मार्च के आधे रास्ते में, आपको अपनी बागवानी में काम करने का रोमांच महसूस होने लगता है और अप्रैल माह की शुरुआत तक, बागवानी का मौसम पूरे जोरों पर होता है और आपका मूड गर्मियों के लिए तैयार हो जाता है। यदि आप पूरे मौसम अपनी बागवानी का आनंद लेना चाहते हैं तो अप्रैल माह में बागवानी के कुछ कार्य करना महत्वपूर्ण है। अप्रैल माह में दक्षिण में वसंत पूरे जोरों पर होता है। लेकिन उत्तर में, मौसम यह तय नहीं कर पाता है कि यह कैसा रहेगा अर्थात अभी भी कुछ सर्दियाँ बाकी हैं।
लेकिन अच्छे मौसम के दिनों के लिए कार्यों की सूची तैयार रखना सबसे अच्छा है। ऐसा करने से भले ही कुछ दिनों में बाहर कितना भी कच्चा महसूस हो, आपके पौधे और पेड़ वसंत मोड में आत्मविश्वास से आगे बढ़ रहे होंगे। इस लेख में निचे अप्रैल माह में बागों में निपटाए जाने वाले कार्यों की एक सूची दी गई है, ताकि आप अपने बागवानी से अच्छा लाभ उठा सकें।
अप्रैल माह में बागवानी कृषि कार्य
1. आम, अमरूद, पपीता, अंगूर, नीबू एवं बेर उत्पादन में सिंचाई पर ध्यान देना अतिआवश्यक है। गर्मियों में 7-8 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए, लेकिन बड़े होने पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए। अप्रैल माह आम के बागों में एक वर्ष के वृक्ष के लिए 50 ग्राम नाइट्रोजन, 25 ग्राम फॉस्फोरस और 50 ग्राम पोटाश का प्रयोग करें। जो क्रमशः बढाकर 10 वर्ष या उससे अधिक आयु के पौधों के लिए प्रति वृक्ष 500 ग्राम नाइट्रोजन, 250 ग्राम फॉस्फोरस और 500 ग्राम पोटाश देना चाहिए। और अधिक पढ़ें- बेर की खेती
2. आम के गुच्छा रोग या मालफार्मेशन से ग्रस्त बौर की तुड़ाई कर दें। आम के फलों को गिरने से बचाने के लिए नैप्थलीन एसिटिक एसिड 20 मिग्रा प्रति लीटर या प्लेनोफिक्स 5 मिली प्रति 10 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। पहला छिड़काव फल बनने पर तथा दूसरा छिड़काव उसके 15 दिनों के अंतर पर करें। आम में ऊतक क्षय रोग के नियंत्रण के लिए 10 ग्राम प्रति लीटर (1 प्रतिशत) बोरेक्स का छिड़काव करें। और अधिक पढ़ें- आम की खेती
3. अमरूद में अप्रैल माह में सिंचाई न करें, फूलों को तोड़ दें, ताकि फल मक्खी फूलों में अंडे न दे पायें, जिससे फल सड़ जाते हैं। अमरूद की सिर्फ शरदकालीन फसल ही लेनी चाहिए।
4. अमरूद में उकठा तथा काला व्रण फल गलन या टहनीमार रोग नियंत्रण के लिए खेत साफ-सुथरा रखना चाहिए। अधिक सिंचाई नहीं करना चाहिए और जैविक खादों का प्रयोग करना चाहिए। रोगग्रस्त डालियों को काटकर 0.3 प्रतिशत का कॉपर ऑक्सीक्लोराईड के घोल का छिड़काव दो या तीन 15 दिनों के अंतराल पर करना चाहिए। और अधिक पढ़ें- अमरूद की खेती
5. नीबू में एक वर्ष के पौधे के लिए दो किग्रा कम्पोस्ट और 70 ग्राम यूरिया प्रति पौधा दें। अप्रैल में नीबू का सिल्ला, लीफ माइनर और सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए 300 मिली मैलाथियान 70 ईसी को 700 लीटर पानी में घोलकर छिड़कें। तने व फलों का गलन रोग के लिए बोर्डो मिश्रण का छिड़काव करें।
जस्ते की कमी के लिए तीन किग्रा जिंक सल्फेट को 1.7 किग्रा बुझे हुए चूने के साथ 500 लीटर में घोलकर छिड़कें। नीबूवर्गीय पौधों में सूक्ष्म तत्वों का छिड़काव करें। फलों को फटने से बचाने के लिए 100 मिग्रा जिब्रेलिक एसिड प्रति 10 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। और अधिक पढ़ें- नींबू की खेती
6. नवरोपित आंवला के बागों में गर्मियों में 10-12 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए। पौधों के बड़े हो जाने पर बागों में मई-जून में एक बार पानी देना आवश्यक है। फूल आते समय बागों में किसी भी तरह से पानी नहीं देना चाहिए। शुरू में आंवला के बगीचों में बीच की जगह में कोई फसल ली जा सकती है। सिंचाई के बाद निराई-गुड़ाई करना अति आवश्यक रहता है। जिससे मृदा मुलायम रहे तथा खरपतवार न उग सके।
पेड़ बड़े होने पर गुड़ाई करनी चाहिए और घास और खरपतवार से साफ रखना चाहिए। आंवला में शूटगाल मेकर और छाल वाले कीट प्रमुख हैं। इनके नियंत्रण के लिए मेटासिस्टॉक्स या डाइमिथोएट तथा 10 भाग मृदा का तेल मिलाकर रुई भिगोकर तना के छिद्रों में डालकर चिकनी मिट्टी से बन्द कर देना चाहिए। और अधिक पढ़ें- आंवला की खेती
6. केले में प्रति पौधा 25 ग्राम नाइट्रोजन, 25 ग्राम फॉस्फोरस और 100 ग्राम पोटाश मृदा में गुड़ाई कर मिला दें। केले के पौधों में चारों ओर से निकलते हुए सकर्स को निकाल दिया जाता है। और अधिक पढ़ें- केले की खेती
7. अंगूर में एक वर्ष के पौधे के लिए 50 ग्राम नाइट्रोजन, 40 ग्राम पोटाश, जिसे क्रमशः बढ़ाकर 5 वर्ष या इससे अधिक आयु की उम्र में 250 ग्राम नाइट्रोजन, 200 ग्राम पोटाश, का प्रयोग करें। और अधिक पढ़ें- अंगूर की खेती
8. लीची के बागों में आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें। लीची में 100 ग्राम यूरिया प्रति पेड़ प्रति वर्ष आयु की दर से डालें। लीची में फलछेदक की रोकथाम के लिए डाइक्लोरोवास 5 मिली (70 ईसी न्यूवान ) 10 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। और अधिक पढ़ें- लीची की खेती
आम की फसल
1. फलों को गिरने से बचाने के लिए यूरिया के 2 प्रतिशत घोल का पेड़ पर छिड़काव करें। मिलीबग नई कोंपलों, फूलों व फलों का रस चूसकर काफी नुकसान करती है। नियंत्रण के लिए 700 मिली मिथाइल पैराथियान 70 ईसी को 700 लीटर पानी में छिड़कें तथा नीचे गिरी या पेड़ों पर चढ़ रहे कीटों को इकट्ठा करके जला दें और घास साफ रखें।
2. यदि तेला (हॉपर) फूल पर नजर आये, तो 700 मिली मैलाथियान 70 ईसी 700 लीटर पानी में छिड़कें। आम में फुदका कीट से बचाव के लिए इमिडाक्लोरोप्रिड 0.3 मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर प्रथम छिड़काव फूल खिलने से पहले करते हैं।
3. कार्बरिल 4 ग्राम प्रति लीटर का दूसरा छिड़काव फल मटर के दाने के बराबर हो जाये, तब करना चाहिए। आम की डासी मक्खी के नियंत्रण के लिए मिथाइलफ्यूीजनाल ट्रैप का प्रयोग करना चहिये। और अधिक पढ़ें- आम के कीट का नियंत्रण
पपीता की फसल
1. अप्रैल माह में पपीते की नर्सरी लगाने के लिए 70 वर्ग मीटर में 170 बीज को 6X6 इंच की दूरी पर एक इंच गहरा लगाएं। उन्नत किस्मों में सनराइज, हनीड्यू, पूसा डिलीशियस, पूसा ड्वार्फ और पूसा जांयट हैं।
2. एक नर्सरी में एक क्विंटल खाद मिलाकर बेड तैयार करें और बीज को एक ग्राम कैप्टॉन से उपचारित करें। पपीता की रोपाई यदि मई में की गयी है तो अगले साल अप्रैल माह में फल आने लगते हैं।
3. पपीता के लिए सिंचाई का उचित प्रबंध होना आवश्यक है। गर्मियों में 6-7 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। सिंचाई का पानी पौधे के सीधे संपर्क में नहीं आना चाहिए।
4. पपीते में मोजैक, लीफ कर्ल, रिंगस्पॉट, जड़ और तना सड़न, एन्थ्रेक्नोज एवं कली तथा पुष्पवृंत का सड़ना आदि रोग लगते हैं। इनके नियंत्रण के लिए पेड़ों पर सड़न – गलन को निकालकर बोर्डो मिक्स्चर 5:5:20 के अनुपात से छिड़काव करना चाहिए। इसके साथ ही डाइथेन एम-45, 2-2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में अथवा मेन्कोजेब या जीनेब 0.2.0.25 प्रतिशत का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। और अधिक पढ़ें- पपीते की खेती
पुष्प व सुगंध वाले पौधे
1. ग्लेडियोलस के कन्दों की खुदाई से 15 दिनों पूर्व सिंचाई बन्द कर दें और स्पाइक काटने के 40-45 दिनों बाद घनकन्दों (कॉर्म) की खुदाई करें। कॉर्म को सड़न रोग से बचाने के लिए 0.2 प्रतिशत मेन्कोजेब पाउडर से उपचारित करके शीतगृह में भंडारण कर दें। और अधिक पढ़ें- ग्लेडियोलस की खेती
2. अप्रैल माह में गुलाब की फसल में आवश्यकतानुसार सिंचाई व निराई-गुड़ाई करें। रजनीगंधा में एक सप्ताह के अंतराल पर सिंचाई व दो सप्ताह के अंतराल पर गुड़ाई करें। और अधिक पढ़ें- गुलाब की खेती
3. गेंदे की फसल में एफिड कैटरपिलर तथा माइट का प्रकोप होता है, जिसका निराकरण करने के लिए 0.2 प्रतिशत मेटासिस्टॉक्स या 0.25 प्रतिशत केराथेन या 0.2 प्रतिशत रोगोर का छिड़काव प्रत्येक सप्ताह बाद कम से कम दो बार करना चाहिए। और अधिक पढ़ें- गेंदा की खेती
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