धनिया (Coriander) मसालों वाली फसलों में महत्वपूर्ण स्थान रखती है| इसके दानों में पाये जाने वाले वाष्पशील तेल के कारण यह भोज्य पदार्थों को स्वादिष्ट एवं सुगन्धित बनाती है| भारत में इसकी खेती मुख्यतः राजस्थान, आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, उत्तर प्रदेश तथा कर्नाटक में की जाती है| धनिया के कुल उत्पादन का एक बड़ा भाग श्रीलंका, जापान, सिंगापुर, ब्रिटेन, अमेरिका व मलेशिया को भेजा जाता है, जिससे विदेशी मुद्रा की आय होती है|
इसके साबूत दाने या पीस कर अचार, सास और मिठाईयों आदि खाद्य पदार्थों को सुगन्धित करने के काम में लेते हैं| वाष्पशील तेल से सुगन्धित द्रव्य व खुशबूदार साबुन बनाये जाते हैं| इसके अलावा यह तेल, चॉकलेट, कैण्डी, सीलबन्द भोज्य पदार्थों, सूप व मदिरा को सुगन्धित करने में प्रयुक्त होता है|
इसकी पत्तियाँ एवं मुलायम तने चटनी बनाने तथा शाक-भाजी व सूप सलाद को स्वादिष्ट में सहायक है| यदि कृषक इसकी खेती वैज्ञानिक तकनीक से करें, तो अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते है| इस लेख में धनिया की उन्नत खेती कैसे करें की पूरी जानकारी का उल्लेख है| धनिया की जैविक तकनीक से उन्नत खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- धनिया की जैविक खेती: किस्में, देखभाल और पैदावार
धनिया की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
धनिया की खेती के लिए शुष्क व ठंडा मौसम अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिये अनुकूल होता है| बीजों के अंकुरण के लिय 25 से 26 सेंटीग्रेट तापमान अच्छा होता है| धनिया शीतोष्ण जलवायु की फसल होने के कारण फूल तथा दाना बनने की अवस्था पर पाला रहित मौसम की आवश्यकता होती है| धनिया को पाले से बहुत नुकसान होता है| धनिया बीज की उच्च गुणवत्ता और अधिक वाष्पशील तेल के लिये ठंडी जलवायु, अधिक समय के लिये तेज धूप, समुद्र से अधिक ऊचाई और ऊचहन भूमि की आवश्यकता होती है|
धनिया की खेती के लिए भूमि का चयन
धनिया की सिंचित फसल के लिये अच्छे जल निकास वाली अच्छी दोमट भूमि सबसे अधिक उपयुक्त होती है तथा असिंचित फसल के लिये काली भारी भूमि अच्छी होती है| धनिया क्षारीय एवं लवणीय भूमि को सहन नही करता है| अर्थात अच्छे जल निकास एवं उर्वरा शक्ति वाली दोमट या मटियार दोमट भूमि उपयुक्त होती है| मिट्टी का पी एच मान 6.5 से 7.5 होना चाहिए|
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धनिया की खेती के लिए खेत की तैयारी
सिंचित क्षेत्र में अगर जुताई के समय भूमि में पर्याप्त जल न हो तो भूमि की तैयारी पलेवा देकर करनी चाहिए| जिससे जमीन में जुताई के समय ढेले भी नही बनेगें तथा खरपतवार के बीज अंकुरित होने के बाद जुताई के समय नष्ट हो जाऐगे| बारानी फसल के लिये खरीफ फसल की कटाई के बाद दो बार आड़ी-खड़ी जुताई करके तुरन्त पाटा लगा देना चाहिए|
धनिया की खेती के लिए उन्नत किस्में
हमारे देश में उपलब्ध धनिया की किस्मों को तीन प्रकार में बांटा जा सकता है, जैसे-
बीज वाली किस्में- इन किस्मों का उपयोग बीज मसाले में किया जाता है| इनके बीज अधिक सुगन्धित होते है, क्योंकि इनमें तेल की मात्रा भी अधिक होती है, जैसे- आर सी आर- 20, स्वाति, साधना, राजेन्द्र और सी एस- 287 आदि प्रमुख है|
पत्ते वाली किस्में- इन किस्मों के हरे पत्ते काटकर उपयोग में लाए जाते है, जैसे- आर सी आर- 41 और गुजरात धनिया- 2 आदि, ये किस्में पत्तों से सुगन्ध देती है|
दोहरे उपभोग की किस्में- इस प्रकार की किस्में दाने और पत्ते दोनों के लिए उगाई जाती है, जैसे- को- 02, को- 03 और पूसा चयन- 360 आदि| यह किस्में लम्बी अवधि की होती है| पत्तों की तीन कटाई के बाद इन्हें बीज पकने के लिए छोड़ दिया जाता है| धनिया किस्मों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- धनिया की उन्नत किस्में, जानिए उनकी विशेषताएं और पैदावार
धनिया की खेती के लिए बुवाई का समय
धनिया की फसल रबी मौसम में उगाई जाती है| धनिया बोने का सबसे उपयुक्त समय 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर है| धनिया की सामयिक बोनी लाभदायक है| दोनों के लिये धनिया की बुआई का उपयुक्त समय नवम्बर का प्रथम पखवाड़ा हैं| हरे पत्तों की फसल के लिये अक्टूबर से दिसम्बर का समय बिजाई के लिये उपयुक्त हैं| पाले से बचाव के लिये धनिया को नवम्बर के द्वितीय सप्ताह में बोना उपयुक्त होता है|
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धनिया की खेती के लिए बीज की मात्रा
सिंचित अवस्था में 15 से 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा असिंचित में 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है|
धनिया की खेती के लिए बीजोपचार
भूमि एवं बीज जनित रोगों से बचाव के लिये बीज को कार्बेन्डाजिम + थाइरम (2.1) 3 ग्राम प्रति किलोग्राम या कार्बोक्जिन 37.5 प्रतिशत + थाइरम 37.5 प्रतिशत 3 ग्राम प्रति किलोग्राम + ट्राइकोडर्मा विरिडी 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें| बीज जनित रोगों से बचाव के लिये बीज को स्ट्रेप्टोमाईसिन 500 पी पी एम से उपचारित करना लाभदायक रहता है|
धनिया की खेती के लिए बुवाई की विधि
बोने के पहले धनिया बीज को सावधानीपूर्वक हल्का रगड़कर बीजो को दो भागो में तोड़ कर दाल बनावें| धनिया की बोनी सीड ड्रील से कतारों में करें, कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 7 से 10 सेंटीमीटर रखें| भारी भूमि या अधिक उर्वरा भूमि में कतारों की दूरी 40 सेंटीमीटर रखनी चाहिए| धनिया की बुवाई पंक्तियों में करना अधिक लाभदायक है| कूड में बीज की गहराई 2 से 4 सेंटीमीटर तक होनी चाहिए| बीज को अधिक गहराई पर बोने से अंकुरण कम होता है|
धनिया की खेती के लिए खाद और उर्वरक
धनिया की अच्छी पैदावार लेने के लिए गोबर खाद 20 टन प्रति हेक्टेयर के साथ असिंचित फसल के लिए 40 किलोग्राम नत्रजन, 30 किलोग्राम स्फुर, 20 किलोग्राम पोटाश तथा 20 किलोग्राम सल्फर प्रति हेक्टेयर की दर से तथा सिंचित फसल के लिए 60 किलोग्राम नत्रजन, 40 किलोग्राम स्फुर, 20 किलोग्राम पोटाश और 20 किलोग्राम सल्फर प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करें|
धनिया फसल में खाद का समय व तरीका
असिंचित अवस्था में उर्वरकों की संपूर्ण मात्रा आधार रूप में देना चाहिए| सिंचित अवस्था में नाइट्रोजन की आधी मात्रा एवं फास्फोरस, पोटाश एवं जिंक सल्फेट की पूरी मात्रा बोने के पहले अंतिम जुताई के समय देना चाहिए| नाइट्रोजन की शेष आधी मात्रा खड़ी फसल में टाप ड्रेसिंग के रूप में प्रथम सिंचाई के बाद देनी चाहिए|
खाद हमेशा बीज के नीचे देवें, खाद और बीज को मिलाकर बुवाई नही करें| धनिया की फसल में एजेंटोबेक्टर एवं पीएसबी कल्चर का उपयोग 5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 50 किलोग्राम गोबर खाद में मिलाकर बोने के पहले डालना लाभदायक रहता है|
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धनिया की खेती के साथ अंतर्वर्तीय फसलें
चना धनिया, (10:2), अलसी धनिया (6:2), कुसुम धनिया (6:2), धनिया गेहूँ (8:3) आदि अंतर्वर्तीय फसल पद्धतियां उपयुक्त पाई गई है| गन्ना धनिया (1:3) अंतर्वर्तीय फसल पद्धति भी लाभदायक पाई गई है|
धनिया की खेती के लिए फसल चक्र
धनिया-मूग, धनिया-भिण्डी, धनिया-सोयाबीन , धनिया-मक्का आदि, फसल चक्र लाभ दायक पाये गये हैं|
धनिया की खेती के लिए सिंचाई प्रबंधन
धनिया में पहली सिंचाई 30 से 35 दिन बाद (पत्ति बनने की अवस्था) दूसरी सिंचाई 50 से 60 दिन बाद (शाखा निकलने की अवस्था), तीसरी सिंचाई 70 से 80 दिन बाद (फूल आने की अवस्था) तथा चौथी सिंचाई 90 से 100 दिन बाद (बीज बनने की अवस्था ) करना चाहिऐ| हल्की जमीन में पांचवी सिंचाई 105 से 110 दिन बाद (दाना पकने की अवस्था) करना लाभदायक रहता है|
धनिया की फसल में खरपतवार प्रबंधन
धनिया फसल में खरपतवार प्रतिस्पर्धा की क्रांतिक अवधि 35 से 40 दिन है| इस अवधि में खरपतवारों की निंदाई नहीं करने पर धनिया की उपज 40 से 45 प्रतिशत कम हो जाती है| धनिया फसल में खरपतवरों की अधिकता होने पर खरपतवारनाशी पेंडिमीथालिन 30 ई सी 3 लीटर को 600 से 700 पानी में मिलकर प्रति हेक्टेयर बुवाई के 2 दिन तक छिडकाव कर के नियंत्रण पाया जा सकता है|
धनिया की फसल में कीट नियंत्रण
माहु/चेपा (एफिड)- धनिया में मुख्यतः माहू चेपा रसचूसक कीट का प्रकोप होता है| इस कीट के हल्के हरे रंग वाले शिश व प्रौढ़ दोनो ही पौधे के तनों, फूलों एवं बनते हुए बीजों जैसे कोमल अंगो का रस चूसते हैं|
नियंत्रण- रोकथाम के लिए आक्सीडेमेटान मिथाइल 25 ई सी 1.5 मिलीलीटर प्रति लिटर पानी या डायमेथियोट 35 ई सी 2 मिलीलीटर प्रति लिटर पानी या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 ई सी 0.25 मिलीलीटर प्रति लिटर पानी की दर से छिडकाव करे|
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धनिया की फसल में रोग नियंत्रण
उकठा/उगरा (विल्ट)- उकठा रोग फ्यूजेरियम आक्सीस्पोरम एवं फ्यूजेरियम कोरिएनड्री कवक के द्वारा फैलता है| इस रोग के कारण पौधे मुरझाकर सूख जाते है|
नियंत्रण-
1. ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें एवं उचित फसल चक्र अपनाएं|
2. बीज की बुवाई नवम्बर के प्रथम से द्वितीय सप्ताह में करें|
3. बुवाई के पूर्व बीजों को कार्बोन्डिजम 50 डब्ल्यू पी 3 ग्राम प्रति किलोग्राम या ट्रायकोडरमा विरडी 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर बुवाई करें|
4. उकठा के लक्षण दिखाई देने पर कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी 2.0 ग्राम प्रति लीटर पानी या हेक्जाकोनोजॉल 5 ईसी 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या मेटालेक्जिल 35 प्रतिशत 1 ग्राम प्रति लीटर पानी या मेटालेक्जिल मेंकोजेब- 72 एम जेड 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें|
तनाव्रण/तना सूजन/तना पिटिका (स्टेमगॉल)- यह रोग प्रोटामाइसेस मेक्रोस्पोरस कवक के द्वारा फैलता है| रोग के कारण फसल को अत्यधिक क्षति होती है| पौधो के तनों पर सूजन हो जाती है| तनों, फूल वाली टहनियों एवं अन्य भागों पर गांठे बन जाती है| बीजों में भी विकृतिया आ जाती है|
नियंत्रण-
1. ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें एवं उचित फसल चक्र अपनाएं|
2. बीज की बुवाई नवम्बर के प्रथम से द्वितीय सप्ताह में करें|
3. बुवाई के पूर्व बीजों को कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी 3 ग्राम प्रति किलोग्राम या ट्रायकोडरमा विरडी 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर बुवाई करें|
4. रोग के लक्षण दिखाई देने पर स्ट्रेप्टोमाइसिन 0.04 प्रतिशत 0.4 ग्राम प्रति लीटर पानी का 20 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें|
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चूर्णिल आसिता /भभूतिया- यह रोग इरीसिफी पॉलीगॉन कवक के द्वारा फैलता है| इससे फल रोग की प्रारंभिक अवस्था में पत्तियों एवं शाखा सफेद चूर्ण की परत जम जाती है| अधिक प्रभाव होने पर पत्तियां पीली पड़कर सूख जाती है|
नियंत्रण-
1. ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें एवं उचित फसल चक्र अपनाएं|
2. बीज की बुवाई नवम्बर के प्रथम से द्वितीय सप्ताह में करें|
3. बुवाई के पूर्व बीजों को कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी 3 ग्राम प्रति किलोग्राम या ट्रायकोडरमा विरडी 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर बुवाई करें|
4. कार्बेन्डाजिम 2.0 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या एजॉक्सिस्ट्रोबिन 23 एस सी 1.0 ग्राम प्रति लीटर पानी या हेक्जाकोनोजॉल 5 ईसी 2.0 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या मेटालेक्जिल मेंकोजेब- 72 एम जेड 2.0 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर 10 से 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें| कीट एवं रोग नियंत्रण की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- धनिया फसल के प्रमुख रोग एवं कीट और उनकी रोकथाम कैसे करें
धनिया फसल को पाले से बचाव के उपाय
सर्दी के मौसम में जब ताममान शून्य डिग्री सेंटीग्रेड से नीचे गिर जाता है| तो हवा में उपस्थित नमी ओस की छोटी-छोटी बूंदें बर्फ के छोटे-छोटे कणों में बदल जाती है तथा ये कण पौधों पर जम जाते है| इसे ही पाला कहते है| पाला ज्यादातर दिसम्बर या जनवरी माह में पड़ता है| पाले से बचाव के उपाय इस प्रकार अपनायें, जैसे-
1. पाला अधिकतर दिसम्बर से जनवरी माह में पड़ता है, इसलिये फसल की बुवाई 10 से 20 नवंबर के बीच में करें|
2. यदि पाला पड़ने की संभावना हो तो फसल की सिंचाई करें|
3. जब भी पाला पड़ने की संभावना दिखाई दे, तो आधी रात के बाद खेत के चारो ओर कूड़ा-करकट जलाकर धुआँ कर देना चाहिए|
4. पाला पड़ने की संभावना होने पर फसल पर गंधक अम्ल 0.1 प्रतिशत (1.0 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी) का छिड़काव शाम को करें|
5. जब पाला पड़ने की पूरी संभावना दिखाई दे तो डाइमिथाइल सल्फोआक्साईड (डीएमएसओ) नामक रसायन 75 ग्राम प्रति 1000 लीटर पानी का 50 प्रतिशत फूल आने की अवस्था में 10 से 15 दिन के अंतराल पर छिडकाव करने से फसल पर पाले का प्रभाव नही पड़ता है|
6. व्यापारिक गंधक 15 ग्राम बोरेक्स 10 ग्राम प्रति पम्प की दर से छिड़काव करें|
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धनिया फसल की कटाई
फसल की कटाई उपयुक्त समय पर करनी चाहिए| धनिया दाना दबाने पर मध्यम कठोर तथा पत्तिया पीली पड़ने लगे, धनिया डोड़ी का रंग हरे से चमकीला भूरा या पीला होने पर तथा दानों में 18 प्रतिशत नमी रहने पर कटाई करनी चाहिए| कटाई में देरी करने से दानों का रंग खराब हो जाता है| जिससे बाजार में उचित कीमत नही मिल पाती है| अच्छी गुणवत्तायुक्त उपज प्राप्त करने के लिए 50 प्रतिशत धनिया डोड़ी का हरा से चमकीला भूरा कलर होने पर कटाई करना चाहिए|
धनिया फसल की गहाई
धनिया का हरा-पीला कलर और सुगंध प्राप्त करने के लिए धनिया की कटाई के बाद छोटे-छोटे बण्डल बनाकर 1 से 2 दिन तक खेत में खुली धूप में सूखाना चाहिए| बण्डलों को 3 से 4 दिन तक छाया में सूखाये या खेत मे सूखाने के लिए सीधे खड़े बण्डलों के ऊपर उल्टे बण्डल रख कर ढेरी बनावें| ढेरी को 4 से 5 दिन तक खेत में सूखने देवें| सीधे-उल्टे बण्डलों की ढेरी बनाकर सूखाने से धनिया बीजों पर तेज धूप नही लगने के कारण वाष्पशील तेल उड़ता नही है|
धनिया की खेती से पैदावार
धनिया की उपज किस्म, मौसम और फसल की देखभाल आदि पर निर्भर करती है|परन्तु उपरोक्त वैज्ञानिक तकनीक से खेती करने पर सिंचित फसल से 15 से 20 क्विंटल बीज तथा 100 से 125 क्विंटल पत्तियों की उपज तथा असिंचित फसल की 7 से 9 क्विंटल उपज प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है|
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धनिया का भण्डारण
भण्डारण के समय धनिया बीज में 9 से 10 प्रतिशत नमी रहना चाहिए| धनिया बीज का भण्डारण पतले जूट के बोरों में करना चाहिए| बोरों को जमीन पर तथा दिवार से सटे हुए नही रखना चाहिए| जमीन पर लकड़ी के गट्टों पर बोरों को रखना चाहिए| बीज के 4 से 5 बोरों से ज्याद एक के ऊपर नही रखना चाहिए|
धनिया फसल की उत्पादकता बढाने हेतु प्रमुख बिन्दु-
1. पाले से बचाव के लिए बुआई नवम्बर के द्वितीय सप्ताह में करें तथा गंधक अम्ल 0.1 प्रतिात का छिड़काव सायंकाल के समय करें|
2. धनिया की खेती उपजाऊ भूमि में करे|
3. तनाव्रण एवं चूर्णिलआसिता प्रतिरोधी उन्नत किस्मों का उपयोग करें|
4. उकठा, तनाव्रण, चूर्णिलआसिता जैसे रोगों का समेकित नियंत्रण करें|
5. खरपतवार पर प्रारंभिक अवस्था में नियंत्रण करें|
6. भूमि में आवश्यक एवं सूक्ष्म तत्वों की पूर्ति करें|
7. चार सिंचाई कांतिक अवस्थाओं पर करे|
8. कटाई उपयुक्त अवस्था पर करे एवं छाया में सुखाये|
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