जीवामृत, वर्तमान में खेती आमतौर पर विदेशों से आयातित या अपने देश में निर्मित कृषि रसायनों पर आधारित है| परिणाम स्वरूप खेती निरन्तर महंगी, विषाक्त जल एवं वातावरण प्रदूषण की समस्या भयावह होती जा रही है| कृषि रसायन के अंधाधुंध उपयोग के कारण भूमि में जीवान्श (जैविक कार्बन) की कमी होती जा रही है|
देश में कई सारे भूभाग में जैविक कार्बन की मात्रा 0.5 प्रतिशत से कम और कई स्थानों पर 0.2 प्रतिशत से भी कम हो गई है| ऐसी परिस्थिति में भूमि की उत्पादन क्षमता दिनों दिन कम और खेती महंगी होती जा रही है| परिणातमः बहुत सारे नवयुवक शहरों की तरफ पलायन कर रहे हैं|
पौधों का आहार भूमि जीवांश (हूयूमस) जो जैव एवं पशुजनित अवशेष के विघटन से बनता है| जीवांश भूमि में विद्यमान पोषक तत्वों और जल, पौधों के आवश्यकतानुसार उपलब्ध कराने में सहायक होते हैं| साथ ही साथ इनके प्रयोग से उगाई गयी फसलों पर बीमारियों तथा कीटों का प्रकोप बहुत कम होता है|
जिससे हानिकारक रसायन, कीटनाशकों के छिड़काव की आवश्यकता नहीं रह जाती है| इसका परिणाम यह होता है, कि फसलों से प्राप्त खाद्यान्न, फल और सब्जी आदि हानिकारक रसायनों से पूर्णतः मुक्त होते हैं और इसके प्रयोग से उत्पादित खाद्य पदार्थ अधिक स्वादिष्ट तथा पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं|
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जैविक पोषण हेतु कई सारे विकल्प उपलब्ध हैं| जिसमें से समय-समय पर स्थानीय रूप से तैयार जैव उत्प्रेरकों (Bio Enhancers) यथा जीवमृत यह एक लाभदायक सूक्ष्म जीवों का भण्डार है| जीवामृत में लाभदायक सूक्ष्मजीव (एजोस्पाइरिंलम, पी एस एम स्यूडोमोनास, ट्रसइकोडमर्गा, यीस्ट और मोल्ड) बहुतायत में पाये जाते हैं|
इसके उपयोग से भूमि में विद्यमान लाभदायक जीवाणु एवं केंचुए भी आकर्षित होते हैं| ये कार्बनिक अवशेषों के सड़ाव में सहायता करते हैं| परिणाम स्वरूप मुख्य सूक्ष्म पोषक तत्वों, एन्जाइम्स और हारमोन को संतुलित मात्रा में पौधों को उपलब्ध कराते हैं| जीवामृत को सुगमता पूर्वक आवश्यकतानुसार बनाया जा सकता है| जिसका विवेचन निम्न है, जैसे-
जीवामृत बनाने के लिए सामग्री
गोबर- 10 किलोग्राम
देशी गाय का गोमूत्र- 5 से 10 लीटर
गुड़- 500 ग्राम या 4 लीटर गन्ने का रस
दलहन का आटा/ बेसन- 500 ग्राम
उर्वर मिट्टी- 1 किलोग्राम (जिसमें किसी भी प्रकार के रसायन का उपयोग न किया गया हो)
पानी- 180 लीटर
पात्र- प्लास्टिक ड्रम या सीमेन्ट का हौद|
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जीवामृत बनाने की विधि
सर्वप्रथम उपलब्ध प्लास्टिक ड्रम या मिट्टी, सीमेन्ट की हौदी में 50 से 60 लीटर पानी लेकर 10 किलोग्राम गोबर को लकड़ी से अच्छी तरह मिलायें| इसके बाद उपलब्धतानुसार 5 से 10 लीटर गोमूत्र मिलाया जाये| मिश्रण में एक किलोग्राम उर्वर मिट्टी जिसमें रसायन खादों का प्रयोग न किया गया हो, मिला दी जायें|
पात्र में उपलब्ध जीवाणुओं के भेजन हेतु 500 ग्राम बेसन, 500 ग्राम गुड़ या 4 लीटर गन्ने के रस के घोल में और अतिरिक्त पानी मिलाकर 200 लीटर तैयार किया जाये| पात्र को नाइलान जाली या कपड़े से मुह को ढक दें| मिश्रण को प्रत्येक दिन जीवाणुओं के वातन (स्वासन) के लिए दिन में तीन-चार बार लकड़ी से मिलाया जाय, तैयार जीवामृत को 5 से 6 दिन के अन्दर प्रयोग कर लिया जाये|
जीवामृत का प्रयोग विधि
1. पलेवा और प्रत्येक सिंचाई के साथ 200 लीटर जीवामृत का प्रयोग एक एकड़ में सामान्य रूप से प्रयोग किया जाये|
2. अच्छी प्रकार छानकर टपक या छिड़काव (ड्रिप या स्प्रिंकलर) सिंचाई के माध्यम से प्रयोग जोकि 1 हेक्टेयर क्षेत्र के लिए पर्याप्त है|
3. फलवृक्षों में वृक्ष के फलरव अनुसार चारों तरफ 25 से 50 सेंटीमीटर नाली खोदकर जैविक अवशेष भरकर जीवामृत से तर कर दिया जाय| एक ड्रम 1 हेक्टेयर क्षेत्रफल हेतु पर्याप्त है|
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जीवामृत का प्रभाव
खेत या प्रक्षेत्र में उपलब्ध जैव अवशेष के विघटन हेतु एक प्रभावी जैव नियामक है| पौधों की आवश्यकतानुसार मुख्य एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों की उपलब्ध कीट और व्याधि निवारण क्षमता में सहायक है और इसके प्रयोग से भूमि की उर्वरता तथा फसल उत्पादकता में वृद्धि होती है|
विशेष- भारतीय मूल की गाय और बैल अपने अन्तिम दिनों तक प्रतिदिन इतनी जैविक खाद उपलब्ध करा देते हैं, यदि उपरोक्त विधि से उसका उपयोग किया जाए तो इनके पालन-पोषण पर जो खर्चा आता है| उससे इस खाद (जीवामृत) का मूल्य बहुत अधिक है|
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