गेहूं में एकीकृत उर्वरक प्रयोग, भारत वर्ष में धान के बाद गेहूं प्रमुख धान्य फसल है| आमतौर पर धान कटाई के उपरांत गेहूं का उत्पादन उसी खेत में लिया जाता है| भारत में गेहूं की उत्पादकता अंतराष्ट्रीय औसत उत्पादकता से कम है| इसका प्रमुख कारण गेहूं में एकीकृत या उर्वरकों का समुचित उपयोग न कर पाना है| पौधों के विकास और वृद्धि में 17 तत्वों की आवश्यकता होती है, इनमें से मुख्य कार्बन, हाइड्रोजन, आक्सीजन, नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटाश है|
प्रथम तीन प्रकृति प्रदत्त तत्व होते हैं, जिसे पौधे वायुमंडल से प्राप्त कर लेते हैं| नत्रजन, फास्फोरस और पोटाश अधिक मात्रा में चाहिए होता है, जिसे खाद और उर्वरक के रुप में प्रदाय किया जाता है| भारत में आमतौर पर जलोढ़, लाल, काली, रेतीली एवं अनेक प्रकार की मिट्टी पायी जाती है|
इन मिट्टियों में सिंचित अवस्था पर गेहूं की खेती प्रमुखता से की जाती हैं| इन मिट्टियों में नत्रजन, स्फुर की उपलब्धता पोटाश की तुलना में अधिक होती है| कैलशियम, मैग्नीशियम एवं सल्फर की आवश्यकता कम होती है, इसे गौण पोषक तत्व के रुप में जाना जाता है|
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इसके अलावा गेहूं में एकीकृत उर्वरक के तहत लोहा, तांबा, जस्ता, मैंगनीज, बोरॉन, मालिब्डेनम, क्लोरिन और निकल की पौधों को अल्प मात्रा में आवश्यकता होती है, इन्हें सूक्ष्म पोषक तत्व के नाम से जाना जाता है|
इसका समुचित उपयोग कर गेहूं में एकीकृत उर्वरक प्रयोग के तहत अच्छी उत्पादकता ली जा सकती है| अच्छे उत्पादन के लिए गेहूं में एकीकृत या उर्वरक की मात्रा का सही निर्धारण मिट्टी परीक्षण के उपरांत की जानी चाहिए| गेहूं की उन्नत खेती वैज्ञानिक तकनीक से कैसे करें की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- गेहूं की खेती की जानकारी
गेहूं में एकीकृत उर्वरक प्रबंधन
गेहूं में एकीकृत उर्वरक प्रयोग फसल में रासायनिक उर्वरकों के अधिकाधिक मात्रा में प्रयोग होने से इसका दुष्परिणाम मृदा की स्वास्थ्य पर विपरीत पड़ती है| मिट्टी को स्वस्थ बनाये रखकर अच्छी उत्पादकता के साथ फसल लेने के लिए कार्बनिक खादों के साथ संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग एकीकृत उर्वरक प्रबंधन के अंतर्गत आता है|
कार्बनिक खाद का उपयोग- रासायनिक खादों का उपयोग कर सघन खेती करने से मृदा स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है| इसलिए मृदा स्वास्थ और स्थाई खेती को बरकरार रखते हुए अच्छी फसलोत्पादन हेतु कार्बनिक खाद का उपयोग अति आवश्यक है| खरीफ धान में गोबर की खाद एवं हरी खाद का प्रयोग कर उसी खेत में गेहूं लगाने से उपज में वृद्धि दर्ज की गई है|
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गेहूं में एकीकृत उर्वरक प्रयोग लंबी अवधि के परिणाम से यह निष्कर्ष निकला कि जब, 10 से 15 टन प्रति हेक्टेयर गोबर खाद का प्रयोग खरीफ धान में किया गया उसके बाद उसी खेत में गेहूं उत्पादन 5 से 27 प्रतिशत तक बढ़ा| इसी तरह असिंचित अवस्था में मूंग या उर्द लगाकर उसकी तुड़ाई के पश्चात उसके वानस्पतिक भागों को खेत में जुताई करके अच्छी तरह मिला देने से गेहूं की उत्पादकता अच्छी प्राप्त हुई और 40 किलोग्राम नत्रजन प्रति हेक्टेयर मिट्टी को इससे प्राप्त हुई|
समन्वित उर्वरक प्रबंधन पर गेहूं में अनुसंधान कार्य किया गया है| इनमें कार्बनिक खादों (बिना खाद, एफ वाई एम. 7.5 टन प्रति हेक्टेयर, केंचुआ खाद 2.5 टन प्रति हेक्टेयर तथा एफ वाई एम+केंचुआ खाद 3.75+1.25 टन प्रति हेक्टेयर) मुख्य खण्ड के रुप में एवं अकार्बनिक उर्वरक (बिना उर्वरक, 50, 75 व 100 प्रतिशत नत्रजन, स्फूर व पोटाश) को उप खण्ड के रुप में किया गया था|
गेहूं में एकीकृत उर्वरक प्रयोग अनुसंधान परिणाम की विवेचना से ज्ञात होता है कि, जब अनुशंसित उर्वरकों की मात्रा को एफ वाई एम. 3.75 टन + केंचुआ खाद 1.25 टन प्रति हेक्टेयर के साथ किया गया तो अधिकतम उपज 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त हुआ|
अकार्बनिक खाद या रासायनिक उर्वरकों का प्रबंधन- अनुशंसित मात्रा को सही समय पर सही विधि द्वारा देने से अच्छी उपज प्राप्त कि जा सकती है| निचे तालिका में नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश की अनुशंसित मात्रा दी गई है| इसके आधार पर लगने वाली उर्वरक की मात्रा भी दर्शायी गई है|
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कभी-कभी किसानों द्वारा तत्व की मात्रा को ही उर्वरक की मात्रा समझ ली जाती है, जिसके उपयोग से पौधे को समुचित उर्वरक की मात्रा नहीं मिल पाती है| इसलिए तत्व की मात्रा के अनुसार उर्वरक का चयन कर उसकी गणना कर लेना आवश्यक होता है|
गेहूं में एकीकृत उर्वरक प्रयोग आमतौर पर विभिन्न परिस्थितियों में पोषक तत्व की मात्रा निम्न प्रकार से है, जैसे-
प्रकार | नत्रजन | स्फुर | पोटाश | यूरिया | एस एस पी | एम ओ पी |
अर्ध सिंचित | 60 | 40 | 20 | 130 | 250 | 33 |
समय पर बुवाई (सिंचित अवस्था) | 120 | 60 | 40 | 260 | 375 | 66 |
देरी से बुवाई (सिंचित अवस्था) | 90 | 60 | 40 | 195 | 375 | 66 |
1. नत्रजन, स्फुर और पोटाश तत्व है, जिनकी उपरोक्त तालिका मात्रा किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है|
2. यूरिया, एस एस पी और एम ओ पी उर्वरक है, जिनकी उपरोक्त तालिका मात्रा किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है|
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नत्रजन प्रबंधन- गेहूं में एकीकृत उर्वरक विधि के तहत आमतौर पर गेहूं की सिंचित खेती और समय से बुवाई में 120 से 150 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर नत्रजन या 260 से 326 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर यूरिया व असिंचित गेहूं में 40 से 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक नत्रजन या 86 से 130 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर युरिया की मात्रा दी जाती है| देर से बुवाई की स्थिति में 90 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर नत्रजन या 195 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर यूरिया की मात्रा देते हैं|
इस मात्रा को गेहूं में एकीकृत उर्वरक प्रयोग के तहत कार्बनिक खाद के मात्रा के आधार पर कम किया जा सकता है| गेहूं के पौधे द्वारा पूरे जीवनकाल में नत्रजन का अवशोषण व उपभोग किया जाता है| उसका अवशोषण फूल आने की अवस्था में अत्यधिक होता है| नत्रजन की मात्रा को उर्वरक के रुप में गणना कर, उक्त उर्वरक की मात्रा को 2 से 3 समान भाग में बांटकर फसल को देना चाहिए|
गेहूं में एकीकृत उर्वरक विधि के तहत सिंचित अवस्था मध्यम व भारी जमीन में नत्रजन की आधी मात्रा बुवाई के समय व शेष बची आधी-मात्रा प्रथम सिंचाई के समय देनी चाहिए| बलुई मृदा में नत्रजन को दो बार बराबर मात्रा में प्रथम सिंचाई व द्वितीय सिंचाई के समय देना चाहिए| असिंचित अवस्था में नत्रजन की पूरी मात्रा बुवाई के समय खेत में देना लाभप्रद होता है, बीच में वर्षा हो जाने पर या एक-दो सिंचाई सुविधा होने पर नत्रजन की एक अतिरिक्त मात्रा खड़ी फसल में दे देने से उपज अच्छी प्राप्त होती है|
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गेहूं पर दो सिंचाई के साथ नत्रजन के तीन स्तर 40, 60 व 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर मात्रा का उपयोग विभिन्न प्रजातियों को लगाकर अनुसंधान कार्य में किया गया है| इस अनुसंधान कार्य की मृदा बलुई दोमट थी, जिसका पी एच सामान्य था| अनुसंधान में 125 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर और कतार से कतार के बीच 23 सेंटीमीटर का अंतर रखा गया था|
गेहूं में एकीकृत उर्वरक प्रयोग के आधार पर अनुसंधान परिणाम के विवेचना से यह स्पष्ट होता हैं कि, जैसे-जैसे नत्रजन का स्तर बढ़ता है, गेहूं की उपज में बढ़ोत्तरी होती है| अधिकतम उपज 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर नत्रजन से 22.75 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त हुआ जो 40, 60 किलोग्राम नत्रजन प्रति हेक्टेयर से क्रमशः 11.29 व 2.37 प्रतिशत अधिक थी, 60 किलोग्राम नत्रजन प्रति हेक्टेयर से मात्र 2.37 प्रतिशत की अधिक उपज 80 किलोग्राम, नत्रजन प्रति हेक्टेयर द्वारा प्राप्त हुआ जो आर्थिक दृष्टि से अनुपयोगी है| अतएव सीमित सिंचित क्षेत्र में 60 किलोग्राम नत्रजन प्रति हेक्टेयर का ही उपयोग करना चाहिए|
कमी के लक्षण- गेहूं की पत्तियों में नत्रजन का क्रांतिक मात्रा 2.5 प्रतिशत होती है| इससे कम मात्रा होने पर कमी के लक्षण दिखने लगते हैं| इसकी कमी से पौधे में प्रोटीन की कमी होना, निचली पत्तियों का पीला पड़ना जिसे क्लोरोसिस कहते हैं, पौधे की बढ़वार रुकना, कल्ले कम आना और फूलों का कम आना परिलक्षित होते हैं| पौधे जल्दी पक जाने से उपज कम होती है|
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फास्फोरस प्रबंधन- गेहूं में एकीकृत उर्वरक विधि के तहत समय पर बुवाई और सिंचित अवस्था में 60 किलोग्राम स्फूर या 375 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट की मात्रा दी जाती है| गेहूं में फास्फोरस का अवशोषण पूरे जीवन काल में होता रहता है| पौधे में इसकी अधिकतम अवशोषण परिपक्वता के दो सप्ताह पूर्व तक पूरी कर ली जाती है|
फॉस्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई के साथ देना उपयुक्त होता है| इसके लिए जल में घुलनशील फॉस्फेट उर्वरक जैसे- डाइअमोनियम फास्फेट या सिंगल सुपर फास्फेट का उपयोग अच्छा होता है| इस उर्वरक का उपयोग बोई गई बीज के नजदीक देना अधिक उपयुक्त होता है|
कमी के लक्षण- पौधों की शुष्क पत्तियों में 0.1 प्रतिशत से कम फास्फोरस की सांद्रता को इसकी कमी मानी जाती है| इसकी कमी से जड़ का विकास और वृद्धि रुक जाती है, पत्तियों का रंग गहरा हरा एवं किनारे लहरदार हो जाता है| कमी से बीज का निर्माण सही नहीं हो पाता है|
पोटाश प्रबंधन- गेहूं में एकीकृत उर्वरक विधि के तहत समय पर बुवाई और सिंचित अवस्था में 40 किलोग्राम पोटाश या 66 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति हेक्टेयर दी जाती हैं| बहुतायत गेहूं उत्पादकों द्वारा पोटाश के उपयोग को नजर अंदाज कर दिया जाता है| पोटाश की कमी से भी उत्पादन में कमी हो जाती है| गेहूं उत्पादन में भी पोटाश का विशेष महत्व होता है| पोटाश की कमी, उपज के साथ-साथ गुणवत्ता को भी प्रभावित करती है|
गेहूं के पौधों द्वारा अधिकांश पोटाश का अवशोषण परिपक्वता के सात सप्ताह पूर्व उपयोग कर लिया जाता है| आमतौर पर दो ही पोटेशियम उर्वरक क्रमशः म्यूरेट ऑफ पोटाश (पोटेशियम क्लोराइड) तथा पोटेशियम सल्फेट बाजार में उपलब्ध होते हैं| इस उर्वरक की पूरी मात्रा का उपयोग बुवाई के समय खेत में कर लेना चाहिए|
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कमी के लक्षण- इसकी कमी से पत्तियां भूरी एवं धब्बेदार हो जाती है, पत्तियाँ समय से पहले गिर जाती है, पत्तियों के किनारे और सिरे झुलसे हुए दिखाई पड़ते हैं| पौधों में प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया कम और श्वसन की क्रिया अधिक होती है|
सूक्ष्म पोषक तत्व का उपयोग- गेहूं में एकीकृत उर्वरक विधि के तहत कई भूमियों में सूक्ष्म पोषक तत्वों जैसे- जिंक, आयरन, कापर, बोरान, मैंगनीज इत्यादि की कमी पायी जाती है, जिसका गेहूं के उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है| इसमें से जिंक की कमी ज्यादातर पायी जाती है, जिंक की कमी को पूरा करने के लिए जिंक सल्फेट 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का उपयोग किया जाता है|
गेहूं में एकीकृत उर्वरक की पूरी मात्रा को बुवाई के समय खेत में देना चाहिए| इसकी कमी के लक्षण प्रारंभिक वृद्धि अवस्था में दिखाई देने से जिंक सल्फेट की 0.5 प्रतिशत घोल का छिड़काव खड़ी फसल में किया जाता है| इसके लिए 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट को 2.5 किलोग्राम बुझा चूना के साथ मिलाकर 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में छिड़काव करना चाहिए|
गेहूं में एकीकृत उर्वरक विधि के तहत मैंगनीज की कमी होने पर 0.5 प्रतिशत मैग्नीशियम सल्फेट के घोल का छिड़काव करना चाहिए, बोरान की कमी होने पर 20 किलोग्राम बोरेक्स प्रति हेक्टेयर देना चाहिए|
पैदावार- गेहूं एकीकृत उर्वरक प्रबंधन कर सिंचित अवस्था में गेहूं की उत्पादकता 50 से 55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त की जा सकती है| गेहूं एकीकृत उर्वरक प्रबंधन से मिट्टी को स्वस्थ्य रखते हुए फसलोत्पादन लिया जा सकता है|
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