कद्दू वर्गीय सब्जियां गर्मी तथा वर्षा के मौसम की महत्वपूर्ण फसले हैं| कद्दू वर्गीय सब्जियों में लौकी, कद्दु, तुरई, करेला, टिण्डा, खीरा, ककडी, तरबूज, खरबूजा आदि सब्जियों शामिल हैं| यद्यपि कद्दू वर्गीय सब्जियों का उत्पादन अच्छा होता है, परन्तु अधिक नमी तथा उचित तापमान मिलने के कारण कीट एवं रोग का प्रकोप अधिक रहता है, बहुत से कीट एवं रोग कद्दू वर्गीय सब्जियों के उत्पादन को प्रभावित करते हैं और कभी-कभी प्रबंधन के अभाव में पूरी फसल को नष्ट कर देते हैं|
इसलिए उत्पादकों को इन कीटों व रोगों का उचित समय पर उचित नियंत्रण करना आवश्यक है| जिससे उनकों अपना इच्छित उत्पादन इन कद्दू वर्गीय सब्जियों से प्राप्त हो सके| इस लेख में कद्दू वर्गीय सब्जियों में कीट एवं रोग नियंत्रण कैसे करें की वैज्ञानिक जानकारी का उल्लेख किया गया है| कद्दू वर्गीय सब्जियों की उन्नत खेती की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- कद्दू वर्गीय सब्जियों की उन्नत खेती कैसे करें
कद्दू वर्गीय सब्जियों के कीटों का नियंत्रण
कद्दू की लाल भृंग-
पहचान के लक्षण- पूर्ण विकसित ग्रब 12 मिलीमीटर लम्बी होती है| यह क्रिमी सफेद रंग की होती है| भृंग आयताकार तथा 5 से 8 मिलीमीटर लम्बी होती है| इसकी पृष्ठिय सतह चमकीली नांरगी लाल और उदर सतह कालें रंग की व छोटे सफेद बाल भी होते हैं|
नुकसान की प्रकृति- भृंग की शिशु अवस्था कद्दू वर्गीय सब्जियों को मार्च से अप्रैल माह में बहुत अधिक नुकसान पहुंचाती है| इस कीट की ग्रब पौधे की जडों, भूमिगत तना तथा भूमि से सटे हुये फलों के अन्दर छेद करती है| भृंग बीजपत्र, फूलो व पतियों में छेद कर नुकसान पहुंचाती है|
नियंत्रण के उपाय-
1. फसल की कटाई उपरान्त खेत की गहरी जुताई करें|
2. समय पर फसल की बुवाई करें|
3. कीट प्रतिरोधी किस्मों की बुवाई करें|
4. कद्दू वर्गीय सब्जियों के खेत को खरपतवार व फसल अवशेषों से मुक्त रखे|
5. खेतों में नीम के बीजों के पाउडर या नीबौली के पाउडर का छिड़काव करते रहना चाहिये|
6. अकुंरण के तुरंत बाद भूमि में 3 से 4 सेंटीमीटर की गहराई पर पौधे की जडों के पास 7 किलोग्राम कार्बोफ्यूरोन 3 जी प्रति हेक्टर डालें व सिंचाई कर दें या 375 ग्राम कार्बारिल 50 डब्ल्यू पी को 250 लीटर पानी में घोल बनाकर जड़ों और छिडकाव करे|
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फल मक्खी-
पहचान के लक्षण- (बेकटोसीरा कुकुरबीटी)- इस कीट की मेगट पैर रहित होती है, मेगट गन्धी सफेद होती है| पूर्ण विकसित में मेगट 9 से 10 मिलीमीटर लम्बी व बीच में से 2 मिलीमीटर चौडी होती है| वयस्क मक्खी लाल भूरी व वक्ष पर पीले रंग की मार्किग होती है|
नुकसान की प्रकृति- खीरावर्गीय फल मक्खी (बेकटोसीरा कुकुरबीटी) यह फल मक्खी वर्ष भर सक्रिय रहती हैं, परन्तु सर्दी के मौसम में इसका जीवनकाल बड़ा होता हैं| सर्दी के दौरान यह फल मक्खी वृक्षों और पत्तियों के नीचे सुषुप्तावस्था में रहती हैं| मार्च माह में अधिक आर्द्रता के कारण इस मक्खी के उपद्रव की शुरूआत हो जाती हैं| यह फल मक्खी सभी प्रकार की बेलों वाली सब्जियों, टमाटर, मिर्ची, अमरूद, नींबू, फूलगोभी और फूलों को नुकसान पहुँचाती हैं| इस फल मक्खी के शिशु (मेगट) फलों के गुदा को खाकर फलों को खराब कर देती हैं| मानसून की पहली बारिश के बाद इस फल मक्खी का प्रकोप खीरा वर्गीय सब्जियों पर अधिक होता हैं| कभी-कभी इसका प्रकोप 100 प्रतिशत तक पहुंच जाता हैं|
इथोपियन फल मक्खी (डेकस सिलीयेटस)- इसकी पहचान यह है की यह फल मक्खी भी अधिक ठंड के मौसम को छोड़कर वर्ष भर सक्रिय रहती हैं| ठंड़ के मौसम में इसके प्यूपा सुशुप्तावस्था में खेतों की मिटटी में रहते हैं|
नुकसान की प्रकृति- यह फल मक्खी सभी प्रकार की बेलों वाली सब्जियों के कोमल व अपरिपक्व फलों को खाती हैं| अप्रैल के गर्म मौसम की शुरूआत से ही यह फल मक्खी सक्रिय हो जाती हैं| यह मुख्य रूप से करेले, कद्दू, तरबूज आदि को बहुत नुकसान पहुँचाती हैं|
नियंत्रण के उपाय-
1. प्रतिरोधक किस्मों की बुवाई करे, उन किस्मों की बुवाई करनी चाहिये जो कि फल मक्खी के प्रति प्रतिरोधक क्षमता रखती हो|
2. फल वृक्षों के बागों में ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करनी चाहिये, जिससे मिटटी में उपस्थित प्यूपा उपर आ जाते हैं और सूर्य की तेज रोशनी व मित्र कीटों द्वारा खाने से नष्ट हो जाते हैं|
3. बागों को हमेशा साफ-सुथरा रखना चाहिये|
4. कद्दू वर्गीय सब्जियों के फलों की तुड़ाई सही समय पर करनी चाहिये|
5. फल मक्खी से ग्रसित फलों को एकत्रित कर नष्ट कर देना चाहिये|
6. फल मक्खी की निगरानी के लिए फलों के बागों मे मिथाइल यूजिनोल ट्रेप और खीरा वर्गीय सब्जियों में क्यू-ल्युर ट्रेप लगाना चाहिये|
7. फलों को 5 प्रतिशत नमक के घोल में 60 मिनट रखना चाहिये, जिससे उनमें उपस्थित फल मक्खी के अण्डे नष्ट हो जाते है और कीटनाशकों का अवशेष भी नही रहता हैं|
8. जैविक कीट नियंत्रण, जैसे- परजीव्याभ स्पीसीज ओपिअस कम्पेनसेटस, ओपिअस परसुलकेटस, बायोसलेरस एरिसेनस, स्पेलेनगीया फिलिपीनेसिस आदि फल मक्खी के नियंत्रण के लिये उपयोगी पाए गये हैं|
9. फल मक्खी के प्रकोप को रोकने के लिए मैलाथियॉन 50 ई सी 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टर छिड़काव करें, अगर फल मक्खी का प्रकोप सतत हो तो 10 दिन के अन्तराल पर दुबारा छिड़काव दोहराएँ|
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इपीलेक्ना बीटल
पहचान के लक्षण- वयस्क गोलाकार, इलाइट्रा पीला भूरा होता है, जिस पर काले रंग के धब्बे होते है| ग्रब पीले रंग का व पूरे शरीर पर काटे होते है|
नुकसान की प्रकृति- ग्रब व वयस्क दोनों पतियों की बाहरी सतह को खुरच कर क्लोरोफिल को खाते हैं| जिससे पतियाँ छलनीनुमा हो जाती है| पतियों में सिर्फ नसे ही शेष रहती है, अधिक प्रकोप होने पर फलों के पुष्पकोष भी नष्ट कर देते हैं| बाद में प्रभावित पतियां सूख जाती है तथा पौधे से गिर जाती है, पतियों पर छेद भी बन जाते हैं|
नियंत्रण के उपाय-
1. शुरूआती अवस्था में कीट ग्रसित पत्तियों को एकत्रित कर नष्ट कर दें|
2. कीट प्रतिरोधी किस्मों की बुवाई करें|
3. कद्दू वर्गीय सब्जियों के खेत को खरपतवारों से मुक्त रखें|
4. खेतों में नीम के बीजों के पाउडर या नींबौली के पाउडर का छिडकाव करते रहना चाहिये|
5. प्रति हेक्टर 625 मिलीलीटर मैलाथियॉन 50 ई सी या 2.5 किलोग्राम कार्बेरिल 50 डब्ल्यू पी को 350 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें, कीट का प्रकोप अधिक होने पर 10 दिन के अन्तराल पर पुनः छिडकाव को दोहराएँ|
बरूथी
पहचान के लक्षण- पूर्ण विकसित निम्फ अति सूक्ष्म 0.33 मिलीमीटर लम्बी होते है| यह हल्का भूरा, शरीर पर दो आँखों जैसे धब्बे, चार जोडी टांगे व बहुत सक्रिय होता है| पूर्ण विकसित नर 0.52 मिलीमीटर लम्बा व चौड़ाई 0.30 मिलीमीटर होता है| मादा का शरीर अंण्डाकार, पायरीफॉर्म व रंग परिवर्तनीय होता है| यह लाल, हरा व जंगदार हरा रंग का हो सकता है तथा दो बडे रंगदार धब्बे शरीर पर होते है|
नुकसान की प्रकृति- यह एक सर्वभक्षी नाशी जीव है| इसके प्रौढ़ और शिशु फसल को नुकसान पहुँचाते हैं| ये फसल से रस चूसते रहते हैं, जिसके फलस्वरूप पत्तियाँ नीचे की तरफ मुड़कर कप की आकृति के समान हो जाती है| पत्तियों की निचली सतह चमकीली, चिकनी व गहरे हरे रंग में बदल जाती है| कलिका व नयी पत्तियाँ सूख जाती है, और कलिका असामान्य रूप से बढ़ने लगती है तथा पुरानी पत्तियाँ थोड़ी मोटी हो जाती है|
नियंत्रण के उपाय-
1. कीट प्रतिरोधी किस्मों की बुवाई करें|
2. कद्दू वर्गीय सब्जियों के लिए फसल चक्र अपनावें|
3. खेतों में नीम के बीजों के पाउडर या नींबौली के पाउडर का छिड़काव करते रहना चाहिये|
4. प्रति हेक्टर 500 मिलीलीटर डाइमिथोएट 30 ई सी या मिथाईल ऑक्सीडिमेटोन 25 ई सी या 0.04 प्रतिशत डाइकोफॉल या 0.05 प्रतिशत ओमाइट- 57 आदि में से किसी एक को 300 लीटर पानी में घोल बना कर छिडकाव करें|
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चैपा
पहचान के लक्षण- वयस्क कीट हल्के हरे रंग के होते हैं| कीट की पंख वाली अवस्था मे इसका रंग भूरा होता है|
नुकसान की प्रकृति- वयस्क और शिशु दोनों ही पौधों से रस चूसते हैं| जिससे पौधा कमजोर हो जाता है तथा बढ़वार रूक जाती है| कोमल शाखाओं और पत्तियों का रंग फीका पड़ जाता है| पत्तियाँ पीली पड़कर मुरझा जाती है व अधिक प्रकोप की अवस्था में झुलसी नजर आती है|
नियंत्रण के उपाय-
1. कद्दू वर्गीय सब्जियों के खेतों के आस-पास के खरपतवार को नष्ट कर देना चाहिये|
2. नत्रजन उर्वरकों की अनुशंसित मात्रा ही कम में लेवें|
3. आवश्यकतानुसार सिंचाई करें|
4. खेतों में नीम के बीजों के पाउडर या नींबौली के पाउडर का छिड़काव करते रहना चाहिये|
5. इनके नियंत्रण के लिए मेलाथियॉन 50 ई सी, 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छोलकर छिड़काव करें, आवश्यकता पड़ने पर 15 दिन पर छिड़काव दोहराएँ|
6. बुवाई से पूर्व कार्बोफ्यूरान 3 जी की 8 से 10 ग्राम मात्रा प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से भूमि में मिलावें|
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कद्दू वर्गीय सब्जियों के रोगों का नियंत्रण
तुलासिता (डाउनी मिल्ड्यू)
रोग के लक्षण- इस रोग के कारण पतियों की निचली सतह पर सफेद, भूरी फफूंद उलझी हुई रूई के रूप में दिखाई देती है| जिससे पत्तियों की निचली सतह पर बैंगनी भूरें रंग के धब्बे पड़ जाते हैं| जिससे ऊपरी भाग पीला होता है और इन धब्बों पर चूर्ण दिखाई देता है, समय के साथ ये धब्बे गलने लग जाते हैं| रोग ग्रसित पतियाँ पीली पड़कर पौधे से गिर जाती है, पौधे की बढ़वार रूक जाती है| जो फल बनते हैं, वो पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाते हैं और उनका स्वाद भी अच्छा नहीं होता है|
नियंत्रण के उपाय-
1. कद्दू वर्गीय सब्जियों के खेत को खरपरवारों से मुक्त रखें|
2. खेत को पूर्व के फसल अवशेषो से मुक्त रखें|
3. रोग प्रतिरोधी किस्मों की बुवाई करें|
4. कद्दू वर्गीय सब्जियों के बीज को कार्बोन्डिजम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर बीजोपचार कर बुवाई करें|
5. मेटाक्जील 0.2 प्रतिशत या क्लोरोथेलोनिल 0.2 प्रतिशत या जीनेब 0.3 प्रतिशत का छिडकाव करें|
चूर्णिल आसिता रोग
रोग के लक्षण- इस रोग में फफूंद की वृद्धि पत्तियों पर सफेद चूर्ण में होती है, जिससे पहले सफेद व भूरे रंग के धब्बे बनते हैं और बाद में लाल व कत्थई रंग में बदल जाते हैं| इस कारण पतियों सूखकर मुड़ जाती है और पौधों का सही ढंग से विकास नहीं हो पाता है| फलों का विकास नहीं होता है, यदि होता है तो उनका आकार भी भिन्न होता है|
नियंत्रण के उपाय-
1. कद्दू वर्गीय सब्जियों हेतु रोग प्रतिरोधी किस्मों की बुवाई करें|
2. खेत को खरपतवारों व फसल अवशेषो से मुक्त रखे|
3. कद्दू वर्गीय सब्जियों के लिए फसल चक्र अपनावें|
4. केलीक्जीन 0.1 प्रतिशत या कैराथेन 0.2 प्रतिशत का छिडकाव करें|
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झुलसा (ब्लाइट)
रोग के लक्षण- इस रोग का प्रकोप पतियों के ऊपरी सिरे से शुरू होता है| रोग के लक्षण पत्तियों पर कालें-भूरे रंग के धब्बों के रूप में प्रकट होते हैं| परिणामस्वरूप पौधे का हरा भाग नष्ट होने लगता है और पतियॉ पीली पड़कर ऊपरी किनारे से सूखकर गिर जाती है एवं पौधे के शीर्ष झुके हुए नजर आते हैं|
नियंत्रण के उपाय-
1. कद्दू वर्गीय सब्जियों के लिए फसल चक्र अपनावें|
2. खरपतवारों से खेत को साफ रखे|
3. फसल कटाई पश्चात फसल अवशेषों को नष्ट कर दें|
4. कद्दू वर्गीय सब्जियों के बीज को कार्वेन्डिजम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम के हिसाब से उपचारित कर बुवाई करें|
5. मेन्कोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर फसल पर छिडकाव करें|
कुकुम्बर मोजेक रोग
रोग के लक्षण- कद्दू वर्गीय सब्जियों के इस रोग का लक्षण सर्वप्रथम पत्तियों पर गहरे पीले रंग के धब्बों के रूप में प्रकट होते है| ये धब्बे धीरे-धीरे फैलकर आपस में मिल जाते हैं, जिससे पूरी पत्ती पीली पड़ जाती है| रोग ग्रसित पतियॉ नीचे की ओर मुड़ जाती है तथा पत्तियों का आकार छोटा हो जाता है| जो फल बनते हैं, वो आकार में छोटे व पूर्ण विकसित नहीं होते है| मोयला (चैपा) इस रोग को फैलाता है|
नियंत्रण के उपाय-
1. कद्दू वर्गीय सब्जियों के लिए रोग प्रतिरोधी किस्मों की बुवाई करें|
2. रोग ग्रसित पौधे को उखाड़ कर नष्ट कर दें|
3. कद्दू वर्गीय सब्जियों के खेत को खरपतवारों से मुक्त रखें|
4. विषाणु को फैलाने वाले चैपा के नियंत्रण हेतु मोनोक्रोटोफॉस या फास्फेमिडोन 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के साथ घोल बनाकर छिडकाव करें|
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