हरी खाद (Green Manure) को एक शुद्ध फसल के रूप में खेत की उपजाऊ शक्ति, भूमि के पोषक और जैविक पदार्थो की पूर्ति करने के उदेश्य से की जाती है| इस प्रकार की फसलों को हरियाली की ही अवस्था में हल या किसी अन्य यंत्र से उसी खेत की मिट्टी में मिला दिया जाता है| हरी खाद से भूमि का संरक्षण होता है और खेत की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है| आज कल भूमि में लगातार फसल चक्र से उस खेत में उपस्थित फसल की पैदावार और बढवार के लिए आवश्यक तत्व नष्ट होते जाते है|
इनकी आपूर्ति और पैदावार को बनाए रखने के लिए हरी खाद एक अच्छा विकल्प हो सकता है| हरी खाद के लिए बनी किस्मे, दलहनी फसले या अन्य फसलों को हरी अवस्था में जब भूमि की नाइट्रोजन और जीवाणु की मात्रा को बढ़ाने के लिए खेत में ही दबा दिया जाता है तो इस प्रक्रिया को हरी खाद देना कहते है|
इसे भूमि की उर्वरक सकती बेहतर होती है ना केवल इसे उर्वरक की पूर्ति होती है बल्कि भूमि की भौतिक, रासायनिक और जैविक स्थिति में भी सुधार होता है| इससे प्रदुषण की समस्या कम होती है, लागत घटने से किसान की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है और भूमि में सूक्ष्म तत्वों की आपूर्ति होती है|
यह भी पढ़ें- बायो फर्टिलाइजर (जैव उर्वरक): प्रकार, उपयोग और लाभ
हरी खाद वाली फसलें
1. हरी खाद वाली खरीफ की फसलें लोबिया, मुंग, उड़द, ढेचा, सनई व गवार हरी खाद की फसल से अधिकतम कार्बनिक पदार्थ और नाइट्रोजन प्राप्त करने के लिए एक विशेष अवस्था में उसी खेत में दबा देना चाहिए| इन फसलों को 30 से 50 दिन की अवधि में ही पलट देना चाहिए| क्योंकी की इस अवधि में पौधे नरम होते है जल्दी गलते है|
2. हरी खाद के लिए रवि की फसलें बरसीम, सैंजी, मटर और चना आदि फसलों का प्रयोग किया जा सकता है और कम लागत में भूमि के लिए अच्छे कार्बनिक पदार्थ प्राप्त हो सकते है|
3. अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों या जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है उसके लिए सनई और लोबिया को उपयोग में लाना चाहिए और कम वर्षा व जल वाली भूमि के लिए ढेंचा और ग्वार को महत्व देना चाहिए| दलहनी फसलों को उस जगह उपयोग में लाए जहा पानी ना ठरता हो| क्षारीय और समस्याग्रस्त क्षेत्रों के लिए ढेंचा और लोबिया उपयोग में लाना चाहिए|
यह भी पढ़ें- कम्पोस्ट खाद कैसे बनाएं: विधि, उपयोग और लाभ
हरी खाद के फायदे
1. यह खाद केवल नाइट्रोजन और कार्बनिक पदार्थो की ही आपूर्ति नही करती है बल्कि इससे भूमि को कई पोषक तत्व भी प्राप्त होते है| इसे प्राप्त होने वाले पदार्थ इस प्रकार है नाइट्रोजन, गंधक, स्फुर, पोटाश, मैग्नीशियम, कैल्शियम, तांबा, लोहा और जस्ता इत्यादि|
2. इसके उपयोग से भूमि में सूक्ष्मजीवों की संख्या और क्रियाशीलता बढ़ती है, तथा मिट्टी की उर्वरा शक्ति व उत्पादन क्षमता में भी बढ़ोतरी देखने को मिलती है|
3. हरी खाद के प्रयोग से मिट्टी नरम होती है, हवा का संचार होता है, जल धारण क्षमता में वृद्धि, खट्टापन व लवणता में सुधार तथा मिट्टी क्षय में भी सुधार आता है|
4. भूमि को को इस खाद से मृदा जनित रोगों से भी छुटकारा मिलता है|
5. किसानों के लिए कम लागत में अधिक फायदा हो सकता है, स्वास्थ और पर्यावरण में भी सुधार होता है|
यह भी पढ़ें- केंचुआ खाद (वर्मीकम्पोस्ट): विधि, उपयोग और लाभ
हरी खाद का उपयोग कैसे करे
1. जिस मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम है वहा हरी खाद की दलहनी फसल को कम समय में अधिक बढवार के लिए 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन और गैर दलहनी के लिए 45 से 50 किलोग्राम नाइट्रोजन बुआई के समय डालने से काफी लाभ हो सकता है| और उचित नमी के साथ इस फसल को छिडक कर बो दिया जाता है|
2. हरी फसल को बुआई से 35 से 55 दिन की अवस्था में मिट्टी पलटने वाले हल से 15 से 25 सेंटीमीटर गहराई तक पलट देना चाहिए| अगर आप इसको समय से पहले पलटेगे तो कार्बनिक पदार्थ मिट्टी को प्राप्त नही होंगे और देर से पलटेंगे तो रेशा मजबूत होने से जल्दी गलने सड़ने में समस्या हो सकती है| इसलिए इसको सही समय पर पलटे| अधिक वर्षा या तापमान के साथ यह जल्दी गल सड़ जाती है|
तो इन सब प्रक्रियाओं के द्वारा आप हरी खाद को अधिक पैदावार के लिए और मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए प्रयोग में ला सकते है और यह आप की फसल के लिए भी बेहतर है, कम लागत में इसके द्वारा अधिक मुनाफा लिया जा सकता है|
यह भी पढ़ें- जैविक खेत यार्ड खाद कैसे बनाएं: विधि, उपयोग और लाभ
अगर आपको यह लेख पसंद आया है, तो कृपया वीडियो ट्यूटोरियल के लिए हमारे YouTube चैनल को सब्सक्राइब करें| आप हमारे साथ Twitter और Facebook के द्वारा भी जुड़ सकते हैं|
Leave a Reply