कद्दू वर्गीय सब्जियों में काशीफल या कुम्हड़ा या सीताफल अपना प्रमुख स्थान रखता है| इसके बड़े एवं गूदेदार, फल पके और कच्चे दोनों रूपों में सब्जी के लिए उपयोग में लाये जाते हैं, काशीफल को सब्जी व कोफता के अलावा टमाटर के साथ मिलाकर केचप भी बनाते हैं| काशीफल की कोमल पत्तियां और तने के अग्र भाग तथा फूलों को भी सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है| काशीफल में विटामिन ए, बी एवं सी प्रचुर मात्रा में पायी जाती है| भारत में इसकी खेती बहुत ही पुराने समय से होती चली आ रही है|
काशीफल को सामान्य तापक्रम पर कई महीनों तक भण्डारित किया जा सकता है| काशीफल वानस्पतिक नाम कुकरबिटा मास्चेटा है| इसे कुम्हड़, कदुवा, सीताफल आदि के नाम से जाना जाता है| लम्बे समय तक भण्डारण क्षमता होने के कारण इसकी खेती बहुतायत से की जाती है| भारत में इसकी खेती गर्मी एवं बरसात दोनों मौसमों में की जाती है| कद्दू वर्गीय सब्जियों की जानकारी के लिए यहां पढ़ें- कद्दू वर्गीय सब्जियों की उन्नत खेती कैसे करें
काशीफल की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
काशीफल या कुम्हड़ा की फसल को लम्बे गर्म मौसम की आवश्यकता होती है| इसकी फसल उन स्थानों पर प्रमुखता से उगाई जाती है, जहाँ तापक्रम 25 से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है| इसके बीजों के जमाव के लिए 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है| यदि तापमान 17 डिग्री सेल्सियस से कम रहता है, तो बीजों का अंकुरण नहीं होता है| यदि दिन का तापमान 42 सेल्सियस से अधिक रहता है, तो इसके फूल गिरने लगते हैं और फलों का विकास कम होता हैं|
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काशीफल की खेती के लिए भूमि की तैयारी
भूमि- काशीफल या सीताफल की खेती लगभग हर प्रकार की भूमि में की जा सकती है, लेकिन अच्छी खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली भुरभुरी और कार्बनिक पदार्थयुक्त दोमट भूमि उपयुक्त होती है| इसकी खेती के लिए भूमि का पी एच मान 6.5 से 7.5 होना चाहिए| गर्मी की फसल के लिए दोमट मिट्टी अधिक उपयुक्त होती है, क्योंकि इसमें नमी अधिक समय तक बनी रहती है| वर्षा ऋतु में हल्की किस्म की भूमि का चुनाव करना चाहिए, जिसमें पानी का निकास अच्छा हो|
खेत कि तैयारी- बुवाई से लगभग एक माह पहले खेत को गहरा जोत कर गोबर की सड़ी खाद या कम्पोस्ट 250 से 300 कुन्तल प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में जुताई के साथ मिला दें| इससे खेत अधिक उपजाऊ होता है और खेत में नमी धारण क्षमता बढ़ती है एवं बीज का जमाव भी अच्छा होता है| बुवाई के पहले तीन चार बार खेत की जुताई करके और पाटा चलाकर मिट्टी को भुरभुरी तथा समतल कर लेना चाहिए, जिससे सिंचाई का पानी एक समान लग सके|
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काशीफल की खेती के लिए उन्नत किस्में
काशीफल या कुम्हड़ा या सीताफल की उन्नतशील किस्में इस प्रकार है, जैसे-
अर्को चन्दन- इसके फल आकार में गोल और दोनों सिरे पर थोड़ा दबे होते हैं| फल मध्यम आकार के 2 से 3 किलोग्राम वजन के हल्के भूरे रंग के होते हैं| गूदा, मोटा, सख्त तथा चमकीले नारंगी रंग का होता है| इसमें मिठास अच्छी होती है एवं घुलनशील शर्करा का अंश 8 से 10 प्रतिशत होता है| इसमें कैरोटीन की मात्रा 3331 अन्तर्राष्ट्रीय इकाई प्रति 100 ग्राम होती है| फल में अच्छी सुगन्ध होती है और इसकी भण्डारण क्षमता भी अच्छी है| औसत उपज 335 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है|
कोयम्बटूर 1- काशीफल की यह एक पिछेती किस्म है, इसके फल आकार में बड़े 7 से 8 किलो ग्राम वजन के होते हैं| फल आकार में गोल होते हैं एवं एक बेल पर 7 से 9 फल लगते हैं| फल पकने में 175 दिन का समय लगता है| इसकी औसत उपज 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है|
कोयम्बटूर 2- काशीफल की यह एक अगेती किस्म है, जिसमें बुवाई के 135 दिन बाद फल तैयार हो जाते हैं| इसके फल छोटे आकार के होते हैं तथा प्रत्येक फल का औसत वजन 2 किलोग्राम से अधिक नहीं होता, फलों के ऊपर हल्के खाचें पाये जाते हैं| गूदे का रंग नारंगी होता है, एक बेल में औसतन 10 से 15 फल लगते हैं| इसकी औसत उपज 225 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है|
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पूसा विश्वास- इस किस्म की लतायें काफी बढ़ने वाली और पत्तियां गहरे रंग की होती हैं| जिन पर कहीं-कहीं सफेद रंग के धब्बे दिखाई देते हैं| फल हल्के भूरे रंग के और गोल आकार के होते हैं| गूदा मोटा एवं पीले रंग का होता है| प्रत्येक फल का औसत वजन 5 किलोग्राम होता है| इसके फलों को पकने में 120 दिन का समय लगता है| इसकी औसत उपज 230 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है|
सी एम 14- इसकी बेलें फैलने वाली होती हैं, फल चपटे गोल आकार के तथा लगभग 6 किलोग्राम वजन के होते हैं| फल हरे रंग के होते हैं, जिन पर उथली नालियां बनी होती हैं| गूदा मोटा होता है, प्रति बेल इसकी औसत उपज 15.38 किलोग्राम पायी गयी है|
पूसा विकास- इसकी पत्तियां गोलाकार, चिकनी, बिना रोयें के और हल्के हरे रंग की होती है, जिस पर जगह-जगह पीले रंग के धब्बे पाये जाते हैं| पीले धब्बे उभरी हुई इपीडर्मल कोशिकाओं से बनते हैं, जो इस किस्म का आनुवांशिक रूप से अप्रभावी जीन मार्कर है| इसके फल छोटे तथा चपटे होते हैं| फल औसत वजन 2 किलोग्राम है| फल का गूदा पीला होता है, इसे उत्तरी भारत के मैदानी क्षेत्रों में वसन्त-गर्मी में उगाने के लिए उपयुक्त है| इसकी औसत उपज 300 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होती है|
पूसा हाइब्रिड 1- उत्तरी मैदानी इलाकों के लिए इसे तैयार किया गया है, उपज 520 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक मिलती है| फल सुनहरी रंग लिए हुए होते हैं, वजन 4 किलोग्राम के आसपास रहता है|
काशीफल की अन्य किस्में- बी एस एस- 987, बी एस एस- 988, कल्यानपुर पम्पकिन- 1, नरेन्द्र अग्रिम, नरेन्द्र अमृत, आई आई पी के- 226 और संकर नरेन्द्र काशीफल- 1 आदि प्रमुख है|
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काशीफल की खेती के लिए खाद और उर्वरक
साधारणतया खेती की तैयारी के समय गोबर की सड़ी खाद 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर देना लाभप्रद रहता है| काशीफल की अधिक उपज के लिए 80 से 100 किलोग्राम नत्रजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है| सम्पूर्ण गोबर की खाद, फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा और नत्रजन की 1/3 मात्रा को अंतिम जुताई के समय खेत में मिला देना चाहिए और शेष 2/3 नत्रजन की मात्रा को दो बराबर भागों में बांटकर टापड्रेसिंग के रूप में प्रथम बार बुवाई के 25 से 30 दिन बाद और 40 से 45 दिन पर फूल आने के समय देना चाहिए और नालियों या थालों की गुड़ाई करके मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए|
काशीफल की खेती के लिए बुवाई का समय
काशीफल की मैदानी क्षेत्रों में बुवाई ग्रीष्म ऋतु के लिए फरवरी से मार्च और वर्षा ऋतु के लिए जून से जुलाई में वह पहाड़ी क्षेत्रों के लिए मार्च से अप्रैल तक करते हैं|
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काशीफल की खेती के लिए बीज की मात्रा
काशीफल के एक हेक्टेयर खेत की बुवाई के लिए 7 से 8 किलोग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है| आमतौर पर 100 ग्राम में लगभग 550 से 600 बीज होते हैं|
काशीफल की खेती के लिए बीज उपचार
काशीफल को फफूदीनाशक रोगों के कारण कभी-कभी फसल में काफी हानि हो जाती है, इन रोगों से फसल को बचाने के लिए पूर्व में ही सावधानी बरतनी चाहिए| इसके लिए थीरम या कार्बेन्डाजिम की 2.5 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित करना लाभदायक होता है|
काशीफल की खेती के लिए बुवाई की विधि
काशीफल हेतु अच्छी प्रकार से तैयार किये गये खेत में 2.25 मीटर की दूरी पर 45 से 50 सेंटीमीटर चौड़ी नाली बनाकर नालियों के दोनों किनारों पर 75 सेंटीमीटर की दूरी पर बुवाई करते हैं| एक स्थान पर 2 से 3 बीज एवं 3 से 5 सेंटीमीटर की गहराई पर रोपाई करनी चाहिए|
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काशीफल की खेती में विरलीकरण
बुवाई के उपरान्त पौधे निकल आने पर विरलीकरण कर दिया जाता है और एक स्थान पर एक ही स्वस्थ पौधा छोड़ दिया जाता है| विरलीकरण करते समय किसी तेज धारदार खुरपी या चाकू से अनावश्यक पौधों को काट दिया जाता है| विरलीकरण करने के लिए पौधों को उखाड़ने की अपेक्षा खुरपी से निकालना अच्छा माना जाता है, क्योंकि इससे स्वस्थ पौधों की जड़ों को कोई नुकसान नहीं होता है|
काशीफल की फसल में खरपतवार रोकथाम
काशीफल या कुम्हड़ा के जमाव से लेकर शुरुआत के 25 से 30 दिनों तक निराई-गुड़ाई करके खरपतवारों को निकाल देना चाहिए| रासायनिक खरपतवारनाशी के रूप में पेंडीमेथलीन 3.3 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी में मिलाकर घोल जमीन के ऊपर बुवाई के 48 घंटे के भीतर छिड़काव करना चाहिए| इससे बुवाई के लगभग 30 से 35 दिन बाद तक खरपतवारों का नियंत्रण हो जाता है|
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काशीफल की खेती के लिए सिंचाई प्रबंधन
काशीफल की खेती जब बरसात में की जाती है, उस समय फसल की सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है| लेकिन मौसम जब सूखा रहता है, तो आवश्यकतानुसार पानी लगाते हैं| ग्रीष्मकाल में उगाई जा रही फसल में 4 से 7 दिन के अंतराल पर नालियों में सिंचाई करते रहना चाहिए|
पौधे की तीन अवस्थाओं पर तना बढ़ते समय, फूल आने से पहले और फल विकास की अवस्था पर पानी की कमी होने पर, उपज में भारी कमी हो जाती है| इसलिए उपयुक्त तीन अवस्थाओं पर पानी की कमी नहीं होने देना चाहिए| फल पकने पर सिंचाई नहीं करते हैं| जिससे कुम्हड़ा भण्डारण की क्षमता में बढ़ोत्तरी हो जाती है|
काशीफल फसल की तुड़ाई और पैदावार
फलों की तुड़ाई- बाजार मांग की आवश्यकतानुसार काशीफल की कच्चे तथा पके दोनों अवस्थाओं में तुड़ाई करते हैं| फसल की पहली तुड़ाई बुवाई के 75 से 80 दिनों पर करते हैं| कच्चे फल के लिए फल लगने के 20 से 25 दिन के बाद तुड़ाई करते हैं| इस फल को किसी तेज धारदार, चाकू से इस प्रकार पौध से अलग करना चाहिए कि पूरे पौध को झटका न लगे या पूरा पौधा सूख सकता है|
पैदावार- काशीफल की औसत उपज प्रति हेक्टेयर 400 से 450 क्विंटल होती है| पके फलों को सामान्य तापक्रम पर काफी लम्बे समय तक रखा जा सकता है| आवश्यकता के आधार पर बाजार भेजकर बेचा जा सकता है|
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