भारत के विभिन्न अदरक उगाये जाने वाले क्षेत्रों में अदरक की कई उन्नत किस्में उगाई जाती है तथा प्रायः उनका नाम उगाये गये क्षेत्र पर रखा जाता है, जैसे- मारन, कुरुप्पम्पदी, एरनाद, वायनाड, हिमाचल और नाडिया कुछ प्रमुख स्वदेशी उन्नत प्रजातियाँ हैं| विदेशी किस्मे ‘रिओ-डी जनेरिओ’ भी काफी प्रसिद्ध है| अदरक की कुछ उन्नत किस्में ताजे अदरक, सूखे अदरक तथा मिठाइयाँ बनाने के लिए उपयुक्त है, वहीं कुछ मूलभूत तेल से भरपूर होती है|
उत्पादकों को इसकी खेती से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए अपने क्षेत्र की प्रचलित और भरपूर उत्पादन देने वाली किस्मों को उगाना चाहिए| इसके साथ चुनी हुई किस्मे विकार रोधी भी होनी चाहिए ताकि उत्पादन लागत को कम किया जा सके| इन सब के लिए उत्पादकों को अदरक की किस्मों के प्रति जागरूक होना होगा| इस लेख में अदरक की उन्नत किस्मों तथा उनकी विशेषताएं और पैदावार की जानकारी का वर्णन किया गया है| अदरक की उन्नत खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- अदरक की उन्नत खेती कैसे करें
अदरक की किस्में
सूखा अदरक हेतु- करक्कल, नदिया, मारन, विनाङ, मननटोडी, वल्लूवनद, इमड और कुरूप्पमपदी आदि प्रमुख है|
ताजे अदरक हेतु- रिपोडीजेनेरो, चाइना, विनाड और टफन्जिया आदि प्रमुख है|
जेल (जिन्जेरॉल) हेतु- स्लिवा स्थानीय, नरसापट्टम, इमड, चेमड और हिमाचल प्रदेश आदि प्रमुख है|
ओलियोरेगिन (तेल) हेतु- इमड, चेमड, चाइना, कुरूप्पमपदी और रियो डी जेनेरो आदि प्रमुख है|
अल्पा रेशित व ताजे कन्द हेतु- जमैका, बैंकाक और चाइना आदि प्रमुख है|
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अदरक किस्मों की विशेषताएं और पैदावार
नदिया- यह किस्म उत्तर भारत के लिये उपयुक्त है, यह 8 से 9 माह में तैयार हो जाती है| इसकी पैदावार क्षमता 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टर होती है|
मरान- यह एक अच्छी किस्म है, इसकी पैदावार क्षमता 175 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टर होती है, साथ ही इस किस्म में मृदु विगलन रोग नहीं लगता है|
जोरहट- यह असम की लोकप्रिय किस्म है| इसकी पैदावार क्षमता 200 से 225 क्विंटल प्रति हेक्टर है| यह 8 से 10 माह में तैयार हो जाती है|
सुप्रभा- यह किस्म 225 से 230 दिन में तैयार हो जाती है| इस किस्म में अधिक किलें (टोलरिंग) निकलते हैं, प्रकंद का सिरा मोटा, छिलका सफेद और चमकदार होता है| इस किस्म की पैदावार क्षमता छिलका 200 से 230 क्विंटल प्रति हेक्टर है| यह किस्म प्रकन्द विगलन रोग के प्रति सहनशील है|
सुरूचि- यह किस्म हल्के सुनहले रंग की होती है और 230 से 240 दिन में तैयार हो जाती है| इस किस्म की पैदावार 200 से 225 क्विंटल प्रति हेक्टर है| यह किस्म प्रकन्द विगलन रोग के प्रति निरोधक है|
सुरभि- इसके गांठ काफी आकर्षक होते हैं| यह 225 से 235 दिन में तैयार हो जाती है| इसकी पैदावार क्षमता 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टर है| यह किस्म भी प्रकन्द विगलन बीमारी के प्रति सहनशील है|
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वारदा (IISR)- इस उन्नत किस्म की परिपवक्ता अवधि 200 दिन है, इसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 220 से 250 क्विंटल है| इससे सुखी अदरक 20.7 प्रतिशत और कच्चे रेशे की प्राप्ति 4.5 प्रतिशत और मुलभुत तेल की मात्रा 1.8 प्रतिशत तक प्राप्त होती है|
महिमा (IISR)- इस उन्नत किस्म की परिपवक्ता अवधि 200 दिन है, इसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 230 से 250 क्विंटल है| इससे सुखी अदरक 23 प्रतिशत और कच्चे रेशे की प्राप्ति 3.3 प्रतिशत और मुलभुत तेल की मात्रा 1.7 प्रतिशत तक प्राप्त होती है|
रेजाठा (IISR)- इस अदरक की उन्नत किस्म की परिपवक्ता अवधि 200 दिन है, इसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 220 से 230 क्विंटल है| इससे सुखी अदरक 19 प्रतिशत और कच्चे रेशे की प्राप्ति 4 प्रतिशत और मुलभुत तेल की मात्रा 2.4 प्रतिशत तक प्राप्त होती है|
अथिरा- इस किस्म की परिपवक्ता अवधि 220 से 240 दिन है, इसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 210 से 230 क्विंटल है| इससे सुखी अदरक 22.6 प्रतिशत और कच्चे रेशे की प्राप्ति 3.4 प्रतिशत और मुलभुत तेल की मात्रा 3.1 प्रतिशत तक प्राप्त होती है|
अस्वाथी- इस अदरक की उन्नत किस्म की परिपवक्ता अवधि 220 से 240 दिन है, इसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 230 से 250 क्विंटल है| इससे सुखी अदरक 19.7 प्रतिशत और कच्चे रेशे की प्राप्ति 3.5 प्रतिशत और मुलभुत तेल की मात्रा 1.6 प्रतिशत तक प्राप्त होती है|
हिमगिरी- इस किस्म की परिपवक्ता अवधि 230 दिन है, इसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 130 से 150 क्विंटल है| इससे सुखी अदरक 20.6 प्रतिशत और कच्चे रेशे की प्राप्ति 6.4 प्रतिशत और मुलभुत तेल की मात्रा 1.6 प्रतिशत तक प्राप्त होती है|
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