ग्वार की जैविक खेती समय की आवश्यकता है| क्योंकि ग्वार की फसल मुख्य रूप से चारा, हरी खाद, दाने और मानव आहार के लिए बोई जाती है| ग्वार का औद्योगिक महत्व भी है| क्योंकि इससे- गम तैयार किया जाता है| ग्वार के दानों में 28 से 30 प्रतिशत गौंद की मात्रा पाई जाती है| ग्वार की खेती कम पानी वाले क्षेत्रों या बरानी क्षेत्रों में आसानी से की जा सकती है| इस लेख में ग्वार की जैविक खेती कैसे करें और साथ ही किस्में, देखभाल और पैदावार का उल्लेख है|
ग्वार की जैविक खेती के लिए खेत की तैयारी
आमतौर पर ग्वार की खेती किसी भी प्रकार की भूमि में सिंचित और असिंचित दोनों अवस्थाओं में की जा सकती है| बुवाई बुआई के लिए 1 से 2 जुताई कर पाटा लगाकर खेत तैयार करें|
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ग्वार की जैविक खेती के लिए प्रमुख किस्में
ग्वार की खेती के लिए कृषक बन्धु अपने क्षेत्र की प्रचलित किस्म का चयन करें और जहां तक सम्भव हो जैविक प्रमाणित बीज ही उगाएं| कुछ प्रमुख ग्वार की उन्नत किस्में इस प्रकार है, जैसे- एच जी- 75, आर जी सी- 936, आर जी सी- 197, आर जी सी- 986, आर जी सी- 1017, आर जी सी- 1002, आर जी सी- 1003, आर जी सी- 1066, आर जी सी- 1031, आर जी सी- 1055 आदि| इन किस्मों की विशेषताएँ और पैदावार की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- ग्वार की उन्नत किस्में, जानिए क्षेत्रवार विशेषताएं और पैदावार
ग्वार की जैविक खेती के लिए बीज उपचार
ग्वार की खेती के लिए और ध्यान रखें की नये खेतों में जहां पहली बार ग्वार की जैविक फसल ली जा रही है, वहां बीज बोने से पहले राइजोबियम और पी एस बी जीवाणु खाद से बीजोपचार अवश्य करें| बीज को मित्र फफूंद ट्राइकोडमा 6 से 8 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से जड़ गलन रोग की रोकथाम हेतु उपचारित करें|
ग्वार की खेती के लिए बीज दर और बुवाई
एक हैक्टेयर में करीब 15 से 20 किलोग्राम बीज का प्रयोग करें| ग्वार की बुवाई सीड ड्रिल से करनी चाहिए और कतार से कतार की दूरी 30 सेन्टीमीटर रखनी चाहिए| ग्वार बोने का उपयुक्त समय जून के अन्त से जुलाई के प्रथम पखवाड़े तक है, अगर ग्वार के बाद दूसरी फसल नहीं लेनी है तो बुवाई जुलाई के अन्त तक.भी की जा सकती है|
ग्वार की जैविक फसल में पोषक तत्व प्रबंधन
अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद 5 टन प्रति हैक्टेयर की दर से मिटटी में बुवाई से पूर्व मिलाएं खड़ी फसल में वर्मीवास या मटका खाद का छिड़काव करें|
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ग्वार की जैविक फसल में सिंचाई और निराई-गुड़ाई
ग्वार की जैविक फसल को आमतौर पर दो सिंचाई की जरूरत होती है| ग्वार बोने के तीन या चार सप्ताह बाद यदि वर्षा अच्छी ना हो तो सिंचाई अवश्य कीजिए| दूसरी सिंचाई वर्षा खत्म होने पर माह अगस्त या सितम्बर में देनी आवश्यक होती है| पहली निराई गुड़ाई पौधे को अच्छी तरह जम जाने के बाद 20 से 25 दिन में ही करे| गुड़ाई करते समय ध्यान रहे, कि पौधों की जड़े नष्ट ना हो| समय-समय पर खरपतवारों को नष्ट करते रहे|
ग्वार की जैविक खेती की देखभाल
तेला और सफेद मक्खी-
ग्वार की फसल में तेला (जेसिड) और सफेद मक्खी का प्रकोप होने पर नीम का तेल 3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें|
तना गलन, जड़ गलन और चारकोल गलन-
1. रोग ग्रसित खेत में मई से जून माह में बुवाई के करीब एक माह पूर्व सरसों के अवशेष (डंठल और पत्तियां आदि) 2.5 टन प्रति हैक्टेयर की दर से खेत में डाल कर पानी लगा दें|
2. रोग रोधी किस्मों की बुवाई करें|
3. जैविक खेती हेतु गर्मियों में गहरी जुताई करें|
4. खड़ी फसल में ट्राइकोडर्मा 5 किलोग्राम को 100 किलोग्राम गोबर की खाद में मिलाकर संवर्धन कर भूमि में मिलावें|
ग्वार की जैविक खेती से पैदावार
ग्वार की जैविक फसल लेने वाले खेत में शुरूआती दो से तीन वर्षों तक पैदावार में कमी पाई गई| इसके बाद पैदावार में धीरे-धीरे बढ़ोतरी पाई गई| ग्वार की पैदावार 10 से 17 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक ली जा सकती है|
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