आज भी बहुत से स्थानों में अमरूद का प्रवर्धन बीज द्वारा होता है| परन्तु बीज द्वारा प्रसारण से वृक्षों में भिन्नता आ जाती है| इसके लिए यह ज़रूरी है कि वानस्पतिक विधि द्वारा पौधे तैयार किये जायें| अमरूद के प्रवर्धन की कई विधियाँ प्रचलन में है, जैसे- भेंट कलम, बडिंग, गूटी, स्टूलिंग इत्यादि| यद्यपि, उपरोक्त विधियाँ अलग-अलग क्षेत्रों में प्रचलन में हैं, किन्तु इनमें कुछ कमियाँ हैं| अमरूद का प्रवर्धन में आने वाली अनेकों समस्याओं को देखते हुए केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, लखनऊ ने अमरूद में त्वरित प्रसारण की नवीनतम तकनीक वेज ग्राफ्टिग का मानकीकरण किया गया है|
इस विधि से अमरूद के पौधे कम समय में पूरे वर्ष तैयार किए जा सकते हैं और सफलता प्रतिशत भी अन्य प्रवर्धन विधियों की अपेक्षा इस विधि में अधिक है| इस लेख में अमरूद की उन्नत बागवानी के लिए अमरूद का प्रवर्धन कैसे करें की व्यावसायिक तकनीक का उल्लेख किया गया है| अमरूद की वैज्ञानिक तकनीक से बागवानी कैसे करें की विस्तृत जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- अमरूद की खेती कैसे करें
वेज ग्राफ्टिंग
जब बीजू पौधे की उम्र 6 से 8 माह तथा उसके तने की मोटाई पेन्सिल की मोटाई 0.5 से 1.0 सेंटीमीटर के बराबर होती है| तब बीजू पौधा प्रवर्धन के लिए तैयार होता है| इस विधि में मातृ वृक्षों से 3 से 4 माह पुराने सांकुर शाख का प्रयोग प्रवर्धन में किया जाता है| सांकुर शाख पर 3 से 4 कली लगी होनी चाहिए| इसकी लम्बाई 15 से 18 सेंटीमीटर और मोटाई 0.5 से 1.0 सेंटीमीटर होनी चाहिए|
अमरूद का प्रवर्धन के लिए उपयोग में लाने से 5 से 7 दिनों पूर्व ही मातृ वृक्ष पर सांकुर की पत्तियों को काट देना चाहिए तथा उसी समय सांकुर के ऊपरी हिस्से को भी काट देना चाहिए| इससे सांकुर पर लगी कली फूल जाती है| पत्तियों को हटाने के 57 दिन बाद सांकुर शाख को प्रवर्धन के लिए काट लेते हैं| पॉलीथीन में लगे मूलवृन्त के शीर्ष भाग को तेज धारदार, स्वच्छ चाकू से पॉलीथीन बैग की सतह से 15 से 18 सेंटीमीटर की ऊँचाई से काट देते हैं|
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कटे हुए मूलवृन्त के मध्य भाग में चाकू से 4.0 से 4.5 सेंटीमीटर का गहरा लम्बवत चीरा लगाते हैं| सांकुर शाख के आधार पर 4.0 से 4.5 सेंटीमीटर लम्बा तिरछा किनारा दोनों तरफ से काट लेते हैं| सांकूर शाख के तिरछे कटे हुए भाग को मूलवृन्त के कटे हुए भाग में प्रत्यारोपित करते हैं| मूलवृन्त एवं सांकुर के मिलन स्थान को पॉलीथीन पट्टी से कस कर बांध देते हैं|
सर्दी के दिनों में प्रवर्धन के तुरन्त बाद सांकुर को पॉलीथीन कैप से ढक कर रबड़ बैंड से कस देते हैं| पॉलीथीन कैप के प्रयोग से सफलता बढ़ जाती है| प्रवर्धन के 15 से 25 दिनों के पश्चातू जब सांकुर शाख पर कली का फूटाव पूरी तरह से हो जाये तो पॉलीथीन कैप को हटा दिया जाता है|
जब सांकुर शाख और मूलवृन्त आपस में जुड़ जाते हैं एवं पौधा तैयार हो जाता है, तो जोड़ पर बंधी हुयी पॉलीथीन पट्टी को हटा देते हैं, ताकि जोड़ पर गाँठ न पड़े| प्रवर्धित पौधे की लम्बाई 4 से 5 माह में जब 45 से 55 सेंटीमीटर की हो जाए तो पौधा रोपण हेतु उपयुक्त होता है|
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भेंट कलम (इनार्किंग)
एक साल के पौधे को मूलवृन्त के रूप में प्रयोग करते हैं| अमरूद का प्रवर्धन हेतु कलिकायन फरवरी से मई तक करके और जुलाई से अगस्त में इनार्किंग विधि द्वारा कलमी पौधे अधिक से अधिक बनाए जाते हैं| मूलवृन्त और ऊपर की शाखा दो महीने में चिपक जाते हैं| किन्तु पूर्णरूपेण चिपक जाने के बाद ही उन्हें अलग करना चाहिए|
स्टूलिंग
अमरूद का प्रवर्धन स्टूलिंग विधि में आरम्भ में गुटी से तैयार किए गए पौधों आयु 3 से 5 वर्ष को स्टूल बैड में 0.75 x 0.75 सेंटीमीटर में लगा देते हैं| बसंत ऋतु में इन पौधों को भूमि की सतह से 15 सेंटीमीटर उपर से काट दिया जाता है| ऐसा करने से पौधों से अनेक छोटी-छोटी शाँखाए निकलती है|
जुलाई महीने में इन शाखाओं को भूमि के पास से 1.5 से 2 सेंटीमीटर रिंग करके मिट्टी चढ़ा दी जाती है| सितम्बर माह तक इन शाखाओं में जड़ फूट आती है और इन शाखाओं को अलग करके पौधशाला में लगा दिया जाता है|
पैबन्दी कलिकायन
मूलवृन्त के निचले भाग से 1.5 से 2.0 सेंटीमीटर वर्गाकार छाल सावधानी से अलग करें| इसी आकार में सांकुर शाखा से कलिका अलग करें| कलिका को मूलवृन्त के कटे हुए स्थान पर लगाकर पॉलीथीन की पट्टियाँ या बडिंग टेप से बाध दे, कलिका का अंकुर खुला रहना चाहिए|
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