पौध संरक्षण फसल की उन्नत उत्पादन तकनीक में सोयाबीन में कीट और रोग नियंत्रण से होने वाली क्षति को नियंत्रित करने के लिये पौध-संरक्षण उपायों को अपनाया जाना आवश्यक है| कीट प्रबंधन- सोयाबीन में मुख्यतः तना, चक, मूंग, सफेद मक्खी एवं पत्ती खाने वाली इल्लियों का प्रकोप होता है| पत्ती खाने वाली इल्लियों में बिहार इल्ली, तंबाकू की इल्ली और लाल रॉयेदार इल्लियां प्रमुख है|
जबकि रोग प्रबंधन- सोयाबीन में मुख्यतः गेरुआ, राइजोक्टोनिया, झुलसन, कलिका झुलसन रोग तथा पीला मोजेक रोग का आक्रमण होता है| सोयाबीन का उत्पादन प्रभावित न हो इसके लिए इन कीट और रोग पर नियंत्रण करना आवश्यक है| इस लेख में सोयाबीन में कीट और रोग नियंत्रण कैसे करें की उपयोगी तकनीक का उल्लेख है| सोयाबीन की उन्नत खेती की जानकारी यहाँ पढ़ें- सोयाबीन की खेती- किस्में, रोकथाम व पैदावार
सोयाबीन में कीट नियंत्रण
तना मक्खी- यह कीट प्रकोप फसल की प्रारंभिक अवस्था में ही प्रारंभ हो जाता है| मादा कीट द्वारा अंडे पत्तियों पर दिये जाते है, जिनसे इल्ली निकलकर तने को खाकर सुरंग बनाती हैं| जिससे प्रकोपित पौधे मुरझाकर सूखने लगते है| इल्ली हल्के पीले-लाल रंग की दिखाई देती है| इस कीट द्वारा पैदावार में 13 से 20 प्रतिशत तक कमी आंकी गई है|
नियंत्रण-
1. जिन क्षेत्रों में कीट प्रकोप प्रतिवर्ष होता हैं, वहां पर फोरेट दानेदार कीटनाशक की 10 किलो मात्रा प्रति हैक्टेयर के हिसाब से बोनी के समय कूड़ों में डालना चाहिए|
2. छिड़काव के लिए मोनोक्रोटोफास 750 मिलीलीटर या क्विनालफॉस 1 लीटर का पानी की उचित मात्रा में घोल बनाकर छिड़काव करें|
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चक भृंग- कीट प्रकोप फसल की प्रारंभिक अवसथा से लेकर संपूर्ण फसल अवस्था में होता है| वयस्क कीट भूरा लाल दिखाई देता है| जिसके पंखों का पिछला भाग काला होता है| इल्ली हल्के पीले रंग की होती है| मादा कीट पत्तियों के डंठल, शाखा एवं तने में दो चक बनाकर अंडे देती है| प्रत्येक चक्राकार भाग में केवल एक अंडा दिया जाता है| जिससे इल्ली निकलकर अंदर का भाग खाकर सुरंग बनाती है| प्रकोपित भाग मुरझाकर सूखने लगता है| पौधे की बढ़वार प्रभावित होती है और अनुमानतः पैदावार में 70 प्रतिशत तक हानि होती है|
नियंत्रण-
1. प्रकाश प्रपंच का प्रयोग कर वयस्क कीट नष्ट करें|
2. सोयाबीन की बुवाई का कार्य समय पर करें|
3. खेत में खरपतवार नियंत्रित करें|
4. सोयाबीन में कीट प्रकोपित पौधे के मुरझायें भाग तोड़कर नष्ट करते रहें|
5. कीट प्रकोप की स्थिति में इंडोसल्फॉन 1 से 1.5 लीटर क्विनालफॉस या मेथिल डेमेटान 800 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर पानी की उचित मात्रा में घोल बनाकर छिड़काव करें|
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पत्तियों को खाने वाले कीट- फसल की संपूर्ण अवस्था में विभिन्न प्रकार की इल्लियों का प्रकोप पत्तियों पर देखने में आता है, जैसे-
तंबाखू की इल्ली- काले, हरे रंग की काले धब्बे युक्त इल्लियां प्रारंभिक अवस्था में समूह में रहकर तथा बाद में संपूर्ण फसल पर बिखरकर पत्तियों को खाकर क्षति ग्रस्त करती है|
बिहारी इल्ली- प्रारंभिक अवस्था में इल्लियां समूह में पत्तियों के नीचे रहकर और बाद में संपूर्ण फसल पर बिखरकर पत्तियों को खाकर क्षति ग्रस्त करती है| पूर्ण विकसित इल्ली पीलापन लिये हुए, नारंगी व गहरे भूरे रंग की धारियोंयुक्त होती है तथा शरीर पर नारंगी या भूरे रंग के बाल पाये जाते है|
लाल रोयेदार इल्ली- इल्ली लाल हरे रंग की दिखाई देती है, जिसके शरीर पर बाल पाये जाते है| ये भी पत्तियों को काटकर खाकर हानि पहुँचाते है|
नियंत्रण-
1. रात्रि में प्रकाश प्रपंच का उपयोग करें, वयस्क कीटों को इकट्ठे कर नष्ट करे|
2. इल्लियों को प्रारंभिक अवस्था में इल्ली समूह में नष्ट करें|
3. सोयाबीन में कीट सर्वेक्षण हेतु फेरोमोन प्रपंच का उपयोंग करें|
4. सोयाबीन में कीट प्रकोप की प्रारंभिक अवस्था में एन पी वी 250 एल ई का प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें|
5. सोयाबीन में कीट प्रकोप की स्थिति में इंडोसल्फॉन या क्विनालफॉस या क्लोरपायरीफॉस 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करें|
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सोयाबीन में रोग नियंत्रण
गेरुआ रोग- पत्तियों पर जंग के समान फफोलेदार रचनायें बनती है, जिससे पत्तियां सूखने लगती है|
नियंत्रण- फसल के गेरुआ रोग प्रभावित क्षेत्र में इंदिरा सोया- 9 नामक जाति का प्रयोग करें|2. रोग प्रभावित फसल पर कोन्टॉफ 0.1 प्रतिशत का छिड़काव करें|
राइजोक्टोनिया झुलसन- रोग प्रकोप के कारण पत्तियां पीली पड़ने लगती है जिससे पौधे सूखकर नष्ट हो जाते है, फल्ली अवस्था में फल्लियों में दाने नहीं भरते|
नियंत्रण-
1. फसल चक अपनाएँ|
2. रोग प्रभावित फसल पर बाविस्टीन 0.1 प्रतिशत का 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए|
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कलिका झुलसन रोग- इस रोग के कारण पौधे की अगं कलिका मुड़ने लगती है या प्रभावित होती है| पौधों का संपूर्ण फसल अवस्था पश्चात् हरा बना रहना भी रोगों की पहचान है|
नियंत्रण-
1. रोग प्रभावित पौधों को प्रारंभिक अवस्था में उखाड़कर नष्ट करें|
2. रोग प्रभावित फसल पर जिनेब या मेनेब 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें|
पीला मोजेक रोग- इस रोग के द्वारा सोयाबीन की फसल को सर्वाधिक नुकसान पहुंचता है| रोग के कारण पैदावार में 80 प्रतिशत तक कमी आंकी गई है| शुरुआती अवस्था में दो-तीन पत्तियां पीली दिखाई देती हैं दो हपते पश्चात् संपूर्ण पत्तियां पीली हो जाती है| यह रोग एक वायरस द्वारा सफेद मक्खी कीट से सोयाबीन की फसल में फैलता है|
नियंत्रण-
1. प्रारंभिक अवस्था में रोग ग्रस्त पौधों को उखाड़कर नष्ट करें|
2. रोग संक्रमन रोकने हेतु सफेद मक्खी नियंत्रण के लिये मेटासिस्टाक्स या रोगर नामक कीटनाशक का 1 लीटर प्रति हेक्टेयर छिड़काव असरदार रहेगा|
3. रोग सहनशील पी के- 472 जैसी सोयाबीन की किस्म लगायें|
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