तारामीरा (Taramira) फसलों के समूह में तोरिया, भूरी सरसों, पीली सरसों तथा राया आते है| सभी क्षेत्रों में खेती की जाने वाली इस तारामीरा को उपजाऊ एवं अनुपयोगी भूमि में उगया जा सकता है| इसमें तेल की मात्रा लगभग 35 से 37 प्रतिशत पायी जाती है| इसको सिमित सिंचाई व बरानी दोनों क्षेत्रों में उगााया जाता है|
साधारणतया इनकी पैदावार मौसम की स्थितियों पर निर्भर करती हैं| यदि तारामीरा की खेती आधुनिक तकनीकों से की जाये तो इसकी फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है| इस लेख में तारामीरा की खेती वैज्ञानिक तकनीक से कैसे करें की पूरी जानकारी का उल्लेख किया गया है|
तारामीरा की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
तारामीरा रबी मौसम की फसल है, जिसे ठन्डे शुष्क मौसम और चटक धुप वाले दिन कि आवश्यकता होती है| अधिक वर्षा वाले स्थान इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं है, अधिक तेल उत्पादन के लिए इसको ठंडा तापक्रम साफ खुला मौसम और पर्याप्त मृदा नमी की आवश्यकता पड़ती है| फूल आने और बीज पड़ने के समय बादल और कोहरे भरे मौसम से तारामीरा की फसल पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है| इस मौसम में कीटों और बीमारियों का प्रकोप अधिक होता है| तोरिया की फसल पाले के प्रति अधिक संवेदी होती है|
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तारामीरा की खेती के लिए भूमि का चुनाव
तारामीरा के लिये हल्की दोमट मिट्टी अधिक उपयुक्त रहती है| अम्लीय एवं ज्यादा क्षारीय भूमि इसके लिये बिल्कुल उपयोगी नहीं है|
तारामीरा की खेती के लिए खेत की तैयारी
इसकी खेती अधिकांशतः बारानी क्षेत्रों में ऐसे स्थानों में की जाती है जहाँ अन्य फसल सफलतापूर्वक पैदा नहीं की जा सकती है| खरीफ की चारे या उड़द, मूंग, चंवला आदि या मक्का, ज्वार की फसल लेने के बाद नमी हों, तो एक हल्की जुताई करके इसे सफलतापूर्वक बोया जा सकता है|
जहाँ तक संभव हो वर्षा ऋतु में तारामीरा की बुवाई हेतु खेत खाली नहीं छोड़ना चाहिये| खेत के ढेले तोड़कर पाटा लगाना भूमि की नमी को बचना लाभकारी रहता है| दीमक और जमीन के अन्य कीड़ो की रोकथाम हेतु बुवाई से पूर्व जुताई के समय क्लूनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में बिखेर कर जुताई करनी चाहिये|
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तारामीरा की खेती के लिए उन्नत किस्में
टी 27- सूखे के प्रति सहनशील, बारानी क्षेत्रों के लिये उपयुक्त इस किस्म की औसत उपज 6.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है| पकाव अवधि 150 दिन एवं तेल की मात्रा 36 प्रतिशत होती है|
आई टी एस ए- सूखा सहनशील बारानी क्षेत्रों के लिये उपयुक्त इस किस्म की पकाव अवधि 150 दिन एवं औसत उपज 6.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है| इसमें तेल की मात्रा 35 से 36 प्रतिशत होती है|
आर टी एम 314- बारानी क्षेत्रों के लिये उपयुक्त 90 से 100 सेन्टीमीटर ऊँची इस किस्म की शाखाऐं फैली हुई होती है| इसके 1000 दानों का वजन 3 से 5 ग्राम एवं तेल की मात्रा 36.9 प्रतिशत होती है| 130 से 140 दिन में पक कर यह 12 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है|
तारामीरा की खेती के लिए बीज और उपचार
तारामीरा की खेती के लिए 5 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर पर्याप्त होता है| बुवाई से पहले बीज को 1.5 ग्राम मैंकोजेब द्वारा प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज को उपचारित करें|
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तारामीरा की खेती के लिए बुवाई और विधि
बारानी क्षेत्रों में बुवाई का समय भूमि की नमी व तापमान पर निर्भर करता है| नमी की उपलब्धि के आधार पर इसकी बुवाई 15 सितम्बर से 15 अक्टूबर तक कर देनी चाहिये| कतारों में 5 सेंटीमीटर गहरा बीज बोयें| कतार से कतार की दूरी 40 सेंटीमीटर रखें|
तारामीरा की खेती के लिए सिंचाई प्रबंधन
तारामीरा फसल में प्रथम सिंचाई 40 से 50 दिन में, फूल आने से पहले करें| तत्पश्चात आवश्यकता पड़ने पर दूसरी सिंचाई दाना बनते समय करें|
तारामीरा की खेती के लिए निराई-गुड़ाई
फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के 20 से 25 दिन बाद निराई करें| पौधों की संख्या अधिक हो तो बुवाई के 8 से 10 दिन बाद अनावश्यक पौधों को निकालकर पौधे से पौधे की दूरी 8 से 10 सेन्टीमीटर कर दें|
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तारामीरा की खेती के लिए फसल संरक्षण
मोयला- कीट प्रकोप होते ही मिथाइल पैराथियॉन 2 प्रतिशत या कार्बेरिल 5 प्रतिशत या मैलाथियॉन 5 प्रतिशत चूर्ण 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से फसल पर भुरके अथवा मैलाथियॉन 50 ई सी डायमिथोयेट 30 ई सी 875 मिलीलीटर या मिथाइल डिमेटॉन 25 ई सी 1 लीटर या कार्बेरिल 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण ढाई किलोग्राम को पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़कें|
सफेद रोली, झुलसा व तुलासिता- रोगों के लक्षण दिखाई देते ही मैंकोजेब डेढ़ किलोग्राम का 0.2 प्रतिशत पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें| यदि प्रकोप ज्यादा हो तो यह छिड़काव 20 दिन के अंतर पर दोहरायें|
तारामीरा फसल फसल की कटाई
तारामीरा फसल के जब पत्ते झड़ जायें और फलियां पीली पड़ने लगे तो फसल काट लेनी चाहिए अन्यथा कटाई में देरी होने पर दाने खेत में झड़ जाने की आशंका रहती है| उपरोक्त तकनीक और अनुकूल स्थितियों में 12 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार प्राप्त हो जाती है|
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