अदरक (Ginger) भारतवर्ष की प्रमुख मसाला फसलों में से एक है| अदरक का प्रयोग मसाले, औषधिया और सौन्र्दय सामग्री के रूप में हमारे दैनिक जीवन में वैदिक काल से चला आ रहा हैं| खुशबू पैदा करने के लिये आचार, चाय के अलावा कई व्यजंनो में अदरक का प्रयोग किया जाता हैं| सर्दियों में खाँसी जुकाम आदि के लिए भी इसका प्रयोग आम हैं| अदरक का सोंठ के रूप में इस्तमाल किया जाता हैं| अदरक का तेल, चूर्ण और अंगलियोरजिन भी औषधियों में उपयोग किया जाता हैं|
अदरक के महत्व को समझते हुए कृषकों को अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए इसकी खेती वैज्ञानिक तकनीकी से करनी चाहिए| ताकि उनकों अधिक लाभ प्राप्त हो सके| इस लेख में अदरक की उन्नत खेती कैसे करें की पूरी जानकारी का उल्लेख किया गया है| अदरक की जैविक उन्नत खेती की पूरी जानकर के लिए यहाँ पढ़ें- अदरक की जैविक खेती: किस्में, देखभाल और पैदावार
अदरक के उपयोग
औषधियों के रूप में- सर्दी-जुकाम, खाँसी खून की कमी, पथरी, लीवर वृद्धि, पीलिया, पेट के रोग, वाबासीर, और वायु रोगीयों के लिये दवा बनाने में प्रयोग की जाती हैं|
मसाले के रूप में- चटनी, जैली, सब्जियो, भार्बत, लडडू, चाट आदि में कच्ची और सूखी अदरक का उपयोग किया जाता हैं|
सौंदर्य प्रसाधन में- अदरक का तेल, पेस्ट, पाउडर और क्रीम बनाने में भी इसका उपयोग किया जाता हैं|
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अदरक की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
अदरक की खेती गर्म तथा आर्द्रता वाले स्थानों में की जाती है | मध्यम वर्षा या सिंचाई बुवाई के समय अदरक की गाँठों के अंकुरण के लिये आवश्यक होती है| इसके बाद थोड़ी ज्यादा वर्षा पौधों को वृद्धि के लिये तथा इसकी खुदाई के एक माह पूर्व सूखे मौसम की आवश्यकता होती हैं| समय पर वुवाई या रोपण अदरक की खेती के लिये अति आवश्यक हैं|
1500 से 1800 मिलीमीटर, वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में इसकी खेती से अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती हैं| परन्तु उचित जल निकास रहित स्थानों पर खेती को भारी नुकसान होता हैं| औसत तापमान 25 डिग्री सेन्टीग्रेड, गर्मीयों में 35 डिग्री सेन्टीग्रेड वाले स्थानों पर इसकी खेती बागों में अन्तरवर्तीय फसल के रूप में की जा सकती है|
अदरक की खेती के लिए भूमि का चयन
अदरक की खेती बलुई दोमट जिसमें अधिक मात्रा में जीवाशं या कार्बनिक पदार्थ की मात्रा हो वो भूमि सबसे ज्यादा उपयुक्त रहती है| मिटटी का पी एच मान 5.6 ये 6.5 और अच्छे जल निकास वाली भूमि सबसे अच्छी, अदरक की फसल से अधिक उपज के लिऐ रहती हैं| इसकी एक ही भूमि पर बार-बार फसल लेने से भूमि जनित रोग एवं कीटों में वृद्धि होती हैं| इसलिये फसल चक अपनाना चाहिये| उचित जल निकास ना होने से कन्दों का विकास अच्छे से नही होता|
अदरक की खेती के लिए खेती की तैयारी
मार्च से अप्रैल में खेत की गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद खेत को खुला धूप लगने के लिये छोड़ देते हैं| मई के महीने में डिस्क हैरो या रोटावेटर से जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी बना लेते हैं| अनुशंसित मात्रा में गोबर की सड़ी खाद या कम्पोस्ट तथा नीम की खली का सामान रूप से खेत में डालकर पुनः कल्टीवेटर या देशी हल से 2 से 3 बार आड़ी-तिरछी जुताई करके पाटा चला कर खेत को समतल कर लेना चाहिये|
सिचाई की सुविधा और बोने की विधि के अनुसार तैयार खेत को छोटी-छोटी क्यारियों में बाँट लेना चाहिये| अंतिम जुताई के समय उर्वरकों की अनुशंसित मात्रा का प्रयोग करना चाहिये| शेष उर्वरकों को खड़ी फसल में देने के लिये बचा लेना चाहिये|
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अदरक की खेती के लिए उन्नत किस्में
सूखा अदरक हेतु- करक्कल, नदिया, मारन, विनाङ, मननटोडी, वल्लूवनद, इमड और कुरूप्पमपदी आदि प्रमुख है|
ताजे अदरक हेतु- रिपोडीजेनेरो, चाइना, विनाड और टफन्जिया आदि प्रमुख है|
जेल (जिन्जेरॉल) हेतु- स्लिवा स्थानीय, नरसापट्टम, इमड, चेमड और हिमाचल प्रदेश आदि प्रमुख है|
ओलियोरेगिन हेतु- इमड, चेमड, चाइना, कुरूप्पमपदी और रियो डी जेनेरो आदि प्रमुख है|
अल्पा रेशित व ताजे कन्द हेतु- जमैका, बैंकाक और चाइना आदि प्रमुख है| किस्मों की अधिक जानकारी के लिए यहा पढ़ें- अदरक की उन्नत किस्में, जानिए उनकी विशेषताएं और पैदावार
अदरक की खेती के लिए बुवाई का समय
अदरक की बुबाई दक्षिण भारत में मानसून फसल के रूप में अप्रैल से मई में की जाती जो दिसम्बर में परिपक्क होती है| जबकि मध्य और उत्तर भारत में अदरक एक शुष्क और सिंचित क्षेत्र की फसल है, में अप्रैल से जून माह तक बुवाई योग्य समय हैं| सबसे उपयुक्त समय 15 मई से 30 मई हैं| 15 जून के बाद वुवाई करने पर कंद सड़ने लगते हैं तथा अंकुरण पर प्रभाव बुरा पड़ता हैं|
केरल में अप्रैल के प्रथम सप्ताह में वुवाई करने पर उपज 200 प्रतिशत तक अधिक पाई गई हैं| वही सिचाई वाले क्षेत्रों में फरवरी के मध्य बोने से अधिक उपज प्राप्त हुई पायी गयी तथा कन्दों के जमाने में 80 प्रतिशत की वृद्धि ऑकी गयी है| पहाड़ी क्षेत्रो में 15 मार्च के आस-पास वुवाई की जाने वाली अदरक में सबसे अच्छा उत्पादन प्राप्त हुआ है|
अदरक की खेती के लिए बीज की मात्रा
अदरक की खेती के लिए 20 से 25 क्विंटल प्रकन्द प्रति हेक्टेयर बीज दर उपयुक्त रहती हैं और पौधों की संख्या 140000 प्रति हेक्टेयर पर्याप्त मानी जाती हैं| मैदानी भागो में 15 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर बीज की मात्रा का चुनाव किया जा सकता हैं| क्योंकि अदरक की कुल लागत का 30 से 40 प्रतिशत बीज में लग जाता इसलिये बीज की मात्रा का चुनाव, किस्म, क्षेत्र और प्रकन्दों के आकार के अनुसार ही करना चाहिये|
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अदरक की खेती के लिए बीज उपचार
अदरक के प्रकन्द बीजों को खेत में वुबाई, रोपण और भण्डारण के समय उपचारित करना आवश्यक हैं| बीज उपचारित करने के लिये (मैंकोजेब + मैटालैक्जिल) या कार्बोन्डाजिम की 3 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर कन्दों को 30 मिनट तक डुबो कर रखना चाहिये साथ ही स्ट्रप्टोसाइकिलन या प्लान्टो माइसिन भी 5 ग्राम की मात्रा 20 लीटर पानी के हिसाब से मिला लेते है|
जिससे जीवाणु जनित रोगों की रोकथाम की जा सके, पानी की मात्रा घोल में उपचारित करते समय कम होने पर उसी अनुपात में मिलाते जाय और फिर से दवा की मात्रा भी चार बार के उपचार करने के बाद फिर से नया घोल वनायें| उपचारित करने के बाद बीज कों थोडी देर छावं में सुखाकर वोनी करें|
अदरक बोने की विधि
प्रकन्दों को 40 सेंटीमीटर के अन्तराल पर बोना चाहिये| मेड़ या कूड़ विधि से बुवाई करनी चाहिये| प्रकन्दों को 5 सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिये, बाद में अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद या मिट्टी से ढक देना चाहिये| यदि रोपण करना है, तो कतार से कतार 30 सेंटीमीटर और पौध से पौध 20 सेंटीमीटर की दुरी पर करे|
अदरक की रोपाई परिस्थितियों के अनुसार 15 X 15, 20 x 40 या 25 X 30 सेंटीमीटर पर भी कर सकते हैं| भूमि की दशा या जल वायु के प्रकार के अनुसार समतल कच्ची क्यारी, मेड-नाली आदि विधि से अदरक की वुवाई या रोपण किया जाता है| अदरक बोने की प्रचलित विधि इस प्रकार है, जैसे-
समतल विधि- हल्की तथा ढालू भूमि में समतल विधि द्वारा रोपण या वुवाई की जाती हैं| खेती में जल निकास के लिये कुदाली या देशी हल से 5 से 6 सेंटीमीटर, गहरी नाली बनाई जाती है| जो जल के निकास में सहायक होती हैं| इन नालियों में कन्दों का 15 से 20 सेंटीमीटर की दूरी पर रोपण किया जाता हैं और रोपण के दो माह बाद पौधो पर मिट्टी चढ़ाकर मेडनाली विधि बनाना लाभदायक रहता हैं|
ऊँची क्यारी विधि- इस विधि में 1 X 3 मीटर, आकार की क्यारीयों को जमीन से 20 सेंटीमीटर ऊची बनाकर प्रत्येक क्यारी में 50 सेंटीमीटर चौड़ी नाली जल निकास के लिये बनाई जाती हैं| बरसात के बाद यही नाली सिचाई के काम में आती हैं| इन उथली क्यारियों में 30 X 20 सेंटीमीटर की दूरी पर 5 से 6 सेंटीमीटर गहराई पर कन्दों की वुवाई करते हैं| भारी भूमि के लिये यह विधि अच्छी है|
मेड़ नाली विधि- इस विधि का प्रयोग सभी प्रकार की भूमियों में किया जा सकता हैं| तैयार खेत में 60 या 40 सेंटीमीटर की दूरी पर मेड़ नाली का निर्माण हल या फावड़े से काट के किया जा सकता हैं| बीज की गहराई 5 से 6 सेंटीमीटर रखी जाती है|
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अदरक की खेती के लिए नर्सरी तैयार करना
यदि पानी की उपलब्धता नही या कम है| तो अदरक की नर्सरी तैयार करते हैं| पौधशाला में एक माह अंकुरण के लिये रखा जाता है| अदरक की नर्सरी तैयार करने हेतु उपस्थित बीजो या कन्दों को गोबर की सड़ी खाद तथा रेत (50:50) के मिश्रण से तैयार बीज की फैलाकर उसी मिश्रण से ढक देना चाहिए और सुबह-शाम पानी का छिड़काव करते रहना चाहिये| कन्दों के अंकुरित होने एवं जड़ोसे जमाव शुरू होने पर उसे मुख्य खेत में मानसून की बारिश के साथ रोपण कर देना चाहिये|
अदरक की खेती के लिए पोषक तत्व प्रबंधन
यह एक लम्बी अवधि की फसल हैं| जिसे अधिक पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है| उर्वरकों का उपयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर करना चाहिए| खेत तैयार करते समय 30 से 35 टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सड़ी हई गोबर या कम्पोस्ट की खाद खेत में सामन्य रूप से फैलाकर मिला देना चाहिए| प्रकन्द रोपण के समय 20 कुन्टल प्रति हेक्टेयर नीम की खली भूमि डालने से प्रकन्द गलन और सूत्रकृमि या भूमि जनित रोगों की समस्याँ कम हो जाती हैं|
रासायनीक उर्वरकों की मात्रा को 20 प्रतिशत कम कर देना चाहिए यदि गोबर की खाद या कम्पोस्ट डाला गया है तो, संतुलित उर्वरको की मात्रा 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, कम्पोस्टस 50 किलोग्राम, पोटाश किलोग्राम 50 किलोग्राम और जिंक की कमी होने पर 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर देनी चाहिए| नाइट्रोजन की आधी मात्रा और बाकि सभी उर्वरकों की पूरी मात्रा अंतिम जुताई के समय खेत में प्रकनदों से 4 से 5 सेंटीमीटर की गहराई पर देनी चाहिए|
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अदरक की खेती में छाया का प्रभाव
अदरक को हल्की छाया देने से खुले में बोई गयी अदरक से 25 प्रतिशत तक अधिक उपज प्राप्त होती है और कन्दों की गुणवत्ता में भी उचित वृद्धि पायी गयी हैं|
अदरक की खेती और फसल प्रणाली
अदरक की फसल के रोग एवं कीटों में कमी लाने और मृदा के पोशक तत्वो के बीच सन्तुलन रखने हेतु अदरक को सिंचित भूमि में पान, हल्दी, प्याज, लहसुन, मिर्च अन्य सब्जियों, गन्ना, मक्का तथा मूंगफली के साथ उगाया जा सकता है| वर्षा अधिक सिंचित वातावरण में 3 से 4 साल में एक बार आलू, रतालू, मिर्च, धनियॉ के साथ या अकेले ही फसल चक्र अपना सकते हैं| अदरक की फसल को पुराने बागों में अन्तरवर्तीय फसल के रूप में उगा सकते हैं|
अदरक की खेती में पलवार (मल्चिंग)
अदरक की फसल में पलवार विछाना बहुत ही लाभदायक होता हैं| रोपण के समय इससे भूमि का तापक्रम और नमी का सामंजस्य बना रहता है| जिससे अंकुरण अच्छा होता है| खरपतवार भी अंकुरित नही होते और वर्षा होने पर भूमि का क्षरण भी नही होने पाता है| रोपण के तुरन्त बाद हरी पत्तियाँ या लम्बी घास पलवार के लिये ढाक, आम, केला या गन्ने की पत्तियों का भी उपयोग किया जा सकता हैं| 10 से 12 टन या सूखी पत्तियाँ 5 से 6 टन प्रति हेक्टेयर बिछाना चाहिये|
दुबारा इसकी आधी मात्रा को रोपण के 40 दिन और 90 दिन के बाद विछाते हैं| पलवार विछाने के लिए उपलब्धतानुसार गोवर की सड़ी खाद एवं पत्तियाँ, धान के भूसे का प्रयोग किया जा सकता हैं| काली पॉलीथीन को भी खेत में बिछा कर पलवार के काम लिया जा सकता हैं| निदाई, गुडाई तथा मिट्टी चढाने से भी उत्पादन पर अच्छा असंर पडाता हैं| ये सारे कार्य एक साथ करने चाहिये|
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अदरक फसल की निदाई-गुडाई एवं मिट्टी चढ़ाना
पलवार के कारण खेत में खरपतवार नही उगते अगर उगे हो तो उन्हें निकाल देना चाहिये, दो बार निदाई 4 से 5 माह बाद करनी चाहिये| साथ ही मिट्टी भी चढ़ाना चाहिऐ| जब पौधे 20 से 25 सेंटीमीटर ऊँचे हो जाये तो उनकी जड़ो पर मिट्टी चढाना आवश्यक होता हैं| इससे मिट्टी भुरभुरी हो जाती है और प्रकंद का आकार बड़ा होता है, एवं भूमि में वायु संचार अच्छा होता हैं| अदरक के कंद बनने लगते है तो जड़ों के पास कुछ कल्ले निकलते हैं| इन्हे खुरपी से काट देना चाहिऐ, ऐसा करने से कंद बड़े आकार के हो पाते हैं|
अदरक की फसल में रोग और कीट रोकथाम
अदरक की फसल में मृदु विगलन, जीवाणु म्लानि, पर्ण चित्ती और सूत्रकृमि रोग प्रमुख है| इनकी रोकथाम के लिए बीज को अच्छे से उपचारित कर के बुवाई करनी चाहिए| रोग रोधी किस्म का चुनाव करना चाहिए| रोगी पौधों को उखाड़ कर मिट्टी में दबा देना चाहिए| इसके साथ साथ 2 ग्राम गंधक प्रति लिटर पानी और 0.5 प्रतिशत मिथाइल डिमेटान 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करते रहना चाहिए|
अदरक की फसल में तना बेधक, राइजोम शल्क और लघु किट जैसे कीट लगते हा इनकी रोकथाम के लिए मैलाथियान, डाइमेथोए और क्युनाल्फोस तीनों से एक एक मिलीलीटर दवा और एक लिटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए| इसके बाद 25 किलोग्राम क्लोरोफयरिफास का चूर्ण प्रति हेक्टेयर के हिसाब से राख में मिलाकर बुरकाव करना चाहिए| अदरक फसल के रोग एवं कीट की विस्तृत जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- अदरक के प्रमुख रोगों एवं कीटों का समेकित नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें
अदरक फसल के कंदों खुदाई
अदरक की खुदाई लगभग रोपण के 8 से 9 महीने बाद कर लेनी चाहिये जब पत्तियाँ धीरे-धीरे पीली होकर सूखने लगे| खुदाई में देरी करने पर प्रकन्दों की गुणवत्ता तथा भंडारण क्षमता में गिरावट आ जाती है और भंडारण के समय प्रकन्दों का अंकुरण होने लगता हैं| खुदाई कुदाली या फावडे की सहायता से की जा सकती है, बहुत शुष्क और नमी वाले वातावरण में खुदाई करने से उत्पादन में क्षति पहुँचती है, जिससे ऐसे समय में खुदाई नहीं करना चाहिऐ| खुदाई करने के बाद प्रकन्दों से पत्तियों और अदरक कंदों में लगी मिट्टी को साफ कर देना चाहिये|
यदि अदरक का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाना है, तो खुदाई रोपण के 6 महीने के अन्दर की जानी चाहिऐ| प्रकन्दों को पानी से धुलकर एक दिन तक धूप में सूखा लेना चाहिये| सूखी अदरक के के लिए जिन कंदों की खुदाई 8 महीने बाद की गई है, उनको 6 से 7 घन्टे तक पानी में डुबोकर रखें इसके बाद नारियल के रेशे या मुलायम ब्रश आदि से रगड़कर साफ कर लेना चाहिये| धुलाई के बाद अदरक को सोडियम हाइड्रोक्लोरोइड के 100 पी पी एम के घोल में 10 मिनट के लिये डुबोना चाहिए|
जिससे सूक्ष्म जीवों के आक्रमण से बचाव के साथ-साथ भण्डारण क्षमता भी बढ़ती है| अधिक देर तक धूप ताजी अदरक (कम रेशे वाली) को 170 से 180 दिन बाद खुदाई करके नमकीन अदरक तैयार की जा सकती है| मुलायम अदरक को धुलाई के बाद 30 प्रतिशत नमक के घोल जिसमें 1 प्रतिशत सिट्रीक अम्ल में डुबो कर तैयार किया जाता हैं| जिससे वो 14 दिनों के बाद प्रयोग और भण्डारण के योग्य हो जाते है|
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अदरक की खेती से पैदावार
ताजा हरे अदरक के रूप में 100 से 150 क्विंटल पैदावार प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाती है| जो सूखाने के बाद 20 से 25 क्विंटल तक होती हैं| उन्नत किस्मो के उपयोग एवं अच्छे प्रबंधन द्वारा औसत पैदावार 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त की जा सकती है| इसके लिये अदरक को खेत में 3 से 4 सप्ताह तक अधिक छोड़ना पड़ता है| जिससे कन्दों की ऊपरी परत पक जाती है और मोटी भी हो जाती हैं|
अदरक का भंडारण
ताजा उत्पाद बनाने और उसका भंडारण करने के लिये जब अदरक कडी, कम कडवाहट तथा कम रेशे वाली हो, ये अवस्था परिपक्व होने के पहले आती है| सूखे मसाले तथा तेल के लिए अदरक पूर्ण परिपक्व होने पर खुदाई करना चाहिये, अगर परिपक्व अवस्था के वाद कन्दो को भूमि में पड़ा रहने दे तो उसमें तेल की मात्रा तथा तिखापन कम हो जायेगा और रेशे की अधिकता हो जायेगी, तेल और सौठं बनाने के लिये 150 से 170 दिन के बाद खुदाई करनी चाहिये| अदरक की परिपक्वता का समय भूमि की प्रकार और किस्मों पर निर्भर करता है|
गर्मीयों में ताजा प्रयोग हेतु 5 महिने में, भण्डारण हेतु 5 से 7 महिने में सूखे ,तेल प्रयोग हेतु 8 से 9 महिने में बुवाई के बाद खोद लेना चहिये| बीज उपयोग हेतु जब तक उपरी भाग पत्तीयो सहित पूरा न सूख जाये तब तक भूमि से नही खोदना चाहिये, क्योकि सूखी हुयी पत्तियाँ एक तरह से पलवार का काम करती है या भूमि से निकाल कर कवकनाशी एवं कीट नाशीयों से उपचारित करके छाया में सूखा कर एक गडडे में दबा कर ऊपर से बालू से ढक देना चाहिये|
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