खरीफ में हरे चारे के लिए ज्वार की खेती सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है| हरे चारे की ज्वार की किस्मों में एक कटाई से लेकर तीन से चार कटाइयां देने की क्षमता है| गर्मी के मौसम में उगाई गई ज्वार में पानी की कमी नहीं होनी चाहिए, क्योकि ज्वार के चारे में धुरिन नामक विषैले पदार्थ की मात्रा विशेषकर गर्मी के मौसम में अधिक हो जाती है| पशुओं के लिए इसका चारा पर्याप्त रूप से पौष्टिक होता है| ज्वार का हरा चारा, कड़वी तथा साइलेज तीनों ही रुपो मे पशुओं के लिए उपयोगी हैं| ज्वार की उन्नत खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- ज्वार की खेती- जलवायु, किस्में व पैदावार
पोषकता- शुष्क भार के आधार पर इसमें 9 से 10 प्रतिशत सीपी, 55 से 65 प्रतिशत एनडीएफ, 32 प्रतिशत सेलुलोज, और 21 से 23 प्रतिशत हेमिसेलुलोज पाया जाता है| ज्वार दाने एवं हरे चारे दोनों के लिए उगाई जाती है और कडवी में 6 से 6.4 प्रतिशत सीपी तथा 32 से 36 प्रतिशत क्रूड फाइबर होता है|
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हरे चारे के लिए ज्वार की खेती के लिए जलवायु और भूमि
जलवायु- हरे चारे की ज्वार की वृद्धि के लिए अधिक तापमान की आवश्यकता होती है| 33 से 34 डिग्री सेल्सीयस तापमान पर पौधों की वृद्धि अच्छी होती है| इसलिए खरीफ एवं जायद की फसल के रूप में इसको उगाया जाता है|
भूमि- हरे चारे की ज्वार की खेती वैसे तो सभी प्रकार की मिटटी में की जा सकती है| ज्वार के लिए दोमट और बलुई दोमट भूमि अच्छी मानी जाती है| उचित जल निकास वाली भारी मिटटी में भी इसकी बुवाई की जा सकती है| भूमि का पी एच मान 6.5 से 7 तक उपयुक्त रहता है| ज्वार को 30 से 75 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में सफलता पूर्वक उगाया जा सकता है|
हरे चारे के लिए ज्वार की खेती के लिए खेत की तैयारी
हरे चारे की ज्वार के लिए खेत को अच्छी तरह तैयार करना आवश्यक है| सिंचित इलाकों में दो बार गहरी जुताई करके पानी लगाने के बाद बत्तर आने पर दो जुताइयां करनी चाहिए|
हरे चारे के लिए ज्वार की खेती के लिए बुवाई का समय
सिंचित इलाकों में ज्वार की फसल 20 मार्च से 10 जुलाई तक बो देनी चाहिए| जिन क्षेत्रों में सिंचाई उपलब्ध नहीं है, वहां बरसात की फसल मानूसन में पहला मौका मिलते ही बो देनी चाहिए| अनेक कटाई वाली किस्मों या संकर किस्मों की बिजाई अप्रैल के पहले पखवाड़े में करनी चाहिए| यदि सिंचाई व खेत उपलब्ध न हो तो बिजाई मई के पहले सप्ताह तक की जा सकती है|
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हरे चारे के लिए ज्वार की खेती के लिए उन्नत किस्में
हरे चारे की विभिन्न किस्में इस प्रकार है, जैसे-
एक कटाई देने वाली किस्में- हरियाणा चरी- 136 , हरियाणा चरी- 171, हरियाणा चरी- 260, हरियाणा चरी- 308, पी सी – 6, 9 व 23, एच सी- 136, 171 व 260 और पूसा चरी- 1 आदि प्रमुख है|
दो कटाई वाली किस्में- सी ओ- 27 व एएस- 16 आदि|
अधिक कटाई वाली किस्में- मीठी सूडान (एस एस जी- 59-3) ,एफ एस एच- 92079 (सफेद मोती) एस एस जी- 998 व 855 (हरा सोना) सी ओ- 27, सी एफ एस एच- 1, सी ओ एफ एस- 29, एम पी चरी, राज चरी- 1 व 2 और पन्त चरी- 6 प्रमुख है|
हरे चारे के लिए ज्वार की खेती के लिए बीज एवं मात्रा
यदि खेत भली प्रकार तैयार हो तो बुआई सीडड्रिल से 2.5 से 4 सेंटीमीटर की गहराई पर और 25 से 30 सेंटीमीटर की दूरी पर लाइनों में करें|
हरे चारे के लिए ज्वार की खेती के लिए बीज दर
प्रायः बीज की मात्रा बीज के आकार पर निर्भर करती है| बीज की मात्रा 18 से 24 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से बिजाई करें| यदि खेत की तैयारी अच्छी प्रकार न हो सके तो छिटकाव विधि से बुआई की जा सकती है, जिसके लिए बीज की मात्रा में 15 से 20 प्रतिशत वृद्धि आवश्यक है| अधिक कटाई वाली किस्में या संकर किस्मों के लिए 8 से 10 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ के हिसाब से डालें|
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हरे चारे के लिए ज्वार की खेती में खाद एवं उर्वरक
सिंचित इलाकों में इस फसल के लिए 80 किलोग्राम नाइट्रोजन व 30 किलोग्राम फास्फोरस प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है| सही तौर पर 175 किलोग्राम यूरिया और 190 किलोग्राम एस एस पी एक हैक्टर में डालना पर्याप्त रहता है| यूरिया की आधी मात्रा और एस एस पी की पूरी मात्रा बिजाई से पहले डालें और यूरिया की बची हुई आधी मात्रा बिजाई के 30 से 35 दिनों बाद खड़ी फसल में डालें|
कम वर्षा वाले व बारानी इलाकों में 50 किलोग्राम नाइट्रोजन (112 किलोग्राम यूरिया) प्रति हैक्टर बिजाई से पहले डालें| अधिक कटाई देने वाली किस्मों में 50 किलोग्राम नाइट्रोजन एवं 30 किलो फास्फोरस प्रति हैक्टर बिजाई से पहले व 30 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हैक्टर हर कटाई के बाद सिंचाई उपरान्त डालने से अधिक पैदावार मिलती है|
हरे चारे के लिए ज्वार की खेती में सिंचाई प्रबंधन
वर्षा ऋतु में बोई गई हरे चारे की फसल में आमतौर पर सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती| यदि बरसात का अन्तराल बढ़ जाए तो आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करें| मार्च व अप्रैल में बीजी गई फसल में पहली सिंचाई बिजाई के 15 से 20 दिन बाद और आगे की सिंचाई 10 से 15 दिन के अन्तर पर करें| मई से जून में बीजी गई फसल में 10 से 15 दिन के बाद पहली सिंचाई करें और बाद में आवश्यकतानुसार करें| अधिक कटाई वाली किस्मों में हर कटाई के बाद सिंचाई अवश्य करें| इससे फुटाव जल्दी व अच्छा होगा|
हरे चारे के लिए ज्वार की खेती में खरपतवार नियन्त्रण
ज्वार में खरपतवार की समस्या विशेषतौर पर वर्षाकालीन फसल में अधिक पायी जाती है| सामान्यत: गर्मियों में बीजी गई फसल में एक गोडाई पहली सिचाई के बाद बत्तर आने पर करनी चाहिए| यदि खरपतवार की समस्या अधिक हो तो एट्राजीन का छिड़काव करे| क्योंकि चारे की ज्वार में किसी भी प्रकार के रसायन के छिड़काव को बढ़ावा नहीं दिया जाता|
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हरे चारे के लिए ज्वार की खेती में रोग और कीट रोकथाम
हरे चारे की फसल में छिडकाव कम ही करना चाहिए तथा छिडकाव के बाद 25 से 30 दिन तक फसल पशुओं को नहीं खिलानी चाहिए|
हरे चारे के लिए ज्वार की कटाई और एचसीएन प्रबन्ध
हरे चारे की अधिक पैदावार व गुणवत्ता के लिए कटाई 50 प्रतिशत सिट्टे निकलने के पश्चात् करें| एच सी एन ज्वार में एक जहरीला तत्व प्रदान करता है, यदि इसकी मात्रा 200 पी पी एम से अधिक हो तो यह पशुओं के लिए हानिकारक हो सकता है| 35 से 40 दिन की फसल में एच सी एन की मात्रा अधिक होती है| लेकिन 40 दिन के बाद इसकी मात्रा घटने लगती है| इसलिए हरे ज्वार के चारे को 40 दिन से पहले नहीं काटना चाहिए| यदि कटाई 40 दिन में करनी अत्यन्त आवश्यक हो तो कटे हुए चारे को पशुओं को खिलाने से पहले 2 से 3 घंटे तक खुली हवा में छोड़ दे ताकि एच सी एन की मात्रा कुछ कम हो सके|
अधिक कटाई वाली किस्मों में हरे चारे की अधिक पैदावार के लिए पहली कटाई बिजाई के 50 से 55 दिनों के पश्चात् और शेष सभी कटाइयां 35 से 40 दिनों के अन्तराल पर करें| अगर पहली कटाई देर से की जाए तो सूखे चारे में वृद्धि होती है परन्तु हरे चारे की पैदावार एवं गुणवत्ता कम हो जाती है| अच्छे फुटाव के लिए फसल को भूमि से 8 से 10 सेंटीमीटर की ऊँचाई पर से काटें|
हरे चारे के लिए ज्वार की खेती से पैदावार
हरे चारे की उपज ज्वार की किस्म और कटाई की अवस्था पर काफी कुछ निर्भर करती हैं| यदि उपरोक्त उन्नत तरीकों से खेती की जाए तो एक कटाई वाली फसल से 300 से 450 कुन्तल व अधिक कटाई वाली किस्मों से हरे चारे की उपज 500 से 750 कुन्तल प्रति हैक्टर प्राप्त हो जाती हैं|
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