मराठा साम्राज्य के संस्थापक, एक स्वाभाविक नेता और सेनानी छत्रपति शिवाजी का जन्म 19 फरवरी, 1630 को प्रतिष्ठित शिवनेरी किले में हुआ था और 6 जून, 1674 को उन्हें औपचारिक रूप से रायगढ़ के छत्रपति के रूप में ताज पहनाया गया था| छत्रपति शिवाजी एक बहादुर राजा और धर्मनिरपेक्ष शासक थे जो अपनी बहादुरी और रणनीति के लिए जाने जाते थे| उन्होंने मुगलों के खिलाफ कई युद्ध जीते और एक अनुशासित सेना और अच्छी तरह से संरचित प्रशासनिक संगठनों की मदद से एक सक्षम और प्रगतिशील नागरिक शासन की स्थापना की| उसने अपनी सेना को 2,000 सैनिकों से बढ़ाकर 100,000 कर दिया|
छत्रपति शिवाजी को भारतीय नौसेना के जनक के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि वह ही थे, जिन्होंने सबसे पहले नौसेना बल के महत्व को महसूस किया और महाराष्ट्र के कोंकण पक्ष की रक्षा के लिए रणनीतिक रूप से समुद्र तट पर एक नौसेना और किले की स्थापना की| वह महिलाओं और उनके सम्मान के एक वफादार समर्थक थे| उन्होंने महिलाओं के खिलाफ हर तरह की हिंसा, उत्पीड़न और अपमान का विरोध किया|
छत्रपति शिवाजी अपनी गुरिल्ला युद्ध रणनीति के लिए व्यापक रूप से जाने जाते थे जिन्हें ‘माउंटेन रैट’ भी कहा जाता था| इस बहादुर योद्धा की 1680 में मृत्यु हो गई लेकिन वह पीढ़ियों तक हमेशा प्रेरणा और गौरव के स्रोत के रूप में जाने जाएंगे| यहां मराठा राजा छत्रपति शिवाजी के कुछ प्रेरक उद्धरण दिए गए हैं जो आपके आत्मविश्वास को बढ़ावा देंगे|
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छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रेरक उद्धरण
1. “एक छोटा कदम छोटे लक्ष्य के लिए, बाद में विशाल लक्ष्य भी हासिल करा देता है|”
2. “शत्रु को कमजोर न समझो, और न ही अत्यधिक बलवान समझ कर डरना चाहिए|”
3. “आप जहां कहीं भी रहते हैं, आपको अपने पूर्वजों का इतिहास जरूर मालूम होना चाहिए|”
4. “जो व्यक्ति सिर्फ अपने देश और सत्य के सामने झुकता है, उसका आदर सभी जगह होता है|”
5. “जरुरी नहीं कि विपत्ति का सामना दुश्मन के सम्मुख से ही करने में वीरता हो, वीरता तो विजय में है|” -छत्रपति शिवाजी
6. “जो व्यक्ति धर्म, सत्य, श्रेष्ठता और परमेश्वर के सामने झुकता है, उसका आदर समस्त संसार करता है|”
7. “जब लक्ष्य जीत का हो तो उसे हासिल करने के लिए कोई भी मूल्य क्यों न हो, उसे चुकाना ही पड़ता है|”
8. “भले ही हर किसी के हाथ में तलवार हो, लेकिन यह इच्छाशक्ति होती है जो एक सत्ता स्थापित करती है|”
9. “एक वीर योद्धा हमेशा विद्वानों के सामने ही झुकता है|”
10. “कभी भी अपना सिर मत झुकाओ, हमेशा उसे ऊंचा रखो|” -छत्रपति शिवाजी
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11. “स्वतंत्रता एक वरदान है, जिसे पाने का अधिकारी हर कोई है|”
12. “जब हौसले बुलन्द हों तो पहाड़ भी एक मिट्टी का ढेर लगता है|”
13. “स्त्री के सभी अधिकारों में सबसे महान अधिकार मां बनने का है|”
14. “अगर मनुष्य के पास आत्मबल है, तो वो समस्त संसार पर अपने हौसले से विजय पताका लहरा सकता है|”
15. एक पुरुषार्थी व्यक्ति भी एक तेजस्वी विद्वान के सामने झुकता है, क्योंकि पुरुषार्थ भी विद्या से ही आता है|” -छत्रपति शिवाजी
16. “सर्वप्रथम राष्ट्र, फिर गुरु, फिर माता-पिता और फिर परमेश्वर, अतः पहले खुद को नहीं, राष्ट्र को देखना चाहिए|”
17. “शत्रु चाहे कितना ही बलवान क्यों न हो, उसे अपने इरादों और उत्साह मात्र से भी परास्त किया जा सकता है|”
18. “यह जरूरी नहीं है कि गलती करके ही सीखा जाए, दूसरों की गलती से सीख लेते हुए भी सीखा जा सकता है|”
19. एक सफल मनुष्य अपने कर्तव्य की पराकाष्ठा के लिए समुचित मानव जाति की चुनौती स्वीकार कर सकता है|”
20. प्रतिशोध की भावना मनुष्य को जलाती रहती है, सिर्फ संयम ही प्रतिशोध को काबू करने का एक उपाय हो सकता है|” -छत्रपति शिवाजी
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21. जो मनुष्य अपने बुरे वक्त में भी पूरी लगन से अपने कार्यों में लगा रहता है, उसके लिए समय खुद अच्छे समय में बदल जाता है|”
22. “इस जीवन मे सिर्फ अच्छे दिन की आशा नही रखनी चाहिए, क्योंकि दिन और रात की तरह अच्छे दिनों को भी बदलना पड़ता है|”
23. “इस दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्र रहने का अधिकार है, और उस अधिकार को पाने के लिए वह किसी से भी लड़ सकता है|”
24. “कोई भी कार्य करने से पहले उसका परिणाम सोच लेना हितकर होता है, क्योंकि हमारी आने वाली पीढ़ी उसी का अनुसरण करती है|”
25. “आत्मबल सामर्थ्य देता है और सामर्थ्य विद्या प्रदान करती है, तथा विद्या स्थिरता प्रदान करती है और स्थिरता विजय की तरफ ले जाती है|” -छत्रपति शिवाजी
26. “अपने आत्मबल को जगाने वाला, खुद को पहचानने वाला और मानव जाति के कल्याण की सोच रखने वाला पूरे विश्व पर राज्य कर सकता है|”
27. “अंगूर को जब तक न पेरो वह मीठी मदिरा नहीं बनती| वैसे ही मनुष्य जब तक कष्ट में पिसता नहीं तब तक उसके अन्दर की सर्वोत्तम प्रतिभा बाहर नहीं आती|”
28. “यदि एक पेड़, जो कि एक उच्च जीवित सत्ता नहीं है, फिर भी वह इतना सहिष्णु और दयालु होता है कि किसी के द्वारा मारे जाने पर भी वह उसे मीठे फल ही देता है| तो एक राजा होकर, क्या मुझे एक पेड़ से अधिक सहिष्णु और दयालु नहीं होना चाहिए?” -छत्रपति शिवाजी
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