गन्ना फसल में खरपतवार प्रबन्धन आवश्यक है, क्योंकि पंक्ति में बोई गई अन्य कम अवधी की फसलों की अपेक्षा गन्ने में खरपतवार प्रतिस्पर्धा बहुत ज्यादा होती है| गन्ने को चौड़ी कतारें में बोया जाता है और शुरूआती वृद्धि बहुत धीमी गती से होती है| गन्ने में 200 से ज्यादा खरपतवार पाये जाते है, जिसमें 30 खरपतवार आर्थिक रूप से गन्ना फसल को हानी पहुँचाते है|
गन्ना फसल में मौजुद खरपतवार के प्रकार और प्रजाती संरचना में बदलाव देखा गया जो उपलब्ध जलवायु, भूमि प्रकार, फसल प्रणाली का अंगीकरण सस्य क्रिया तथा खरपतावार प्रबंधन पद्धति पर निर्भर करते है| अध्ययनों से ज्ञात हुआ है, कि यदि प्रभावी ढंग से गन्ने की फसल को खरपतवारों से मुक्त नही रखा जाये तो 17 से 36 टन प्रति हैक्टेयर उपज की हानी होती है| गन्ना की उन्नत खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- गन्ना की खेती- किस्में, प्रबंधन व पैदावार
गन्ना फसल में अंकुरण से पहले खरपतवार नियंत्रण
गन्ना की बुआई के पश्चात और अंकुरण से पहले खरपतवारों की अंकुरण अवस्था में रोक लगायी जाती है जिससे उनका मुख्य फसल से स्पर्धा का सवाल नही पैदा होता है | गन्ने को बिना हानी पहुचायें खरपतवारों पर नियंत्रण पाने वाले जडों से अवशोषित वरणात्मक शाकनाशी का प्रयोग, इस विधि में किया जाता हैं| सिमेजिन 1.5 से 2.5 किलोग्राम, सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर या एट्राजिन 2.0 से 2.5 किलोग्राम संक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर या मैट्रीब्युजीन 1.0 से 2.0 किलोग्राम संक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर या अमैट्रीन 2.0 किलोग्राम संक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर या डायूरॉन 1.25 से 2.50 किलोग्राम संक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर या ऑक्सीफर्लोरफेन 0.3 किलोग्राम संक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर या ऑक्सॅडायअजान 0.4 किलोग्राम संक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर या पेन्डीमेथॉलिन, 2.0 किलोग्राम संक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर में से किसी एक को गन्ने में अंकुरण से पूर्व खरपतवार नियंत्रण के लिए उपयुक्त पाया गया|
उपरोक्त सभी शाकनाशीयों में एट्राजीन सबसे अच्छा शाकनाशी है, क्योंकि यह सस्ता और आसानी से मिल जाता है, विस्तृत प्रकार की जलवायू में भी प्रभावी खरतपवार नियंत्रण करता है| एट्रॉजीन का प्रयोग गन्ना बुआई के तीन या चार दिन बाद खेत में विक्षेपक फ्लॅट फॅन नोजल लगाकर करते है| एट्राजीन की 1.5 से 2.0 किलोग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर मात्रा संस्तुतित की जो भूमि के प्रकार पर निर्भर है| शाकनाशी का प्रभावी प्रयोग और अच्छा खरपतवार नियंत्रण प्राप्त करने के लिए शाकनाशी छिडकाव के बाद सिंचाई करें|
गन्ने की खड़ी फसल हो यो पेड़ी (रेटून) फसल एट्राजीन का छिड़काव उगती एवं अँकुरीत खरपतवारों का नाश करती है| अधिक बढे आयु के खरपतवार, वानस्पतिक अवशेषों से उत्पादित खरपतवार, वानस्पतिक अवशेषों से उत्पादित खरपतवार जैसे- दुब घास और मोथा पर उसके छिडकाव का कुछ असर नही दिखता है| एट्राजीन चौडी पत्ती और घासकुल के अंकुरित छोटे खरपतवारों का अच्छा नियंत्रण करती है|
अगर गन्ने के साथ सब्जी, दलहन या तिलहनी अन्तःफसलें है, तो एट्राजीन का छिडकाव ना करे| गन्ने में अन्तःफसल हो तो मैट्रीब्युजीन, 0.5 किलोग्राम संक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर या ऑक्सीफॉरफेन, 0.3 किलोग्राम संक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर या पेन्डीमेथॉलिन, 2.0 किलोग्राम संक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर या ऑक्सॅडायअजान, 0.4 किलोग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर शाकनाशीयों को अंकुरण से पहले नियंत्रण विधि द्वारा प्रयोग करते है|
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खड़ी गन्ना फसल में खरपतवार प्रबंधन
खड़ी गन्ना फसल में खरपतवारों को हाथ से या हैन्ड के द्वारा उखाडा जाता है| बैल ट्रैक्टर चलित अंतः सस्यकर्षण औजार जो खड़ी फसल में की जाने वाली मिटटी कर्षण क्रियाएँ जैसे- निराई, गुडाई, जुताई आदि के काम आने है, उनका प्रयोग करना या फिर खड़ी गन्ना फसल में प्रयोग आने वाले शाकनाशी का छिडकाव करके हम खरपतवारों की रोकथाम कर सकते है|
प्रबंधन-
खड़ी गन्ना फसल खरपतवार प्रबंधन विधि में बुआई के 30, 60 तथा 90 दिन बाद निराई और गुडाई कराना एक बहुत ही प्रभावशाली खरपतवार नियंत्रण प्रणाली हैं| गन्ना फसल अन्तः सस्यकर्षण औजारों का प्रयोग एक सस्ता प्रयोग है, किन्तु खरपतवार नियंत्रण कार्यक्षमता को देखा जाएँ तो ज्यादा प्रभावी नही क्योंकि गन्ना फसल पंक्ति में मौजुद खरपतवार निकालना कठिन कार्य है| कई बार समय पर अन्तःसस्य कर्षण क्रियाएँ नही हो पाती उस समय खड़ी गन्ना फसल में शाकनाशी का छिड़काव करके खरपतवारों को निंयत्रण में लाया जा सकता है|
इस विधि में खरपतवार निंयत्रण के लिये पर्णीय अवशोषिक शाकनाशीयों का प्रयोग करते है जैसे- की 2,4- डी जो आमतौर से खड़ी फसल शाकनाशी के क्रम में गन्ना में खरपतवार प्रबंधन संस्तुतित है| 2,4- डी शाकनाशी की मात्रा खरपतवार गहनता पर निर्भर करती है| जो 1.0 से 2.5 किलोग्राम संक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की मात्रा चौडी पती के खरपतवार के नियंत्रण में इस्तेमाल होती है| कुछ अवरणात्मक शाकनाशी जैसे- पैराक्वाट और ग्लायफोसेट जो अपने सम्पर्क में आने वाले सभी शाकीय पौधों का नाश कर देते है, उनका संचलित छिडकाव जो केवल खरपतवार पर करते है|
उन्हें गन्ना पंक्तियों बीज मौजुदा घास कुल खरपतवार प्रबंधन हेतु इस्तेमाल करे| अवरणात्मक शाकनाशीयों की श्रेणी में पैराक्वाट संस्पर्शी शाकनाशी है जो पादप ऊतक के संपर्क में आकर पौधों को हानी पहुँचाते है, किन्तु ग्लायफोसेट एक पर्णीय अवशोषित शाकनाशी है, जो खरपतवारों की जड़ों तक स्थानांतरित होकर बहुवर्षिय खरपतवार जैसे हरियाली (दूब) घास और मौथा (साइप्रस) को नियंत्रित करती है|
पेराक्वाट और ग्लायफोसेट का छिड़काव करते वक्त विशेष सावधानी रखें, गन्ना फसल पर शाकनाशी घोल को गिरने न दें, अन्यथा गन्ना फसल को हानी होगी| इस शाकनाशी का प्रयोग केवल खरपतवारों पर ही किया जाना चाहिए तथा स्प्रे पम्प नोजल को ढकना और (हूड) लगाकर केवल कतारों के बीच की घास पर छिडकाव करें|
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गन्ना फसल में बेलवर्गीय खरपतवारों का प्रबंधन
धान के खेतों में गन्ना लगाने पर बेलवर्गीय खरपतवारों की समस्या बढ़ती जा रही है| यह खरपतवार लताएँ गन्ना फसल के तनों पर लिपट जाने से गन्ने के सिरे झुक जाते है तथा उसे हानी पहुँचाते है और वृद्धि में बाधा निर्माण करके गन्ने की 25 प्रतिशत पैदावार को कम करते है| विशेष रूप से गन्ना कटाई में बाधा निर्माण करते है|
इन बेलवर्गीय खरपतवारों में कॉनवोल्यूलस, आइपोमिया, कोक्सिनिया, पेस्सीफ्लोरा और कारडियोस्परम आदि का अंतरभाव होता है| बेलवर्गीय खरपतवार गन्ने को मिट्टी चढाने के पश्चात् उगते है और उसका मशीनीकृत तथा शाकनाशी के छिडकाव के द्वारा प्रबंधन करना कठिन है|
एक अध्ययन के अनुसार मेट्रीब्यूजन 1.25 किलो ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर + डाइकेमबा 350 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर दोनों शाकनाशी को गन्ना फसल बुआई के 70 दिन पश्चात् छिडकाव से आयपोमिया स्पीसीज के साथ-साथ घास कुल के और गैर घास कुल के खरपतवारों का प्रबंधन अच्छा हुआ है|
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गन्ना फसल में हरियाली घास और मोथा प्रबंधन
हरियाली घास और मोथा जैसे बहुवर्षीय खरपतवारों का भूमिगत वानस्पतिक अवशेषों से प्रजनन होता है| इसलिए इन अवशेषों की खुदाई करके उसे इकट्ठा करके नाश करना एक महत्वपूर्ण प्रबंधन रणनीति है| इन बहुवर्षीय खरपतवारों को खेतों में पानी भरके कीचड करके भी राहत मिलती है| गन्ना बुआई के पहले खेतों में जहां-जहां दूब घांस और मोथा दिखाई देता है, उस जगह पर ग्लाइफोसेट शाकनाशी का छिडकाव करने के तत्पश्चात् एट्राजीन का प्रयोग गन्ना बुआई के तीन या चार दिन बाद करें| खड़ी गन्ना फसल की खरपतवारनाशी जैसे इथॉक्सिल्फयूरॉन या निर्देशित छिडकाव के लिए नोजल को ढक्कन लगाकर पैराक्वॉट का प्रयोग भी असरदार होता है|
गन्ना फसल अंकुरण से पूर्व हेतु शाकनाशी एट्राजीन 1.75 किलो ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की मात्रा पर्याप्त है| खड़ी गन्ना फसल हेतु शाकनाशी इथॉक्सिल्फयूरॉन की 80 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर मात्रा लेकर गन्ना बुआई के 15 और 30 दिन बाद छिडकाव करें| इथॉक्सिल्फयूरॉन छिडकाव से मोथा घास का प्रभावी नियंत्रण होता है एवं उसका अंकुरण बहुत धीमा होता है| परन्तु इथॉक्सिल्फयूरॉन का दूब घास पर कोई प्रभाव नहीं दिखाई देता है|
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गन्ना फसल में परजीवी स्ट्राइगा खरपतवार का प्रबंधन
स्ट्राइगा परजीवी की समस्या गन्ने में बड़ी ही गंभीर है, जो अन्य खरपतवारों से अलग है, क्योंकि स्ट्राइगा गन्ने की जडों से पोषक तत्वों और जल तथा कार्बोहाइड्रेट का अपनी वृद्धि के लिए इस्तेमाल करता है| इस कारणवश गन्ने के विकास और वृद्धि में बाधा आती है तथा गन्ना छोटा रह जाता है| वैसे तो यह घास आमतौर पर शुष्क, कम उर्वरा शक्ति वाली सीमान्त भूमि जो अर्धशुष्क उष्णकटिबंधीय चारागाह तथा सवानास जगह में पाया जाता है| भूमि की कमी को देखते ही गन्ने का विस्तार सीमान्त और निकृष्ठ भूमि जहाँ मिटटी नमी की कमी रही है, वहाँ करने से स्ट्राइगा परजीवी की समस्या सामने आयी है|
हालही में कुछ छिट-पुट क्षेत्रों में स्ट्राइगा परजीवी की समस्या गंभीर होती नजर आयी है, जिसका निवारण करना जरूरी है| स्ट्राइगा प्रबंधन हेतु बहुविकल्पी प्रबन्धन प्रणाली को अपनाना होगा| सर्वप्रथम मिटटी नमी और पोषक तत्वों की कमी को दूर करना होगा| इसके बाद स्ट्राइगा परजीवी के उगने के पश्चात एवं पुष्पण के पूर्व 2,4- डी सोडियम लवण शाकनाशी 1.0 किलोग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर छिडकाव करें, अगर स्ट्राइगा का प्रभाव फिर भी कम नहीं हुआ तो 15 दिन के अंतराल से 24- डी शाकनाशी के 2 से 3 छिडकाव करना जरूरी है|
पेंन्डीमेथेलीन 2.0 किलो ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर जिसका सीधे ही भूमि में छिडकाव गन्ने में दुसरी सिंचाई पूर्व तथा अंतिम बार जब गन्ना फसल को मिट्टी चढाते है, उसके बाद प्रयोग करें| छिडकाव गन्ने के तनों के निचले हिस्से पर जहाँ स्ट्राइगा उगने से पहले ही उसका नाश हो सके| इसके बाद स्ट्राइगा को 2,4- डी जैसे खरपतवार नाशी का छिडकाव करके नियंत्रण में लाया जा सकता है| स्ट्राइगा प्रबंधन हेतु गन्ना बुआई के तीन दिन बाद एट्राजीन 1.0 किलो ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर अंकुरण पूर्व विधि से छिडकाव करें|
इसके बाद 45 दिन बाद गन्ने में निराई-गुडाई करें| गन्ना बुआई के 60 दिन पश्चात गन्ने पर मिट्टी चढाने चाहिए| 24- डी (सोडियम लवण) शाकनाशी का निर्गमनोत्तर 5 ग्राम प्रति लीटर, 0.5 प्रतिशत पानी में घोल बनाकर गन्ना फसल की बुआई के 90 दिन बाद छिडकाव करें| छिडकाव घोल में प्रति लीटर पानी में 20 ग्राम युरिया अवश्य मिलायें| इस प्रबंधन विधि से 99.3 प्रतिशत स्ट्राइगा परजीवी की रोकथाम पायी गयी है| इसके अलावा कुछ प्रबंधन तरीके जो स्ट्राइगा परजीवी व्यवस्थापन के लिए जरूरी है, उसे भी अपनाये, जैसे-
1. ज्वार व मक्का जैसी फसलें जो पशुओं का चारा है, उसे लगायें तथा 45 दिन बाद कटाई कर लें|
2. कपास की ट्रेप फसल लगायें|
3. भूमि में गोबर खाद का इस्तेमाल करें जो मिटटी उर्वरा व नमी को बनाये रखता है|
4. नत्रजन की अधिक मात्रा दें तथा उसका उपयोग किश्तों में करें|
5. सिंचन तल की सिंचाई नियमित रूप से करें|
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गन्ने की फसल में समेकित खरपतवार प्रबंधन
गन्ने में समेकित खरपतवार प्रबन्धन में उन सभी नियंत्रण पद्धतियां जिसमें शाकनाशी के साथ-साथ अपनायी जाने वाली विधियों का अंर्तभाव है, जिससे गन्ना खरपतवार प्रबंधन व्यवसायिक रूप से फायदेमंद हो| समेकित खरपतवार प्रबंधन विधि में अजोत भूमि में खरपतवार पर रोक लगाना, भूमि की जुताई और खेत की तैयारी, गन्ना फसल अंकुरण से पहले एट्राजीन शाकनाशी का छिड़काव, गन्ने का अच्छा जमाव और रिक्त स्थानों पर गन्ने का रोपण, पताई प्रबंधन, पोषक तत्वों के प्रयोग पूर्व अच्छी निराई-गुडाई करना|
चौड़ी पत्ती के खरपतवारों के प्रबंधन हेतु 2,4- डी शाकनाशी का खड़ी गन्ना फसल में छिडकाव तथा बहुवर्षीय खरपतवार जैसे दूब घास और मोथा के लिए जरूरत पड़ने पर गन्ने की कतारों के बीच खाली भूमी जहाँ बहुवर्षीय खरपतवार उगते है वहाँ अवरणात्मक शाकनाशी जैसे ग्लायफोसेट और पेराक्वाट का छिडकाव करें| समेकित खरपतवार प्रबन्धन विधि से गन्ने में खरपतवार स्पर्धा कम होगी तथा गन्ने की पैदावार के साथ साथ कुल उत्पादन बढेगा|
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