भारतवर्ष के उत्तरी-पश्चिमी और मरुस्थलीय शुष्क क्षेत्रों में अनार की खेती सफलता पूर्वक की जा रही है| क्योंकि उपोष्ण एवं उष्ण जलवायु में अच्छी तरह से उगाया जा सकता है| अनार के पौधों में शुष्क तथा गर्म जलवायु सहन करने की अद्भुत क्षमता होती है| फलों के विकास और पकने के समय गर्म एवं शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है| शुष्क और गर्म जलवायु वाले पौधों के फल बहुत मीठे एवं सुगन्धित होते हैं|
इसीलिए हमारे देश में उत्तर-पश्चिम की जलवायु अच्छे गुणवता के फल उत्पादन के लिए उतम मानी जाती है, फटे हुए फलों पर फफूंद के आक्रमण के कारण फल जल्दी सड़ जाते हैं| जिससे फलों की भंडारण क्षमता कम हो जाती है| इस लेख में अनार में फल फटने की समस्याओं और रोकथाम की जानकारी का उल्लेख किया गया है| अनार की वैज्ञानिक तकनीक से खेती कैसे करें की विस्तृत जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- अनार की खेती कैसे करें
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फल फटने के कारण
तापमान- उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र की जलवायु बहुत ही कठोर मानी जाती है| यहाँ गर्मियों में तापमान 48 से 52 डिग्री सेन्टीग्रेड तक तथा सर्दियों में 0 डिग्री तक पहुंच जाता है| अधिक तापमान के कारण पौधों और मृदा वाष्पीकरण से जल की कमी हो जाती हैं| जिससे फलों की बाहरी त्वचा कठोर हो जाती है| तदोपरांत पौधों को पानी देने से फलों के अंदर उत्तकों की वृद्धि उचित अनुपात में नहीं हो पाती जिससे फल फट जाते हैं| जैसे अनार, बैलपत्र, नींबू एवं बेर में समस्या को फल पकने से पहले देखा जा सकता है|
हवा वेग- उत्तर-पश्चिम के शुष्क क्षेत्रों में गर्मी के महीनों में लू या गर्म हवा चलना एक आम बात है| जब गर्म हवा फलों की सतह को स्पर्श करती है, तो फल सतह से वाष्पीकरण में वृद्धि हो जाती है| जिसके कारण फल छिलका कठोर हो जाता है| लंबे समय बाद अचानक मिट्टी की नमी तथा वायुमंडलीय आर्द्रता बढ़ती है तो फल के आंतरिक ऊतकों की तेजी से वृद्धि से उत्पन्न दबाव को फल की बाह्य त्वचा सहन नहीं कर पाती है| जिसके कारण फल फट जाते हैं|
नमी- शुष्क क्षेत्रों की रेतीले मिट्टी की जल संग्रहण क्षमता बहुत कम होती है| क्योंकि ऐसे क्षत्रों में अधिक वाष्पीकरण एवं कम वर्षा होती है| जिसके कारण वायुमंडल नमी में उतार-चढ़ाव सामान्य बात है| लंबे समय बाद अचानक पानी देने से फल के अंदर की कोशिकाओं की वृद्धि त्वचा की कोशिकाओं की तुलना में अधिक तेजी से विकास होता हैं| परिणामस्वरुप फल फट जाते हैं|
शारीरिक कारक- फलो में कम परासरनी दबाव और उच्च सांद्रता कुल घुलनशील ठोस पदार्थ एवं एस्कोर्बिक अम्ल के कारण फल त्वचा में दबाव बढ़ जाने कारण फल फट जाते है| पौधे की पतियों, कैनोपी तथा फलो की सतह से लगातार वाष्पीकरण से पतियों की जल क्षमता में हानि से उतार चढाव के कारण भी फल फट जाते है|
फल आकार- छोटे आकर के फलों की तुलना में बड़े फलों में फल फटन की समस्या कम पायी जाती है| फल का आकार, वजन तथा फल वजन अनुपात का फल फटन में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, बड़े फलों की तुलना में छोटे फलों की एपिडर्मिस कोशिकाओं का दबाव अधिक होता है| जिससे फल त्वचा दबाव सहन नहीं कर पाती हैं, जो फल फटन का एक महत्वपूर्ण कारण माना जाता है|
पत्ती रंद्र- पतियों में बड़े आकर के वातरंद्र से जल का वाष्पीकरण छोटे आकर की तुलना में अधिक होता है|
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फल परिपक्वता- फल परिपक्वता के साथ-साथ घुलनशील ठोस पदार्थ और शर्करा की मात्रा एवं एंटी ऑक्सिडेंट एंजाइम की गतिविधि भी बढ़ती जाती है| जिससे फलों के बाह्य कोष में सेलुलोज तथा लिग्निन का जमाव नहीं होता हैं|
पोषक तत्व- अनार, बैलपत्र, नीबू और बेर में फल फटन का मुख्य कारण कैल्शियम तथा बोरॉन की कमी को भी माना जाता है, क्योंकि कैल्शियम फल भीति का मुख्य अंश माना जाता है| जो फल में आंतरिक दबाव के समय फल भीति को फैलने एवं सिकुड़ने में मदद करता है| इसी कारण फल फट जाते हैं|
मूलवृन्त- कुछ फल वृक्षों में मूलवृन्त उपयुक्त न होने के कारण भी फल फट जाते हैं| फल फटन में मूलवृन्त प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डालते हैं, क्योंकि विभिन्न प्रकार के मूलवृन्तों की जल एवं पोषक तत्व अवशोषण क्षमता अलग अलग होती है| जैसे जट्टी खट्टी के मूलवृन्त की तुलना में मौसमी में कम तथा खट्टी मौसमी में कैरिजो मूलवृन्त की तुलना में फल फटन कम होता है|
किस्म का प्रभाव- अनार के फलों का फटना किस्म पर भी निर्भर करता है| जैसे अनार की किस्म बैदाना, बोस्क, अप्पूली, खोग और गुलेशाह में फलों के फटने की समस्या बहुत कम पायी जाती है| इसी प्रकार मोटे छिलके वाले फलों की तुलना में पतले छिलके वाले फलों में यह समस्या कम पायी जाती है|
पादप हार्मोन- पौधों में जिंक की कमी होने पर ऑक्जीन हार्मोन की कमी हो जाती हैं, क्योंकि ऑक्जीन के संश्लेषण के लिए जिंक की आवश्यकता होती हैं| फलों में वृद्धि रोधक हार्मोन की अधिकता से भी फट जाते हैं|
यांत्रिक कारण- अनार के फलों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर परिवहन करने के फलस्वरूप भी रगडन, टकराने और अनुचित तरीके से रखरखाव के कारण भी फल फट जाते हैं|
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फल फटने की रोकथाम
प्रतिरोधी किस्में- जहां अनार के फल फटने की समस्या अधिक हो वहां पर प्रतिरोधी किस्में जैसे- नासिक, डोलका, जालोर सीडलेस, बेदाना बोसेक का पौध रोपण करना चाहिए|
मृदा की जल धारण क्षमता बढ़ाना- शुष्क क्षेत्रों की रेतीली मृदा की जल धारण क्षमता बहुत कम होती है, तो मृदा में पर्याप्त मात्रा में कार्बनिक पदार्थ, गोबर की खाद, कार्बनिक मल्च के समन्वित उपयोग से जल धारण क्षमता में बढ़ोतरी द्वारा फल फटने की समस्या का निदान किया जा सकता है|
सिचाई- अनार के पौधों में लम्बे समय बाद अचानक तथा उच्च तापमान में सिंचाई नहीं करनी चाहिए|
रसायनों का छिड़काव- अनार के फलों को फटने से बचाने के लिए बोरान 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से 15 दिन के अंतराल पर दो छिड़काव करने चाहिए| कैल्शियम सल्फेट, जिंक सल्फेट और कॉपर सल्फेट इत्यादि रसायन भी फलों को फटने से बचाने में सहायक है| पोटेशियम सल्फेट के 3 छिड़काव करने से फल कम फटते हैं|
वर्षा कवच- अनार के पौधे को वर्षा जल से बचने के लिए संरक्षित फिल्म से फलों को ढ़क देना चाहिए|
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हार्मोन का छिड़काव- अनार के फलों को फटने से बचाने के लिए 2,4 डी तथा एन ए ए का छिड़काव 10 से 20 पी पी एम की मात्रा में करना चाहिए|
जल्दी तुड़ाई- सामान्यत बड़े आकार के फल और अधिक परिपक्व छोटे फलों की तुलना में फटने के प्रति अधिक सुग्राही होते हैं| अतः फलों की जल्दी तुड़ाई करने से फलों को फटने से रोका जा सकता है|
गति अवरोधक वृक्षों की कतार- अत्यधिक हवा वाले क्षेत्रों में फलों को फटने से बचाने के लिए उत्तर पश्चिम दिशा में गति अवरोधक वृक्षों की कतार लगाना चाहिए| जैसे ग्रेवियां, रोबस्टा, जामुन, शीशम इत्यादि|
फलों की तुड़ाई का तरीका- तोड़ते समय जब अनार के फल जमीन पर गिरते है, तो फट जाते है| इसलिए जमीन पर मल्चिंग करना चाहिए| विभिन्न उपकरणों का उपयोग करना चाहिए| जिससे फलों को तोड़ने पर कम नुकसान पहुंचता है|
नमक व शक्कर का घोल- अनार फलों के ऊपर नमक एवं शक्कर घोल के छिड़काव करें, जिससे फल की परासरणी क्षमता में उतर चढाव नहीं होगा| फलों को प्लास्टिक की हाइड्रोफोबिक फिल्म से ढ़क देना चाहिए|
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