नींबू वर्गीय फलों की उन्नत बागवानी, भारत में उगाये जाने वाले फल वृक्षों में अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं, जो कि विभिन्न प्रकार की भूमि और जलवायु में उगाये जा सकते हैं| नींबू वर्गीय फलों के अन्तर्गत नारंगी, सन्तरा, कागजी नीबू, लैमन, ग्रेपफूट, चकोतरा आदि फल आते हैं| नींबू वर्गीय फलों का व्यवसायिक और अन्य गुणों की दृष्टि से विशेष महत्व है| भारत के मैदानी क्षेत्रों के साथ-साथ पर्वतीय क्षेत्रों के घाटी और मध्यम ऊँचाई के स्थानों में नींबू वर्गीय फलों का उत्पादन व्यवसायिक रूप से किया जाता है|
नींबू वर्गीय फलों की उन्नत बागवानी गुणवत्तायुक्त उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि के लिए उद्यानों में वार्षिक कार्यक्रम चलाया जाना अति आवश्यक है, जिससे पोषण प्रबन्धन और कीटों, रोगों व विकारों का सामयिक प्रबन्धन करके नींबू वर्गीय फलों का गुणवत्तायुक्त उत्पादन प्राप्त किया जा सके| नींबू वर्गीय फलों की उन्नत खेती की अधिक जानकारी के लिए यहां पढ़ें- नींबू वर्गीय फलों की खेती कैसे करें
केन्द्रीय नींबू वर्गीय फल कृषि अनुसंधान और अन्य शोध संस्थानों द्वारा प्रदान की गयी नवीनतम वैज्ञानिक संस्तुतियों के आधार पर नींबू वर्गीय फलों की बागवानी का वार्षिक कार्यक्रम निम्नवत् प्रस्तुत किया जा रहा है, जो इस प्रकार है, जैसे-
जनवरी
1. सिट्रस सिला कीट “डाई बैक” और “ग्रिनिंग’ रोग फैलाने में सक्षम है, जिससे पेड़ धीरे-धीरे सूखकर मर जाते हैं| इस कीट के नियन्त्रण के लिये डायमेथोएट 2 मिलीलीटर या एसिफेट 2 ग्राम या इमिडाक्लोरोपिड 0.50 मिलीलीटर प्रति लिटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें|
2. फाइटोपथोरा जनित गमोसिस रोग के नियन्त्रण के लिए वृक्ष के तने के ग्रसित भाग को जहाँ से गोंद का स्त्राव हो रहा है, को तेज छुरी से छीलने के पश्चात् पोटेशियम परमेगनेट द्रव 10 ग्राम प्रति लिटर पानी से धोकर तने पर मेफेनोक्जॉम एम जेड 68 (मेटालेक्जील 4 प्रतिशत, मेंकोजेब 64 प्रतिशत डब्लूपी) या फोसाटील एएल का पेस्ट लगायें|
3. नींबू वर्गीय फलों की उन्नत बागवानी हेतु वृक्षों पर थावले बनायें, पेड़ के नीचे की झुरियों को निकाल दें एवं प्रत्येक वृक्ष की आयु के अनुसार संस्तुत मात्रा में खाद और उर्वरक प्रबन्धन करें| इसके अलावा वृक्ष की जड़ से ऊपर की ओर कम से कम 2 फीट तक चूने का लेप अवश्य लगायें| वृक्षों की पुनिंग करें, सूखी और गुच्छे के रूप में विकसित टहनियों को काट दें तथा कटे हुए स्थान पर चौबटियाँ पेस्ट का लेप अवश्य करें|
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फरवरी
1. सिट्रस सिला कीट का प्रकोप होने पर नियन्त्रण के लिए इमिड़ा 0.5 मिलीलीटर या एबामेक्टीन 0.42 मिलीलीटर या डायमेथोएट 2 मिलीलीटर एक लिटर पानी में अच्छी तरह से मिलाकर वृक्षों पर छिड़काव करें| पत्ती वेधक इल्ली (लीफ माइनर) के नियन्त्रण के लिये फेनवलरेट 20 ईसी एक मिलीलीटर प्रति लिटर पानी का छिड़काव करें|
2. एफिड के प्रकोप के नियन्त्रण के लिये ड्रायमेथोएट 1.5 मिलीलीटर या क्युनालफॉस 1.5 मिलीलीटर प्रति लिटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें, अगर कीट का प्रकोप फिर भी है तब दूसरा छिड़काव एक सप्ताह के बाद करें|
मार्च
1. फाइटोपथोरा जनित गमोसिस रोग के नियन्त्रण के लिए जनवरी महीने में दी गयी संस्तुति का अनुसरण करें|
2. सिट्रस सिला और पत्ती वेधक इल्ली (लीफ माइनर) के नियन्त्रण के लिए फरवरी महीने में दी गयी संस्तुति का अनुसरण करें|
3. नींबू वर्गीय फलों की उन्नत बागवानी के लिए जिन स्थानों पर सिंचाई के साधन उपलब्ध नहीं हैं, वहाँ नमी का संरक्षण, खरपतवार नियन्त्रण 10 से 15 सेंटीमीटर मोटी पलवार बिछाकर करना चाहिए|
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अप्रैल
1. सिट्रस माईट का प्रकोप होने की अवस्था में पत्तियों पर धूल पसरी जैसी दिखती है, लेकिन इसमें अनगिनत प्रौढ़ और शिशु रस चुसते दिखते हैं| इसके नियन्त्रण के लिये डायकोफाल 2 मिलीलीटर या प्रोपरगाईट 1 मिलीलीटर या एबामेक्टीन 0.37 मिलीलीटर या ईथिऑन 2 मिलीलीटर प्रति लिटर पानी में मिश्रण तैयार करके छिड़काव करें|
2. नींबू वर्गीय फलों की उन्नत बागवानी हेतु छोटे व नवरोपित पौधों की एक सप्ताह के अन्तराल पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए| जिन स्थानों पर सिंचाई के साधन उपलब्ध नहीं हैं, वहाँ नमी का संरक्षण, खरपतवार नियन्त्रण 10 से 15 सेंटीमीटर मोटी सुखी पलवार बिछाकर करना चाहिए|
मई
1. छाल खानेवाली इल्ली का प्रकोप बगीचों में देखने को मिलता है| यह कीट अस्वच्छ बगीचों में अधिक दिखाई देते हैं| रात्रि के समय कीट दो डालियों के बीच के छिद्र से बाहर निकलकर छाल खाता है| ग्रसित पेड़ों की आयु एवं उत्पादन क्षमता कम हो जाती है| नींबू वर्गीय फलों की उन्नत बागवानी के लिए नियन्त्रण ग्रसित भाग पर से जाले निकालकर नलिका के आस-पास के भाग को साफ करने के बाद कीट नाशक डायक्लोरोवास 5 मिलीलीटर प्रति लिटर पानी में मिश्रण बनाकर छिद्र में डिस्पोजेबल सिरिंज से डालें और छेद को रूई से अच्छी तरह बन्द कर दें|
2. मिलिबग के नियन्त्रण के लिये वृक्ष के तने के चारो ओर की मिट्टी खोदकर भुरभुरी करें| इसके अतिरिक्त वृक्ष के तने पर प्लास्टिक का गोल पट्टा लगाए एवं उस पर चिपचिपे पदार्थ लगायें, उदाहरण के लिए मोबाईल तेल या ग्रीस| बगीचे में चीटों की मांद को नष्ट करें| इसके लिये उनके बिल में क्लोरपायरिफॉस 20 ईसी 5 मिलीलीटर प्रति लिटर पानी में मिलाकर घोल बनाकर डालें| मिलीबग के नियन्त्रण के लिये क्लोरपायरीफॉस 20 ईसी 2 मिलीलीटर या डायक्लारोव्हास 2.5 मिलीलीटर या डायमेथोएट 2 मिलीलीटर एक लिटर पानी में मिश्रण बनाकर वृक्ष तथा तने पर छिड़काव करें|
3. नींबू वर्गीय फलों की उन्नत बागवानी हेतु छोटे और नवरोपित पौधों की एक सप्ताह के अन्तराल पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए| जिन स्थानों पर सिंचाई के साधन उपलब्ध नहीं हैं, वहाँ नमी का संरक्षण, खरपतवार नियन्त्रण 10से 15 सेंटीमीटर मोटी पलवार बिछाकर करना चाहिए|
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जून
1. जिन बागवानों ने नये बागों की स्थापना के लिए गड्ढे मई में खोदकर रखे हों, वे नींबू वर्गीय फलों की उन्नत बागवानी के लिए गड्ढो में दो भाग मिट्टी, एक भाग रेती एवं एक भाग सड़ी गोबर की खाद और एक किलो सुपरफास्फेट मिलाकर अच्छी तरह भर दें, साथ में प्रत्येक गड्ढे में क्लोरपायरिफॉस पाउडर मिलायें ताकि दीमक न लग सके|
2. इस माह में नींबू पर कैंकर बैक्टीरियल रोग फैलने की आशंका रहती है, अतएव रोग ग्रसित पत्तियों, टहनियों को काट छांटकर जला दें| कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 180 ग्राम में स्ट्रेपटोसाईक्लिीन 6 ग्राम 60 लिटर पानी में मिलाकर बारिश के शुरुआत में वृक्ष पर अच्छी तरह छिड़काव करें| छिड़काव 30 दिन के अन्तराल पर दुबारा करें|
3. इस माह में सिट्रस सिल्ला, पत्री भेदक इल्ली तथा पत्ती खाने वाली इल्ली जैसे कीट के प्रकोप की रोकथाम हेतु डायमेथोएट 30 ईसी 15 मिलीलीटर या इमिडाक्लोरपिड 5 मिलीलीटर या क्विनालफॉस 15 मिलीलीटर कीटनाशक को 10 लिटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें|
जुलाई
1. वर्षा के मौसम में बगीचे से पानी की निकासी का प्रबन्ध अच्छा होना चाहिये| बारिश के पानी को सुचारु रुप से निकालने के लिये खेत में पानी के उतार की ओर प्रत्येक दो वृक्षों के कतार के बाद 30 सेंटीमीटर गहरे, 45 सेंटीमीटर चौड़े तथा 30 सेंटीमीटर तल की चौड़ाई की नालियां बनाये| वृक्षों के चारों ओर भूमि समतल रखें, ताकि पानी जमा न होने पाये|
2. नींबू के पेड़ों पर बारिश के दौरान कैंकर नामक रोग तेजी से फैलता है| इसकी रोकथाम करने के लिये सम्पूर्ण पेड़ों पर कॉपर ऑक्सिक्लोराइड 180 ग्राम और स्ट्रेप्टोसायक्लीन 6 ग्राम 60 लिटर पानी में मिलाकर समान्तर छिड़काव करें, दूसरा छिड़काव 30 दिन के अन्तराल पर करें|
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अगस्त
1. अत्यधिक वर्षा के लिए बगीचे में से जल निकास का प्रबन्ध अच्छा होना चाहिये| बारिश के पानी का सुचारु रुप से निकासी के लिये बनाई गई नालियों को समय समय पर अच्छी तरह साफ कर लें और मिट्टी या कचरा नालियों में से निकाल फेकें, उत्तम जल निकास के अभाव में पेड़ों के सूखने एवं फाइटोपथोरा जनित रोगों का खतरा रहता है|
2. सिट्रस कैंकर रोग का फैलाव बारिश में अत्यधिक रहता है, कैंकर के नियन्त्रण के लिये पेड़ो पर कॉपर आक्सीक्लोराइड 180 ग्राम तथा स्ट्रेप्टोसायक्लीन 6 ग्राम 60 लिटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें, जरुरत पड़ने पर दूसरा छिड़काव 30 दिन के अन्तराल पर करें|
3. इस माह में वृक्षों पर पत्तियां खाने वाली इल्ली का प्रकोप रहता है, प्रौढ़ एक रंग बिरंगी तितली है, जिसके पंख पीले रंग पर काले धब्बे लिये होते है| इसकी इल्ली शुरु में कॉफी के रंग की होती है, लेकिन बड़ी होने पर हरे रंग में रुपान्तरित हो जाती है| इल्ली कोमल पत्तियों को कुतर जाती है और केवल मध्य रेशे छोड़ देती है| समय पर नियन्त्रण नहीं किया गया तो सम्पूर्ण पेड़ पत्ती रहित हो जाता है|
इस इल्ली के नियन्त्रण के लिये डायमेथोएट 1.5 मिलीलीटर या फेनवलरेट 2 मिलीलीटर या साइपरमेथ्रिन 25 ईसी 1 मिलीलीटर प्रति लिटर पानी में मिलाकर छिडकाव करें| इसके अतिरिक्त डाईपेल 0.05 प्रतिशत घोल का छिड़काव भी लाभदायक है|
सितम्बर
1. अगर खेत में वर्षा का जल इकठ्ठा है, तो बगीचे के ढलान की ओर नाली बनाकर अत्याधिक पानी को बाहर निकाल दें| नींबू वर्गीय फलों की उन्नत बागवानी हेतु खड़ा पानी हानिकारक है|
2. फल मक्खी के नियन्त्रण के लिये मिथाईल युजिनॉल 0.1 प्रतिशत और 0.05 प्रतिशत मेलाथिआन के ट्रेप को वृक्ष पर लटकाएं, एक हैक्टेयर के लिये 25 ट्रेप लगाए, प्रत्येक का 7 दिन में बेट बदल देना चाहिए|
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अक्टूबर
1. फायटोथोरा ग्रस्त पेड़ो पर मेफेनोक्झाम (एम झेड- 68) 2.50 ग्राम या फोसेटील एएल 2.5 ग्राम एक लिटर पानी में मिलाकर सम्पूर्ण वृक्ष पर अच्छी तरह छिडकाव करें| इसके अतिरिक्त यह मिश्रण वृक्ष के तने के चारो तरफ भूमि में डालें|
2. नींबू वर्गीय फलों की उन्नत बागवानी या उत्तम पैदावार के लिए बगीचे में से खरपतवार नष्ट करें और खेत की अच्छी तरह से जुताई करें|
नवम्बर
फलों की उचित परिपक्व अवस्था में तुड़ाई कार्य आरम्भ करें, तुड़ाई के पश्चात् वृक्षों से निर्जीव टहनियाँ काटकर नष्ट कर दें और पेड़ों पर कार्बेन्डाजिम 75 डब्लूपी एक ग्राम प्रति लिटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें|
दिसम्बर
वृक्षों पर से निर्जीव टहनियाँ काटकर नष्ट कर दें और कार्बेन्डाजिम 75 डब्लूपी एक ग्राम प्रति लिटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें|
ध्यान दें- उक्त कार्यक्रम क्षेत्र विशेष में रोगों और कीटों के प्रकोप को दृष्टिगत रखते हुए आवश्यकतानुसार सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए| छिड़काव से पूर्व किसी भी समस्या के निराकरण हेतु विशय विशेषज्ञों से अवश्य परामर्श कर लेना चाहिए|
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अन्य महत्वपूर्ण कार्य
उद्यानों में कार्बनिक खादों का प्रयोग दिसम्बर के अन्तिम सप्ताह से जनवरी के प्रथम सप्ताह तक अवश्य कर देना चाहिए| रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग 2 से 3 भागों में बांटकर अप्रैल, जुलाई और सितम्बर से अक्टूबर में करना चाहिए| रसायनिक खादों में यूरिया, कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट, सिंगल सुपर फास्फेट तथा पोटेशियम सल्फेट का प्रयोग करना चाहिए|
अधिकतर मृदाओं में क्लोराइड आयन की मात्रा अधिक होती है, इसलिए म्यूरेट ऑफ पोटाश उर्वरक का प्रयोग नहीं करना चाहिए| खाद और उर्वरक का प्रयोग करते समय यह ध्यान रखें कि खाद और उर्वरक मुख्य तने से 25 से 30 सेंटीमीटर जगह छोड़कर और पौधे की छतरी के फैलाव तक डालें, खाद और उर्वरक डालने के बाद हल्की खुदाई से मिट्टी में मिला देना चाहिए| खाद और उर्वरक डालते समय बागों में पर्याप्त नमी होना आवश्यक है| पोषण प्रबन्धन के पूर्व भूमि का मृदा परीक्षण अवश्य करा लेना चाहिए|
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