नींबू वर्गीय पौधों का प्रवर्धन हेतु भूमि व जलवायु को देखते हुए ओजस्विता और फलन एवं अच्छे उत्पादन के लिए उपयुक्त मूलवृन्त लेकर उस पर सम्बन्धित किस्म का उपरोपण किया जाता है| नींबू वर्गीय पौधों किन्नू और माल्टा के लिए कलिकायन उपयुक्त प्रवर्धन विधि है|
इन किस्मों के बीजू पौधों से वांछित सफलता नहीं मिलती, नींबू एवं लेमन में प्रवर्धन बीज और वानस्पतिक विधि दोनों ही प्रकार किया जाता है| वनस्पतिक विधि में गूटी, दाब, कलम लगाना और कलम विधि प्रयोग में लाई जा सकती है| निम्बू वर्गीय फलों की बागवानी की जानकारी के लिए यहां पढ़ें- नींबू वर्गीय फलों की खेती कैसे करें
मूलवृन्त का महत्व
किसी भी महत्वपूर्ण किस्म का फल लगाने से पहले यह देखना आवश्यक है, कि उस क्षेत्र की भूमि और जलवायु कैसी है| उसी के अनुसार मूलवृन्त का चयन करते हैं, अलग-अलग क्षेत्रों के लिए भिन्न-भिन्न किस्म के मूलवृन्त की सिफारिश की जाती है| नींबू वर्गीय पौधों का प्रवर्धन हेतु एक मूलवृन्त सभी स्थानों के लिए उपयुक्त नहीं रहता, अनुचित मूलवृन्त पर कलिकायन करने से नये वृक्ष शीघ्र ही नष्ट हो सकते हैं| उन पर फलों की मात्रा कम होती है और फलों का आकार अच्छा नहीं होता|
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मूलवृन्त तैयार करना
नींबू वर्गीय पौधों का प्रवर्धन के लिए मूलवृन्त तैयार करने के लिए मूलवृन्त के फलों के बीज निकालकर सितम्बर से अक्तूबर में इसकी बीजाई की जाती है| लगभग एक क्विंटल फलों से बीज निकालकर लगभग 4500 से 5000 मूलवृन्त पौधे तैयार किए जा सकते हैं| इसकी बीजाई ऊंची उठी क्यारियों में की जाती है, जो कि 2 से 3 मीटर लम्बी, दो फुट चौड़ी और आधा फुट जमीन से ऊंची होती है|
बीजाई के 3 से 4 सप्ताह के बाद अंकुरण मूलवृन्त का पेड़ और फल हो जाता है| छोटे पौधों को शीत लहर और पाले से बचाने के लिए सूखी घास का छप्पर बनाकर रात को ढक दें, एवं दिन में हटा लें| समय-समय पर सिंचाई और गुड़ाई करते रहना चाहिए|
मूलवृन्त की रोपाई
जब ये पौध 15 सेंटीमीटर उंची तो बड़ी समतल क्यारियों में इसे स्थानांतरित कर देते हैं| कतार से कतार का फासला एक फुट और दो लाईनों के बाद दो फूट जगह छोड़ी जाती है| पौधे से पौधे की दूरी 25 सेंटीमीटर रखनी चाहिए, इससे पौधों को बढ़ने के लिए पर्याप्त स्थान मिल जाता है, साथ ही साथ उन पर कलिकायन करने में सुविधा रहती है|
नींबू वर्गीय पौधों का प्रवर्धन हेतु, उन क्यारियों में भी अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद डाली हुई होनी चाहिए और मिट्टी की खुदाई करके मिट्टी पर्याप्त भुरभुरी बना लेनी चाहिए| इसके बाद उपर्युक्त बताये फासले पर पौध लगा कर सिंचाई कर दें| क्यारियों से पौध निकालने से पूर्व उनमें पानी दे देना चाहिए, ताकि उनको मिट्टी के साथ उठाने में सुविधा रहे और उनकी जड़ों को कोई नुकसान नहीं पहुंचे| पौधों की रोपाई बसंत या वर्षा ऋतु में करें|
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कलिकायन या चश्मा लगाना
नींबू वर्गीय पौधों का प्रवर्धन के लिए एक वर्ष का मूलवृन्त जो एक सेंटीमीटर व्यास का एक पैन्सिल की मोटाई का स्वस्थ निरोग और 10 पत्तों वाला पौधा कलिकायन के लिए उपयुक्त रहता है| कली उस समय लगानी चाहिए, जब पौधों में रस का संचार पूरी तरह हो, मार्च या अगस्त का महीना इस हेतु उपयुक्त समय है| अब संस्थापित चयनित और उपयुक्त मातृ वृक्ष से कलियां लेकर उन्हें मूलवृन्त पर अच्छे से बिठा दें|
नींबू वर्गीय पौधों का प्रवर्धन हेतु, नींबू वर्ग में टी-बडिंग तरीका काम में लिया जाता है| मूलवृन्त पर टी के आकार का कट देकर उस स्थान पर आँख बिठा कर ऊपर से एल्काथिन या पोलीथिन से बांध दिया जाता है| कली लगाने के 2 से 3 सप्ताह बाद कली फूटने लगती है, जब यह कली 15 सेंटीमीटर लम्बी हो जाती है, उस समय कलिकायन के स्थान के ऊपर से मूलवृन्त का भाग तेज चाकू से काट दें, इस प्रकार नया पौधा तैयार हो जाता है|
अब एल्काथिन या पोलीथिन की पट्टी भी हटा दें, नर्सरी में बताये गये तरीके अनुसार देखभाल करते रहना चाहिए| कली लगाने के करीब 8 माह बाद ये पौधे रोपाई योग्य हो जाते हैं, कली कोमल शाखा के मध्य से लेनी चाहिए| कलिकायन के लिए फूली हुई कक्ष कलिका लेनी चाहिए, जिसकी वर्तमान मौसम में वृद्धि हुई हो और परिपक्व हो गई हो, ऐसी शाखाएँ गोलाकार, कम कांटों वाली व विषाणु रोगों से मुक्त होनी चाहिए|
इस प्रकार से किसान या बागवान बन्धु नींबू वर्गीय पौधों का प्रवर्धन उपयोगी और आधुनिक तकनीक द्वारा कर सकते है और अपनी बागवानी या व्यावसाय के लिए उत्तम गुणवता के पौधे तैयार कर सकते है|
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