आलू की फसल हमारे देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान रखती है, क्योंकि यहां की जलवायु आलू उत्पादन के लिए बहुत अनुकूल है| आलू में लगभग भारत के हर क्षेत्र का उत्पादन में योगदान है| आलू का प्रयोग अधिकतर पोष्टिक व्यंजन, सब्जी एवं आलू के चिप्स बनाने में किया जाता है| हमारे किसानों को इसके अधिक पैदावार के लिए एकीकृत नाशीजीव प्रबन्धन की जागरूकता लाने की आवश्यकता है|
जिससे उनकी पैदावार लागत कम हो और मुनाफा अधिक मिले| इस लेख में किसान भाइयों की जागरूकता के लिए आलू में एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें, जिससे उनको उत्तम पैदावार मिले का उल्लेख है| आलू की जैविक खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- आलू की जैविक खेती कैसे करें
आलू की फसल में एकीकृत कीट और नाशीजीव प्रबंधन
सफेद सुडी व कटुआ कीट- आलू में कटुआ कीट की सुडियां रात के समय छोटे-छोटे पौधों को जमीन की सतह से काट देती है, जबकि सफेद सुण्डी आलुओ को खाती है|
प्रबंधन-
1. खेतो में प्रकाश प्रपंच का प्रयोग करें|
2. बीजाई से पहले खेतों में कीट व्याधिकारक मैटरीजियम या व्यूबेरिया को गोबर की खाद के साथ मिलाकर डालें|
3. जुताई करते समय जो सुण्डियां दिखाई दे उन्हें इक्कठा करके नष्ट कर दें|
4. आलू में कटुआ कीट की सुंडी से पौधों को बचाने के लिए 4 इंच चौड़ा पाइपदार यंत्र बनाएं जोकि अखबार के कागज या एलूमिनीयम फोइल या प्लास्टिक कप का हो, इसे पौधे पर इस तरह रखे ताकि पौधे का तना चारों तरफ से घिर जाए एवं सुंडी पौधे तक न पहुंच पाएं, इस यंत्र को जमीन में एक इंच दवाएं|
5. इन कीटों की रोकथाम के लिए बड़े पौधों को हाथ से हिलाना चाहिए ताकि भंग जमीन पर गिरे और फिर उन्हें मिटटी के तेल या पानी के मिश्रण में डाल कर मार दें|
6. रासानिक दवाईयों में क्लोरपाईरिफॉस 20 ई सी का रेत में मिलाकर इस्तेमाल करें|
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जैसिड व एफिड- यह पतों और फूलों का रस चूसते हैं एवं विषाणु रोग फैलाते है|
प्रबंधन-
1. आलू में येलो स्टीकी ट्रेप का प्रयोग करें|
2. आलू में कीट व्याधिकारक ब्यूवेरिया का छिड़काव करें|
3. परभक्षी लेडी वर्ड बीटल एवं क्राइसोपरला को बढ़ावा दें तथा इनका संरक्षण करें|4. रासायनिक कीटनाशक का प्रयोग कृषि विशेषज्ञ की सलाह पर करें|
हड्डा बीटल- आलू में इस कीट के व्यस्क तथा शिशु पतों को छलनी कर देते हैं|
प्रबंधन-
1. आलू में ग्रसित पत्तों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें|
2. भृगों को पकड़ कर नष्ट कर दें|
3. आलू में कीट व्याधिकारक ब्यूवेरिया का इस्तेमाल करें|
4. आलू में रासायनिक कीटनाशक का प्रयोग कृषि विशेषज्ञ की सलाह पर करें|
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आलू का पंतगा- लार्वे पौधों, खेतों में जमीन से बाहर निकले आलूओं एवं गोदाम में आलूओं को हानि पहुंचाते हैं| यह पत्तों में सुरंगे बनाते हैं तथा तने के अंदर चले जाते हैं| गोदामों में लार्वे आलूओं पर आंखो के रास्ते अंदर चले जाते हैं और सुरंगे बना देते हैं| आलू के अंदर जाने के रास्ते के बाहर मल का इकट्ठा होना इसका लक्षण है| उसके बाद अन्य जीवाणुओं के आक्रमण द्वारा आलूओं में सड़न शुरू हो जाती है|
प्रबंधन-
1. केवल प्रमाणित व स्वस्थ बीज ही बोयें|
2. आलू को गहरा बोना चाहिए|
3. आलू के कन्दों को नगां न रहने दें तथा ठीक समय पर मिट्टी चढाएं|
4. अण्ड परजीवी ट्राइकोग्रामा किलोनिस 50,000 अण्डे प्रति हेक्टेयर तथा अण्ड सुण्डी परजीवी किलोनस ब्लैकवर्नी 15,000 व्यस्क प्रति हेक्टेयर की दर से 2 से 3 बार छोड़े|
5. आलूओ की खुदाई के बाद खेत में उन पर तरपाल या चादर से ढक दें, ताकि पतंगे उन पर अंडे न दे सकें|
6. गोदाम में स्वस्थ आलुओं को नीला फूलणु/लाल फूलणु के सूखे पत्तों के पाउडर या सूखी रेत की 2 सेंटीमीटर तह से ढक दें या 8 मिलीलीटर साइपरमेथ्रिन 10 ई सी, को 1 किलोग्राम रेत के साथ मिलाकर एक किंवटल आलूओं के उपर गोदाम में बुरकाव करें|
7. आलूओं को गोदाम में रखने से पहले उसमें मैलाथियान 50 ई सी, 10 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें|
8. आलू में 1350 मिलीलीटर डैकामिथरिन 2.8 ई सी या 450 मिलीलीटर साइपरमेथ्रिन 25 ई सी या 600 मिलीलीटर या 750 मिलीलीटर स्पाइनोसिन या 650 मि. ली. या 1875 मिलीलीटर क्लोरपाईरीफॉस 20 ई सी को 700 से 800 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हैक्टेयर मार्च के दूसरे तीसरे सप्ताह में छिड़काव करें, यदि पतंगे का प्रकोप रहता है तो 15 दिन के अन्तराल पर दुबारा छिड़काव करें|
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आलू की फसल में एकीकृत रोग और नाशीजीव प्रबंधन
अगेता झुलसा रोग- पौधे की पुरानी नीचे वाली पत्तियों पर छोटे-छोटे भूरे रंग के धब्बे नजर आते हैं, जोकि कुछ समय बाद उपरी पतियों में भी नजर आते हैं, यह धब्बे गोल तथा भूरे रंग के होते हैं|
प्रबंधन-
1. आलू में रोगग्रस्त पत्तों को इकटठा करके नष्ट कर दें|
2. फसल पर बीमारी के आते ही डाईथेन जैड- 78, 6.2 प्रतिशत या डाईथेन एम- 45, 0.2 प्रतिशत या ब्लाईटाक्स 50, 0.3 प्रतिशत का 15 दिन के अंतर पर छिड़काव करें|
3. फसल में अगेता झुलसा एवं सरकोस्पोरा पता धब्बा बीमारी के लक्षण आते ही या बिजाई के 40 दिन बाद एन्ट्रोकोल 75 डब्ल्यू पी, 0.25 प्रतिशत का छिड़काव करें 15 दिन के अन्तराल पर दुबारा छिड़काव करें|
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पछेता झुलसा- आलू में यह बीमारी पौधे के सभी भागों जैसे- पतों, तना, कन्द में लगती है, पतों पर भूरे रंग के धब्बे नजर आते हैं, पत्तों की निचली सतह पर सफेदी आ जाती है| छोटे-छोटे धब्बे मिलकर बड़े धब्बों में बदल जाते हैं|
प्रबंधन-
1. आलू में बोआई से पहले रोगग्रस्त कन्दों को निकाल देना चाहिए|
2. उन किस्मों को ही लगाना चाहिए जिनमें यह बीमारी नहीं लगती हो|
3. कन्दों को बिजाई से पहले ट्राइकोडरमा बिरडी या रासायनिक फफूद नाशक ईण्डोफिल एम- 45 से उपचारित करें|
4. आलू में समय समय पर फसल की निगरानी करें|
5. फसल पर बीमारी के आते ही रिडोमिल एम जैड- 70 डब्लयू पी, 0.15 प्रतिशत का 15 दिन के अंतर पर दो बार छिड़काव करें तथा उसके बाद 7 दिन के अंतर पर डाईथेन एम- 45, 6.2 प्रतिशत के 4 छिड़काव और करें|
6. खेतो में गोबर की खाद के साथ ट्राइकोडरमा बिरडी का प्रयोग करें|
विशेष सावधानियां-
1. उन गोदामों में मैलाथियान का छिड़काव न करें जिनको रहने या सोने के लिए प्रयोग
किया जा रहा हो|
2. खाने वाले आलूओं पर किसी भी प्रकार के कीटनाशी का प्रयोग न करें|
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