स्टीविया की खेती (Stevia farming), प्राचीन काल से लेकर वर्तमान तक शक्कर मनुष्य के भोजन का एक अभिन्न हिस्सा रहा है| गन्ना तथा चुकंदर लम्बे समय से शक्कर प्राप्ति का एक प्रमुख स्त्रोत है| हालांकि इन दोनों ही स्रोतों से प्राप्त शक्कर में मिठास का गुण तो होता है, परन्तु मधुमेह से पीड़ितों को इनका उपयोग न करने की सलाह दी जाती है| ऐसे लोगों के लिये स्टीविया से प्राप्त शक्कर एक बेहतर विकल्प हो सकता है|
स्टीविया के पत्तों में मिठास उत्पन्न करने वाले तत्व होते हैं, जिन्हें स्टीवियोसाइड और ग्लूकोसाइड के नाम से जाना जाता है| इसके अलावा इनमें 6 और तत्व होते हैं| जिनमें इन्सुलिन को संतुलित करने का गुण होता है, स्टीविया की मिठास टेबल सुगर से ढाई सौ गुना और सुक्रोस से तीन सौ गुना अधिक होता है|
इसमें कृत्रिम मिठास उत्पन्न करने वाले अन्य कई पदार्थों का विकल्प बनने की अच्छी संभावनाएं हैं| अभी तक स्टीविया उत्पादों के उपयोग से मनुष्य पर किसी भी प्रकार का विपरीत प्रभाव पड़ने की शिकायत नहीं पाई गई है| यह कैलोरी एवं झागहीन होता है और पकाने पर डार्क भी नहीं पड़ता टीवियोसाइड पत्ती में उनके वजन के अनुसार 3 से 10 प्रतिशत तक होता है|
स्टीवियोसाइड में से ग्लूकोसाइड समूह को पृथक कर स्टीविऑल उत्पादित किया जाता है| इसके अलावा गिबरेला यूजीकरोइ नामक फफंद से गिवरैलिक एसिड के उत्पादन में भी इसका उपयोग होता है|
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स्टीविया की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
यह मध्यम आर्द्रता का सबट्रॉपिकल पौधा होता है, जो 11 से 41 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान पर उगाया जा सकता है| इसकी अच्छी वृद्धि के लिये 31 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त पाई गई है| उचित व उष्ण दशाओं में इसका अंकुरण अच्छा होता है| इस प्रकार न्यूनतम पाला, उच्च प्रकाश तथा उष्ण ताप की अवस्था स्टीविया के पत्तों के उच्च उत्पादन में सहायक होती है|
स्टीविया की खेती के लिए मिट्टी का चयन
पानी की विपुलता के साथ दलदली रेतीली भूमि इसके लिये सर्वाधिक उपयुक्त होती है| स्टीविया की अच्छी बढ़त के लिए 6.5 से 7.5 पी एच मान की अम्लीय से उदासीन भूमि उपयुक्त होती है| इसकी कृषि के लिये क्षारीय भूमि का उपयोग नहीं करना चाहिये, क्योंकि यह पौधा लवण की उपस्थिति सहन नहीं करता|
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स्टीविया की खेती करने की विधि
स्टीविया पौधे की खेती के लिये यद्यपि बीजों के अंकुरण एवं तनों के रोपण, दोनों तरीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन बीजों का अंकुरण बहुत कम होता है| इसलिए आमतौर पर रोपण की विधि अधिक उपयुक्त मानी जा सकती है| रोपण के लिये पत्तों के अक्ष से 15 सेंटीमीटर लम्बाई का तना काटना होता है|
इस कार्य के लिये चालू वर्ष के पौधों से बेहतर परिणाम प्राप्त होते हैं| पैकोब्यूट्राजोल के साथ 100 पी पी एम की दर से उपचारित करने पर जड़ों के शीघ्र ही जमने में सहायता मिलती है| इस उपचार का अधिक प्रभाव उस समय देखने को मिलता है, जब कटिंग्स का रोपण फरवरी से मार्च माह में किया जाता है|
स्टीविया की खेती के लिए किस्में
अभी तक इस फसल की किसी अन्य नाम से किस्मे उपलब्ध नहीं है|
स्टीविया रोपण का तरीका
स्टीविया को आमतौर पर मेड़ों पर रोपा जाता है जिसमें कतार की दूरी 22 सेंटीमीटर के मध्य होती है| पौधों के अच्छी तरह जमने के लिये कटिंग्स के रोपण के तत्काल बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिये|
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स्टीविया की खेती में पोषक तत्व प्रबंधन
रोपण के पश्चात् खेतों को कार्बनिक खाद जैसे एक वाय एक अच्छी मात्र में देना चाहिये| अच्छी तरह जुताई भी करनी चाहिये, अच्छी वृद्धि एवं ज्यादा पत्तों की प्राप्ति के लिये उर्वरक की खुराक 60:30:45 किलोग्राम एन पी के प्रति हेक्टेयर देनी चाहिये| सूक्ष्म तत्वों जैसे बोरान एवं मैग्नीज के छिड़काव से भी पत्ते के उत्पाद में बढ़त देखी गई है|
स्टीविया की खेती में सिंचाई प्रबंधन
स्टीविया की खेती के लिये पानी की अधिक मात्र में आवश्यकता होती है एवं ग्रीष्म ऋतु में नियमित सिंचाई जरूरी होती है| गीष्म ऋतु में फसल की हर 8 दिन के अंतराल में सिंचाई करनी होती है|
स्टीविया की फसल की सुरक्षा
स्टीविया फसल पर्याप्त रूप से रूक्ष होती है| इस कारण इसमें विभिन्न प्रकार के कीटों और बीमारियों का आक्रमण नहीं हो पाता| लेकिन कभी-कभी इसमें बोरान की कमी का प्रभाव देखने को मिलता है, जिससे पत्तों में धब्बे आ जाते हैं| दो प्रतिशत की दर से बोरेक्स का छिड़काव देकर इस समस्या से निजात पाई जा सकती है|
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स्टीविया के पुष्यों की छंटाई
स्टेविओसाइड चूँकि पत्तों में होता है, इसलिये पौधों की अच्छी बढ़त एवं प्रकाश संश्लेषकों से अधिक संग्रहण को सुविधा प्रदान करने के उद्देश्य से स्टीविया के पुष्पों की छंटाई की जाती है| पुष्पों की छंटाई पौधों के रोपण के 30, 45, 60, 75 और 85 दिनों के पश्चात् की जाती है|
रटून फसल होने की स्थिति में आमतौर पर पहली कटाई के 40 दिनों के पश्चात् पुष्प आते हैं, इसलिए ऐसी स्थिति में छंटाई 40 व 55 वें दिन की जाती है|
स्टीविया फसल की कटाई और पैदावार
स्टीविया की फसल रोपण के तीन माह पश्चात् पहली कटाई की अवस्था में आ जाती है| पुनरोत्पादन को सहूलियत प्रदान करने के लिये पौधों को जमीन से 5 से 8 सेंटीमीटर ऊंचाई पर काटना चाहिये| नब्बे दिन के अंतराल पर इसे पुनः काटा जा सकता है|
एक वर्ष में इसकी चार बार कटाई की जा सकती है| उत्पादन प्रति हेक्टेयर प्रति फसल लगभग 3 से 3.5 टन पत्ते प्राप्त किये जा सकते हैं| इस प्रकार एक हेक्टेयर क्षेत्र से प्रति वर्ष लगभग 10 से 12 टन पत्ते प्राप्त किये जा सकते हैं|
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