कपास में समेकित नाशीजीव प्रबंधन, कपास भारत की प्रमुख फसलों में से एक है जो देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है| कपास की उच्च उपज वाली किस्मों के विकास, प्रौद्योगिकी के उपयुक्त हस्तांतरण, बेहतर कृषि प्रबंधन प्रथाओं को अपनाने एवं संकर बीटी कपास की खेती के तहत बढ़े हुए क्षेत्र के माध्यम से भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कपास उत्पादक बन गया है| कपास की फसल की कम पैदावार के लिए कीट एवं रोग प्रमुख रूप से उत्तरदायी हैं| कपास को हानि पहुँचाने वाले कीटों की विभिन्न प्रजातियों में कुल 12 कीट आर्थिक क्षति की दृष्टि प्रमुख माने जाते हैं|
कपास की फसल को सबसे अधिक क्षति रस चूसने और डोडी या टिंडे भेदने वाले कीटों से होती है| वर्ष 2002 में बीटी कपास के आगमन के बाद कपास की फसल में हानिकारक कीटों के परिदृश्य में बहुत बड़ा परिवर्तन देखने को मिला है| कपास की फसल में पहले टिंडे बेधक कीटों से अधिक नुकसान होता था, लेकिन बी टी कपास के आगमन के बाद इनके प्रकोप में कमी आयी है|
परन्तु लगातार संवेदनशील बी टी संकर कपास लगाने की वजह से चूसक कीटों के प्रकोप में दिनोंदिन बढ़ोत्तरी देखने में आ रही है| पर्यावरण की रक्षा तथा बेहतर पैदावार प्राप्त करने के लिए सभी किसानों को कपास में समेकित नाशीजीव प्रबंधन (आई पी एम) रणनीति को अपनाने करने की आवश्यकता है| कीट एवं बीमारी की सही पहचान आई पी एम का पहला कदम है| कपास की जैविक खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- कपास की जैविक खेती- लाभ, उपयोग और उत्पादन
कपास फसल के नाशीजीव
रस चूसक कीट-
सफेद मक्खी- इस कीट के शिशु व वयस्क कपास की वानस्पतिक वृद्धि के समय से टिंडे बनने तक पौधों से रस चूसकर फसल को हानि पहुंचाते है एवं पत्तो का मरोड़िया विषाणु रोग मरोडिया रोग भी फैलाते है| कीटों के मधु स्राव करने पर काली फफूदी आने से पत्तों की भोजन बनाने की क्षमता प्रभावित होती है| सफेद मक्खी का प्रकोप होने पर पत्तियां सूख कर काली होने लगती हैं| इस कीट का आर्थिक क्षति स्तर 8 से 10 वयस्क प्रति पत्ती है|
मिली बग- इस कीट के शिशु तथा वयस्क सफेद मोम की तरह होते है और पौधों के विभिन्न भागों से रस चूसकर उन्हें कमजोर बना देते हैं| ग्रसित पौधे झाड़ीनुमा बौने रह जाते हैं| टिंडे कम बनते है और इनका आकर छोटा तथा कृरूप हो जाता है| ये कीट मधुस्राव भी करते हैं, जिन पर चींटियाँ आकर्षित होती हैं, जो इन्हें एक पौधे से दूसरे पौधे तक ले जाती हैं| इस प्रकार यह कीट खेत में सम्पूर्ण फसल पर फैल जाता है|
हरा फुदका- इस कीट का वयस्क हरे पीले रंग का लगभग 3 मिलीमीटर लम्बा होता है और पंखो पर पीछे की ओर दो काले धब्बे होते हैं| शिशु व वयस्क पत्ती की निचली सतह से रस चूसकर उन्हें टेड़ी-मेडी कर देते हैं| पत्तियां लाल पड़ कर अंततः सूखकर गिर जाती है| इस कीट का आर्थिक क्षति स्तर – 2 वयस्क या निम्फ प्रति पत्ती है|
माहू या चेपा- चेपा के शिशु और वयस्क पत्तियों की निचली सतह पर झुण्ड में प्रवास करते हैं एवं पत्तियों से रस चूसते रहते हैं| इसके कारण पत्तियां टेड़ी-मेडी होकर मुरझा जाती हैं, अंततः बाद में झड़ जाती है| प्रभावित पौधे पर काली फफूंदी भी पनपने लगती है, जो प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को प्रभावित करती है|
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थ्रिप्स- थ्रिप्स के वयस्क छोटे, छरहरे और पीले-भूरे रंग के होते हैं, जिनके पंख धारीदार होते हैं| नर थ्रिप्स के पंख नहीं होते हैं| मादा कीट पत्ती के निचले सतह पर अंडे देते हैं| नवजात तथा वयस्क थ्रिप्स पत्ती के भीतरी भाग की कोशिकाओं से रस चूस लेते हैं| इसके प्रकोप से पत्तियां हल्की मुड़कर मुरझाने सी लगती हैं और इनकी सतह बाद में चांदी जैसे रंग की हो जाती है, इसलिए इन्हें सिल्वर लीफ’ के नाम से जाना जाता है| इस कीट के अधिक प्रकोप से पत्तियों में रतुवा जैसा पदार्थ उत्पन्न होता है, जिससे पत्तियों में भारीपन आ जाता है|
मिरिड बग- मिरिड बग की कुछ प्रजातियां हरे एवं कुछ भूरे रंग की होती हैं, जो देश के विभिन्न भागों में पायी जाती है| इस कीट के वयस्क एवं निम्फ फसल में कपास के रस चूसकर काफी नुकसान पहुंचाते हैं| इसकी वजह से कली एवं टिंडे समय से पहले झड़ने लगते हैं, हरे टिंडों में छोटे-छोटे छेद भी दिखाई देते हैं, उनका आकर छोटा और तोते की चोंच की तरह हो जाता है|
कपास का लाल बग कीट- इस कीट के शिशु एवं वयस्क दोनों ही पत्ती व हरे डोडीयों से रस चूसते हैं| ग्रसित डोडीयों पर पीले धब्बे और कपास पर लाल धब्बे आ जाते हैं| कपास से रुई निकालते समय, बगों के मशीन में पिसने से कपास की गुणवत्ता कम हो जाती है|
कपास का धूसर- इस कीट के व्यस्क 4 से 5 मिलीमीटर लम्बे राख के रंग के या भूरे रंग के तथा मटमैले सफेद पंखो वाले होते है एवं निम्फ छोटे व पंख रहित होते है| शिशु और वयस्क दोनों ही कच्चे बीजों से रस चूसते हैं, जिससे बीज पक नहीं पाते व वजन में हल्के रह जाते हैं| जिनिंग के समय कीटों के दबकर कर मरने से रुई की गुणवत्ता प्रभावित होती है, जिससे बाजार भाव कम हो जाता है|
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टिंडों को भेदने तथा पत्तियों को खाने वाले कीट-
कपास का गुलाबी कीट- इस कीट की मादा पौधे के कोमल भागों पर एक – एक करके अंडे देती है| अन्डो से निकलने वाली सुंडी गुलाबी रंग की होती है, जो डोडीयों में छेद कर घुस जाती है और प्रभावित पुष्पों को इल्ली, लार से बने रेशमी धागे से कात देती हैं, जिसके कारण पुष्प पूर्ण विकास नहीं कर पाते एवं प्रभावित पुष्प जल्दी ही झड़ जाते हैं|
इस कीट की अंतिम पीढ़ी की इल्लियाँ टिंडों के अंदर दो बीजों को जोड़कर उसके अन्दर शीत निष्क्रियता में चली जाती हैं| इस कीट का आर्थिक क्षति स्तर 8 वयस्क प्रति ट्रेप लगातार तीन दिन तक या 10 प्रतिशत जीवित इल्ली से ग्रसित पुष्प कलिकाएँ व टिन्डे|
अमेरिकन कपास की सुंडी- इस कीट की सुंडिया आरंभ में पत्तियों को खाती हैं और बाद में डोडी या टिंडा में घुस जाती है| एक सुंडी कई डोडीयों को नुकसान पहुंचाती है| इस कीट का आर्थिक क्षति स्तर- एक अंडा या एक इल्ली प्रति पौधा या 5 से 10 प्रतिशत प्रभावित, क्षतिग्रस्त टिन्डे होता है|
चित्तीदार कपास की सुंडी- इसके वयस्क शलभ हल्के हरे रंग के होते हैं| इसकी एक प्रजाति के आगे के पंख पर एक सफेद धारी भी होती है, शुरू की इल्लियाँ शाखाओं के शीर्ष को भेदन करके खाती है तथा बाद में कलियों, फूलों एवं टिंडों को क्षतिग्रस्त करती है और छतिग्रस्त टिन्डे में अंदर जाने के रास्ते को अपने त्यागित मल पदार्थ से बंद कर देती है|
कीट से प्रभावित टिंडे से प्राप्त रुई भी अच्छी गुणवत्ता की न होने से बाजार भाव भी प्रभावित होता है| इस कीट का आर्थिक क्षति स्तर- एक इल्ली प्रति पौधा या 10 प्रतिशत प्रभावित शाखाएँ या सामान्यत 3 प्रभावित टिंडे प्रति पौधा होता है|
तम्बाकू की सुंडी- वयस्क पतंगे के अगले पंख गहरे भूरे रंग के सफेद लहरदार धारियों युक्त एवं पिछले पंख सफेद होते है| प्रारम्भ में शिशु लार्वा तेजी से झुण्ड में पत्तियों के हरे भाग को खाती है, बाद में अकेली सुंडी पुष्प गुच्छों, कलियों एवं कच्चे टिंडों को खाकर काफी नुकसान करती है| इस कीट का आर्थिक क्षति स्तर- एक अंडा समूह या पूर्ण क्षतिग्रस्त पत्ती प्रति 10 पौधे होता है|
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कपास फसल के व्याधियाँ/रोग
नया उकठा- उकठा रोग विल्ट की तरह दिखाई देता है और इसके प्रकोप से अचानक पूरा पौधा मुरझाकर सूख जाता है| एक ही स्थान पर कुछ पौधों में से एक या दो पौधों का सूखना इस रोग की मुख्य पहचान है| इस रोग का प्रमुख कारण वातावरणीय तापमान में अचानक परिवर्तन, मिटटी में नमी का असन्तुलन, जल भराव और पोषक तत्वों की असंतुलित मात्रा का प्रयोग होता है|
लाल पत्ती– यह रोग पौधे की पुरानी पत्तियों में दिखाई देता है, प्रारंभ में पत्तियों के किनारे पीले होने लगते हैं एवं बाद में लाल रंग के धब्बे पूरी पत्तियों पर फैल जाते हैं, जिसके कारण पत्तियां सूखने लगती हैं| इस रोग का प्रमुख कारण पत्तियों में नत्रजन तथा मेंग्नीशियम की कमी का होना होता है| अचानक रात्रि के तापमान में कमी आने से पत्तियों में लाल पिगमेंट बनने लगता है और पूरी की पूरी पत्ती लाल रंग की दिखने लगती है|
कपास में समेकित नाशीजीव प्रबंधन हेतु क्या करें
खेत की तैयारी- कपास में समेकित प्रबंधन के लिए रबी की फसल की कटाई के पश्चात मिट्टी पलटने वाले हल से खेत की गहरी जुताई करें, इस प्रक्रिया से जमीन के अन्दर सुशुप्तावथाओं में मौजूद कीट की सभी अवस्थाएं नष्ट हो जाती हैं|
साफ सफाई- कपास में समेकित प्रबंधन के लिए खेत के आस पास सभी खरपतवारों तथा पिछले वर्ष के फसल अवशेषों को नष्ट करें, क्योंकि इन खरपतवारों पर सफेद मक्खी और अन्य कीट अपना जीवन चक्र पूरा कर अपनी जनसंख्या वृद्धि करते हैं|
बीज का चयन- कपास में समेकित प्रबंधन के लिए क्षेत्र विशेष के लिए सिफारिश की गयी कीट रोग प्रतिरोधक सहनशील किस्म और शंकर बीज का चयन करें, क्योंकि संवेदनशील किस्मों पर कीट का प्रकोप व उससे होने वाली छति अधिक होती है|
संतुलित पोषक तत्वों का प्रयोग- कपास में समेकित प्रबंधन के लिए मिटटी जाँच के परिणाम के आधार पर आवश्यकतानुसार मुख्य तथा सूक्ष्म पोषक तत्वों का खेत की तैयारी के समय प्रयोग करें, केवल नत्रजन के अधिक प्रयोग से फसल पर चूसक कीटों एवं रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है|
समय से बुवाई- कपास में समेकित प्रबंधन के लिए पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में 15 मई तक कपास की बुवाई सुनिश्चित करें, क्योंकि देर से बोई गयी फसल पर सफेद मक्खी का आक्रमण अधिक होता है एवं क्षति ज्यादा होती है|
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सीमा पर रुकावट फसल की पंक्तियाँ- कपास में समेकित प्रबंधन के लिए खेत के चारों तरफ ज्वार या बाजरा या मक्का की दो पंक्तियों में बुवाई करें| क्योंकि ये फसलें सफेद मक्खी एवं अन्य हानिकारक कीटों को को एक खेत से दूसरे खेत में फैलने से रोकती हैं और ये फसलें मित्र कीटों के लिए भोजन तथा आश्रय भी प्रदान करती हैं|
कपास में समेकित प्रबंधन हेतु आवश्यकतानुसार समय-समय पर सिंचाई करें, क्योंकि नमी की कमी होने पर पौधे की पत्तियों में मौजूद प्रोटीन टूटकर एमिनो अम्ल में परिवर्तित हो जाते है, जोकि चूसने वाले कीटों को अच्छा पोषण प्रदान कर उनकी संख्या में वृद्धि करती है, जिसके कारण फसल में ज्यादा क्षति होती है|
निरक्षण– कपास में समेकित प्रबंधन के लिए कपास की फसल की लगातार साप्ताहिक अन्तराल पर कीट निरक्षण करें|
पीला चिपचिपा प्रपंच ट्रैप- कपास में समेकित प्रबंधन हेतु फसल की प्रारंभिक वानस्पतिक वृद्धि की अवस्था में बुवाई के 45 दिन के आस पास खेत में सफेद मक्खी की निगरानी और बड़े पैमाने पर फंसाने के लिए पीला चिपचिपा प्रपंच ट्रैप 100 प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करें|
फेरोमोन ट्रैप- कपास में समेकित प्रबंधन के लिए तम्बाकू सुंडी, अमेरिकन सुंडी, चितकबरी सुंडी तथा लाल सुंडी के फेरोमोन ट्रैप को खेत में अगस्त माह में स्थापित करें और 20 से 25 दिन पर ल्युर बदलते रहें, जिससे इनके वयस्क पतंगों की निगरानी हो सके व समय रहते हुए इनके प्रबंधन के लिए उचित निर्णय लिया जा सके| प्रारंभिक अवस्था में जून से जुलाई तक सफेद मक्खी दिखाई देने पर खेत में आवश्यकतानुसार 5 प्रतिशत नीम के सत या 1 प्रतिशत नीम के तेल के 7 दिन के अंतर पर 2 छिडकाव कर सकते हैं|
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कपास में समेकित नाशीजीव प्रबंधन के लिए अन्य प्रबंधन क्रिया
1. कपास में समेकित प्रबंधन के लिए नया उकठा की रोकथाम के लिए लक्षण दिखने के 24 से 48 घंटे के अन्दर 10 पी पी एम कोबाल्ट क्लोराइड का छिडकाव और 25 ग्राम कापरआक्सीक्लोराइड 200 ग्राम यूरिया प्रति 10 लिटर पानी के साथ पौधों के जड़ क्षेत्र को गीला करें|
2. कपास में समेकित प्रबंधन के लिए सफेद मक्खी, हरा फुदका, थ्रिप्स आदि की संख्या बढने पर जुलाई के अंत से सितम्बर प्रारंभ तक, आर्थिक क्षति स्तर पर सुरक्षित कीटनाशी स्पइरोमेसिफिन 22.9 एससी 600 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर, या ब्यूप्रोफेजिन 50 एससी 1000 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर या डायाअफेन्थिउरोन 50 डब्ल्यू पी 500 ग्राम प्रति हेक्टेयर या पयरीप्रोक्सीफेन 10 ई सी 1000 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर या फ्लोनिकामिड 50 डब्लू जी 150 ग्राम प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करें|
3. कपास में समेकित प्रबंधन हेतु पुष्पन की अवस्था होने पर पोटैशियम नाइट्रेट (एन पी के- 13:0:45) के साप्ताहिक अन्तराल पर 4 छिडकाव करें, जिससे फसल में कीटों के नुकसान के प्रति सहनशीलता आती है और पैदावार में वृद्धि होती है|
4. कपास में समेकित प्रबंधन के लिए परभक्षी मित्र कीटों जैसे लेडी बीटल, मकड़ी, क्राइसोपरला इत्यादि को पहचाने व उनका संरक्षण करंप तथा उनकी उपस्थिति में कीटनाशियों का प्रयोग न करें|सितम्बर से अक्टूबर में मिली बग के परजीवी के प्युपे दिखाई देने पर मिली बग के लिए किसी भी रसायन का प्रयोग न करें|
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5. आवश्यकता पड़ने पर कपास में समेकित प्रबंधन के लिए अक्टूबर माह में सफेद मक्खी का अधिक प्रकोप दिखाई देने पर ट्राईजोफोस या एथिओन का प्रयोग भी कर सकते हैं|
6. कपास में समेकित प्रबंधन के लिए तम्बाकू की इल्ली के अंड समूहों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें|
7. तम्बाकू सुंडी की संख्या आर्थिक क्षति स्तर से ऊपर होने पर कपास में समेकित प्रबंधन के लिए अगस्त माह में एस एल-एन पी वी का छिडकाव करें|
8. देशी कपास (बीटी रहित) में कपास में समेकित प्रबंधन के लिए 75 दिन की फसल में 1.5 लाख परजीवित अंडे प्रति हेक्टेयर की दर से ट्राईकोग्रामा किलोनिस साप्ताहिक अंतराल पर प्रयोग करें एवं उपलब्धता होने पर 50000 प्रति हेक्टेयर की दर से क्राइसोपरला लार्वा/अंडा का प्रयोग करें|
9. फसल कटाई उपरांत फसल अवशेष को कम्पोस्ट के साथ दबाकर नष्ट करें|
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कपास में समेकित नाशीजीव प्रबंधन हेतु क्या न करें
1. कपास में समेकित प्रबंधन के लिए लम्बी अवधि की देर से पकने वाली शंकर व देशी किस्मों का चयन न करें|
2. कपास में समेकित प्रबंधन हेतु देर से बुवाई (15 मई के पश्चात) न करें|
3. किन्नो बागानों के नजदीक कपास की बुवाई न करें, आवश्यकता पड़ने पर केवल देशी किस्मों का ही चयन करें|
4. कपास में समेकित प्रबंधन के लिए यूरिया उर्वरक का अंधाधुंध प्रयोग न करें|
5. सितम्बर माह तक सिंथेटिक पयरीथ्रोइड कीटनाशियों का प्रयोग न करें|
6. खेत के पास कपास के अवशेषों के ढेर इकट्ठा न करें|
7. कपास में समेकित प्रबंधन के लिए खेत में जलभराव न होने दें|
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