देश के मैदानी और पहाड़ी दोनों क्षेत्रों में पत्ता गोभी (बंद गोभी) की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है| पत्ता गोभी में स्टोरेज क्षमता अधिक होने के कारण इसको बाज़ार की आवश्यकतानुसार कुछ समय तक खेत में रोक भी सकते हैं, अर्थात देर से कटाई कर सकते हैं| कटी हुई पत्ता गोभी का उपयोग सब्जी, कढ़ी, सलाद, अचार, पकौड़ा बनाने में किया जाता है| पत्तागोभी में पाचन शक्ति को बढ़ाने की क्षमता होती है साथ ही मधुमेह रोगियों के लिये भी लाभदायक है| इसमें प्रचुर मात्रा में खनिज, जल तथा विटामिन पाये जाते है|
पत्ता गोभी में 91.9 प्रतिशत नमी, 1.8 प्रतिशत प्रोटीन, 0.1 प्रतिशत वसा, 4.6 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 0.039 प्रतिशत कैल्शिम, 0.044 प्रतिशत फास्फोरस, 0.0 08 प्रतिशत लोहा, साथ ही साथ विटामिन ए, विटामिन बी- 1, बिटामिन बी- 2 और विटामिन- सी पाया जाता है| किसान बन्धु वैज्ञानिक तकनीक से इसकी खेती कर के इसकी अधिकतम पैदावार प्राप्त कर सकते है| इस लेख में पत्ता गोभी की उन्नत खेती कैसे करें, तथा उसकी उन्नत किस्मों एवं देखभाल और पैदावार की जानकारी का उल्लेख किया गया है| पत्ता गोभी की जैविक खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- गोभी वर्गीय सब्जियों की जैविक खेती
पत्ता गोभी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
पौधों की अच्छी बढवार लिए ठंडी तथा आर्द्र जलवायु अच्छी होती है| अधिक ठंड और पाले के प्रकोप से गाठों को नुकसान होता है| वर्षा के समय तापमान अनुकूल से कम रहने पर गाठों का आकार छोटा हो जाता है और गांठ का स्वाद भी खराब हो जाता है| इसकी अच्छी पैदावार के लिए 15 से 20 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान सर्वोत्तम होता है|
यह भी पढ़ें- गोभी वर्गीय सब्जियों की खेती कैसे करें
पत्ता गोभी की खेती के लिए उन्नत किस्में
पत्ता गोभी की किस्मों को इसके रंग, रूप एवं आकार के आधार पर तीन भागों में बाँटा गया है| पहली अगेती किस्में, दूसरी मध्यम किस्में और तीसरी, पिछेती किस्में जो इस प्रकार है, जैसे-
अगेती किस्में- गोल्डेन एकर, प्राइड आफ इंडिया, पूसा मुक्ता आदि प्रमुख है|
मध्यम किस्में- अर्ली ड्रमहेड, पूसा मुक्त आदि प्रमुख है|
पछेती किस्में- पूसा ड्रमहेड, लेट ड्रमहेड- 3 गणेश गोल, हरी रानी गोल आदि प्रमुख है| किस्मों की विस्तृत जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- पत्ता गोभी की किस्में, जानिए विशेषताएं और पैदावार
पत्ता गोभी की खेती के लिए भूमि और तैयारी
पत्ता गोभी की खेती लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है| परन्तु अच्छी जल निकास वाली दोमट मिट्टी जिसमें जीवांश प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो, इसकी खेती के लिए सर्वोत्तम होती है|
पत्ता गोभी की खेती के लिए खाद और उर्वरक
पत्ता गोभी की अच्छी पैदावार के लिए खेत में पर्याप्त मात्रा में जीवांश का होना अत्यंत आवश्यक है| इसलिए खेत में 20 से 25 टन गोबर की खड़ी खाद या कम्पोस्ट तथा 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस तथा 60 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से आवश्यकता होती है| नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा, फॉसफोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा अंतिम जुताई के समय खेत में मिला देना चाहिए| शेष नाइट्रोजन की मात्रा को दो बराबर भागों में बाँट कर खड़ी फसल में 30 एवं 45 दिनों पर देनी चाहिए|
यह भी पढ़ें- गांठ गोभी की उन्नत खेती कैसे करें
पत्ता गोभी की खेती के लिए बीज की मात्रा
पत्ता गोभी की अगेती किस्मों के लिए 500 ग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है| पछेती खेती के लिए 300 से 400 ग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की जरूरत होती है| पत्तागोभी की अगेती खेती में कुछ पौधों के मरने की संभावना रहती है| इसलिए अधिक बीज की आवश्यकता होती है|
पत्ता गोभी की खेती के लिए बुवाई का समय
पत्ता गोभी की अगेती खेती के लिए अगस्त के अंतिम सप्ताह सितम्बर मध्य तक नर्सरी में बीज की बुवाई कर देनी चाहिए| मध्यम एवं पछेती किस्मों लिए 15 सितम्बर से अक्टूबर अंत तक बीज की बुवाई कर देनी चाहिए| बीज की बुवाई यदि समय पर की जाती है तो इसका सीधा प्रभाव उपज पर देखने को मिलता है|
पत्ता गोभी की खेती के लिए नर्सरी लगाना
एक हेक्टेयर खेत में पौधा रोपन के लिए 75 से 100 वर्गमीटर की पौधाशाला में बीज की बुवाई करनी चाहिए| पौधाशाला किसी ऊँचे स्थान पर बनाएं जहाँ जल जमाव न हो| पौधशाला की मिट्टी भुरभुरी होनी चाहिए तथा पर्याप्त मात्रा में गोबर की सड़ी हुई खाद या वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग करना चाहिए|
पत्ता गोभी की खेती के लिए पौधा रोपण
पौधा रोपण के पूर्व खेत को क्यारियों में बाँट लें| इससे निराई-गुड़ाई में सुविधा होगी। सिंचाई के लिए भी क्यारियाँ सुविधाजनक होती है| तैयार पौधा को 45 सेंटीमीटर कतार से कतार और 45 सेंटीमीटर पौधे से पोधे की दूरी पर सायं काल में पौधा की रोपाई कर सिंचाई कर देनी चाहिए|
यह भी पढ़ें- ब्रोकली की उन्नत खेती कैसे करें
पत्ता गोभी की उन्नत फसल में सिंचाई प्रबंधन
पत्ता गोभी के पौधों की अच्छी बढवार के लिए मिट्टी में पर्याप्त नमी का होना अत्यंत आवश्यक है| वर्षा ऋतु में यदि पर्याप्त नमी नही हो तो सिंचाई करते रहना चाहिए| सितम्बर के बाद 10 से 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई अवश्य करते रहना चाहिए|
पत्ता गोभी की फसल में खरपतवार नियंत्रण
पत्ता गोभी में दो से तीन निकाई-गुड़ाई करने से खरपतवार का नियत्रंण हो जाता है, परन्तु व्यावसायिक स्तर पर खेती के लिए खरपतवारनाशी पेंडीमेथालिन 3 लीटर को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव रोपने के पहले काफी लाभदायक होता है|
पत्ता गोभी की खेती के लिए निकाई-गुड़ाई
पौधों की जड़ों के समुचित विकास के लिए निकाई-गुड़ाई अत्यंत आवश्यक है| ऐसा करने से जड़ों के पास की मिट्टी ढीली होती है तथा हवा का आवागमन अच्छी तरह से होता है| जिसका प्रभाव उपज पर पड़ता है| वर्षा ऋतु में यदि जड़ों के पास से मिट्टी हट गयी हो तो चारों तरफ से हल्की मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए|
पत्ता गोभी की फसल में कीट रोकथाम
पत्ती भक्षक कीट- इसमें आरा मक्खी, फली बीटल, पत्ती भक्षक लटें, हीरक तितली, गोभी की तितली, तम्बाकू की इल्ली मुख्य है| ये कीट पत्ता गोभी की पत्तियों को खाकर काफी नुकसान पहुंचाते है|
रोकथाम- इन कीटों की रोकथाम के लिए नीम बीज अर्क (4 प्रतिशत) या बी टी 1 ग्राम प्रति लीटर या स्पिनोसैड 45 एस सी 1.0 मिलीलीटर प्रति 4 लीटर या एमामेक्टिन बेंजोएट 5 एस सी 1.0 ग्राम प्रति 2.0 लीटर या क्लोरऐन्ट्रसनिलिम्रोल 18.5 एस सी 1.0 मिलीलीटर प्रति 10 लीटर या फेनवैलरेट 20 ई सी 1.5 मिलीलीटर प्रति 2 लीटर पानी का छिड़काव करें|
मोयला- ये कीट पत्ता गोभी की पत्तियों से रस चूसकर हानि पहुंचाते है| जिससे पौधे कमजोर हो जाते है और पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है|
रोकथाम- डाइमेथोएट 30 ई सी 2.0 मिलीलीटर प्रति लीटर या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल, 1.0 मिलीलीटर प्रति 3 लीटर पानी का छिड़काव करें|
यह भी पढ़ें- गोभी वर्गीय सब्जियों का बीजोत्पादन कैसे करें
पत्ता गोभी की फसल में रोग रोकथाम
आई गलन (डम्पिंग ऑफ)- यह रोग गोभी की अगेती किस्मों में नर्सरी अवस्था में होता है| जमीन की सतह पर स्थित तने का भाग काला पड़कर कमजोर हो जाता है और नन्हें पौधे गिरकर मरने लगते हैं|
रोकथाम- बुवाई से पूर्व पत्ता गोभी के बीजों को थाइम या कैप्टान 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिये| रोग के लक्षण दिखाई देने पर बोर्डो मिश्रण 2:2:50 या कॉपर आक्सीक्लोराइड 3 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें|
काला सड़न- बीजों की क्यारी में नई पौध पर यह रोग अधिक लगता है| पौधों की पत्तियों के किनारों पर जगह जगह पीले चकत्ते दिखाई देते हैं व शिरायें काली दिखाई देते है| उग्रावस्था में यह रोग गोभी के अन्य भागों पर भी दिखाई देता है| जिसमें फूल का डंठल अन्दर से काला पड़ जाता है|
रोकथाम- पत्ता गोभी के बीजों को बुवाई से पूर्व स्ट्रेओसाइक्लिन 250 ग्राम या बाविस्टिन एक ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल में 2 घण्टे तक भिगोकर छाया में सुखावें व बुवाई करें| पौध रोपण के पर्व पौध की जड़ों को स्ट्रेप्टोसाइक्लिन एवं बाविस्टिन के घोल में एक घण्टे तक डुबोकर लगावे तथा फसल में रोग के लक्षण दिखने पर उपरोक्त दवाओं का छिड़काव करें| कीट एवं रोग रोकथाम की अधिक जानकारी के लिए यहां पढ़ें- गोभी वर्गीय सब्जी की फसलों में समेकित नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें
पत्ता गोभी फसल के फलों की तुड़ाई और पैदावार
ठोस तथा पूर्ण विकसित पत्ता गोभी तुड़ाई के योग्य मानी जाती है| अगेती फसल की पैदावार प्रति हैक्टेयर 200 से 300 क्विंटल तथा पिछेती किस्म की पैदावार 300 से 400 क्विंटल प्रति हैक्टेयर के बीच होती है| संकर किस्मों से तैयार होने वाली गोभी समान आकार की व एक ही समय में तुड़ाई लायक हो जाती है| इसके अलावा शत प्रतिशत गोभी प्राप्त होती है| जो खेत में लम्बे समय तक बिना फटे टिक पाती है| इन किस्मों से 400 से 550 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की पैदावार आसानी से प्राप्त की जा सकती है|
यह भी पढ़ें- गोभी वर्गीय फसलों के रोग एवं उनका प्रबंधन, जानिए आधुनिक तकनीक
यदि उपरोक्त जानकारी से हमारे प्रिय पाठक संतुष्ट है, तो लेख को अपने Social Media पर Like व Share जरुर करें और अन्य अच्छी जानकारियों के लिए आप हमारे साथ Social Media द्वारा Facebook Page को Like, Twitter व Google+ को Follow और YouTube Channel को Subscribe कर के जुड़ सकते है|
Leave a Reply