नींबू वर्गीय बागों लेमन, माल्टा, संतरा, नींबू और मौसमी आदि में पोषक तत्वों (खाद और उर्वरक) का प्रयोग संस्तुतियों के आधार पर करना चाहिए| नींबू वर्गीय बागों में प्रयोग की जाने वाली पोषक तत्वों की मात्रा मिटटी की किस्म, उर्वरता, अंतरवर्ती फसल और उसमें की गई कृषि-क्रियाएँ एवं नींबू वर्ग की उगाई जाने वाली किस्म, बुआई का मौसम, खेती की स्थिति आदि अनेक बातों पर निर्भर करती है|
जीवांशयुक्त बलुई तथा अच्छे जल-निकास की भूमि नींबू वर्गीय बागों के लिए उपयुक्त होती हैं| इस प्रकार की भूमि की पैत्रिक उर्वरता और पोषक-तत्व संरक्षण-क्षमता मध्यम तथा भारी बनावट की भूमियों की अपेक्षा कम होती है| इसलिए नींबू वर्गीय बागों में खादों और उर्वरकों के प्रयोग की योजना उपरोक्त तथ्यों पर विचार करने के उपरान्त मिटटी-परीक्षण के आधार पर ही बनाई जानी चाहिए|
नींबू वर्गीय फसलें फलों वाली फसल होने के कारण संतुलित मात्रा में खाद और उर्वरकों की आवश्यकता होती है| कृषकों की जागरूकता के लिए इस लेख में नींबू वर्गीय बागों में पोषक तत्वों की कमी के लक्षण एवं उनके निदान के उपायों की जानकारी का उल्लेख किया गया है| नींबू वर्गीय फसलों की बागवानी वैज्ञानिक तकनीक से कैसे करें की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- नींबू वर्गीय फलों की खेती कैसे करें
नींबू वर्गीय बागों में पोषक तत्वों की कमी के लक्षण एवं निदान
नाइट्रोजन तत्व की कमी-
नाइट्रोजन पौधों की अधिकतम वृद्धि के लिए बहुत आवश्यक तत्व है| फसलों में इसकी आपूर्ति प्रायः जैविक खाद, हरी खाद, गोबर की खाद एवं रासायनिक खादों के प्रयोग से की जाती है| नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों का प्रयोग सामान्यतयः मृदा में ही किया जाता है| नींबू वर्गीय बागों में नाइट्रोजन की कमी होने पर पौधों की वृद्धि निम्न स्तर की हो जाती है और पत्तियाँ पीली पड़ने लगती है| नयी पत्तियां प्रायः सामान्य दिखाई पड़ती हैं| परन्तु जैसे ही ये पुरानी होती जाती हैं, तो पीली पड़ने लगती हैं|
निदान- नाइट्रोजन की कमी को आसानी से पूरा किया जा सकता है अर्थात् नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों को सीधा मृदा में प्रयोग करना चाहिए|
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फास्फोरस तत्व की कमी-
फास्फोरस कमी युक्त मृदा में पौधे की वृद्धि धीमी हो जाती है तथा पत्तियों की चौड़ाई सामान्य से कम होती हैं| नींबू वर्गीय बागों में पत्तियों एवं फलों में ढीलापन प्रतीत होता है तथा फलों का केन्द्रीय भाग अधिक ढीला हो जाता है| इसके साथ-साथ फलों में अम्लता अधिक हो जाती है, जिससे फलों में खट्टापन अधिक हो जाता है|
निदान- फास्फोरस की अधिक कमी होने पर फल झड़ने लगते हैं| फास्फोरस की कमी को ठीक करने हेतु विभिन्न फास्फोरस युक्त उर्वरकों की निर्धारित मात्रा को मृदा में प्रयोग करना चाहिए तथा पोटैशियम डाई हाईड्रोजन फास्फेट (0.1 प्रतिशत) का छिड़काव करने से भी फास्फोरस की आपूर्ति की जा सकती है|
पोटैशियम तत्व की कमी-
पोटैशियम की न्यूनता से पत्तियाँ छोटी हो जाती हैं और वृद्धि धीमी पड़ जाती है| इसकी कमी का स्पष्ट लक्षण है, कि ऊपरी तना आसानी से टूट जाता है| पोटैशियम कमी के लक्षण प्रायः फलों में दिखाई देते हैं| फल सामान्यतया छोटे रह जाते हैं तथा इनका छिलका पतला एवं चिकना हो जाता है| जिन फलों में पोटैशियम की कमी होती है, उनका रंग सामान्य फलों से अच्छा दिखाई देता है|
निदान- नींबू वर्गीय बागों में पोटैशियम की कमी को ठीक करने हेतु 1.0 प्रतिशत पोटेशियम नाईट्रेट (1.0 किलोग्राम प्रति 100 लीटर पानी) का छिड़काव करना चाहिए तथा इसका प्रयोग अप्रैल, मई एवं जून के महीनों में करने से उत्पाद की गुणवत्ता बढ़ाई जा सकती है|
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जिंक की कमी-
ज्यादातर नींबू वर्गीय बागों को बलुई मिट्टी में लगाया जाता हैं, जो कि पौधों की वृद्धि की दृष्टि से उत्तम होती है| इसके साथ-साथ इसका दुष्प्रभाव यह है, कि बलुई मिट्टी में जिंक की कमी होने की सम्भावनाएं अधिक होती हैं| जिंक की कमी युक्त पौधों की पत्तियां चित्तीदार हो जाती हैं| इस प्रकार के लक्षण पूर्ण रूप से विकसित हुई नयी पत्तियों की शिराओं के पास अनियमित चित्तियों के रूप में दिखाई देते हैं|
जिंक की कमी के लक्षण सर्वप्रथम शीर्षस्थ पत्तियों पर दिखाई पड़ते हैं| यह पत्तियाँ प्रायः छोटी एवं संकरी हो जाती हैं तथा ऊपर की ओर तनी हुई दिखाई पड़ती है| जब जिंक की कमी अधिक समय तक रहती है| तो डाई बैक अर्थात् ऊपर से सूखा रोग शुरू हो जाता है| सामान्यतयः नींबू वर्गीय बागों में जिंक की कमी अप्रैल से मई और जून महीनों में दिखाई पड़ती है एवं कभी-कभी इस तरह के लक्षण अगस्त से सितम्बर महीनों में भी प्रतीत होते हैं|
निदान- पौधों में जिंक की कमी की आपूर्ति करने हेतु 0.3 प्रतिशत (3 ग्राम प्रति लीटर) जिंक सल्फेट को पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए और यदि इसकी बहुत कमी प्रतीत हो तो 0.45 प्रतिशत जिंक सल्फेट के घोल का छिड़काव करना चाहिए| जिंक सल्फेट के छिड़काव के एक सप्ताह बाद तक बोर्डो मिश्रण या कॉपर आक्सीक्लोराइड का छिड़काव नहीं करना चाहिए|
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मैंग्नीज तत्व की कमी-
मैंग्नीज तत्व की कमी भी सामान्यतः बलुई मिट्टी में उगाये जाने वाले बागानों में पायी जाती है| यह या तो मृदा में कम मात्रा में होने से या मृदा का अधिक पी एच, कैल्सियम एवं फास्फोरस की अधिकता के कारण पौधे इसे मृदा से अवशोषित नहीं कर पाते हैं| जिससे पौधों में इसकी आवश्यक मात्रा से कम मैंग्नीज सान्द्रण रह जाता है| उत्तर के कुछ क्षेत्रों में नींबू वर्गीय बागों में मैग्नीज तत्व की न्यूनता अक्सर दिखाई देती है| शुष्क एवं अति ठण्डे क्षेत्र के बागानों में भी मैग्नीज तत्व की कमी पायी जाती है|
पौधों में मैंग्नीज कमी को उनकी पत्तियों का सावधानी पूर्वक अवलोकन करने से पहचाना जा सकता है| पत्तियों की मुख्य शिरा एवं उप शिराओं के साथ-साथ गहरे हरे रंग की धारियां दिखाई देती हैं और इन गहरी धारियों के बीच में हल्के हरे रंग की धारियां दिखाई देती हैं| मैंग्नीज तत्व की कमी की तीन अवस्थाएं होती हैं, जैसे निम्न, मध्य और अधिकतम स्तर की कमी| प्रथम स्तर की कमी नई पत्तियों में प्रतीत होती हैं, जो कुछ समय बाद समाप्त हो जाती हैं अर्थात् पुरानी पत्तियों में मैंग्नीज की कमी कम ही प्रतीत होती है|
मध्य स्तर की कमी में मुख्य शिरा एवं उपशिराओं के साथ-साथ वाला गहरा हरा रंग कुछ हल्का हरा हो जाता है और इनके बीच का हल्का हरा रंग पत्तियों में अन्त समय तक बना रहता है| जबकि यह निम्न स्तर की कमी होने पर पुरानी पत्तियों में सामान्य हरा हो जाता है| मैंग्नीज तत्व की अधिकतम स्तर की कमी होने पर मुख्य शिराओं के साथ वाला गहरा हरा रंग कुछ हल्का हरा हो जाता है तथा इनके बीच वाला हल्का हरा रंग और हल्का हो जाता है और कभी-कभी सफेद प्रतीत होने लगता है|
ये लक्षण प्रायः उन पत्तियों पर जो धूप की तरफ होती हैं तथा निम्न एवं मध्य स्तर की कमी पौधे के छाया वाले भाग की पत्तियों में दिखाई देते हैं और अन्त में मैंग्नीज की अधिकतम कमी के कारण पत्तियां झड़ने लगती हैं अर्थात् पौधे कमजोर हो जाते हैं और इनकी उत्पादकता निम्न हो जाती है|
निदान- क्षारीय मृदा में यदि मैंग्नीज उर्वरक प्रयोग किये जाते हैं, तो उनका पौधों को ज्यादा लाभ नहीं होता है अर्थात् ये पौधों में अवशोषित नहीं हो पाते है| ऐसी दशा में बागानों में इसका छिड़काव करना ही उपयोगी हाता है| नींबू वर्गीय बागों में मैंग्नीज की आपूर्ति हेतु मैंग्नीशियम सल्फेट का 0.28 प्रतिशत का छिड़काव करना चाहिए| प्रायः यह देखा गया है, कि मैंग्नीज की कमी अप्रैल एवं अगस्त के महीनों में होती है| जिस समय यह प्रतीत हो तो 100 लीटर पानी में मैंग्नीज सल्फेट की 280 ग्राम मात्रा घोलकर छिड़काव करके इसकी आपूर्ति की जा सकती है|
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आयरन (लोहा) तत्व की कमी-
आयरन तत्व की कमी भी बलुई मृदा में मुख्यतयः देखी गयी है| इसके साथ-साथ आयरन कमी के कई अन्य कारक भी होते हैं| जैसे- प्रचुर मात्रा में फॉस्फोरस, जिंक, कापर, मैंग्नीज एवं बाइकार्बोनेट्स की उपलब्धता अर्थात् मृदा में इन तत्वों की अधिकता से आयरन तत्व की कमी आ जाती है| इसके साथ-साथ उन क्षेत्रों में भी आयरन तत्व की कमी हो जाती है, जहाँ मृदा का पी एच मान 8.0 या इससे अधिक होता है और कहीं-कहीं चूना अर्थात् कैल्सियम कार्बोनेट की मात्रा अधिक होती है|
आयरन तत्व की कमी के लक्षण नयी पत्तियों में प्रारम्भ होते हैं| इन पत्तियों की शिराओं का भाग गहरा हो जाता है तथा बीच का क्षेत्र हल्का हरा रहता है| आयरन की कमी को भी तीन भागों में बांटा जा सकता है, जैसे- निम्न स्तर, मध्य स्तर और अधिकतम स्तर की न्यूनता| जब आयरन की न्यूनता कम होती है, तो इसके लक्षण पुरानी पत्तियों में समाप्त हो जाते हैं|
मध्य स्तर की न्यूनता में शिराओं का मध्य भाग हल्के पीले रंग का होने लगता है तथा धीरे-धीरे पूरी पत्ती का रंग हर-सफेद हो जाता है| आयरन की अधिकतम न्यूनता होने पर पत्तियाँ झड़ने लगती हैं और डाईबैक बीमारी प्रारम्भ हो जाती है एवं अन्ततः पौधे सूखने लगते हैं| आयरन की कमी युक्त वाले पौधों के फलों की गुणवत्ता निम्न हो जाती है| इनमें गुलित खनिज तत्वों की कमी आ जाती है|
निदान- नींबू वर्गीय बागों के पौधों में आयरन तत्व की कमी को पूर्ण करने हेतु फेरस सल्फेट का 0.18 प्रतिशत (1.8 ग्राम प्रति लीटर) का छिड़काव करना चाहिए| आयरन की कमी प्रायः अप्रैल एवं अगस्त महीनों में देखी जाती है| फेरस सल्फेट को अन्य रसायनों में मिश्रित करके छिड़काव नहीं करना चाहिए|
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