रबी की फसल को शीतकालीन फसल के रूप में जाना जाता है| इन्हें अक्टूबर या नवंबर माह में उगाया जाता है| इन फसलों की कटाई वसंत ऋतु में की जाती है| इन फसलों को बार-बार सिंचाई की आवश्यकता होती है| नवंबर माह में उगाई जाने वाली मुख्य फसल गेहूं, जौ, जई, दालें, सरसों, अलसी हैं| कृषि में वर्ष के हर महीने का अपना-अपना महत्व होता है|
नवंबर भी इससे अलग नहीं है| चूंकि नवंबर शरद ऋतु के मौसम की शुरुआत है, इसलिए इन दिनों में किसानों के पास बहुत सारे काम होते हैं| फार्मिंग ऑपरेशन में खेत से जुड़ी गतिविधियां शामिल होती हैं, फसल उगाना और कटाई करना, पशुपालन और मछली पकड़ना| इस लेख में कृषको की जानकारी के लिए नवंबर माह के कृषि कार्यों का उल्लेख किया गया है|
नवंबर माह में किये जाने वाले फसल उत्पादन कार्य
शस्य क्रियाएँ
1. खरीफ फसलों को काटने के बाद खलियान में अच्छी तरह सुखाकर औसाई कर दानों को साफ कर दें तथा साफ दानों को धूप में अच्छी तरह सूखाकर भण्डारण करें व उचित मुल्य आने पर बाजार में बेचें|
2. अरण्डी और मिर्च की फसलों में आवश्यकतानुसार (15 – 18 दिन) सिंचाई करें| अरंडी में फसल में 90 दिन वाली अवस्था पर 20 किलो नत्रजन तथा सौंफ में 45 दिन वाली अवस्था पर 30 किलों नत्रजन सिंचाई के साथ दें|
3. राया में पहली सिचाई 21 – 30 दिन बाद शाखा फुटते समय करें| चने में पहली सिचाई 40 – 50 दिन बाद करें| राया में 30 – 40 किलो नत्रजन प्रति हेक्टर पहली सिचाई के साथ दें| चनें व राया में बुवाई के 25 – 35 दिन बाद एक निराई-गुड़ाई करें|
4. गेहूं की बुवाई का कार्य करें| नवंबर मध्य तक इसकी बुवाई हेतु राज 4083, राज 4079, राज 4120, राज 4037, राज 3077, राज 3777, राज 4238, जी डब्ल्यु 11, राज 1482, राज मोल्यारोधक 1, एच डी 2967, डबल्यू एच 147, एच आई 1605 आदि किस्में काम में लेवें| देर से बुवाई (नवम्बर के चौथे सप्ताह से दिसम्बर के प्रथम सप्ताह) हेतु राज 3077, राज 3765, राज 3777 आदि किस्में काम में लेवें| भारी मिट्टी में एच डी 2967, राज 1482, डबल्यू एच 147, राज 3077, राज 3765 आदि किस्में काम में लेवें| लवणीय और क्षारीय मिटी तथा खारे पानी वाले क्षेत्रों में के आर एल 210, के आर एल 213 व खारचिया 65 किस्में काम में लेवें| गेहूं की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- गेहूं की खेती
5. ईसबगोल की बुवाई नवंबर के प्रथम पखवाड़े में करें| इसके लिये आर आई 1, जी आई 2 व आर आई 89 किस्में उपयुक्त हैं| ईसबगोल की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- ईसबगोल की खेती
6. जीरे की बुवाई नवंबर के प्रथम पखवाडे में करना उपयुक्त हैं| सभी शुष्क क्षेत्रों के लिये जी सी 4 किस्म उपयुक्त हैं| इसके अलावा आर जेड 223, आर जेड 19 और आर जेड 209 किस्में भी काम में ले सकते हैं| जीरे में खरपतवार नियन्त्रण हेतु पेण्डीमिथालीन सांद्र (38. 7 सीएस) 677 ग्राम को 600 लीटर पानी में घोल बनाकर बुवाई पूर्व अथवा पेण्डीमिथालीन तरल 30 ईसी एक किलोग्राम प्रति हैक्टेयर को 600 लीटर पानी में घोल बनाकर बुवाई के 2-3 दिन बाद नम जमीन पर छिडकाव करें, अथवा ऑक्साडायरजील या ऑक्सीफ्लोरफेन 50 ग्राम प्रति हैक्टेयर को 600 लीटर पानी में घोल बनाकर बुवाई के 18-20 दिन बाद छिडकाव करें| जीरे की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- जीरे की खेती
7. मैथी बुवाई का उपयुक्त समय, अक्टूबर के अन्तिम सप्ताह से 10 नवम्बर तक बुवाई की जा सकती है| बीजदर दाना मैथी के लिए 20 से 25 किलोग्राम बीज / हैक्टेयर उपयुक्त है| उपयुक्त किस्में; देशी मैथी, आर एम टी- 1, आर एम टी- 305, उर्वरक; 60 किलोग्राम नत्रजन +40 किलोग्राम फॉस्फोरस प्रति हैक्टेयर डालें| नत्रजन तीन बराबर भागों में बाँटकर 1/3 बुवाई के समय 1/3 द्वितीय सिंचाई एवं 1 / 3 मात्रा तृतीय सिंचाई पर डालें| मैथी की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मेथी की खेती
रोग नियंत्रण क्रियाएँ
1. गेहूं में बीजोढ रोग से बचाव हेतु 2 ग्राम थाइरम या 2.5 ग्राम मैन्कोजेब प्रति किलों बीज की दर से बीज को उपचारित कर बुवाई के काम में लेवें| जिन खेतों में अनावृत कण्डवा और पत्ती कण्डवा रोग हो वहां नियन्त्रण हेतु कार्बोक्सिन या कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलों बीज की दर से बीज को उपचारित करें| सेहूँ या गेगला रोग व पीली बाली विगलन रोग से बचाव के लिए बीज को 20 प्रतिशत नमक के घोल में डूबोकर नीचे बचे स्वस्थ बीज को अलग छांट कर साफ पानी में धोयें और सुखाकर बोने के काम में लेवें| उपर तैरते हल्के और रोगग्रसित बीजों को निकाल कर नष्ट करें| जिन खेतों में इस रोग का प्रकोप हो उनमें अगले कुछ वर्षो तक गेहॅू नहीं बोया जावे|
2. जौ में बीज द्वारा फैलने वाली बीमारियां जैसे आवृत कण्डवा एवं पत्तिधारी रोग से फसल को बचाने हेतु बीज को बोने से पूर्व 2.5 ग्राम मैन्कोजेब या 3 ग्राम थाईरम प्रति किलों बीज की दर से उपचारित करें| जहां अनावृत कण्डवा का प्रकोप होता हो वहां 2 ग्राम कार्बोक्सिन प्रति किलों बीज की दर से उपचारित करें|
3. राया में सफेद रोली रोग के लक्षण निचली पत्तियों पर दिखाई पडते ही मैन्कोजेब या जाइनेब या रिडोमिल एम जेड 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें|
4. जीरा की बुवाई पुर्व बीज को कार्बेण्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलों या 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरडी प्रति किलों बीज से बीजोपचार करें|
5. ईसबगोल में तुलासिता रोग के प्रकोप से फसल को बचाने हेतु मेटाले सिल 35 एस डी 5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करके बोये|
कीट नियंत्रण क्रियाएँ
1. इस माह में फसल की समय-समय पर निगरानी रखना आवश्यक हैं| समय पर बुवाई नहीं होने पर कीट प्रकोप घट बढ सकता हैं| अतः यदि किसी कीट विशेष का आक्रमण हो तो तुरन्त रोकथाम के उपाय करना श्रेयकर रहता है|
2. गेहूं व चना के दीमक ग्रस्त क्षेत्रों में खेत की अन्तिम जुताई के समय क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलों ग्राम प्रति हैक्टेयर दर भूमि में अच्छी तरह मिलायें| भूमि उपचार की आवश्यकता नहीं हो तो बीजोपचार करें| इसके लिए 400-450 मिली क्लोरपायरीफॉस 20 ईसी को आवश्यकतानुसार पानी में घोल कर प्रति 100 किलों बीज पर समान रूप से छिड़क कर उपचारित करें| बीजों को छाया में सुखाकर बुवाई करें|
दीमक की रोकथाम हेतु 400-450 मिली क्लोरपायरीफॉस 20 ईसी प्रति 100 किलों बीज से बीजोपचार या कटवर्म तथा दीमक आदि के विरूद्ध क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलों ग्राम प्रति हैक्टेयर दर से भूमि उपचार करना अधिक प्रभावकारी रहता हैं| यदि भूमि उपचार नहीं किया गया हो तो फसल पर कटवर्म का प्रभाव दिखते ही तुरन्त क्यूनालफॉस 1.5 प्रति चूर्ण का भूरकाव 25 किलों प्रति हैक्टयर दर से सायकाल में करें|
3. सरसों में पेटेंड बग, लीफ वेबर तथा आरामक्खी की रोकथाम हेतु युवा फसल पर क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 20 किलों प्रति हैक्टेयर या मोनोक्रोटोफॉस 36 एसएल एक लीटर प्रति हेक्टर दर से भुरके / छिड़के| सरसों के ऐफिड के प्रबन्धन हेतु परभक्षी कायसोपरला का यदि प्रयोग करना हो तो उसकी व्यवस्था हेतु कार्यवाही करें| इसी प्रकार चने की सुंडी हेलीकोवर्पा के प्रबन्धन हेतु फेरोमोन ट्रेप्स या परभक्षी कीट एवं एनपी वायरस की व्यवस्था करें| ताकि समय पर उसकी उपलब्धता हो सकें|
नवंबर माह के कृषि कार्यों पर त्वरित नजर
1. गेहूं की सामान्य सिंचित बुवाई हेतु उन्नत किस्में: राज 4037, राज 4079, राज 4120, राज 3077, जी डब्ल्यू. 190 तथा एच आई 8498 (काठिया), एच आई 8713 की बुवाई 15 नवम्बर से प्रारम्भ करें (बुवाई के समय अधिकतम व न्यूनतम तापमान का औसत 20 डिग्री सेल्सियस रहे)|
2. जौ की उन्नत किस्में: आर डी 2052, आर डी 2035, आर डी 2503, आर डी 2508, आर डी 2552, आर डी 2668 और आर डी 2715 की बुवाई नवम्बर के प्रथम पखवाड़े से प्रारम्भ करें| जौ की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- जौ की खेती
3. बारानी खेती में अलसी की उन्नत किस्म कोटा बारानी अलसी – 3 व कोटा बारानी अलसी -4 की बुवाई 1 से 15 नवंबर तक करें| अलसी की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- अलसी की खेती
4. सिंचित अलसी हेतु 50 किग्रा नत्रजन, 30 किग्रा फॉस्फोरस, 30 किग्रा पोटाश तथा 60 किग्रा गन्धक ( 375 किलो जिप्सम) प्रति हैक्टर देवें| जिंक की कमी वाली मृदाओं में 25 किग्रा जिंक सल्फेट प्रति हैक्टर देवें|
अगर आपको यह लेख पसंद आया है, तो कृपया वीडियो ट्यूटोरियल के लिए हमारे YouTube चैनल को सब्सक्राइब करें| आप हमारे साथ Twitter और Facebook के द्वारा भी जुड़ सकते हैं|
Leave a Reply