हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है| कृषि में बागवानी का विशेष महत्व है और नींबूवर्गीय फलों का महत्वपूर्ण स्थान है| नींबूवर्गीय फलों में मौसमी, संतरा, नींबू, मीठा नींबू, माल्टा तथा ग्रेप फूट मुख्य हैं| इन फलों में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, जो स्कर्वी बीमारी के निदान के लिए सहायक है| इसके अतिरिक्त इन फलों में विटामिन- ए, बी और खनिज तत्व भी पाये जाते हैं| इन सभी फलों पर अनेक कीटों का आक्रमण होता है|
परन्तु ज्ञान के अभाव में किसान भाई इनका सही नियंत्रण नहीं कर पाते, जिससे इनका उत्पादन व गुणवत्ता घट जाती हैं| इस लेख में नींबूवर्गीय फलों में लगने वाले मुख्य कीटों की पहचान व उनके नियंत्रण की जानकारी का उल्लेख है| ताकि कृषक इन्हें जानकर अपने बागों को इन कीटों से होने वाली हानि से बचा सकें| नींबूवर्गीय फलों की बागवानी वैज्ञानिक तकनीक से कैसे करें की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- नींबू वर्गीय फलों की खेती कैसे करें
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नींबूवर्गीय फलों के कीट और नियंत्रण
नींबू का सिल्ला- नींबू का सिल्ला नींबूवर्गीय के सभी फलों का एक प्रमुख कीट है| इस कीट के गोल, चपटे व नारंगी पीले रंग के नवजात व भूरे रंग के प्रौढ़ कोंपलों, टहनियों तथा पत्तों से रस चूसते हैं| इनके रस चूसने से पत्ते व टहनियाँ पीले पड़ कर अंत में सूख जाते हैं| जिससे उपज व फलों के गुणों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है|
यद्यपि यह कीट साल भर सक्रिय रहता है, परन्तु मार्च से अप्रैल व जुलाई से सितम्बर तक अधिक हानि पहुंचाता है| वर्ष भर में इसकी 8 से 10 पीढ़ियां होती हैं| माल्टा और मीठे नींबू पर इसका प्रकोप अधिक होता है| इसके शिशु 10 से 35 दिनों में विकसित होकर प्रौढ़, बन जाते हैं व प्रौढ़ की अपेक्षा अधिक हानिकारक होते हैं|
नींबू का पत्ती सुरंग कीट- पत्ती सुरंग कीट नींबूवर्गीय फलों के पत्तों को नुकसान पहुंचाने वाला एक प्रमुख कीट है| इसकी हल्के पीले रंग की बारीक सूण्डियां पत्तों की दोनों सतह पर टेड़ी-मेड़ी व चमकीली सुरंगें बनाती हैं| प्रभावित पत्तियां व टहनियां सूख जाती हैं और पौधों की बढ़वार रुक जाती है| प्रकोपित पत्तियों पर फफूंदी व कोढ़ जैसी बीमारी हो जाती है|
इसका प्रकोप नींबूवर्गीय फलों में फरवरी से मार्च तथा मई से अक्तूबर तक अधिक होता है| इस कीट की सूण्डियां 5 से 30 दिन तक सुरंगों में रह कर पत्तों को खाती हैं| इसका प्रकोप मुलायम और रसदार पत्तों पर अधिक होता है तथा नर्सरी में छोटे पौधे इसके प्रकोप से नष्ट हो जाते हैं|
रोकथाम के उपाय- नींबूवर्गीय फलों का सिल्ला व पत्ती सुरंग कीट के अधिक प्रकोप होने की अवस्था में रोकथाम के लिए 750 मिलीलीटर ऑक्सीडेमेटान मिथाइल 25 ई सी (मेटासिस्टॉक्स) या 625 मिलीलीटर डाईमेथोएट 30 ई सी (रोगोर) को 500 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें|
सावधानियां-
1. परागण को बाधित होने से रोकने के लिए व मधुमक्खी के बचाव के लिए फूल आने के समय कीटनाशक दवाओं का छिड़काव न करें|
2. ध्यान रखें कि छिड़काव नींबूवर्गीय फलों के सभी पौधों पर हो, चाहे वे बाग के रूप में हों या बाड़ के तौर पर लगाए गए हों|
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सफेद मक्खी व काली मक्खी- इस कीट के नवजात चपटे, हल्के पीले रंग के और इसके शरीर पर बाल होते हैं| प्रौढ़ों के शरीर व पंखों पर सफेद रंग का पाऊडर होता है| काली मक्खी के नवजात चपटे, अंडाकार, कांटेदार व गहरे भूरे या काले रंग के होते हैं, जबकि प्रौढ़ हल्के नीले रंग के होते हैं| शिशु व प्रौढ़ दोनों ही मुलायम पत्तों से रस चूसते हैं| जिसके कारण पत्ते पीले होकर मुड़ जाते हैं तथा सूख कर गिर जाते हैं|
शिशु 25 से 70 दिनों तक पत्तियों की निचली सतह से चिपके रहकर प्रौढ़ में बदल जाते हैं| परन्तु प्रौढ़ ज्यादा दिन जीवित नहीं रहते| वैसे तो यह कीट मार्च से सितम्बर तक सक्रिय रहते हैं, परन्तु मार्च से अप्रैल व अगस्त से सितम्बर में इनका प्रकोप अधिक होता है| साल में इसकी दो पीढ़ियां होती हैं|
रोकथाम के उपाय-
1. नींबूवर्गीय फलों के बाग में सिफारिश से ज्यादा पौधे न लगाएं व पानी की निकासी पर विशेष ध्यान दें|
2. इस कीट के प्रबन्धन के लिए 500 मिलीलीटर मोनोक्रोटोफॉस 36 एस एल को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ छिड़काव करने से इसका नियन्त्रण किया जा सकता है|
नींबू की तितली- नींबूवर्गीय फलों के पौधों का यह मुख्य कीट है| जिसकी छोटी सूण्डियां भूरे काले रंग की होती हैं, जिन पर सफेद धब्बे होते हैं| विकसित होने पर ये हरे रंग की हो जाती हैं और आसानी से दिखाई नहीं देतीं| ये सूण्डियां मुलायम पत्तियों को किनारों से मध्य शिराओं तक खाती हैं| नर्सरी और छोटे पौधों व मुलायम पत्तियों पर इसका नुकसान अधिक होता है|
14 से 30 दिनों में ये सूण्डियां पूरी विकसित हो जाती हैं| माल्टा पर इसका प्रकोप अत्यधिक होता है| इस कीट की केवल सूण्डियां ही हानि पहुंचाती हैं तथा सितम्बर से अक्तूबर में इसका प्रकोप अधिक होता है| अप्रैल से नवम्बर तक इसकी 4 से 5 पीढ़ियां होती हैं| यह प्यूपा की अवस्था में शीत निष्क्रिय रहती हैं|
रोकथाम के उपाय-
1. जहाँ तक संभव हो, सूण्डियों व प्यूपा को हाथ से पकड़कर नष्ट करें|
2. इसकी रोकथाम के लिए वही कीटनाशक प्रयोग में लें जो नींबू की सफेद मक्खी व काली मक्खी के नियंत्रण के अंतर्गत बताए गए हैं|
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छाल खाने वाली सूण्डी- यह कीट प्रायः दिखाई नहीं देता परन्तु जहां पर टहनियां अलग होती हैं, वहां पर इसका मल व लकड़ी का बुरादा जाले के रूप में दिखाई देता है| इस कीट की केवल सूण्डी ही हानिकारक होती है| जो दिन के समय तने के अन्दर सुरंग बनाती है तथा रात को छेद से बाहर निकल कर जाले के नीचे रहकर छाल को खाती है और खुराक नली को खाकर नष्ट कर देती है|
जिससे पौधों के दूसरे भागों में पोषक तत्व नहीं पहुँच पाते हैं| बहुत तेज़ हवा चलने पर प्रकोपित टहनियां एवं तने टूट कर गिर जाते हैं| जिन बागों की देखभाल नहीं हो तो उनके पुराने वृक्षों पर इसका आक्रमण अधिक होता है| वर्ष में इसकी एक ही पीढ़ी होती है जो जून से जुलाई के महीने से शुरू होती है|
रोकथाम के उपाय-
1. नींबूवर्गीय फलों के बाग को साफ-सुथरा रखें व निर्धारित संख्या से ज्यादा पेड़ न लगाएं|
2. जाले हटाने के बाद ही कीटनाशक का प्रयोग करें|
3. कीटनाशकों का प्रयोग आसपास के सभी पेड़ों पर भी करें|
4. सितम्बर से अक्तूबर में 10 मिलीलीटर मिथाइल पैराथियान 50 ई सी को 10 लीटर पानी में मिलाकर ऐसे घोल को सुराखों के चारों ओर छाल पर लगाएं|
5. फरवरी से मार्च के महीनों में 40 ग्राम कार्बारिल 50 प्रतिशत घुलनशील पाऊडर को 10 लीटर पानी में मिलाएं और रूई के फोहे ऐसे दवाई के घोल में डुबोकर किसी बारीक लंबे तार की सहायता से छेदों के अंदर डालें व सुराखों को गीली मिट्टी से बंद कर दें तथा 10 प्रतिशत मिट्टी के तेल में 1 प्रतिशत साबुन या सर्फ मिलाकर (एक लीटर मिट्टी का तेल + 100 ग्राम साबुन + 9 लीटर पानी) भी काम में ले सकते हैं|
6. ऊपर दी गई विधि के अतिरिक्त दो मिलीलीटर डाईक्लोरवास 76 ई सी या 5 मिलीलीटर मिथाइल पैराथियान 50 ई सी को 10 लीटर पानी में घोलकर छिद्रों में 5 मिलीलीटर घोल डाल दें और इसके बाद सुराखों को मिट्टी से बंद कर दें|
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दीमक- यह एक प्रकार का सामाजिक कीट है| जिसका प्रकोप नर्सरी व शुष्क रेतीली जमीन में लगाये नए-नए पौधों में अधिक होता है| दीमक जमीन में रहकर वृक्षों की जड़ों को खाती है और तने को खोखला कर ऊपर की ओर बढ़ती है| वृक्षों की बाहरी सतह पर मिट्टी की सुरंग बनाकर छाल को खाती है|
जीवित पौधों के साथ-साथ यह सूखी लकड़ियों को भी हानि करती है| यह कीट पूरे वर्ष सक्रिय रहता है, किन्तु गर्म व शुष्क मौसम में इसका प्रकोप अधिक होता है| दीमक प्रायः सभी फलदार वृक्षों को हानि पहुंचाती है|
रोकथाम के उपाय-
1. खेत को साफ-सुथरा रखें और कोई भी चीज़, जैसे ढूंठ, गली-सड़ी, सूखी लकड़ी इत्यादि न रहने दें, जो दीमक के प्रकोप को बढ़ावा देती है|
2. नींबूवर्गीय फलों के वृक्षों के आसपास गहरी जुताई करें व पानी दें, जिससे दीमक का प्रकोप कम हो जाए|
3. गोबर की हरी व कच्ची खाद प्रयोग में न लायें क्योंकि यह खाद दीमक को बढ़ावा देती है|
4. जहां तक हो सके रानी दीमक को नष्ट करें, परन्तु रानी दीमक को नष्ट करना इतना आसान नहीं है क्योंकि यह बाम्बी के अन्दर कई मीटर नीचे जमीन में रहती है|
5. अत: पौधे लगाने से पहले रासायनिक विधि अवश्य अपनाएं और इसके लिए गड्ढे में 50 मिलीलीटर क्लोरपाईरिफॉस 20 ई सी 5 लीटर पानी में मिलाकर प्रति पौधा (गड्ढे) में पौधे लगाते समय डालें और दवाई का घोल डालने से पहले प्रत्येक गड्ढ़े में 2 से 3 बाल्टी पानी डाल दें तथा नये पौधे लगाने के बाद एवं लगे हुए पौधों में प्रकोप होने पर 1 लीटर क्लोरपाईरिफॉस 20 ई सी प्रति एकड़ सिंचाई करते समय डालें| इस कीट को मारने की अपेक्षा यह अच्छा रहता है कि ऐसे उपाय किये जायें कि इस कीट का प्रकोप ही न हो|
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