तिलहनी फसलों (Oilseed crops) में खरपतवार रोकथाम आवश्यक है, क्योंकि भारत में उगाई जाने वाली फसलों में तिलहनी फसलों का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है| तिलहनी फसलें खाद्य तेल के प्रमुख स्त्रोत हैं| तिलहनी फसलों में प्रमुख रूप से मूंगफली, सोयाबीन, तिल, रामतिल एवं अरण्डी की खेती खरीफ मौसम में सरसों, तोरिया, कुसुम एवं अलसी की खेती रबी मौसम में तथा सरूजमुखी की खेती खरीफ, रबी एवं जायद तीनों मौसम में की जाती है|
बागानी फसलों में नारियल एवं तेलताड़ (आयलपाम) से भी खाने का तेल मिलता है| हमारे देश में तिलहनी फसलों की खेती करीब 2 करोड़ 60 लाख हैक्टेयर क्षेत्रफल में की जाती है| जिनसे लगभग 1 करोड़ 90 लाख टन तिलहन उत्पादन होता है| लेकिन प्रति हैक्टेयर औसत पैदावार (720 किलोग्राम) अन्य देशों की तुलना में बहुत कम है|
पोषण-विज्ञानियों के अनुसार हमारे संतुलित आहार में 30 से 35 ग्राम चिकनाई जरूरी है| लेकिन 40 से 45 प्रतिशत खाने का तेल 5 प्रतिशत खाते-पीते लोगों में ही खप जाता है| काफी समय से प्रति व्यक्ति खाने का तेल देश में 4 किलोग्राम प्रति वर्ष ही पैदा हुआ, जबकि होना चाहिए 22 किलोग्राम| तिलहनी फसलों की पैदावार कम होने के अनेक कारण हैं, जिनमें प्रमुख हैं, जैसे-
1. तिलहनी फसलों की खेती मुख्यतः असिंचित क्षेत्रों में की जाती है, जहां पर नमी एवं पोषक तत्वों की कमी होती है|
2. किसानों में तिलहनी फसलों की खेती, उन्नत किस्मों एवं तकनीक की जानकारी का अभाव है|
3. कीट व्याधियों, बीमारियों तथा खरपतवारों का उचित समय पर नियंत्रण न कर पाना आदि|
असिंचित क्षेत्रों में, खरपतवार तिलहनी फसलों से तीव्र प्रतिस्पर्धा करके भूमि में निहित नमी एवं पोषक तत्वों के अधिकांश भाग को शोषित कर लेते हैं, फलस्वरूप फसल की विकास गति धीमी पड़ जाती है तथा पैदावार कम हो जाती है| खरपतवारों की रोकथाम से न केवल तिलहनों की पैदावार बढ़ाई जा सकती है, बल्कि तेल की प्रतिशत मात्रा में भी वृद्धि की जा सकती है|
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तिलहनी फसलों में प्रमुख खरपतवार
तिलहनी फसलों में खरपतवार नियंत्रण तिलहनी फसलों की खेती खरीफ एवं रबी दोनों मौसमों में की जाती है| इन फसलों में उगने वाले खरपतवारों को मुख्यतः तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है| विभिन्न तिलहनी फसलों में उगने वाले प्रमुख खरपतवार इस प्रकार है, जैसे-
खरपतवारों की श्रेणी | खरीफ मौसम के खरपतवार | रबी मौसम के खरपतवार |
सकरी पत्ती वाले खरपतवार | पत्थरचटा (ट्रायेन्थमा पोरयूलाकारड्रम) कनकवा (कामेलिना बेघालेनसिस) महकुआ (एजीरेटम कोनीज्वाडिस) वन मकोय (फाइजेलिस मिनीमा) सफेद मुर्ग (सिलोसिया अर्जेन्सिया) हजारदाना (फाइलेन्थस निरूरी) | प्याजी (एस्फोडिलस टेन्यूफोलियस) बथुआ (चिनोपोडियम एलबम) सेंजी (मेलीलोटस प्रजाति) कृष्णनील (एनागालिस अरवेनसिंस) हिरनखुरी (कानवोलवुलस आरवेनसिस) पोहली (कार्थेमस आक्सीकैन्था) सत्यानाशी (आर्जेमोन मैक्सीकाना) अंकरी (विसिया सटाइवा) जंगली मटर (लेथाइरस सेटाईवा) |
चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार | सांवक (इकानोक्लोआ कोलोना) दूब घास (साइनोंडोन डेक्टीलोन) कोदों (इल्यूसिन इन्डिका) बनरा (सिटैरिया ग्लाऊका) | गेहू का मामा (फेलोरिस माइनर) जंगली जई (अवेना लुडाविसियाना) दूब घास (साइनोंडोन डेक्टीलोन) |
मोथाकुल परिवार के खरपतवार | मोथा (साइपेरस रोटन्डस, साइपेरस इरिया आदि) | मोथा (साइपेरस रोटन्डस) |
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तिलहनी फसलों में खरपतवारों से हानियाँ
खरीफ मौसम में उच्च तापमान एवं अधिक नमी के कारण रबी मौसम की अपेक्षा अधिक खरपतवार उगते हैं और समय पर यदि इनकी रोकथाम न की गई हो तो इनसे पौधों की बढ़वार काफी कम हो सकती है| जिससे इनकी उपज पर भी बुरा असर पड़ सकता है| खरपतवार फसलों के लिए भूमि में निहित पोषक तत्वों एवं नमी का एक बड़ा हिस्सा शोषित कर लेते हैं तथा साथ ही साथ फसल को आवश्यक प्रकाश एवं स्थान से भी वंचित रखते हैं|
इसके अतिरिक्त खरपतवार फसलों में लगने वाले रोगों के जीवाणुओं एवं कीट व्याधियों को भी आश्रय देते हैं| कुछ खरपतवारों के बीज फसल के बीज के साथ मिलकर उसकी गुणवत्ता को कम कर देते हैं, जैसे- सत्यानाशी खरपतवार के बीज सरसों के बीज के साथ मिलकर तेल की गुणवत्ता को कम कर देते हैं|
विभिन्न तिलहनी फसलों की पैदावार में खरपतवारों द्वारा आंकी गयी कमी का विवरण निचे तालिका में दिया गया है| विभिन्न दलहनी फसलों में फसल खरपतवार प्रतिस्पर्धा का क्रांन्तिक समय एवं खरपतवारों द्वारा उत्पादन में कमी इस प्रकार है, जैसे-
तिलहनी फसलें | खरपतवार प्रतिस्पर्धा का क्रान्तिक समय (बुवाई के बाद) दिन | उपज में कमी (प्रतिशत) में |
मूंगफली | 40 से 60 | 40 से 50 |
सोयाबीन | 15 से 45 | 40 से 50 |
सूरजमुखी | 30 से 45 | 33 से 50 |
अरंडी | 30 से 60 | 30 से 35 |
कुसुम | 15 से 45 | 35 से 60 |
तिल | 15 से 45 | 17 से 41 |
रामतिल | 15 से 45 | 35 से 60 |
सरसों | 15 से 40 | 15 से 30 |
अलसी | 20 से 40 | 30 से 40 |
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तिलहनी फसलों में खरपतवारों की रोकथाम कब करें
तिलहनी फसलों में खरपतवार नियंत्रण प्रायः देखा गया है, कि कीट और रोग आदि लगने पर इनकी रोकथाम की ओर तुरन्त ध्यान दिया जाता है| लेकिन किसान खरपतवारों को तब तक बढ़ने देते हैं, जब तक कि वह हाथ से पकड़कर उखाड़ने योग्य न हो जाएं, लेकिन उस समय तक खरपतवार फसलों के साथ प्रतिस्पर्धा करके काफी नुकसान कर चुके होते हैं|
फसल के पौधे अपनी प्रारंभिक अवस्था में खरपतवारों से मुकाबला नहीं कर पाते हैं| अतः फसलों को शुरू से ही खरपतवार रहित रखना आवश्यक हो जाता है| यहां पर एक बात यह भी ध्यान देने योग्य है, कि फसल को न तो हमेशा खरपतवार मुक्त रखा जा सकता है, और न ही ऐसा करना आर्थिक दृष्टि से लाभकारी है|
अतः फसल खरपतवार प्रतिस्पर्धा की क्रांतिक अवस्था में खरपतवार नियंत्रण के उपायों को अपनाकर फसलों को खरपतवार रहित रखा जाए तो फसल का उत्पादन अधिक प्रभावित नहीं होता|
तिलहनी फसलों में खरपतवारों की रोकथाम कैसे करें
तिलहनी फसलों में खरपतवार की रोकथाम निम्नलिखित विधियों से की जा सकती है| जो इस प्रकार है, जैसे-
निवारक विधि-
तिलहनी फसलों में खरपतवार नियंत्रण इस विधि में वे क्रियाएं शामिल हैं, जिनके द्वारा खेतों में खरपतवारों के प्रवेश को रोका जा सकता है, जैसे- प्रमाणित बीजों का प्रयोग, अच्छी सड़ी गोबर या कम्पोस्ट की खाद का प्रयोग, सिंचाई की नालियों की सफाई, खेत की तैयारी और बुआई में प्रयोग किये जाने वाले यंत्रों का प्रयोग से पूर्व अच्छी तरह से सफाई आदि|
यांत्रिक विधि-
तिलहनी फसलों में खरपतवार पर काबू पाने की यह एक सरल एवं प्रभावी विधि है| तिलहनी फसलों की प्रारंभिक अवस्था में बुआई के 15 से 45 दिन के बीच का समय खरपतवारों की प्रतियोगिता की दृष्टि से क्रांतिक समय है| अतः प्रारम्भिक अवस्था में ही तिलहनी फसलों को खरपतवारों से मुक्त रखना अधिक लाभदायक है| सामान्यतः दो बार निराई-गुड़ाई, पहली बुआई के 20 से 25 दिन बाद तथा दूसरी 40 से 45 दिन बाद करने से खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है|
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रासायनिक विधि-
तिलहनी फसलों में खरपतवार नियंत्रण तिलहनी फसलों में खरपतवारनाशी रासायनों का प्रयोग करके भी खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है| इससे प्रति हैक्टेयर लागत कम आती है तथा समय की भारी बचत होती है| लेकिन इन रसायनों का प्रयोग करते समय यह ध्यान रखना चाहिये, कि इनका प्रयोग उचित मात्रा में उचित ढंग से तथा उपयुक्त समय पर हो अन्यथा लाभ के बजाय हानि की संभावना रहती है| विभिन्न तिलहनी फसलों में प्रयोग किये जाने वाले खरपतवारनाशी रसायनों का विस्तृत विवरण इस प्रकार है, जैसे-
तिलहनी फसलें | खरपतवारनाशी रसायन | मात्रा (ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर) | प्रयोग का समय |
खरीफ सीजन की तिलहनी फसलें- (मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी, तिल, रामतिल आदि) | फ्लूक्लोरेलिन इमैजेथापायर पेन्डीमिथलिन | 1000 से 1500 100 1000 | बुवाई के पहले छिड़ककर भूमि में अच्छी तरह मिला दें सोयाबीन की फसल में 20 से 25 दिन पर छिड़काव करें बुवाई के बाद परन्तु अंकुरण से पूर्व |
रबी सीजन की तिलहनी फसलें- (सरसों, तोरिया एवं अलसी) | एलाक्लोर फ्लूक्लोरेलिन पेन्डीमिथलिन क्लोडिनाफाप आइसोप्रोटुरान क्यूजालोफाप | 1000 से 1500 1000 1000 60 1000 40 | बुवाई के बाद परन्तु अंकुरण से पूर्व बुवाई के पहले छिड़ककर भूमि में अच्छी तरह मिला दें बुवाई के बाद परन्तु अंकुरण से पूर्व बुवाई के बाद परन्तु अंकुरण से पूर्व बुवाई के बाद परन्तु अंकुरण से पूर्व बुवाई के बाद परन्तु अंकुरण से पूर्व |
कपास + सोयाबीन या मूंगफली | फ्लूक्लोरेलिन + हाथ से निंदाई | 1000 | बुवाई के पहले छिड़ककर भूमि में मिला दें और निंदाई बुवाई के 35 दिन बाद |
गेहूं + सरसों या अलसी + मसूर | आइसोप्रोटूरान | 750 से 1000 | बुवाई के 20 से 25 दिन बाद |
चना + अलसी या चना + सरसों | पेन्डीमिथलिन | 1000 | बुवाई के बाद परन्तु अंकुरण से पूर्व |
प्रयोग की विधि- खरपतवारनाशी की आवश्यक मात्रा को 600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर की दर से समान रूप से छिड़काव करें और छिड़काव हेतु नैपशैक स्प्रेयर के साथ फ्लैट फैन नोजल का प्रयोग करें|
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तिलहनी मिलवां फसलों में खरपतवार नियंत्रण
तिलहनी फसलों की पैदावार कम होने का एक प्रमुख कारण यह भी है कि ये फसलें अधिकांशतः दूसरी फसलों के साथ मिलाकर बोई जाती हैं| ऐसी परिस्थतियों में खरपतवारों पर काबू पाना और भी कठिन हो जाता है| मिलवां फसल में दो या दो से अधिक फसलें एक साथ उगाने के कारण यान्त्रिक विधि से भी खरपतवार नियन्त्रण कर पाना संभव नहीं हो पाता है| विभिन्न प्रकार की तिलहनों की मिलवां फसल में प्रयोग किये जाने वाले खरपतवारनाशी रसायन इस प्रकार है, जैसे-
दलहनी फसलें | खरपतवारनाशी रसायन | मात्रा (ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर) | प्रयोग का समय |
अरहर + सोयाबीन या तिल | फ्लूक्लोरेलिन पेन्डीमिथलिन | 1000 से 1500 1000 से 1500 | बुवाई के पहले छिड़ककर भूमि में अच्छी तरह मिला दें बुवाई के बाद परन्तु अंकुरण से पूर्व |
अरहर + मूंगफली | पेन्डीमिथलिन एलाक्लोर | 1000 से 1250 1500 | बुवाई के बाद परन्तु अंकुरण से पूर्व बुवाई के बाद परन्तु अंकुरण से पूर्व |
मूंगफली + सूरजमुखी | पेन्डीमिथलिन + हाथ से निंदाई | 1000 | बुवाई के बाद परन्तु अंकुरण से पूर्व |
प्रयोग की विधि- खरपतवारनाशी की आवश्यक मात्रा को 600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर की दर से समान रूप से छिड़काव करें|
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तिलहनी फसलों के खरपतवार नियंत्रण में सावधानियां-
1. प्रत्येक खरपतवार नाशी रसायनों के डिब्बो पर लिखे निर्देशों तथा उसके साथ दिये गये पर्चे को ध्यानपूर्वक पढ़ें तथा दिये गये तरीकों का विधिवत पालन करें|
2. तिलहनी फसलों में खरपतवार नाशी रसायन को उचित मात्रा में तथा उचित समय पर छिड़कना चाहिये|
3. बुवाई से पहले या बुवाई के तुरन्त बाद प्रयोग किये जाने वाले रसायनों को प्रयोग करते समय भूमि में पर्याप्त नमी होनी चाहिए|
4. तिलहनी फसलों में खरपतवार नाशी का छिड़काव पूरे खेत में समान रूप से होना चाहिये|
5. तिलहनी फसलों में खरपतवार नाशी का छिड़काव शांत हवा तथा साफ मौसम में करना चाहिये|
6. प्रयोग करते समय यह ध्यान रखना चाहिये, कि रसायन शरीर पर न पड़े| इसके लिये विशेष पोषाक, दस्ताने तथा चश्में इत्यादि का प्रयोग करना चाहिये|
7. छिड़काव कार्य समाप्त होने के बाद हाथ, मुंह साबुन से अच्छी तरह धो लेना चाहिये तथा अच्छा हो यदि स्नान भी कर लें|
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