खुबानी की खेती एक गुठली वर्गीय फसल है| इसकी खेती विश्व में सबसे ज्यादा तुर्की में की जाती है, क्योंकि खुबानी की विश्व में आधी पैदावार यही से होती है| ख़ुबानी एक ठन्डे प्रदेश का पौधा है और अधिक गर्मी में या तो मर जाता है या फल पैदा नहीं करता है| भारत में खुबानी की खेती या बागवानी उत्तर के पहाड़ी इलाकों में की जाती है, जैसे के कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड व अन्य|
लेकिन अब इसकी मांग बढने के साथ इसका कृषि क्षेत्र भी बढ़ रहा है| इसलिए खुबानी की खेती मैदानी क्षेत्रों में भी फ़ैल रही है| भारत में इसको स्थानीय तौर पर खुमानी, खुबानी, चूलू आदि नाम से जाना जाता है| ताजी और सूखी खुबानी एक स्वास्थ्यप्रद फल है| यह कार्बोहाइड्रेट, खनिज तत्वों तथा विटामिनों का अच्छा श्रोत है| खुबानी का फल ताजा तथा सुखाकर दोनों तरह से खाया जाता है|
खुबानी के फलों से अच्छी किस्म की मदिरा और नेक्टर तैयार किये जाते हैं| इसके बीज से तेल भी तैयार किया जाता है| इससे जैम भी बहुत अच्छा तैयार होता है| गिरी यदि मीठी हो तो बादाम की तरह प्रयोग में लाया जाता है| इस लेख में बागान खुबानी की बागवानी वैज्ञानिक तकनीक से कैसे करें का उल्लेख किया गया है|
उपयुक्त जलवायु
खुबानी की अच्छी खेती के लिए 1000 से 2200 मीटर उँचाई तक के ऐसे स्थान उपयुक्त होते है, जहाँ गर्मी (तापक्रम) अधिक न हो इसके अच्छे उत्पादन के लिए ठंडी व शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है| फूल आते समय अधिक ठंड होने या ओला गिरने से फसल नष्ट हो जाती है| चूंकि खुबानी में फूल जल्दी आते हैं| अतः ऐसे स्थान जहाँ पुष्पन के बाद गहरा पाला पडता हो वहाँ इसको सफलतापूर्वक पैदा नहीं किया जा सकता है|
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भूमि का चुनाव
खुबानी की खेती के लिए गहरी उपजाऊ और अच्छे जल निकास वाली दोमट मिट्टी चाहिए| लेकिन हल्की रेतीली और बलुई दोमट व उपजाऊ मिट्टी में भी इसकी खेती की जा सकती है| ज्यादा पानी वाली अधिक पोषक तत्व युक्त, और चिकनी मिट्टी इसके पौधे के अनुकूल नही होती है|
उन्नत किस्में
भारत में पर्वतीय क्षेत्रों में खुबानी की खेती के लिए निम्नलिखित किस्में काफी प्रचलित है, जो इस प्रकार है, जैसे-
शीघ्र तैयार होने वाली- कैशा, शिपलेज अर्ली, न्यू लार्जअर्ली, चौबटिया मधु, डुन्स्टान और मास्काट आदि|
मध्यम अवधि में तैयार होने वाली- शक्करपारा, हरकोट, ऐमा, सफेदा, केशा, मोरपार्क, टर्की, चारमग्ज और क्लूथा गोल्ड आदि|
देर से पकने वाली किस्में- रायल, सेन्ट एम्ब्रियोज, एलेक्स और वुल्कान आदि|
सुखाकर मेवे के रुप में प्रयोग होने वाली किस्में- चारमग्ज, नाटी, पैरा पैरोला, सफेदा, शक्करपारा और केशा आदि|
मीठी गिरी वाली किस्में- सफेदा, पैराचिनार, चारमग्ज, नगेट, नरी और शक्करपारा आदि
तराई और शीतल मैदानी क्षेत्रों वाली किस्में- समुद्रतल से 1000 मीटर की ऊँचाई पर सिपलेज अर्ली और कैशा आदि किस्में उगाई जा सकती हैं और इनके साथ पालमपुर स्पेशल, आस्ट्रेलियन और सफेदा किस्में भी उपयुक्त पाई गई हैं|
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कुछ किस्मों का वर्णन इस प्रकार है, जैसे-
सफेदा- फल मध्यम से बड़े आकार का, आयताकार, दोनों सिरों पर दबा हुआ, छिलका हल्के पीले रंग का, गूदा हल्का पीला, रसीला व बहुत मीठा, गिरी मीठी और फल जून के आरम्भ में पककर तैयार होते है|
चारमग्ज- फल छोटे आकार का, अण्डाकार परन्तु थोड़ा चपटा, छिलका हरापन लिये, हल्के पीले रंग का, पुष्ट और बहुत मीठा, उत्पादन नियमित परन्तु बहुत अधिक नहीं, खाने व सुखाने के लिए उपयुक्त किस्म, गुठली मध्यम आकार की, गूदे में थोड़ी चिपकी हुई, गिरी बहुत मीठी, फल जून में पककर तैयार होता है|
ऐमा- मध्य पर्वतीय क्षेत्रों के लिए उपयुक्त किस्म, फल गोल, मध्यम आकार के, छिलका पीला – संतरी, गुदा हल्का संतरी, मीठा, सुगंधित तथा न्यू कैसल किस्म से 10 से 15 दिन पहले पक कर तैयार, अप्रैल के अन्तिम सप्ताह से मई के पहले सप्ताह तक, पौधा अर्ध-सीधा, मध्यम आकार तथा औसत फल देने वाला, फल झड़न प्रकोप कम रहता है|
हरकोट- यह खुबानी की मध्य पर्वतीय क्षेत्र की किस्म, फल मध्य जून में पक कर तैयार, फल बहुत आकर्षक तथा पीला-गुलाबी (कभी-कभी गुलाबी लालिमा सहित), स्टिगमा, पत्ता व फल धब्बा और कली झुलसा रोगों के लिए अति प्रतिरोधी किस्म है|
शक्करपारा- फल छोटे से मध्यम आकार का, दोनों सिरों पर दबा हुआ, छिलका हल्के पीले रंग का, फल के कन्धे पर हल्का नारंगी रंग, गिरी मीठी, व बड़ी, जून में पककर तैयार, खाने व सुरवाने के लिए अच्छी किस्म है|
कैशा- फल मध्यम आकार का, गोल, छिलका पीला तथा लाल रंग युक्त, गूदा नारंगी पीला व स्वादिष्ट, गुठली मध्यम आकार की, चपटी तथा गिरी कड़वी, फलों के पकने का समय जून का प्रथम सप्ताह तैयार होती है|
काविकास चौबटिया अलंकार (कैशा + चारमग्ज)- गुठली साफ अलग होने वाली, गिरी मीठी, जून के पहले सप्ताह में पककर तैयार संकर किस्म मानी जाती है|
चौबटिया मधु (टर्की + चारमग्ज)- गुठली साफ अलग होने वाली, गिरी मीठी, जून के पहले सप्ताह में पककर तैयार, यह भी खुबानी की संकर किस्म है|
चौबटिया केसरी (सेन्टएम्वीयोज + चारमग्ज)- गुठली कुछ-कुछ चिपकने वाली, जून के तीसरे सप्ताह में पकने वाली, संकर किस्म है|
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पौधे तैयार करना
मूलवृन्त के लिए खुबानी या आडू के बीजू पौधे प्रयोग में लाये जाते है| हल्की मिट्टी में आडू का मूलवृन्त अच्छा होता है| भारी दोमट मिट्टी में खुबानी के बीजू पेड़ मूलबृन्त के रूप में प्रयोग किये जाते हैं| भारी व चिकनी मिट्टी में माइरोवेलान प्लम के मूलवृन्त का प्रयोग करते है| ग्राफ्टिंग के एक साल बाद पेड़ खेत में लगाने योग्य हो जाते हैं|
चश्मा चढ़ाकर (रिंग या शील्ड वडिंग)- मई जून या सितम्बर में में होती है
जिह्वा या क्लैफ्ट ग्राफटिंग- फरवरी या मार्च में की जाती है|
परागण- खुबानी की अधिकाश किस्मों में स्वपरागण से फल लगते है| अतः फलत के लिए बाग में परागकारी किस्मों को लगाने की आवश्यकता नही पड़ती है|
पौधरोपण
खुबानी की खेती या बागवानी के लिए खेत की तैयारी, पौधरोपण, खरपतवार, अंतर फसलें और खाद व उर्वरक का प्रयोग आडू की तरह ही करना होता है, इसके लिए किसान भाई या बागवान इन सब की जानकारी यहां से प्राप्त कर सकते है- आड़ू की खेती कैसे करें
सिंचाई प्रबंधन
खुबानी को गर्मियों में अधिक पानी की आवश्यकता होती है| जिन क्षेत्रों में गर्मियों में वर्षा 150 सैंटीमीटर से अधिक होती है तथा समुद्रतल से ऊंचाई 1500 मीटर के आसपास या अधिक हो, सिंचाई की आवश्यकता कम होती है| कम वर्षा या असिंचित अवस्था में फलों का आकार तथा कुल उपज काफी कम हो जाती है, इसलिए गर्मियों में प्रायः 7 से 15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई अवश्य करते रहना चहिए|
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सघाई और कटाई- छटाई
खुबानी के पेड़ों की ट्रेनिंग प्रायः आडू की तरह खुले केन्द्रीय विधि द्वारा की जाती है| यदि किस्म अधिक ओजस्वी हो तो इसकी सघाई रूपान्तरित अग्रप्ररोह विधि मे करें| खुबानी में अधिकांश फूल-फल स्पर पर आते है| कुछ फूल एक साल पुराने प्ररोहों पर भी लगते है| एक स्पर पर लगभग तीन से चार साल तक फूल आते है|
इसके बाद फलत के दृष्टिकोण से स्पर बेकार हो जाते है, अतः पेड की ऐसी काट-छाट करें, की हर साल कुछ न कुछ वृद्धि होती रहे, जिससे नये स्पर बन सकें| तीन साल से अधिक उम्र के स्पर को निकाल देना चाहिए| एक साल पुनानी शाखा को 1/2 भाग काट देना चाहिए| खुबानी मे सेब और नाशपाती से अधिक आडू से कम काट-छाट करनी चाहिए|
कीट और रोग रोकथाम
खुबानी की बागवानी में आड़ू की खेती वाले ही अनेक कीट व रोग लगते या प्रभावित करते है, इनकी रोकथाम के लिए किसान भाई और बागवान यहां पढ़ें- आड़ू की खेती कैसे करें
तुड़ाई और पैदावार
फल तुड़ाई- बाग लगाने के पांच साल बाद इसके पेड़ से फलत लेना प्रांरभ करते है और लगभग 35 से 40 साल तक फल देते रहते है| फलों को पूरा पकने से कुछ पहले तोड़ लिया जाता हैं| इन्हें अच्छी पैकिंग कर पास या दूर के बाजार में भेज दिया जाता है|
पैदावार- परिस्थितियाँ खुबानी की खेती के अनुसार होने पर एक विकसित पेड से लगभग 40 से 70 किलोग्राम फल प्राप्त होते हैं|
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