
हल्दी की गाँठों के रंग और आकार के अनुसार अनेक किस्में पाई जाती हैं| मालावार की हल्दी औषधीय महत्त्व की होती है| जिसका उपयोग जुकाम के उपचार के लिए किया जाता है| पूना एवं बंगलौर की हल्दी रंग के लिए अच्छी होती है| लौरवण्डी हल्दी से रंग निकाला जाता है| जंगली हल्दी सुगन्धित गाँठों के लिए प्रसिद्ध है|
अम्बा हल्दी कच्चे आम से मिलती-जुलती सुगंध देती है, परन्तु इसकी गाठे बड़ी पतली होती हैं| पकने की अवधि के आधार पर हल्दी की किस्मों को तीन वर्गों में बाटा जा सकता है, जिनका वर्णन निचे किया गया है| हल्दी की उन्नत खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- हल्दी की खेती की जानकारी
हल्दी की उन्नत किस्में
अल्प अवधि की किस्में- अल्प अवधि वाली किस्में करीब सात महीने में तैयार होती है| इनके प्रकंद पतले और अच्छी सुगंध देने वाले होते हैं| इनमें वाष्पशील तेल की मात्रा अधिक होती है| परन्तु उपज और रंग में हल्की होती है| कस्तूरी, सुवर्णा, सुरोमा और सुगना आदि इस अवधि की किस्में हैं|
मध्यम अवधि वाली किस्में- मध्यम अवधि वाली किस्में लगभग आठ महीने की अवधि में तैयार होती हैं| इन्हें केसरी किस्में भी कहा जाता है| इनकी उपज व गुणवत्ता अच्छी होती है| केसरी, रश्मि, रोमा आदि इस अवधि की किस्में हैं|
दीर्घ अवधि की किस्में- दीर्घ अवधि की किस्में नौ महीने से अधिक समय में तैयार होती है| उपज और गुणवत्ता के आधार पर यह सर्वोत्तम है| इस अवधि में टेकोरपेट और माईडकुद आदि प्रमुख किस्में हैं|
हमारे देश के किसान अभी तक स्थानीय किस्मों से ही हल्दी की खेती कर रहे हैं| जिससे किसानों को अच्छी उपज प्राप्त नही होती है| यदि हल्दी की खेती उन्नत किस्मों के साथ की जाये तो इसकी फसल से उच्च उपज प्राप्त की जा सकती है| हल्दी की किस्मों का चयन पीले रंग (ककुमिन) की मात्रा के आधार पर करना चाहिए| हल्दी की उन किस्मों को अच्छा माना जाता है, जिनमें कुरकुमिन की मात्रा अधिक होती है| किसानों की जानकारी के लिए कुछ प्रचलित हल्दी की उन्नत किस्मों की विशेषताओं और पैदावार का वर्णन निचे किया गया है|
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हल्दी की किस्मों की विशेषताएं और पैदावार
सोरमा- यह हल्दी की किस्म 210 दिन में तैयार होती है| कंद के अन्दर का रंग नारंगी होता हैं| ताजे कन्दों की औसत उपज 80 से 90 क्विंटल प्रति एकड़ है| सूखे कन्दों की औसत उपज 20 कुन्तल प्रति एकड़ होती है| इस किस्म में रोग कम लगते हैं| कन्दों में 9.3 प्रतिशत करक्युमिन एवं 4.4 प्रतिशत सुगन्ध तेल होता है|
सोनिया- यह हल्दी की पर्ण धब्वा रोग रोधी किस्म है| ताजे कन्दों की औसत उपज 110 से 115 क्विंटल प्रति एकड़ है और सूखे कन्दों की औसत उपज 18 से 20 क्विंटल प्रति एकड़ होती हैं| फसल 230 दिन में पककर तैयार हो जाती है| कन्दों में 8.4 प्रतिशत कुरक्युमिन होता हैं|
सुगंधम- इस हल्दी की किस्म के कन्द लाली लिये हुए पीले रंग के लम्बे होते हैं| यह 210 दिन में पककर तैयार हो जाती है| ताजे कन्दों की औसत उपज 80 से 90 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|
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सगुना- इस किस्म के कन्द मोटे एवं गूदेयुक्त होते हैं| इस किस्म की अधिकतम उत्पादन क्षमता 240 से 250 क्विंटल प्रति एकड़ प्राप्त की जा सकती हैं| लेकिन सामान्य परिस्थितियों में ताजे कन्दों की औसत उपज 110 से 120 क्विंटल प्रति एकड़ है| जिसमें से 25 से 30 क्विंटल प्रति एकड़ सूखे कन्द प्राप्त होते हैं| इसमें 6 प्रतिशत सुगन्ध तेल प्राप्त होता है|
रोमा- यह हल्दी की किस्म 255 दिन में तैयार हो जाती है| इस किस्म की अधिकतम उपज 160 से 170 क्विंटल कंद प्रति एकड़ प्राप्त की जा सकती है, पर औसतन लगभग 80 से 100 कुन्तल प्रति एकड़ ताजे कन्द व 26 क्विंटल प्रति एकड़ सूखे कन्द प्राप्त होते हैं|
पन्त पीतम्भ- इस हल्दी की किस्म के कन्द चमकदार एवं आकर्षक होते हैं| बुवाई के 255 दिन बाद पककर तैयार हो जाती है, ताजे कन्दों की औसत उपज 100 क्विंटल प्रति एकड़ प्राप्त होती है|
बी एस आर 1- यह एक्स किरण उत्परिवर्तन द्वारा तैयार किस्म है| यह जलाक्रांत खेत के लिये उपयुक्त है और इसका प्रकंद चमकीला नारंगी होता है| इसमें 4.2 प्रतिशत क्युरक्युमिन होता है तथा यह 285 दिन में परिपक्व होती है|
पालम पिताम्बर- यह किस्म हरे पत्तों के साथ मध्यम ऊंचाई वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है| यह अधिक उपज देती है, जो औसतन उपज 332 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक प्राप्त हो सकती है| इस किस्म में स्थानीय किस्मों से अधिक उपज देने की क्षमता है और इसकी गठियां उंगलियों की तरह लम्बी व रंग गहरा पीला होता है|
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पालम लालिमा- इसकी गठ्ठियों का रंग नारंगी होती है और स्थानीय किस्मों की अपेक्षा इसकी औसत वार्षिक उपज अधिक होती है| इस किस्म की औसतन उपज 250 से 300 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक ली जा सकती है|
कोयम्बटूर- यह हल्दी की बारानी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त किस्म है| इसके कंद बड़े, चमकीले एवं नारंगी रंग के होते हैं| यह 285 दिन में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है|
कृष्णा- यह हल्दी की लम्बे प्रकंदों तथा अधिक उपज देने वाली किस्म है| यह कंद गलन के प्रति रोगरोधी है और 255 दिन में पककर तैयार हो जाती है|
सुदर्शन- इस हल्दी की किस्म के कन्द घने, छोटे आकार के तथा देखने में काफी खूबसूरत होते हैं| यह किस्म 190 दिन में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है|
राजेन्द्र सोनिया- इस किस्म के पौधे छोटे यानि 60 से 80 सेंटीमीटर ऊँचे तथा 195 से 210 दिन में तैयार हो जाती है| इस किस्म की उपज क्षमता 400 से 450 क्विंटल प्रति हेक्टर तथा कुरक्युमिन 8 से 8.5 प्रतिशत है|
आर एच 5- इस हल्दी की किस्म के पौधे भी छोटे यानि 80 से 100 सेंटीमीटर ऊँचे तथा 210 से 220 दिन में तैयार हो जाती है| इस किस्म की उपज क्षमता 500 से 550 क्विंटल प्रति हेक्टर तथा कुरक्युमिन 7.0 प्रतिशत है|
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आर एच 9/90- इस हल्दी की किस्म के पौधे मध्य ऊँचाई की यानि 110 से 120 सेंटीमीटर के होते है तथा यह किस्म 210 से 220 दिन में तैयार हो जाती है| इस किस्म की उपज क्षमता 500 से 550 क्विंटल प्रति हेक्टर है|
आर एच- 13/90- इस किस्म के पौधे मध्यम आकार यानि 110 से 120 सेंटीमीटर उंचाई लिए होते है| इसके तैयार होने में 200 से 210 दिन का समय लगता है| इस किस्म की उपज क्षमता 450 से 500 क्विंटल प्रति हेक्टर है|
एन डी आर 18- इस किस्म के पौधे मध्यम आकार यानि 115 से 120 सेंटीमीटर उंचाई लिए होते है तथा इसको तैयार होने में 215 से 225 दिन का समय लगता है| इसकी उपज क्षमता 350 से 375 क्विंटल प्रति हेक्टर है|
सी एल- 327 ठेकुरपेन्ट- इसके पंजे लम्बे, चिकने एवं चपटे होते हैं| इसकी अवधि 5 से 7 माह तथा उत्पादन क्षमता 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टर है और सूखने पर 21.8 प्रतिशत हल्दी प्राप्त होती हैं|
सी एल- 326 माइडुकुर- यह लीफ स्पाॅट बीमारी की अवरोधक प्रजाति है| लम्बे पंजे वाली, चिकनी, नौ माह में तैयार होती है| उत्पादन क्षमता 200 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा सूखने पर 19.3 प्रतिशत हल्दी मिलती हैं|
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