भारत में आम की अनेकों किस्में हैं, लेकिन व्यावसायिक स्तर पर अधिक क्षेत्रफल में उगायी जाने वाली किस्मों की संख्या कम है| विभिन्न किस्मों की कृषि पारिस्थितिकी में आवश्कताएं भी भिन्न-भिन्न हैं| उत्तर भारत की लोकप्रिय व्यावसायिक आम की किस्में दशहरी, लंगड़ा, चौसा तथा मल्लिका के पौधों को पश्चिमी समुद्र द्वीप वाले भागों में लगाने पर फूल और फल कम आते हैं| दूसरी ओर पौधों की वानस्पतिक वृद्धि पर भी प्रभाव पड़ता है| ऐसी जलवायु में इन किस्मों के वृक्ष विशाल आकार के हो जाते हैं, लेकिन फलन नहीं होती है|
दूसरी ओर दक्षिण भारतीय आम की किस्में उत्तर भारत की जलवायु में अपेक्षाकृत कम वृद्धि करती हैं तथा बौनी रह जाती हैं| कुछ आम की किस्में जैसे नीलम और बंगलौरा तमिलनाडु के तिनकाशी क्षेत्र में एक वर्ष में दो बार फलती है| लेकिन उत्तर भारत में यह प्रवृत्ति सामान्य नहीं किसी क्षेत्र विशेष की व्यावसायिक किस्म को यदि दूसरे क्षेत्र में लगाया जाय तो संभव है, कि उत्पादन तथा फलों के गुण संतोषप्रद न हों, क्योंकि स्थान विशेष की स्थिति का प्रभाव आम के पौधे के विकास, फलन, रूप, रंग, सुवास एवं मिठास पर पड़ता है|
भारत के विभित्र राज्यों की कुछ विशेष व्यावसायिक आम की किस्में हैं, जिन्हें व्यावसायिक स्तर पर अपना लिया गया है| मुख्य आम उत्पादक राज्यों की नई संकर किस्मों को छोड़ कर प्रचलित व्यावसायिक प्रमुख किस्मों की जानकारी निचे दी गई है| आम की संकर किस्मों की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- आम की संकर किस्में
अल्फॉन्सो
आम की अल्फॉन्सों किस्म देश के विभिन्न भागों में अलग-अलग नाम से जानी जाती है| जैसे- बादामी, गुन्डू, खादर, हापुस और कागदी हापुस महाराष्ट्र प्रान्त की यह मुख्य व्यावसायिक किस्म है| इसके फल का आकार तिरछा, अण्डाकार तथा रंग पीला-नारंगी होता है| इसका स्वाद उत्तम होता है और फल मध्य मौसम (मई) में तैयार होता है| इसे काफी दिनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है| इसलिए इसका निर्यात अधिक किया जाता है| इसे डिब्बा-बन्दी के लिए भी उपयुक्त पाया गया है|
केसर
गुजरात प्रदेश में इस आम की की किस्म व्यावसायिक खेती होती है और अल्फॉन्सों के बाद दूसरे नम्बर पर इसका निर्यात होता है| अपने दोनों ऊपरी छोरों पर लाल रंग लिए हुए आम की यह जाति हमारे देश के गुजरात अंचल की प्रमुख किस्म है| इसके फल का आकार लम्बा होता है तथा इसे काफी दिनों तक भण्डारित किया जा सकता है| यह मौसम की शुरुआत में पकने वाली किस्म है| निर्यात में इस किस्म का अग्रणी स्थान है| महाराष्ट्र में भी यह किस्म उगाई जा रही है|
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किशनभोग
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में उगाई जाने वाली आम की इस किस्म का फल मध्यम आकार का, तिरछा, गोलाकार तथा पीले रंग का होता है| इसका स्वाद अच्छा होता है तथा इसे काफी दिनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है| इस किस्म का आम मौसम के मध्य में पक कर तैयार होता है|
जरदालू
आम की यह किस्म पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद क्षेत्र में मुख्य रूप से उगाई जाती है| जरदालू नामक एक शुष्क फल की तरह का रंग होने के कारण इसे जरदालू का नाम दिया गया है| इसका फल आकार में साधारण लम्बा या गोलाकार लम्बा तथा सुनहरे-पीले रंग का होता है| इसका स्वाद खाने में हल्का मीठा तथा सुगंधित होता है| यह मध्य मौसम में पकने वाला और साधारण टिकने वाला फल है| बिहार में भी यह किस्म काफी प्रचलित है| काट कर खाने के लिए यह किस्म उत्तम है| इसमें रेशा बहुत कम होता है एवं गूदा सुनहरा पीला होता है|
दशहरी
उत्तर प्रदेश की यह एक प्रसिद्ध किस्म है| इसका स्वाद मीठा होता है और भण्डारण क्षमता मध्यम होती है| मध्यम लम्बे आकार वाली दशहरी प्रतिवर्ष अधिक उपज देने के कारण भारत की विशेष तथा सर्वोत्तम किस्म मानी जाती है| आमों के लिए जगप्रसिद्ध लखनऊ, काकोरी के पास दशहरी गांव में मातृवृक्ष होने के कारण इस किस्म को दशहरी कहते हैं|
इसके पके फल का रंग पीला होता है, जो मध्य मौसम (जून माह) में पकता है| रेशा रहित होने के कारण दशहरी को टुकड़ों में काट कर खाया जाता है| इस किस्म का एक चनित क्लोन दशहरी- 51 केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान से निकाला गया है, जो नियमित रूप से और अधिक फलन एवं उपज देने वाला है|
नीलम
यह अपनी अच्छी भंडारण क्षमता के कारण विपणन के लिए एक आदर्श किस्म है| इसका फल मध्यम तथा आकार वक्र अंडाकार तथा रंग गहरा पीला होता है| फल का स्वाद एवं भंडारण क्षमता अच्छी है| यह देर में पकने वाली किस्म है| उत्तरी भारत में यह किस्म नियमित फल देती है| तमिलनाडु प्रान्त की यह प्रमुख किस्म है| इसका कई संकर किस्म तैयार करने में उपयोग किया गया है| आम्रपाली और मल्लिका किस्में इसी के संकर से तैयार की गई हैं|
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फजरी
आम की यह किस्म मुख्य रूप से बिहार तथा पश्चिम बंगाल में लगायी जाती है| इसका फल काफी बड़ा लम्बा एवं वक्र अंडाकार होता है| इसका रंग हल्का हरा होता है| इसके फल का स्वाद तथा भंडारण के गुण मध्यम है| आम की यह किस्म देर में पकती है| कच्चे फल अधिक खट्टे नहीं होते हैं| इसलिए इसको कच्चा खाने में बच्चे इसे पसंद करते हैं| किन्तु पके फल अधिक मीठे नहीं होते हैं|
फरनांडीन
यह बम्बई व गोवा की बहुत पुरानी किस्म है| इसके फल का आकार मध्यम से लम्बा, अण्डाकार या गोल अन्डाकार होता है| इसके फलों का रंग पीला, लेकिन ऊपर की ओर लाल होता है| इसकी भंडारण क्षमता गुण और स्वाद मध्यम किस्म का होता है| यह किस्म देर से पककर तैयार होती है| इसे भी दशहरी की तरह टुकड़ों में काट कर खाया जा सकता है| इस किस्म का उत्पत्ति स्थान गोवा है|
बाम्बे ग्रीन
इस किस्म को उत्तर भारत में खास तौर से बिहार या आस-पास के क्षेत्र में अधिक लगाया जाता है| यह एक अगेती किस्म है| मेरठ में इसे सिरौली और बिहार में बोम्बे भी कहते है| इसका रंग हरा तथा आकार अन्डाकार होता है| इसका फल मध्यम आकार व अच्छे स्वाद वाला अधिक मीठा होता है| इसे अधिक दिनों तक नहीं रखा जा सकता है| यह किस्म आम के गुच्छा रोग से बहुत ग्रसित होती है| इसके छिलके पर सफेद दाने से नजर आते हैं| कच्चे फल हल्के खट्टे तथा मिठास लिए होते है|
तोतापरी (बंगलोरा)
यह दक्षिण भारत की व्यावसायिक किस्म है| इसे तोतापरी के अलावा अन्य कई नामों से भी जाना जाता है, जैसे बंगलोरा, काल्लामाई, धैवादिवांमुर्थ, कलेक्टर, सुन्दरशाह, बरमोदिल्ली, किल्लीमुक्कू और गिल्लीमुक्कू| इसके फल का आकार साधारण लम्बा एवं आधार गले के आकार का होता है| इसका रंग सुनहरा पीला होता है, लेकिन स्वाद उतना अच्छा नहीं होता है| इस आम की सबसे बड़ी खूबी इसकी भंडारण क्षमता है, यानि इसे बहुत दिनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है|
यह किस्म मध्य मौसम में पकती है| यह किस्म विभिन्न संरक्षित पदार्थ बनाने के लिए अधिकतर प्रयोग में लाई जाती है| उत्तर भारत में यह किस्म सफलता से उगाई जा सकती है और इसे प्रोत्साहित करने की अच्छी संभावना है| आम के गूदे के संरक्षण हेतु यह किस्म काफी अच्छी होती है, क्योंकि इस किस्म में गूदे की काफी मात्रा होती है|
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बैंगनपल्ली
यह हमारे देश के आन्ध्र प्रदेश और तमिलनाडु की व्यावसायिक किस्म है| अन्य किस्मों की तरह इसे भी चपटा, सफेदा, बानेशान और चपाती आदि नामों से जाना जाता है| इसका फल आकार में लम्बा-तिरछा तथा अन्डाकार होता है| फल का रंग सुनहरा-पीला होता है| यह मध्य मौसम में पकने वाली किस्म है, जो डिब्बाबन्दी के लिए उपयुक्त पायी गयी है| इसका स्वाद उत्तम है तथा इसकी भंडारण क्षमता अच्छी है| पिछले कुछ वर्षों से इसे आन्ध्र प्रदेश से काफी मात्रा में निर्यात किया जा रहा है|
मनकुरद
यह गोवा के उत्तरी क्षेत्र की प्रसिद्ध किस्म है| इसका फल मध्यम, अंडाकार तथा रंग पीला होता है और फल का स्वाद में अच्छा तथा भंडारण क्षमता साधारण है| यह मध्य मौसम में पकने वाली किस्म है| वर्षा ऋतु में इसके फल की ऊपरी सतह पर काले धब्बे बन जाते हैं|
मलगोवा
यह दक्षिण भारत की व्यावसायिक किस्म है| इसका फल देखने में बड़ा, गोलाकार तथा उठा हुआ होता है| इसका गूदा पीला तथा स्वाद अत्यन्त अच्छा है| इसे कुछ ही दिनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है| यह देर से पकने वाली किस्म है|
समरबहिश्त चौसा
आम की इस किस्म की उत्पत्ति उत्तर प्रदेश के हरदोई जनपद के संडीला नामक स्थान में हुई| यह किस्म बड़े आकार की तथा देर में पकने के कारण अधिकतर भारत के उत्तरी क्षेत्र में उगायी जाती है| इसका फल देखने में बड़े आकार का चपटा व अन्डाकार होता है| इसके फल का रंग हल्का चटकीला पीला तथा स्वाद अच्छा होता है| इसका गूदा रसदार होता है|
इसे अधिक दिनों तक नहीं रखा जा सकता है| आम की यह किस्म देर में पक कर तैयार होती है| इसके पेड़ अधिक बड़े होते है और पुराने पेड़ों में फलन कम हो जाती है तथा इसमें एकान्तर फलन की समस्या पायी जाती है|
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स्वर्णरेखा
यह आन्ध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम क्षेत्र की व्यावसायिक किस्म है| इसे सुन्दरी, लाल सुन्दरी और चित्रा सुबरनरेखा के नाम से भी जाना जाता है| इसका फल मध्यम एवं तिरछा अन्डाकार होता है| इसके फल का रंग हल्का पीला सुन्दर होता है|
हिम सागर
यह मध्यम आकार का चपटा व अण्डाकार आम है| जिसका रंग पीला होता है| इसके फलों का स्वाद तथा भंडारण क्षमता अच्छी है और यह आम की किस्में जल्दी पक कर तैयार होती है|
लंगड़ा
यह एक अत्यंत लोकप्रिय किस्म है| उत्तर भारत के बनारस, गोरखपुर और बिहार क्षेत्र के दरभंगा, मुजफ्फरपुर, सबौर, दीघा आदि में उगाई जाने वाली आम की इस किस्म के फल मध्यम, अण्डाकार तथा हल्के हरे रंग के होते है| इसके फलों की गुणवत्ता उत्तम और भण्डारण क्षमता मध्यम है| इसके फलों में मिठास एवं खटास का अच्छा मिश्रण होता है, जिससे यह अत्यन्त स्वादिष्ट किस्म मानी जाती है| फलों का छिलका बहुत पतला होता है और साथ ही फलों में गूदे की मात्रा अधिक तथा गुठली पतली होती है|
गूदे का रंग हल्का पीला होता है एवं इस किस्म के फल मध्यम मौसम में पक कर तैयार होते हैं| बिहार में इसे मालदा नाम से भी जाना जाता है| उत्तर प्रदेश में इसके फलों पर बैक्टीरियल कैंकर का प्रकोप अधिक देखा गया है| गूदे की मात्रा अधिक तथा कच्चे फलों में खटास अधिक होने के कारण इसका उपयोग अचार तथा मुरब्बा बनाने में भी किया जाता है|
सुकुल
यह किस्म बिहार में उगाई जाती है| यह देर से तैयार होने वाली किस्म है और फल बड़े आकार के हरे होते हैं तथा फलों में अधिक रेशा होता है| यह किस्म चूस के खाने लायक होती है| रस की मात्रा अधिक तथा गुठली बड़ी होती है और इसका उपयोग अचार बनाने में भी किया जाता है|
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वनराज
यह गुजरात के बड़ौदा जिले की प्रसिद्ध किस्म है| इसका फल मध्यम आकार का और तिरछा अण्डाकार होता है| इसका रंग गहरा क्रोम तथा ऊपरी भाग लाली लिए होता है| फलों की गुणवत्ता एवं भण्डारण क्षमता अच्छी होती है| यह मध्य मौसम में तैयार होने वाली आम की किस्में है|
सीपिया
यह किस्म उत्तरी बिहार मुजफ्फरपुर, दरभंगा आदि क्षेत्रों में होती है। इसमें फल मध्यम आकार के दशहरीनुमा होते हैं। पकने पर फल पीले छिलके व गूदे का होता है। इसकी भण्डारण क्षमता बहुत अच्छी होती है। फल काट कर खाने योग्य मीठे स्वाद का तथा गुठली पतली होती है। इसकी भण्डारण क्षमता इतनी होती है कि छिलका भूरा पड़ने पर भी अन्दर गूदा कड़ा व ठीक रहता है।
बथुआ
यह किस्म बहुत देर से पकती है| उत्तर बिहार में यह किस्म अधिक उगाई जाती है| इसका गूदा लाल एवं छिलका हरा होता है| जब सारे आम खत्म हो जाते हैं, तब यह बाजार में उपलब्ध होती है तथा इसमें फल मक्खी का प्रकोप अधिक होता है| गुणवत्ता बहुत अच्छी नहीं होने के बावजूद भी देर से उपलब्ध होने के कारण बाजार में इसकी मांग रहती है|
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