प्याज की जैविक खेती वर्तमान समय की आवश्यकता है| चूँकि प्याज का सीधा सम्बंध मानव स्वास्थ्य से जुड़ा है| जिसका प्रयोग दैनिक भोजन में सब्जी, सलाद, अचार और मसाले के रूप में किया जाता है| प्याज का प्रयोग हरी एवं पकी हुई दोनों अवस्थाओं में करते है| यह गर्मी और लू के प्रकोप को भी कम करता है|
इसमें खनिज लवण, विटामिन, प्रोटीन व कार्बोहाइड्रेट भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते है| इस लेख में कृषक बन्धु प्याज की जैविक खेती कैसे करें और इसके साथ ही किस्मों, फसल देखभाल और पैदावार की जानकारी का विस्तृत उल्लेख है|
प्याज की जैविक खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
प्याज के लिए समशीतोष्ण जलवायु अच्छी होती है| प्याज कि वृद्धि पर तापमान और प्रकाश काल का बहुत प्रभाव पड़ता है| इसलिए अधिक पैदावार के लिए दोनों का सामंजस्य आवश्यक है, व्यापारिक स्तर पर केवल वे ही किस्में सफल होती है| जो पारिस्थिति विशेष के अनुकूल हो, शल्क कंद निर्माण से पूर्व 12.5 से 23 डिग्री सेल्सियस के मध्य का तापमान चाहिए|
जबकि शल्क कंद के निर्माण के समय 15.5 से 21 डिग्री सेल्सियस के साथ 10 घंटे कि प्रकाश अवधि अनुकूल रहती है| फ़रवरी में यकायक तापमान बढ़ने पर शल्क कंद छोटे रह जाते है| यानि कि प्याज कि पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है|
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प्याज की जैविक खेती के लिए भूमि का चयन
प्याज की जैविक खेती सभी प्रकार कि भूमियों में की जा सकती है, लेकिन अधिक ह्यूमस वाली रेतीली दोमट या सिल्ट दोमट इसकी खेती के लिए उपयुक्त रहती है| अधिक अम्लीय भूमि में इसकी खेती नहीं कि जा सकती है| पी एच मान 6 से 7 वाली भूमि इसकी खेती के लिए सर्वोतम रहती है|
प्याज की जैविक खेती के लिए खेत की तैयारी
प्याज की जैविक खेती के सफल उत्पादन में भूमि की तैयारी का विशेष महत्व हैं| खेत की प्रथम जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए| इसके उपरान्त 2 से 3 जुताई कल्टीवेटर या हैरा से करें, प्रत्येक जुताई के पश्चात् पाटा अवश्य लगाऐं, जिससे नमी सुरक्षित रहें और साथ ही मिट्टी भुरभुरी हो जाऐ| भूमि की सतह से 15 सेंटीमीटर की उंचाई पर 1.2 मीटर चौड़ी पट्टी पर रोपाई की जाती है| इसके लिए खेत को रेज्ड-बेड सिस्टम से भी तैयार किया जा सकता है|
प्याज की जैविक खेती के लिए उन्नत किस्में
प्याज की जैविक खेती में बीज का बढ़ा महत्व है, कृषक बन्धुओं को चाहिए की वे अपने क्षेत्र की प्रचलित उन्नत किस्म उगाएं जो परिस्थितियों के अनुकूल हो, और यदि संभव हो सके तो जैविक स्वच्छ प्रमाणित बीज का प्रयोग करें| सीजन के अनुसार कुछ प्रचलित किस्में इस प्रकार है, जैसे-
रबी की किस्में- एग्रीफाउंड लाईट रेड, अर्का निकेतन, एन 2-4-1, नासिक रेड, पूसा रेड व भीमाराज किस्में अनुशंसित हैं|
खरीफ की किस्में- एग्रीफाउंड डार्क रेड, नासिक- 53 व 43, बसंत भीमा सुपर व अर्का कल्याण किस्में अनुशंसित हैं| किस्मों की विस्तार से जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- प्याज की उन्नत किस्में, जानिए उनकी विशेषताएं और पैदावार
बीज कि मात्रा
प्याज को उसके बीजों से या कंदों से बोकर उगाया जाता है| पौधशाला में बोने के लिए प्रति हेक्टेयर रबी में 8 से 10 और खरीफ में 15 से 20 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है| जब इसकी बुवाई कंदों द्वारा होनी हो तो उसके लिए 12 क्विंटल कंद प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होते है| बीज उत्पादन के लिए 25 क्विंटल कंद प्रति हेक्टेयर चाहिए|
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प्याज की जैविक खेती के लिए भूमि और बीज उपचार
भूमि उपचार- 2.5 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर ट्राइकोडर्मा विरिडी को 65 से 70 किलो ग्राम गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर 8 से 10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुआई से पूर्व आखिरी जुताई के समय भूमि में मिला देना चाहिए और साथ में 200 किलोग्राम नीम खली का भी उपयोग करें|
बीज उपचार- बुवाई से पहले ट्रायकोडर्मा विरीडी 4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज उपचार भूमि जनित और बीज जनित रोगों से बचाने के लिए अवश्य करें|
कंद और पौध उपचार- बुआई से पहले कन्दों को ट्राईकोडर्मा 200 ग्राम प्रति 15 से 20 लीटर पानी के धोल में 15 से 20 मिनट डुबोयें|
प्याज की जैविक खेती के लिए बुआई का समय
नर्सरी में खरीफ फसल के लिए बीज की बुआई पुरे जून महीने में की जाती है| रबी सीजन में नर्सरी में बीज की बुआई मध्य अक्तूबर से नवम्बर में की जाती है|
प्याज की जैविक खेती के लिए पौध तैयार करना
प्याज की जैविक खेती हेतु नर्सरी के लिए चुनी हुई जगह की पहले जुताई करें, इसके पश्चात् उसमें पर्याप्त मात्रा में गोबर की सड़ी खाद या कम्पोस्ट डालना चाहिए| नर्सरी का आकार 3 x 0.75 मीटर रखा जाता हैं तथा दो क्यारियों के बीच 60 से 70 सेंटीमीटर की दूरी रखी जाती हैं| जिससे कृषि कार्य आसानी से किये जा सके, नर्सरी के लिए रेतीली दोमट भूमि उपयुक्त रहती हैं, पौध की क्यारियाँ लगभग 15 सेंटीमीटर जमीन से ऊँचाई पर बनाना चाहिए|
बुवाई के बाद क्यारियों में बीजों को 2 से 3 सेंटीमीटर मोटी सतह जिसमें छनी हुई महीन मिटटी और सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद से ढंक देना चाहिए| बुवाई से पूर्व क्यारियों का 250 गेज पालीथीन द्वारा सौर्यकरण कर उपचारित कर ले साथ में ट्रायकोडर्मा विरीडी से भी नर्सरी की चुनी हुई जगह को उपचारित करें| बीजों को हमेशा पंक्तियों में बोना चाहिए|
पंक्तियों की दुरी 5 से 7 सेंटीमीटर रखते हैं| इसके पश्चात् क्यारियों पर कम्पोस्ट, सूखी घास की पलवार(मल्चिंग) बिछा देते हैं, जिससे भूमि में नमी संरक्षण हो सकें| नर्सरी में अंकुरण हो जाने के बाद पलवार हटा देना चाहिए| इस बात का ध्यान रखा जाये कि नर्सरी की सिंचाई पहले फब्बारें से करना चाहिए| पौधों को अधिक वर्षा से बचाने के लिए नर्सरी या रोपणी को पॉलीटेनल में उगाना उपयुक्त होगा|
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प्याज की जैविक खेती के लिए पौध की रोपाई
प्याज की जैविक खेती हेतु खरीफ फसल की रोपाई अगस्त में करते है, और रबी फसल की रोपाई दिसम्बर से जनवरी के मध्य तक करते है|
रोपाई की दुरी- रोपाई के लिए पंक्ति से पंक्ति की दुरी 15 सेंटीमीटर तथा पंक्ति में पौधे से पौधे की दुरी 10 सेंटीमीटर रखते है| रोपाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करना आवश्यक है|
प्याज की जैविक खेती के लिए जैविक खाद
प्याज की अच्छी पैदावार के लिये 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फॉस्फोरस और पोटाश 40 किलोग्राम की प्रति हेक्टेयर आवश्यकता पड़ती है| लेकिन प्याज की जैविक खेती के लिए उपरोक्त तत्वों की पूर्ति के लिए 100 से 150 कुन्तल नादेप कम्पोस्ट खाद या 250 से 300 कुन्तल सडी गोबर की खाद के साथ 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से जैव उर्वरक को अन्तिम जुताई के समय खेत में मिला देना चाहिए|
निराई-गुड़ाई व मिट्टी चढाते (बुवाई के 30 से 35 दिन बाद) समय 2 किलोग्राम जैव उर्वरक और 2 किलोग्राम गुड़ को 150 से 200 किलोग्राम अच्छी सड़ी कम्पोस्ट खाद के साथ छाया में सात से दस दिन तक सड़ाकर कर सिंचाई के समय खेत में बुरक दें| सूक्ष्म तत्वों की पूर्ति के लिए सिंचाई के पानी के साथ या छिडकाव के द्वारा 3 से 4 बार जीवामृत का उपयोग करें|
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प्याज की जैविक फसल में सिंचाई और जल निकास
प्याज की फसल में रोपण के तुरन्त बाद सिंचाई करना चाहिए अन्यथा सिंचाई में देरी से पौधे मरने की संभावना बढ़ जाती हैं| खरीफ मौसम में उगाई जाने वाली प्याज की फसल को जब मानसून चला जाता हैं| उस समय सिंचाईयाँ आवश्यकतानुसार करना चाहिए| इस बात का ध्यान रखा जाऐ कि रबी और खरीफ में कंद निर्माण के समय पानी की कमी नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह प्याज फसल की कान्तिक अवस्था होती हैं|
इस अवस्था में पानी की कमी के कारण पैदावार में भारी कमी हो जाती हैं, जबकि अधिक मात्रा में पानी बैंगनी धब्बा(पर्पिल ब्लाच) रोग को आमंत्रित करता हैं| काफी लम्बे समय तक खेत को सूखा नहीं रखना चाहिए अन्यथा कंद फट जाऐगें तथा फसल जल्दी पक जाऐगी, परिणामस्वरूप उत्पादन कम प्राप्त होगा|
इसलिए आवश्यकतानुसार खरीफ में 8 से 10 दिन और रबी में 10 से 15 दिन के अंतराल से हल्की सिंचाई करना चाहिए| यदि अधिक वर्षा या अन्य कारण से खेत में पानी रूक जाऐ तो उसे शीघ्र निकालने की व्यवस्था करना चाहिए अन्यथा फसल में फफूदी जनित रोग लगने की संभावना बढ़ जाती हैं|
प्याज की जैविक फसल में खरपतवार नियंत्रण
प्याज की जैविक खेती में खरपतवार नियंत्रण के लिए गर्मी की गहरी जुताई के साथ-साथ आवश्यक कृषिगत और शस्य क्रियाएँ अपनानी चाहिए और फसल को खरपतवारों से मुक्त रखने के लिए कुल 3 से 4 निराई-गुडाई की आवश्यकता होती है| क्योंकि प्याज के पौधे एक-दूसरे के नजदीक लगाये जाते है, तथा जड़े भी उथली होती है|
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प्याज की जैविक फसल में कीट और रोग नियंत्रण
प्याज की जैविक खेती में सम्पूर्ण क्रियाएं समय पर न की जाये, तो कीट एवं रोग से फसल को काफी नुकसान होता है| जिससे किसानों को उनकी इच्छित पैदावार प्राप्त नही होती है| चूँकि प्याज की जैविक खेती में किसी भी प्रकार के रसायन का प्रयोग नही करना चाहिए| इसलिए कृषिगत, शस्य, यांत्रिक क्रियाओं और जैविक कीटनाशकों उपयोग में लाया जाता है| इन्ही क्रियाओं द्वारा प्याज में कीट और रोग रोकथाम की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- प्याज में समेकित नाशीजीव प्रबंधन, जानिए आधुनिक तकनीक
प्याज की जैविक फसल के कंदों की खुदाई
प्याज की जैविक खेती की जैसे ही प्याज की गाँठ अपना पूरा आकर ले लेती है तथा पत्तियां सूखने लगे तो लगभग 10 से 15 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर देना चाहिए एवं प्याज के पौधों के शीर्ष को पैर की मदद से कुचल देना चाहिए| इससे कंद ठोस हो जाते हैं तथा उनकी वृद्धि रूक जाती है| इसके बाद कंदों को खोदकर खेत में ही कतारों में ही रखकर सुखाते है| भंडारण में होने वाली क्षति को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाएं|
प्याज की जैविक खेती से पैदावार
उपरोक्त उन्नत तकनीक अपनाने के बाद खरीफ की फसल से 200 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और रबी की फसल से 300 से 400 क्विंटल प्रति हेक्टयर पैदावार हो जाती है|
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