सोवा (सुवा) को मसाला फसल के रूप में जाना जाता है| इसकी खेती समूचे मध्य भारत में की जाती है| सोवा (सुवा) में एक विशेष सुगंध पाई जाती है| इसकी हरी सुगंधित पत्तियों का उपयोग चटनी, आलू, बैंगन, पालक व दूसरी सब्जियों के साथ में किया जाता है| सोवा के बीज से दाल, सब्जी, व दूसरे पकवान को छौंकने के लिए भी उपयोग में लाया जाता है| इससे एक विशेष सुगंध का एहसास होता है|
हरी सोवा (सुवा) के वाष्पशील तेल से अनेकों दवाईयाँ बनाई जाती है| इसके तेल को पानी के साथ मिलाकर डिल वाटर बनाया जाता है| जो बच्चों के पेट संबंधी रोगों जैसे- अफरा, पेट दर्द, हिल्की आदि में प्रयोग किया जाता है| यदि इसकी खेती वैज्ञानिक पद्धति से की जाये तो इसकी फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है| इस लेख में सोवा (सुवा) की उन्नत खेती कैसे करें की जानकारी का उल्लेख है|
सोवा की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
सोवा (सुवा) रबी मौसम की फसल हैं| मैदानी और पहाड़ी इलाकों की जलवायु इसकी खेती के लिए अनुकूल है| यह पाले के प्रति सहनशील फसल है| अर्थात बुवाई के समय वातावरण का तापमान 22 से 28 डिग्री सेंटीग्रेट उपयुक्त होता है और फसल बढवार के लिए 22 से 35 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान अच्छा रहता है|
यह भी पढ़ें- धनिया की उन्नत खेती कैसे करें
सोवा की खेती के लिए भूमि का चयन
सोवा (सुवा) की खेती हल्की तथा भारी दोनों प्रकार की मिट्टियों में की जा सकती है| कम उपजाऊ मिट्टी या अनुपयोगी भूमि में भी इसकी खेती संभव है| भूमि का पीएच मान 5 से 7 तक उपयुक्त रहता है|
सोवा की खेती के लिए खेत की तैयारी
सोवा (सुवा) की बुवाई के लिए खेत की विशेष तैयारी की जरूरत नहीं होती| खेत से जुताई के पूर्व खरपतवारों को निकाल देना चाहिए| इसके बाद दो से तीन जुताई कर पाटा चला कर मिट्टी को भूरभुरी बना लेना चाहिए| खेत तैयार होने के बाद सिंचाई तथा निराई-गुड़ाई सुविधा के लिए खेत को क्यारियों में बाँट लेना चाहिए| मिट्टी में दीमक की समस्या होने पर मिथाइल पैराथीओन 2.0 प्रतिशत 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में अंतिम जुताई के समय सामान रूप से बिखेर कर मिट्टी में मिला देना चाहिए|
सोवा की खेती के लिए किस्मों का चयन
भारत में सोवा (सुवा) की स्थानीय किस्मों को ही उगाया जाता है, जैसे- रूबी लोकल, मेहसाना और प्रतापगढ़ लोकल आदि| लेकिन इसकी फसल से अधिकतम उत्पादन के लिए उत्पादकों को उन्नत किस्मों को प्राथमिकता देनी चाहिए| कुछ उन्नत किस्म इस प्रकार है, जैसे-
ए डी 1- यह सोवा की युरोपियन किस्म है| जो 140 से 150 दिन में पककर तैयार हो जाती है| औसत पैदावार 14 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है| इसके बीजों में 3.5 प्रतिशत वाष्पशील तेल पाया जाता है| यह सिचित क्षेत्रो में खेती करने के लिए उपयुक्त है|
ए डी 2- सोवा की यह भारतीय उन्नत किस्म है| जो लगभग 135 से 140 दिनों में पककर तैयार हो जाती है| इसकी औसत पैदावार 14 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है| इसके बीजों में 3.2 प्रतिशत वाष्पशील तेल पाया जाता है| यह किस्म असिंचित अथवा सीमित सिंचाई की उपलब्धता वाले क्षेत्रो में खेती के लिए उपयुक्त है|
यह भी पढ़ें- सौंफ की खेती की जानकारी
सोवा की खेती के लिए बीज की मात्रा
इसकी बुवाई दो विधियों से की जाती है| छिटकवाँ और कतार विधि द्वारा, छिटकवा विधि में अधिक बीज की आवश्यकता होती है| प्रति हेक्टेयर 5 से 6 किलोग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है| कतारों में बीज की बुवाई करने के लिए सिचित क्षेत्रो में सोवा का 4 किलोग्राम बीज एवं असिचित क्षेत्रों में 5.0 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए| बीज को थाइरम या बाविस्टिन 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करने का पश्चात बुवाई करनी चाहिए।
सोवा की खेती के लिए बुवाई का समय
सोवा (सुवा) की बुवाई का समय शरद ऋतु में 15 अक्टूबर से 15 नवंबर के मध्य में सर्वोत्तम माना गया है| क्षेत्र विशेष के अनुसार समय में कुछ परिवर्तन कर सकते हैं| इसके लिए स्थानीय कृषि वैज्ञानिकों से सलाह मशविरा किया जा सकता है|
सोवा की खेती के लिए बुवाई की विधि
अधिक उत्पादन लेने के लिए सोवा की बुवाई कतार विधि से करना फायदेमंद रहता है| इस विधि में कतार से कतार की दूरी सिंचित अवस्था में 40 सेंटीमीटर और असिंचित अवस्था में 30 सेंटीमीटर रखनी चाहिए| दोनों ही परिस्थितियों में पौधे से पौधे की दुरी 20 से 30 सेंटीमीटर रखनी चाहिए| इसका बीज बहुत छोटा एवं हल्का होता है, अतः बुआई 2.0 सेंटीमीटर से ज्यादा गहराई पर नहीं करें| इसके बीज का अंकुरण 10 से 12 दिन में होता है| बीज बुवाई के समय मिटटी में उचित नमी का होना आवश्यक है| सोवा को चना, गेंहू, सरसों या मटर के साथ अंतरवर्ती फसल के रूप में भी उगाया जा सकता है|
यह भी पढ़ें- मेथी की खेती की जानकारी
सोवा की फसल में पोषक तत्व प्रबंधन
सोवा की खेती में खाद और उर्वरक की अधिक आवश्यकता नहीं होती है| फिर भी अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए लगभग 10 टन गोबर की सड़ी खाद खेत की अंतिम जुताई के समय खेत में समान रूप से बिखेर कर जुताई करनी चाहिए| नेत्रजन 40 किलोग्राम, फास्फोरस 30 किलोग्राम एवं पोटाश 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उपयोग करना चाहिए| फास्फोरस और पोटाश को बुवाई के समय खेत में मिला देना चाहिए एवं नेत्रजन की आधी मात्रा शेष नेत्रजन को दो बराबर भागों में बाँट कर प्रथम सिंचाई एवं द्वितीय सिंचाई के बाद उपरिविनेशक करना चाहिए|
सोवा की फसल में सिंचाई प्रबंधन
सोवा की फसल में तीन सिंचाई की आवश्यकता होती है| पहली सिंचाई बुवाई के 25 से 30 दिन पर दूसरी सिंचाई 45 दिन पर एवं तीसरी सिंचाई फूल आने के समय में करनी चाहिए|
सोवा की फसल में निराई-गुड़ाई
सोवा फसल में निराई-गुड़ाई का विशेष महत्व है| पहली सिंचाई के समय निराई-गुड़ाई कर खरपतवार को खेत से अलग कर दें| इसी समय घने पौधों को निकाल कर पौधे-से-पौधे की दूरी 10 से 15 सेंटीमीटर बना लेना चाहिए| इससे पौधा का विकास अच्छा होता है|
सोवा की फसल की कटाई
सब्जी के लिए पहली सिंचाई के बाद पौधों से पत्तियों को निकाल कर उपयोग में ले सकते हैं| वैसे 60 दिन पर फसल की कटाई कर के सब्जी व अचार के रूप में उपयोग में लाया जा सकता है| 130 से 135 दिन पर पूरी फसल पक कर तैयार हो जाती है| इस समय फसल पीली पड़ने लगती है और बीज हल्के भूरे रंग के हो जाते हैं| ऐसी अवस्था में फसल की कटाई कर छाया में दो से तीन दिन सूखने के लिए रख दें| फिर बीज को अलग निकाल लें|
सोवा की फसल से पैदावार
सोवा (सुवा) की उपज किस्म के चयन और फसल की देखभाल पर निर्भर करती है| परन्तु उपर्युक्त उन्नत विधि से खेती करने पर इस फसल से प्रति हेक्टेयर 9 से 15 क्विंटल बीज की प्राप्ति होती है|
यह भी पढ़ें- मसाले वाली फसलों को अधिक पैदावार के लिए रोगों से बचाएं
यदि उपरोक्त जानकारी से हमारे प्रिय पाठक संतुष्ट है, तो लेख को अपने Social Media पर Like व Share जरुर करें और अन्य अच्छी जानकारियों के लिए आप हमारे साथ Social Media द्वारा Facebook Page को Like, Twitter व Google+ को Follow और YouTube Channel को Subscribe कर के जुड़ सकते है|
Leave a Reply