कद्दू वर्गीय फसलों में ज्यादातर लता वाली सब्जियां हैं, जैसे खीरा, लौकी, करेला, टिण्डा, खरबूजा, तरबूज, तोरी, पेठा, परवल, ककड़ी, फूट, चप्पन कद्दू आदि| इन सब सब्जियों को उत्तर भारत में गर्मियों तथा वर्षा ऋतु में उगाया जाता है| इन पर पाले का बहुत अधिक असर होता है| अधिकतर इन फसलों के पौधे एक लिंगीय होते हैं| परन्तु कुछ फसलों में विषमलिंगीय पौधे भी होते हैं|
इनमें से कुछ अधिक महत्व की कद्दू वर्गीय फसलों का संकर बीज उत्पादन कैसे करें की जानकारी दी जा रही है, जो कि इस कुल की अन्य फसलों पर भी लागू होती है| कद्दू वर्गीय सब्जियों की उन्नत खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- कद्दू वर्गीय सब्जियों की उन्नत खेती कैसे करें
कद्दू वर्गीय फसलों के संकर बीज उत्पादन के लिए बुवाई और बीज की मात्रा
मैदानी क्षेत्रों में खीरे, लौकी और चिकनी तोरी की दो फसलें लगाई जाती हैं| लेकिन बीज उत्पादन के लिए गर्मी का मौसम ही उपयुक्त होता है| फरवरी माह के अन्त में मई से जून माह तक खरबूजे, तरबूज, करेला, नसदार तोरी तथा कद्दू की फसल (ग्रीष्मऋतु) में ली जाती है| खीरे व खरबूजे के लिए बीज की मात्रा 1.5 से 2.0 किलोग्राम, चिकनी तोरी के लिए 3 से 4 किलोग्राम, लौकी के लिए 4 से 5 किलोग्राम, करेला 5 से 6 किलोग्राम, कद्दू 6 से 7 किलोग्राम और तरबूज के लिए 4 से 5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पर्याप्त रहती है|
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कद्दू वर्गीय फसलों के संकर बीज उत्पादन के लिए बुवाई का तरीका
कद्दू वर्गीय फसलों की बुवाई के लिए नालियां बनाते हैं| खीरे व खरबूजे के लिए एक नाली से दूसरी नाली की दूरी 150 से 200 सेंटीमीटर, लौकी व तोरी 250 से 300 सेंटीमीटर, करेला 150 से 200 सेंटीमीटर और तरबूज व कद्दू के लिए 300 सेंटीमीटर रखते हैं| इन नालियों के ऊपरी सतह पर तोरी, खीरे, करेले व खरबूजे के लिए 60 सेंटीमीटर की दूरी पर कद्दू चिकनी तोरी व लौकी और तरबूज के लिए 75 से 90 सेंटीमीटर की दूरी पर थाले बनाएं जाते हैं| इन्हीं थालों में दो से तीन बीज डालकर बुवाई करते हैं| दो नालियों के बीच का स्थान बेलों के फैलने के लिए सुरक्षित रखा जाता है| सिंचाई के लिए इन्हीं नालियों का प्रयोग होता है|
अगेती फसल लेने के लिए बुवाई जनवरी के शुरू में ट्रे या प्लास्टिक की थैलियों में कर सकते हैं| इन थैलियों में सड़ी गोबर की खाद, रेत व दोमट मिट्टी का बराबर मिश्रण भरकर तैयार करते हैं| ट्रे या थैलियों को प्लास्टिक घर के भीतर रखा जाता है| ताकि पौधों पर बाहरी कम तापमान का प्रभाव न पड़े| बुवाई के फौरन बाद घास फूस से थैलियों को ढक दें तथा फव्वारे से सिंचाई करें| अंकुरण हो जाने के बाद घास हटा दें| पांच से छः पत्ती आने पर पौधों को फरवरी के दूसरे से तीसरे सप्ताह में खेत में लगा दें|
कद्दू वर्गीय फसलों के संकर बीज का उत्पादन
खीरा, लौकी, करेला, तोरी और तरबूज में पौधे एकलिंगीय (मोनोसियस) तथा खरबूजे में मुख्यतः पुलिंगीय (एन्ड्रोमोनोसियस) पौधे होते हैं, जिसमें उभयलिंगीय (हरमोफ्रोडाइट) व नर फूल होते हैं| संकर बीज बनाने के लिए पैतृक नर तथा मादा पौधों का परस्पर अनुपात 1:3 पर्याप्त रहता है| नर व मादा जाति के पौधों में फूलों को खिलने से एक दिन पहले रूई से या लिफाफे (बटर-पेपर बैग) से ढक दें एवं अगले दिन सुबह नर फूल से पराग लेकर मादा फूल पर परागण क्रिया करें तथा मादा फूल को लिफाफे से ढक दें| इस तरह फल विकसित होकर पकने के बाद संकर बीज का उत्पादन होगा|
खरबूजे में संकर बीज की परागण क्रिया कुछ विचित्र है| इसमें फूल पुलिंगीय व उभयलिंगीय (एन्ड्रोमोनोसियस) होते हैं, इसलिए परागण क्रिया से पहले उभयलिंगी फूलों से स्टेमन (पुंकेशर) का निकालना आवश्यक है| इसके पश्चात नर फूल से पराग लेकर मादा फूल पर परागण क्रिया करें| ध्यान रहे परागण क्रिया के बाद पहले से खिले हुए सभी उभयलिंगी फूलों को तोड़ दें|
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खीरे में संकर बीज बनाने के लिए अगर मादा पैतृक किस्म पूरी तरह गाईनोशियस (पौधे पर सभी मादा फूल देने वाली) है, जिसमें केवल मादा फूल ही खिलेंगे, इस किस्म की 3 मादा पौधा तथा 1 अनुपात में नर पैतृक किस्म के पौधे जिसमें मोनोशियस या हरमाफ्रोडाइट लिंग प्रकार भी होता है, की बुवाई कर सकते हैं और बिना हाथ से परागण किए संकर बीज मादा पैतृक किस्म गाईनोशियस के फलों से प्राप्त कर सकते हैं|
लौकी, कद्दू, चप्पन कद्दू और पेठा (ऐश गोर्ड) में संकर बीज बनाना बहुत ही आसान है और इनमें थोड़ी सी जानकारी व सावधानी से जो लोग इन फसलों के नर व मादा फूलों के बीच अन्तर पहचान सकते हैं, वे संकर बीज बनाने में सफल हो सकते हैं|
उपरोक्त फसलों में नर फूलों की संख्या भी अन्य फसलों के मुकाबले कम होती है| इन फसलों में नर फूलों की पहचान करना आसान है और इन फूलों का आकार भी बड़ा होता है| इन फसलों में संकर बीज बनाने के लिए प्रत्येक फसल की मादा पैतृक किस्म में नर फूलों की कलियां बने तभी उनको खिलने से पहले तोड़ दें| इसके लिए हर रोज खेत में जाना होगा और मादा पैतृक किस्म के प्रत्येक पौधे से नर फूल की कलियां खिलने से पहले तोड़कर निकालनी होगी|
ऐसा करने से मादा पैतृक किस्म के पौधों पर केवल मादा फूल ही रह जाएंगे और इसी खेत में नर फूल सिर्फ नर पैतृक किस्म के पौधों पर ही रहेंगे| इस प्रकार इन नर फूलों का पराग ही मधुमक्खियों मादा पैतृक तक पहुंचायेगी| नतीजे में जो फल मादा पैतृक पौधों को लगेंगे वे संकरण से बने हैं और इन फलों से निकाला गया बीज संकर बीज होगा|
नर पैतृक पौधों के फलों से बीज अलग रखें तथा यह बीज अगले साल नर पैतृक तैयार करने के लिए उपयोग में काम आ सकता है| यहां एक सावधानी रखनी है, कि जिस सब्जी फसल का आप संकर बीज बना रहे हैं| उनकी अन्य किस्म आपके खेत से लगभग 800 से 1000 मीटर की दूरी से बाहर होनी चाहिए, नहीं तो अन्य किस्म से संकरण होने का डर हो सकता है|
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कद्दू वर्गीय फसलों के फूल और परागण का समय
कद्दू वर्गीय फसलों का फूल खिलने तथा परागण का उचित समय इस प्रकार है, जैसे-
फसल | लिंग प्रकार | फूल खिलने तथा परागण का समय |
खीरा | एकलिंगीय (मोनोशियस) | सुबह 6 से 10 बजे तक |
लौकी | एकलिंगीय (मोनोशियस) | दोपहर 2 से सांय 5 बजे तक |
करेला | एकलिंगीय (मोनोशियस) | सुबह 6 से 10 बजे तक |
चिकनी तोराई | एकलिंगीय (मोनोशियस) | दोपहर 12 से सायं 3 बजे तक |
धारीदार तोराई | एकलिंगीय (मोनोशियस) | सायं 4 से 6 बजे तक |
कद्दू | एकलिंगीय (मोनोशियस) | सुबह 4 से 8 बजे तक |
तरबूज | एकलिंगीय (मोनोशियस) | सुबह 6 से 10 बजे तक |
खरबूजा | उभयलिंगीय एवं पुलिंगीय (एन्ड्रोमोनोशियस) | सुबह 6 से 10 बजे तक |
कद्दू वर्गीय फसलों के संकर बीज की पैदावार
कद्दू वर्गीय फसलों का बीजोत्पादन इस प्रकार प्राप्त होता है, जैसे-
खीरा- 60 से 70 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाता है|
लौकी- 100 से 120 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाता है|
करेला- 45 से 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाता है|
तोरई- 100 से 120 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाता है|
कद्दू- 80 से 120 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाता है|
खरबूजा- 60 से 70 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाता है|
तरबूज- 100 से 120 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाता है|
ध्यान दें- कद्दू वर्गीय फसलों के बीजोत्पादन के लिए बाकि क्रियाएँ जिनका उपरोक्त लेख में वर्णन नही है, वो आवश्यकतानुसार सामान्य फसल की तरह ही दोहराएँ| ताकि कद्दू वर्गीय फसलों से शुद्ध और गुणवत्ता पूर्ण बीज प्राप्त किया जा सके|
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