक क्षति स्तर- सिंचित क्षेत्रों में 2 ताजी प्रकोपित पत्ती प्रति पूंजा|
पहचान और हानि की प्रकृति- सूड़ियां हल्के हरे रंग और भूरे सिर वाली होती है| प्रौढ़ कीट सफेद पंख वाला होता है, जिस पर टेढ़ी मेढ़ी लकीरें पायी जाती हैं| सूड़ियां पत्तियों को अपने शरीर के बराबर काटकर खोल बना लेती है एवं उसी के अन्दर रहकर दूसरे पत्तियों से चिपक कर उनके हरे भाग को खुरचकर खाती है|
यह भी पढ़ें- धान में सूत्रकृमि एवं प्रबंधन कैसे करें
तना बेधक कीट
आर्थिक क्षति स्तर- सिंचित क्षेत्रों में 5 प्रतिशत मृत गोभ या एक अण्डसमूह या एक शलभ प्रति वर्ग मीटर|
पहचान और हानि की प्रकृति- कीट का प्रौढ़ पीले भूसे के रंग जैसा नाव के आकार का नुकीला एक इंच लम्बा पतंगा होता है| मादा प्रौढ़ के अगले पंख पर एक काली बिन्दी और उदर के अंत में भूरे बालों का एक गुच्छा होता है| मादा प्रौढ़ पत्तियों पर समूह में अंडा देने के बाद बालों से ढक देती है| इन अण्डों से सुंडियां निकलकर तनों के अन्दर घुस जाती है और बढ़वार बिन्दु को क्षति पहुँचाती है| जिससे विकास की अवस्था में मृतगोभ एवं बालियाँ आने पर सफेद बाल दिखाई देती है|
हरा फुदका
आर्थिक क्षति स्तर- सिंचित क्षेत्रों में नर्सरी में 1 से 2 कीट प्रति वर्ग मीटर, कल्ले निकलने से पूर्व 10 कीट, कल्ले निकलने के मध्य 10-20 कीट एवं बलियां निकलते समय 20 कीट प्रति पूंजा|
पहचान और हानि की प्रकृति- ये लगभग 3 से 4 मिलीमीटर लम्बे हरे रंग के छोटे कीट होते है| इनके अगले पंखों पर एक काली बिन्दी भी पायी जा सकती है| कीट के शिशु और प्रौढ़ दोनों ही पत्तियों से रस चूस कर हानि पहुचाते है| ग्रसित पत्तियां ऊपर से नीचे की तरफ सूख जाती है या पहले पीली एवं बाद में कत्थई रंग की हो जाती है|
भूरा फुदका
आर्थिक क्षति स्तर- सिंचित क्षेत्रों में कल्ले निकलने से पूर्व 5 से 10 कीट, कल्ले निकलने के मध्य 10 कीट और बलियां निकलते समय 15 से 20 कीट और दुग्धावस्था बाद में 25 से 30 कीट प्रति पूंजा|
पहचान और हानि की प्रकृति- ये लगभग 3 से 4 मिलीमीटर लम्बे भूरे रंग के पंखयुक्त और बिना पंख वाले कीट होते है| कीट के शिशु तथा एवं दोनों ही पत्तियों से किल्लों के मध्य रहकर रस चूस कर नुकसान पहुचाते है| जिससे पौधे सूख जाते है| प्रारम्भ में प्रकोप होने पर गोलाई में पौधों की बढ़वार रूक जाती है और बाद में सूख जाते है| इस तरह के प्रकोप को हापर बर्न की नाम से जाना जाता है|
यह भी पढ़ें- सीधी बुवाई द्वारा धान की खेती कैसे करें
सफेद पीठ वाला फुदका
आर्थिक क्षति स्तर- सिंचित क्षेत्रों में कल्ले निकलने से पूर्व 10 कीट, कल्ले निकलने के मध्य 10 कीट और बलियां निकलते समय 15 से 20 कीट प्रति पूंजा|
पहचान और हानि की प्रकृति- प्रौढ़ काले से भूरे रंग के और पीले शरीर वाले होते हैं| इनके पंखों के जोड़ पर सफेद पट्टी होती है| शिशु सफेद रंग के पंखहीन होते है, इनके उदर पर सफेद एवं काले धब्बे पाये जाते है|
शिशु और प्रौढ़ दोनों ही कल्लों के मध्य रहकर रस चूसते है, जिससे पौधे पीले पड़कर सूख जाते है, अधिक चूसा हुआ रस निकलने के कारण पत्तियों पर काला कवक उग जाता है| जिससे पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्रिया बाधित हो जाती है|
नरई कीट
आर्थिक क्षति स्तर- सिंचित क्षेत्रों में 5 प्रतिशत|
पहचान और हानि की प्रकृति- (गालमिज) यह चमकदार लाल रंग का मच्छर जैसा लम्बी टॉगों वाला एक कीट है और रात में प्रकाश पर आकर्षित होता है| कीट की सूंड़ी गोभ के अंदर बढ़वार बिन्दु को प्रभावित कर प्याज के तने के आकार की रचना बना देती है| जिसे सिल्वर सूट या ओनियन सूट कहते है| ऐसे प्रकोपित पौधों में बाल नहीं आती है|
गन्धी बग
आर्थिक क्षति स्तर- सिंचित क्षेत्रों में 1 से 2 कीट प्रति पूंजा|
पहचान और हानि की प्रकृति- ये लगभग 14 से 17 मिलीमीटर लम्बे और 3 से 4 मिलीमीटर चौड़े भूरे रंग के विशेष गंध वाले कीट होते है| इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़े दोनों ही बालियों की दुग्ध अवस्था में दानों में बन रहे दूध को चूस कर नुकसान पहुंचाते हैं| प्रकोपित दानों में चावल नहीं बनते हैं|
यह भी पढ़ें- धान की खेती में जैव नियंत्रण एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन
सैनिक कीट
आर्थिक क्षति स्तर- सिंचित क्षेत्रों में 4 से 5 सूंड़ी प्रति वर्ग मीटर क्षेत्रफल|
पहचान और हानि की प्रकृति- इस कीट की सुंडियां भूरे रंग की लगभग 30 से 35 मिलीमीटर लम्बी तथा 6 से 7 मिलीमीटर चौड़ी होती है, जो दिन के समय किल्लों के मध्य या भूमि की दरारों में छिपी रहती है| सूड़ियां शाम को कल्लों से निकलकर एवं ऊपर चढ़कर बालों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट कर नीचे गिरा देती है|
सिंचित क्षेत्रों में धान कीटों का एकीकृत प्रबन्धन
1. सिंचित धान की खेती हेतु ग्रीष्म ऋतु की जुताई तथा मेढ़ों की छटाई करनी चाहिए|
2. सिंचित क्षेत्रों में स्वस्थ व जीवनाशी सहिष्णु प्रजातियों का चयन करना चाहिए|
3. सिंचित क्षेत्रों में सैनिक कीट बाहुल्य क्षेत्रों में कम समय में पकने वाली किस्मों का चुनाव करना चाहिए|
4. शोधित बीज का ही प्रयोग करना चाहिए|
5. सिंचित क्षेत्रों में धान की समय से रोपाई करना चाहिए|
6. सिंचित क्षेत्रों में छुटपुट रोपाई को अनदेखा करना चाहिए|
7. रोपाई के पूर्व क्लोरपाइीफास 20 ई सी एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में बने घोल में रात भर डुबोकर पौध शोधन करना चाहिए|
8. पौध की पत्तियों को ऊपर से 1/3 भाग काट कर रोपाई करें और खेत और मेड़ों को घासमुक्त तथा साफ सुथरा रखे|
यह भी पढ़ें- बासमती धान में समेकित नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें
9. कीटों के प्रकातिक शत्रुओं के संरक्षण हेतु शत्रु कीटों के अण्डो को इक्कठा कर बैम्बू केज कम परचर में डालना चाहिए|
10. भूरा फुदका व सैनिक कीट बाहुल्य क्षेत्रों 20 पंक्तियों के बाद एक पंक्ति छोड कर रोपाई करें|
11. सिंचित क्षेत्रों में धान हेतु उर्वरकों की संस्तुति मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए|
12. सिंचित क्षेत्रों में जल निकास का समुतिच प्रबन्ध रखे|
13. दीमक बाहुल्य क्षेत्र में कच्चे गोबर तथा हरी खाद का प्रयोग नहीं करना चाहिए|
14. फसलों के अवशेषों का नष्ट करना चाहिए|
15. दीमक के घरों का खोजकर नष्ट करना चाहिए और रानी तथा उनके सहयोगियों को मार देना चाहिए|
16. नीम की खली 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के पूर्व खेत में मिलाने से दीमक के प्रकोप में धीरे-धीरे कमी आती है|
यह भी पढ़ें- स्वस्थ नर्सरी द्वारा बासमती धान की पैदावार बढ़ाये
17. सिंचित क्षेत्रों में धान का सप्ताह के अन्तराल पर फसल का निरीक्षण करना चाहिए|
18. दीमक के लिए बैवेरिया वैसियाना 1.15 डब्लू पी की 4 से 5 किलोग्राम मात्रा को 800 से 900 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से या क्लोरपाइरीफास 20 ई सी एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के बने घोल से प्रकोपित क्षेत्र की भूमि का शोधन करना चाहिए|
19. धान के मूलधुन का प्रकोप दिखाई देने पर क्लोरपाइरीफास 20 ई सी एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल से प्रकोपित क्षेत्र की भूमि का शोधन करना चाहिए|
20. रोपाई के 30 दिनों के बाद सप्ताह के अन्तराल पर ट्राइकोग्रामा जैपानिकम परजीवी से अवसेचित 50000 अण्डे प्रति हेक्टेयर की दर से लगातार 6 सप्ताह तक अवमुक्त करना चाहिए|
21. अच्छे पानी निकास वाले खेत के दोनों सिरों पर रस्सी पकड़कर पौधों के ऊपर से तेजी से गुजारने और पानी को निकाल देने से बंका कीट की सूड़ियों की संख्या काफी कम हो जती है|
22. तनाबेधक कीट के पूर्वानुमान हेतु पॉच फेरोमोन ट्रैप प्रति हेक्टेयर लगाना चाहिए|
यह भी पढ़ें- बासमती धान में बकानी रोग, जानिए लक्षण और नियंत्रण
23. प्रातः पांच से सात बजे के मध्य पत्तियों पर बैठे तनाबेधक कीट के प्रौढों को पकड़कर मार दें और पत्तियों के सिरे पर पाये जाने वाले मटमैले रंग के अण्ड समूहों को एकत्र कर नष्ट करना चाहिए|
24. धान की पत्ती लपेटक कीट से एक से दो ग्रसित पत्ती प्रति पूंजा होने पर इण्डोसल्फान 35 ई सी या क्वीनालफास 25 ई सी की 1.50 लीटर मात्रा को 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें|
25. पाँच प्रतिशत गोभ या एक शलभ प्रति वर्ग मीटर दिखाई देने पर 1.5 लीटर नीम तेल को 800 लीटर पानी में और एक ग्राम प्रति लीटर घोल की दर साबु मिलाकर छिड़काव करना चाहिए या कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर या कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 4 प्रतिशत की 17 से 18 किलोग्राम मात्रा 3 से 5 सेंटीमीटर पानी में प्रति हेक्टेयर की दर बुरकाव करना चाहिए|
26. पौधशाला में 1 से 2 प्रति वर्ग मीटर, कल्ले निकलने के पूर्व, कल्ले निकलने के मध्य 10 से 20 तथा बालियां निकलते समय 20 हरे फुदके प्रति पूंजा दिखाई पड़ने पर कार्बोफ्यूरान 3 जी 3 से 5 सेंटीमीटर पानी में 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव या डाईक्लोरवास 76 ई सी 500 मिलीलीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए|
यह भी पढ़ें- मिट्टी परीक्षण क्यों और कैसे करें
27. कल्ले निकलने के पूर्व 5 से 10, कल्ले निकलने के मध्य 10, बालियां निकलते समय 15 से 20 एवं दुग्धावस्था के बाद में 25 से 30 भूरा फदुका कीट प्रति पूंजा दिखाई पड़ने पर कार्बोफ्यूरान 3 जी 3 से 5 सेंटीमीटर पानी में 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव या क्लोरपाइरीफास 20 ई सी की 1.5 लीटर या क्वीनालफास 25 ई सी की 1.25 लीटर मात्रा को 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए|कीटनाशकों को छिड़काव पत्तियों पर न करके प्रकोपित तनों पर करना चाहिए|
28. कल्ले निकलने के पूर्व और मध्य 10, तथा बालियां निकलते समय 15 से 20 सफेद पीठ वाला फुदका कीट प्रति पूंजा दिखाई पड़ने पर कार्बोफ्यूरान 3 जी 3 से 5 सेंटीमीटर पानी में 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव या क्लोरपाइरीफास 20 ई सी की 1.5 लीटर या क्वीनालफास 25 ई सी की 1.25 लीटर मात्रा को 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए|
29. सिंचित क्षेत्रों में प्रतिशत सिल्वर सूट दिखाई देते ही कार्बोफ्यूरान 3 जी 3 से 5 सेंटीमीटर पानी में 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव करना चाहिए|
30. सिंचित क्षेत्रों में 1 से 2 गन्धी कीट प्रति पूंजा दिखाई देते ही नीम आधारित कीटनाशकों का प्रयोग करें या प्रातः ओस समाप्त होने के बाद किसी कीटनाशी धूल का बुरकाव करना चाहिए|
31. सैनिक कीट की 4 से 5 सूंड़ी प्रति वर्ग मीटर क्षेत्रफल में दिखाई देने तथा कार्यिकी परिपक्वता आते ही कटाई कर लेनी चाहिए या शाम को सूर्यास्त के समय फेनवेलरेट 0.4 डी या फेन्थोएट 2 प्रतिशत धूल की 25 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से करना चाहिए|
32. सिंचित क्षेत्रों में धान की फसल की कटाई जमीन की सतह के बराबर से करना चाहिए|
यह भी पढ़ें- सब्जियों में एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें
प्रिय पाठ्कों से अनुरोध है, की यदि वे उपरोक्त जानकारी से संतुष्ट है, तो अपनी प्रतिक्रिया के लिए “दैनिक जाग्रति” को Comment कर सकते है, आपकी प्रतिक्रिया का हमें इंतजार रहेगा, ये आपका अपना मंच है, लेख पसंद आने पर Share और Like जरुर करें|
Leave a Reply