भारत की नकदी फसलों में गन्ना की फसल का एक प्रमुख स्थान है| जिसकी खेती अर्ध उष्णकटिबंधीय और कटिबंधीय क्षेत्रों में लगभग 5 मिलियन हैक्टर से भी अधिक क्षेत्रफल में की जाती है| अर्ध उष्णकटिबंधीय क्षेत्र का गन्ने की खेती में 55 प्रतिशत से भी अधिक क्षेत्रफल का योगदान है, हालांकि, उष्णकटिबंधीय भारत के साथ तुलना करने पर इस क्षेत्र में गन्ना उपज और शर्करा की वसूली (प्रतिशत) कम है|
इसके लिए किसान बन्धु कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों को ध्यान में रखकर इसकी खेती करें, जैसे- उपयुक्त भूमि, खेती की तैयारी, पोषण प्रबंधन, पौध संरक्षण और सबसे महत्वपूर्ण अपने क्षेत्र की प्रचलित एवं उन्नत किस्म का चयन, जिससे किसान भाई उत्तम पैदावार और गुणवता गन्ने की फसल से प्राप्त कर सकते है| इस लेख में गन्ना की उत्तर-पश्चिम भारत की उन्नत किस्में तथा उनकी विशेषताओं और पैदावार का उल्लेख है| गन्ना की उन्नत खेती की जानकारी यहाँ पढ़ें- गन्ना की खेती- किस्में, प्रबंधन व पैदावार
गन्ने की उत्तर पश्चिम क्षेत्र की किस्में विशेषताएं और पैदावार
को- 89003-
1. यह गन्ना की ज्यादा चीनी वाली और ज्यादा पैदावार देने वाली अगेती किस्म है, जिसे को- 7314 x को- 775 क्रास से चुन कर निकाला गया है|
2. इसकी ज्यादा चीनी और ज्यादा पैदावार के कारण, सन 1997 में पंजाब तथा सन् 2001 में हरियाणा राज्यों में इसकी सिफारिश की गई|
3. इसके गन्ने हरापन लिए हुए पीले रंग के और मध्यम मोटाई वाले हैं, पत्राधार या पत्र कंचुक का विखंडन आम हैं, कुडमल (आंख) प्रसीता गहरी है, जो कि तीन-चौथाई से लेकर पूरी पर्व (पोरी) की लम्बाई तक होती हैं| इसमें पत्राधार पर कांटे, पोरी का फटना एवं मज्जा (पिथ) नहीं पाये जाते|
4. को. 89003 में रेशे की मात्रा करीब 11प्रतिशत हैं, इसका गुड़ सुनहरे पीले रंग का ‘ए- 1‘श्रेणी का है|
5. इसका गन्ना नर्म है, जोकि चूसने के योग्य है|
6. कोजा- 64 की तुलना में को- 89003 के गन्ने में क्रमशः 31 प्रतिशत और 42 प्रतिशत ज्यादा पैदावार शरदकालीन एवं बसंत कालीन बिजाई में मिली है| कोजा- 64 से शर्करा की तुलना में को- 89003 के गन्ने में शरदकालीन व बसंतकालीन बिजाई में क्रमशः 5.56 प्रतिशत व 3.56 प्रतिशत सुधार पाया गया|
7. इसकी पेडी अच्छी होती है|
8. यह लाल सड़न रोग के लिए प्रतिरोधी किस्म है, परन्तु भूमि के नीचे के भाग में यदि दीमक या जड़ बेधक का प्रकोप होता है, तो इसमें सूखा रोग लगता हैं| इसकी रोकथाम के लिए क्लोरपायरीफोस 2 लीटर प्रति एकड़ की दर से 350 से 400 लीटर पानी में बिजाई के समय और अगस्त माह में प्रयोग करना चाहिए|
9. इस किस्म की औसत पैदावार शरदकालीन 90 से 100 और बसंतकालीन 69 से 80 टन प्रति हेक्टेयर होती है|
10. इस किस्म की औसत चीनी की पैदावार शरदकालीन 10 से 12 और बसंतकालीन 9 से 11 टन प्रति हेक्टेयर होती है|
11. इस किस्म में शरदकालीन शर्करा की मात्रा 16 से 17 और बसंतकालीन में 19 से 20 प्रतिशत पाई जाती है|
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को- 98014 (करण- 1)-
1. यह गन्ना की अगेती किस्म है, जिसे को- 8316 x को- 8213 क्रास की पौध से चुना गया है|
2. किस्म जारी करने की केन्द्रीय समिति द्वारा इसे 2007 में उत्तर पश्चिमी जोन (हरियाणा, पंजाब, उत्तराखण्ड, राजस्थान और पश्चिमी तथा केन्द्रीय उत्तर प्रदेश) में उत्पादन हेतु स्वीकृति प्रदान की गई|
3. इसके गन्ने लम्बे, मध्यम पतले, हरापन लिए हुए पीले रंग के हैं| इसकी पोरीयां गोल और इसका अलिंद कर्ण (कान) भाले के आकार का लम्बा होता है| इसमें पत्राधार पर कांटे, पोरी का फटना और मज्जा (पिथ) नहीं पाये जाते|
4. मई से जून के महीने में इसकी पत्तियां सुख जाती है, जिसके कारण किसानों को परेशान नहीं होना चाहिए|
5. इसमें रेशे की मात्रा लगभग 14% हैं और इसका गुड़ भूरे रंग का ‘बी’ श्रेणी का है|
6. यह लाल सड़न रोग से प्रतिरोधी किस्म है, इसका छिलका सख्त होने के कारण इस पर कीटों और जंगली जानवरों का प्रकोप कम पाया गया है|
7. यह गन्ना की किस्म कम उपजाऊ भूमि, जल भराव की स्थितियों में भी अच्छी पैदावार देती हैं, सर्दी में काटने पर भी इसकी पेडी की फसल ज्यादा पैदावार देती है|
8. कोजा- 64 की तुलना में को- 98014 ने 22 प्रतिशत ज्यादा गन्ना की पैदावार तथा 8 प्रतिशत ज्यादा चीनी की पैदावार दी है|
9. इस किस्म की औसत पैदावार 76 से 85 टन प्रति हेक्टेयर होती है|
10. इस किस्म की औसत चीनी की पैदावार 9 से 11 टन प्रति हेक्टेयर होती है|
11. इस किस्म में शर्करा की मात्रा 17 से 18 प्रतिशत पाई जाती है|
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को- 0118 (करण- 2)-
1. यह गन्ना की ज्यादा चीनी वाली अगेती किस्म है, जिसे को- 8347 x को- 86011 क्रास की पौध से चुन कर तैयार किया गया है|
2. किस्म जारी करने की केन्द्रीय समिति द्वारा इसे 2009 में उत्तर पश्चिमी जोन (हरियाणा, पंजाब, उत्तराखण्ड, राजस्थान और पश्चिमी तथा केन्द्रीय उत्तर प्रदेश) में उत्पादन हेतु स्वीकृति प्रदान की गई है|
3. इसके गन्ने लम्बे, मध्यम मोटाई के धूसर बैंगनी रंग के हैं| इसकी पोरियां बेलनाकार से प्रतिशंकुभाकार की हैं| सूखने पर इसकी पत्तियां अपने आप गिर जाती है| इसकी आंख गोल अण्डाकार आकार की हैं| पत्राधार के दानों तरफ भाले के आकार के लम्बे अलिंद कर्ण (कान) पाये जाते हैं| पत्राधार पर हल्के स्वयं झडने वाले कांटे होते हैं| गन्ने की पोरियां फटती नहीं है और मज्जा (पिथ) नहीं होता है|
4. इसमें रेशे की मात्रा लगभग 12.78 प्रतिशत है, इसका गुड़ हल्के पीले रंग का ‘ए’ श्रेणी का बनता है|
5. यह गन्ना की किस्म लाल सड़न रोग की प्रतिरोधी है और कोजा- 64 की जगह उपयुक्त किस्म है|
6. कोजा- 64 की तुलना में इसमें गन्ने व चीनी की पैदावार में 15 प्रतिशत सुधार और शर्करा की मात्रा में 3.1 प्रतिशत का सुधार दर्ज किया गया|
7. अखिल भरतीय गन्ना अनुसंधान समन्वयक परियोजना में को- 0118 उत्तरी पश्चिमी जोन में गन्ने व चीनी की पैदावार और शर्करा की मात्रा के लिए तीसरे स्थान पर थी|
8. जल भराव और पानी की कमी की परिस्थिति में भी प्रचलित मानकों की तुलना में को- 0118 बेहतरपाई गई।
9. कोशा- 8436 की तुलना में इसकी नत्रजन की आकांक्षा कम है, सर्दी में काटने पर भी को- 0118 अच्छी पैदावार देती है|
10. इस किस्म की औसत पैदावार 77 से 85 टन प्रति हेक्टेयर होती है|
11. इस किस्म की औसत चीनी की पैदावार 9 से 10 टन प्रति हेक्टेयर होती है|
12. इस किस्म में शर्करा की मात्रा 18 से 19 प्रतिशत पाई जाती है|
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को- 0238 (करण- 4)-
1. गन्ना की यह किस्म ज्यादा पैदावार और ज्यादा चीनी वाली अगेती किस्म है जिसे कोलख- 8102 x को- 775 क्रास की पौध से चुना गया है|
2. किस्म जारी करने की केन्द्रीय समिति द्वारा इसे 2009 में उत्तर पश्चिमी जोन (हरियाणा, पंजाब, उत्तराखण्ड, राजस्थान और पश्चिमी तथा केन्द्रीय उत्तर प्रदेश) में उत्पादन हेतु स्वीकृति प्रदान की गई|
3. इस किस्म के गन्ने लम्बे, मध्यम मोटाई के धूसर भूरे रंग के हैं| इसकी पोरियां गोल, पत्राधार सूखने पर अपने आप गिर जाता है| कुडमल प्रसीता कम गहरा है| इसके पत्राधार पर कांटे, पोरी का फटना और मज्जा (पिथ) नहीं पाये जाते, परन्तु कम पानी की स्थिति में गूदे वाली मज्जा (पिथ) पाई जाती हैं|
4. मई से जून के महीने में इसकी पत्तियां सूख जाती है, जिसके कारण किसानों को परेशान नहीं होना चाहिए|
5. इसमें रेशे की मात्रा लगभग 13.05 प्रतिशत हैं और इसका गुड़ भूरे रंग का ‘ए 1‘ श्रेणी का है|
6. यह गन्ना की किस्म लाल सड़न रोग की प्रतिरोधी है और कोजा- 64 की जगह उपयुक्त किस्म है|
7. कोशा- 8436 की तुलना में कम नत्रजन डालनी चाहिए, सर्दी में काटने पर भी इसकी पेडी की फसल ज्यादा पैदावार देती है|
8. अखिल भरतीय गन्ना अनुसंधान समन्वयक परियोजना में को- 0238 उत्तरी पश्चिमी जोन में गन्ने की पैदावार के लिए पहले, चीनी की पैदावार के लिए दूसरे और शर्करा की मात्रा के लिए पांचवें स्थान पर थी|
9. कोजा- 64 की तुलना में को- 0238 ने 20 प्रतिशत ज्यादा पैदावार और 16 प्रतिशत ज्यादा चीनी की पैदावार एवं 0.50 प्रतिशत ज्यादा शर्करा की मात्रा दी है|
10. प्रचलित मानकों की तुलना में को- 0238 सूखे, जलभराव और लवणीय भूमि में बेहतर पाई गई है|
11. इस किस्म की औसत पैदावार 80 से 90 टन प्रति हेक्टेयर होती है|
12. इस किस्म की औसत चीनी की पैदावार 9 से 10 टन प्रति हेक्टेयर होती है|
13. इस किस्म में शर्करा की मात्रा 17.5 से 18.5 प्रतिशत पाई जाती है|
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को- 0124 (करण- 5)-
1. यह गन्ना की मध्यम देर से पकने वाली किस्म है, जिसे को- 89003 के आम क्रास की पौध से चुना गया है|
2. किस्म जारी करने की केन्द्रीय समिति द्वारा इसे 2010 में उत्तर पश्चिमी जोन (हरियाणा, पंजाब, उत्तराखण्ड, राजस्थान और पश्चिमी तथा केन्द्रीय उत्तर प्रदेश) में उत्पादन हेतु स्वीकृति प्रदान की गई|
3. इस गन्ना की किस्म के मध्यम मोटाई के पीले रंग के गन्ने, गोल पोरियां, समचतुर्भुजाकार कुडमल (आंख), भाले के आकार का लम्बा अलिंद कर्ण (कान) और कुडमल प्रसीता कम गहरा हैं| पत्राधार गन्ने के साथ चिपका रहता है, इसके पत्राधार पर कांटे, पोरी का फटना और मज्जा (पिथ) नहीं पाये जाते है|
4. इसमें रेशे की मात्रा लगभग 12.65 प्रतिशत हैं और इसका गुड़ भूरे रंग का ‘ए- 2′ श्रेणी का है|
5. यह गन्ना की किस्म लाल सड़न रोग से प्रतिरोधी है|
6. अखिल भरतीय गन्ना अनुसंधान समन्वयक परियोजना में को- 0124 उत्तर पश्चिमी जोन में गन्ने की पैदावार के लिए तीसरे, चीनी की पैदावार और शर्करा की मात्रा के लिए दूसरे स्थान पर थी|
7. कोशा- 767 की तुलना में को- 0124 ने 8 प्रतिशत ज्यादा गन्ना पैदावार, 13 प्रतिशत ज्यादा चीनी की पैदावार और 3.50 प्रतिशत ज्यादा शर्करा की मात्रा दी है|
8. इस किस्म की औसत पैदावार 73 से 80 टन प्रति हेक्टेयर होती है|
9. इस किस्म की औसत चीनी की पैदावार 9 से 10 टन प्रति हेक्टेयर होती है|
10. इस किस्म में शर्करा की मात्रा 18 से 19 प्रतिशत पाई जाती है|
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को- 0239 (करण- 6)-
1. यह गन्ना की किस्म ज्यादा चीनी वाली अगेती किस्म है, जिसे को- 93016 आम क्लास की पौध से चुन कर निकाला गया है|
2. किस्म जारी करने की केन्द्रीय समिति द्वारा इसे 2010 में उत्तर पश्चिमी जोन (हरियाणा, पंजाब, उत्तराखण्ड, राजस्थान और पश्चिमी तथा केन्द्रीय उत्तर प्रदेश) में उत्पादन हेतु स्वीकृति प्रदान की गई|
3. इसके गन्ने लम्बे, मध्यम मोटाई के, हरापन लिए बैंगनी रंग के हैं| इसकी पोरियां प्रतिशंकुभाकार की हैं, सूखने पर इसकी पत्तियां अपने आप गिर जाती है| इसकी आंख गोल अण्डाकार से समचतुर्भुजाकार हैं| पत्राधार के दानों तरफ भाले के आकार के अलिंद कर्ण (कान) पाये जाते हैं| पत्राधार पर हल्के स्वयं झड़ने वाले कांटे होते हैं, गन्ने की पोरियां फटती नही हैं, मज्जा (पिथ) और बड कुशन नहीं होता है|
4. इसमें रेशे की मात्रा लगभग 12.79 प्रतिशत हैं, इसका गुड़ हल्के पीले रंग का ‘ए- 1‘ श्रेणी का बनता है|
5. यह गन्ना की किस्म लाल सड़न रोग से प्रतिरोधी है और कोजा- 64 की जगह उपयुक्त किस्म है|
6. कोजा- 64 की तुलना में इसमें गन्ने की पैदावार में 17 प्रतिशत सुधार, चीनी की पैदावार में 21 प्रतिशत सुधार तथा शर्करा की मात्रा में 3.8 प्रतिशत का सुधार दर्ज किया गया|
7. अखिल भरतीय गन्ना अनुसंधान समन्वयक परियोजना में को- 0239 उत्तर पश्चिमी जोन में गन्ने की पैदावार और शर्करा की मात्रा में दूसरे तथा चीनी की पैदावार में पहले स्थान पर रही है|
8. इस किस्म की औसत पैदावार 77 से 80 टन प्रति हेक्टेयर होती है|
9. इस किस्म की औसत चीनी की पैदावार 9 से 10 टन प्रति हेक्टेयर होती है|
10. इस किस्म में शर्करा की मात्रा 18 से 19 प्रतिशत पाई जाती है|
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को- 0237 (करण- 8)-
1. गन्ना की यह किस्म ज्यादा चीनी वाली अगेती किस्म है, जिसे को- 93016 आम क्लास की पौध से चुन कर निकाला गया है|
2. किस्म पहचान करने की अखिल भारतीय गन्ना अनुसंधान समनवयक परियोजना समिति द्वारा इसे 2010 में उत्तर पश्चिमी जोन (हरियाणा, पंजाब, उत्तराखण्ड, राजस्थान और पश्चिमी तथा केन्द्रीय उत्तर प्रदेश) में उत्पादन हेतु स्वीकृति प्रदान करने के लिए पहचान कर दी गई|
3. इसके गन्ने लम्बे, मध्यम मोटाई के पीले रंग के हैं, इसकी पोरीयां बेलनाकार की हैं| इसकी आंख गोल अण्डाकार हैं, पत्राधार के एक तरफ भाले के आकार का छोटा अलिंद कर्ण (कान), बड कुशन, तथा गहरा कुडमल प्रसीता पाये जाते हैं| पत्राधार पर कांटे नही हैं और गन्ने की पोरियां फटती नही हैं|
4. इसमें रेशे की मात्रा लगभग 12.98 प्रतिशत हैं, इसका गुड़ हल्के पीले रंग का ‘ए- 1‘ श्रेणी का बनता है|
5. यह गन्ना की किस्म लाल सड़न रोग के लिए प्रतिरोधी है तथा कोजा- 64 की जगह उपयुक्त किस्म है|
6. कोजा- 64 की तुलना में इसमें गन्ने की पैदावार में 5.53 प्रतिशत सुधार, चीनी की पैदावार में 8.73 प्रतिशत सुधार और शर्करा की मात्रा में 4.92 प्रतिशत का सुधार दर्ज किया गया|
7. अखिल भरतीय गन्ना अनुसंधान समन्वयक परियोजना में को- 0237 उत्तरी पश्चिमी जोन में शर्करा की मात्रा में पहले, चीनी की पैदावार में चौथे और गन्ने की पैदावार में पांचवें स्थान पर रही|
9. इस किस्म की औसत पैदावार 79 से 80 टन प्रति हेक्टेयर होती है|
10. इस किस्म की औसत चीनी की पैदावार 9 से 10 टन प्रति हेक्टेयर होती है|
11. इस किस्म में शर्करा की मात्रा 18 से 19 प्रतिशत पाई जाती है|
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