प्याज व लहसुन से अधिक उत्पादन के लिए हानिकारक रोग और कीट की रोकथाम आवश्यक है| वैसे तो प्याज व लहसुन की फसल पर अनेक कीटों तथा रोगों का प्रकोप होता है| लेकिन आर्थिक दृष्टी से कुछ प्रमुख हानिकारक कीट व रोग है, जो फसल को अत्यधिक हानी पहुंचाते है| जिनकी रोकथाम करना आवश्यक है| इस लेख में प्याज व लहसुन में एकीकृत रोग एवं कीट प्रबंधन कैसे करें का विस्तृत उल्लेख किया गया है|
प्याज व लहसुन की फसल में एकीकृत रोग प्रबंधन
आधारीय विगलन (बेसल रॉट)- प्याज में यह रोग फ्युजेरियम आक्सीस्पोरम फफूंद के द्वारा होता है, इस रोग के संक्रमण के शुरूआत में पत्तियाँ और बीज डंठल पीली पड़ जाती है, जो बाद में धीरे-धीरे सूख जाती है| जिसके कारण प्याज के कन्द और बीज फसल में अम्बेल का आकार छोटा रह जाता है| इस रोग का मुख्य लक्षण कन्दों के निचले आधारीय भाग में सड़न दिखाई देती है तथा जड़े गुलाबी रंग की हो जाती है|
प्रबंधन के उपाय-
1. प्रमाणित बीज का उपयोग करें और स्वस्थ नर्सरी की रोपाई करे|
2. प्याज बीज के कन्द को कार्बेन्डाजिम से 1.0 ग्राम प्रति लीटर की दर से पानी के घोल से तथा कन्द फसल के लिए प्याज की पौध को भी उपचारित करें|
3. पौध रोपाई या कन्द बुवाई पूर्व खेत में ट्राइकोडर्मा विरिडी या ट्राइकोडर्मा हारजिएनम की 5 से 6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद के साथ मिलाना चाहिए|
4. उचित फसल-चक्र अपनाना चाहिए|
5. कार्बेन्डाजिम नामक फफूदीनाशक का 0.1 प्रतिशत की दर से 10 दिन के अन्तराल पर दो छिड़काव करें साथ ही साथ ड्रेन्चिंग करें|
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सफेद गलन (व्हाईट रॉट)- प्याज व लहसुन में सफेद गलन रोग स्लेरोशियम सेपीवोरम या स्केलेरोशियम रोल्फसाई नामक फफूंद द्वारा होता है| इस रोग के लक्षण जमीन के समीप प्याज का ऊपरी भाग गल जाता है तथा संक्रमित भाग पर सफेद फफूंद और जमीन के ऊपर हल्के भूरे रंग के सरसों के दाने की तरह सख्त संरचनायें बन जाती है, जिन्हे स्केलेरोशिया कहते हैं|
संक्रमित पौधें मुरझा जाते हैं तथा बाद में सूख जाते हैं| जिसमें कन्द चारों तरफ से सफेद फफूंद से ढक जाते है एवं कन्द सड़ जाते हैं| इस रोग के प्रकोप से पौधों से बीज के लिए एक भी अम्बेल नहीं मिलते व लहसुन के कंद छोटे रह जाते हैं, जिन्हे बीज के लिए उपयोग में नहीं लाते हैं| अंत में प्रभावित पौध पूर्ण रूप से सूख जाते हैं|
प्रबंधन के उपाय-
1. मई से जून में खेत की हल्की सिंचाई करने के बाद जुताई करना चाहिए, जिससे फफूंद के स्केलेरोशिया अंकुरित होकर नष्ट हो जाते है|
2. खेत में ट्राइकोडर्मा हारजिएनम या ट्राईकोडर्मा विरिडी जैव नियंत्रक फफूंद की 5 से 6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद के साथ मिलाये|
3. स्यूडोमोनास फ्लूओरिसेन्स की 5.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिलाना चाहिए|
4. रोपाई के पहले प्याज की पौध और बीज कन्दों को 0.1: कार्बेन्डाजिम के घोल मे डुबाकर लगाये|
5. कार्बेन्डाजिम 0.1 प्रतिशत के घोल से छिड़काव करें और 7 दिन बाद कापर ऑक्सीक्लोराईड 0.3 के जलीय घोल से जड़ क्षेत्र में डेंचिंग करना चाहिए|
बैंगनी धब्बा (पर्पल ब्लाच)- इस रोग को फैलाने वाले रोगकारक फफूंद बीज और मिटटी जनित होते हैं| प्याज व लहसुन में इस रोग को बैंगनी धब्बा कहते हैं, जो कि आल्टरनेरिया पोरी नामक फफूंद से होता है| इस रोग के लक्षण प्याज की पत्तियों और बीज फसल की डंठलो पर शुरूआत में सफेद भूरे रंग के धब्बे बनते हैं एवं जिनका मध्य भाग बैगनी रंग का होता है| इस रोग का संक्रमण उस समय अधिक होता है, जब वातावरण का तापक्रम 27 से 30 सेंटीग्रेट तथा आर्द्रता अधिक हो, खरीफ मौसम में इस रोग का प्रकोप अधिक होता है|
प्रबंधन के उपाय-
1. फसल अवशेष को एकत्र करके जला देना चाहिए|
2. गर्मी के महीने मई से जून में खेत की गहरी जुताई करना चाहिए|
3. उचित फसल-चक्र अपनाना चाहिए|
4. स्वस्थ पौधों से बीज का चुनाव करें और प्रमाणित बीज का ही प्रयोग करें|
5. बीज का शोधन थायरम या कैप्टान नामक फफूंदनाशक की 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से करना चाहिए|
6. फफूंदनाशक क्लोरोथैलोनिल 2.0 ग्राम प्रति लीटर या मैन्कोजेब का 2.5 ग्राम प्रति लीटर या प्रोपीनेब 2.0 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर दिन के अंतराल पर छिड़काव करें|
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स्टेम्फीलियम झुलसा (स्टेम्फीलियम ब्लाईट)- प्याज व लहसुन में यह रोग स्टेम्फीलियम वेसीकेरियम द्वारा उत्पन्न होता है| प्रारंभ में छोटे सफेद तथा हल्के भूरे धब्बे बनते हैं, जो बाद में गहरे भूरे या काले रंग के हो जाते हैं| प्याज में यह धब्बे पत्ती के भीतरी सतह में फैल जाते है, जबकि बाहरी सतह हरी रहती है व बीज फसल में डंठलों पर भी फैल जाते हैं| जिसमें बीज फसल की डंठले संक्रमित भाग से मुड़कर लटक जाती हैं| लहसुन में पत्ती के किनारे शुरू में भूरे या पीले दिखाई देते हैं, बाद में बीजाणु बनने पर किनारे काले रंग के हो जाते हैं|
प्रबंधन के उपाय-
1. फसल अवशेष को एकत्र करके जला देना चाहिए|
2. गर्मी के महीन मई से जून में खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए|
3. उचित फसल-चक्र अपनाना चाहिए|
4. स्वस्थ पौधों से बीज का चुनाव करे या प्रमाणित बीज का ही प्रयोग करें|
5. बीज का शोधन कैप्टान या थायरम नामक फफूंदनाशक की 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से करना चाहिए|
6. फफूंदनाशक क्लोरोथैलोनिल 2.0 ग्राम प्रति लीटर या मैन्कोजेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें|
कोलेटोट्राईकम झुलसा (कोलेटोट्राईकम ब्लाईट)- प्याज में यह रोग कोलेटोट्राईकम ग्लियोस्पोरायडस नामक फफूंद से होता है| यह एक बीज जनित रोग है, इस रोग से संक्रमित अम्बेल से प्राप्त बीजो में कवक रहता है| जो बीज की गुणवत्ता को कम करते हैं| जिससे उत्पादन में कमी होती है, इस रोग में पौध की पत्तियों पर भूरे-काले धब्बे दिखाई देते हैं और ऊपरी मुलायम भाग तथा पुष्प डण्ठल प्रभावित भाग से सूखने लगते हैं| बाद में संक्रमित भागों पर छोटी-छोटी काले रंग की एसरवुलाई बन जाती है| जो प्रायः बीज डण्ठल में यह रोग अधिक आता है| रोग के बीजाणु कंद के अन्दर से बीज तक पहुँच जाते है| इस फफूंद के संक्रमण से प्याज में ट्विस्टर रोग भी होता है|
प्रबंधन के उपाय-
1. बीज के लिए स्वस्थ कंद का चुनाव करना चाहिए|
2. फसल अवशेष को एकत्र करके जला देना चाहिए|
3. मई से जून के महीने में गहरी जुताई अवश्य करना चाहिए|
4. उचित फसल-चक्र अपनाना चाहिए|
5. कार्बेन्डाजिम फफूंदनाशक द्वारा 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज शोधन करना चाहिए|
6. कार्बेन्डाजिम 1.0 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से जलीय घोल का छिड़काव करना चाहिए|
7. एक छिड़काव कापर ऑक्सीक्लोराईड 0.3 प्रतिशत का करना चाहिए|
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मृदुरोमिल आसिता (डाऊनी मिल्ड्यू)- प्याज व लहसुन में यह रोग पेरोनोस्पोरा डिस्ट्रक्टर नामक फफूंद द्वारा होता है| पत्तियों पर छोटे, सफेद रंग के धब्बे जिनमें अधिक आर्द्रता और नमी होने पर धब्बों के मध्य सतह पर हल्के भूरे रंग के कवक तन्तु की वृद्धि देखी जा सकती है| अधिक संक्रमण होने पर पत्तियाँ प्रभावित भाग से मुलायम होकर लटक जाती है व सूख जाती है|
प्रबंधन के उपाय-
1. प्रमाणित बीजों का प्रयोग करना चाहिए|
2. मेटालेक्सिल 8 प्रतिशत + मेंकोज़ेब 64 प्रतिशत डबल्यू पी फफूंदनाशक की 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव 10 दिन के अन्तराल पर दो बार करना चाहिए|
3. फफूंदनाशक फिनाडोनामाइड 10 प्रतिशत + मैन्कोजेब 50 प्रतिशत का 0.2 प्रतिशत की दर से छिड़काव कर सकते हैं|
चूर्णिला आसिता (पाऊडरी मिल्ड्यू)- प्याज व लहसुन की फसल इस रोग से कम प्रभावित होती है| यह रोग लेविलुला टाउरिका नामक फफूंद से होता है| इसके लक्षण सर्वप्रथम पत्तियों पर सफेद रंग के फफूंद के बीजाणुओं, चूर्ण या पाऊडर की तरह दिखाई देता है| अधिक आर्द्रता व कम तापमान पर सफेद चूर्ण पुरी पत्तियों की सतह पर फैल जाता है, जिससे पौधे दूर से सफेद दिखाई देते हैं| अंत में पौधे की पतियाँ सूख जाती है और उनके ऊपर भी फफूंद फैलने से भूरे, काले रंग के धब्बे दिखने लगते है, जिससे फसल खराब हो जाती है तथा उत्पादन में कमी आती है|
प्रबंधन के उपाय-
1. गन्धक (सल्फर) का 0.2 प्रतिशत की दर से छिड़काव करना चाहिए|
2. टोपास फफूंदीनाशक की 1.0 ग्राम या डिनोकैप या ट्राईडेमार्क का 1.0 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल का 7 दिनों के अन्तराल पर छिड़काव करें|
3. प्याज में स्प्रिंकलर द्वारा सिंचाई करने से रोग में कमी की जा सकती है|
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सर्कोस्पोरा पत्ती झुलसा (सर्कोस्पोरा लीफ ब्लाइट)- इस रोग के लक्षण सबसे पहले प्याज व लहसुन की पत्तियों पर छोटे-छोटे राख के रंग के अनेक अनियमित धब्बे दिखाई देते हैं| ये धब्बे धीरे-धीरे पूरे पत्ती में फैल जाते हैं, जिससे पत्ती झुलस जाती है| यह रोग प्याज में सर्कोस्पोरा ड्यूटी नामक फफूंद से होता है|
प्रबंधन के उपाय-
1. हेक्साकोनाजोल, ट्राईडेमेफान या विटरटेनाल फफूंदनाशक 0.1 प्रतिशत का छिडकाव करना चाहिए|
2. एक छिड़काव कापर ऑक्सीक्लोराइड 0.3 प्रतिशत का करना चाहिए|
प्याज का कंड(अनियन स्मट)- यह प्याज का एक प्रमुख रोग है, जो कि यूरोसिस्टिस सेपुली नामक फफूंद से होता है| प्रारम्भिक अवस्था में रोग-ग्रस्त पत्तियों पर काले रंग के छोटे-छोटे फफोले दिखाई देते हैं, जो बाद में फट जाते हैं तथा उसमें से रोग जनक फफूंद के असंख्य बीजाणु काले रंग के चूर्ण के रूप में बाहर निकलते हैं| यह बीजाणु हवा द्वारा फैलते हैं तथा एक से दूसरे पौधे में रोग उत्पन्न करते है|
प्रबंधन के उपाय-
1. थाइरम नामक फफूंदीनाशक से बीजों को 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए|
2. कार्बेन्डाजिम 0.1 प्रतिशत फफूंदनाशक का छिड़काव दो बार 15 दिनों के अन्तराल पर करना चाहिए|
काली फफूदी (ब्लैक मोल्ड)- प्याज व लहसुन की यह एक भण्डारण की प्रमुख बीमारी है, जो एस्परजिलस नाइजर फफूंद के द्वारा होती है| इस रोग के संक्रमण से भण्डारित प्याज व लहसुन में 50 प्रतिशत तक हानि हो सकती है| काला चूर्ण कंद की बाहरी सतह पर समूहों में मिलता है| जिसे आसानी से हाथ से रंगड़कर हटाया जा सकता है| इस फफूंद के बीजाणु बाद में भीतरी शल्कों तक पहुंच जाते हैं तथा पूरी प्याज सड़ जाती है| यह रोग भण्डारण में माइट व बीटल्स से फैलता है|
प्रबंधन के उपाय-
1. कटाई के 15 दिन पहले फसल में कार्बेन्डाजिम का 0.1 प्रतिशत का छिड़काव करना चाहिए|
2. प्याज व लहसुन की खुदाई के बाद अच्छी तरह से सुखाकर हवादार भण्डारण गृह में रखना चाहिए|
3. भण्डारण गृह को प्याज रखने के पहले क्लोरोपाइरीफास व कार्बेन्डाजिम से निर्जमीकृत करना चाहिए|
4. भण्डारित प्याज की समय-समय पर छंटाई करते रहना चाहिए|
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जीवाणु भूरा विगलन (बैक्टीरियल ब्राउन रॉट)- यह रोग स्यूडोमोनास ऐरूजिनोसा नामक जीवाणु से होता है| यह भी एक भण्डारण की प्रमुख बीमारी है| प्रारम्भ में भीतरी शल्कों में सड़न शुरू होती है, बाद में पूरा प्याज सड़ने से गंध आती है| प्याज को मध्य से काटने पर भीतरी शल्कों में सड़न दिखाई देती है|
प्रबंधन के उपाय-
1. खुदाई के 15 दिन पहले फसल में स्ट्रेप्टोसाइक्लिन एन्टीबायोटिक का 100 पी पी एम, 1.0 ग्राम प्रति 5 लीटर पानी के घोल का छिड़काव करना चाहिए|
2. खराब कंदों की छंटाई करके, अच्छी तरह से सुखाकर हवादार भण्डारण गृह में रखना चाहिए|
3. भण्डारण गृह को कंद रखने के पहले क्लोरोपाइरीफास व कार्बेन्डाजिम से निर्जमीकृत चाहिए|
जीवाणु मृदु विगलन (बैक्टीरियल साफ्ट रॉट)- प्याज व लहसुन में यह रोग इर्विनिया कैरोटोवोरा नामक जीवाणु से होता है| इस रोग के संक्रामण से पत्तियाँ पीली पड़ने लगती है तथा ऊपर से नीचे की तरफ सूखने लगती हैं| जीवाणु के अधिक संक्रमण से पौध एक सप्ताह के अन्दर सूख जाती हैं| इस रोग से प्याज बीज फसल में अधिक नुकसान होता है|
प्रबंधन के उपाय-
1. स्वस्थ नर्सरी की रोपाई करना चाहिए तथा बीज फसल के लिए स्वस्थ कन्द का चुनाव करें|
2. रोग के लक्षण दिखाई देने पर एन्टीबायोटिक स्ट्रेप्टोसाइक्लिन का 200 पी पी एम 1.0 ग्राम प्रति 5 पानी के घोल का छिड़काव करें|
3. जैव नियंत्रक जीवाणु स्यूडोमोनास फ्लूओरिसेन्स 5.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई पूर्व खेत में मिलाना चाहिए|
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प्याज का विषाणु पीत बौना (ओनियन येलो ड्वार्फ वाइरस)- यह एक विषाणु जनित रोग है| रोग ग्रसित पौध की पत्तियों के आधार पर पीली धारियाँ दिखाई पड़ती हैं| नई पत्तियाँ पीली और चपटी हो जाती है, बाद में पत्तियाँ मुड़ने लगती है| कंद छोटे व अनियमित आकार के हो जाते हैं| यह रोग एफिड द्वरा फैलता है|
प्रबंधन के उपाय-
1. रोगग्रस्त पौध को उखाड़कर गड्ढे में दबा देना चाहिए|
2. डेल्टामेथ्रिन या फिप्रोनिल 0.1 प्रतिशत कीटनाशक का छिड़काव करना चाहिए|
आइरिस पीला धब्बा विषाणु (आइरिस येलो स्पाट वाइरस)- यह एक विषाणु जनित रोग है| जो टोमैटो स्पाटेड विल्ट वाइरस द्वारा होता है| भूरे, डाइमण्ड या आँख के आकार के धब्बे प्याज के पुष्प डण्ठल में दिखाई देते हैं| अधिक संक्रमण के कारण पुष्प डण्ठल गिरने लगते हैं, जिससे बीज की गुणवत्ता और पैदावार में कमी आती है| यह विषाणु रोग थ्रिप्स कीट द्वारा फैलता है|
प्रबंधन के उपाय-
1. कन्द फसल में थ्रिप्स कीट को बौछरीय सिंचाई द्वारा भी कम कर सकते हैं|
2. प्रोफेनोफास 0.15 या फिप्रोनिल 0.1 या स्पिंनोसैंड 0.1 प्रतिशत का छिडकाव कर के इसको नियंत्रित किया जा सकता है साथ में 0.6 मिलीलीटर स्टीकर प्रति लीटर पानी की दर से (चिपकने वाले द्रव) मिलाना चाहिए|
3. उपरोक्त सभी कीटनाशकों का छिड़काव फूल आने से पहले करना चाहिए|
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प्याज व लहसुन की फसल में एकीकृत कीट प्रबंधन
थ्रिप्स कीट- यह कीट प्याज व लहसुन के साथ-साथ, मिर्च, शिमला मिर्च, टमाटर, गोभी इत्यादि सब्जियों का प्रमुख कीट है| इस कीट के अर्भक व वयस्क दोनों ही प्याज व लहसुन की पत्तियों को खुरचकर रस चूसते हैं| क्षतिग्रस्त पत्तियाँ चमकीली सफेद दिखती है, जो बाद में ऐंठकर मुड़ तथा सूख जाती है| ऐसे पौधों के कन्द छोटे रह जाते हैं, जिससे पैदावार में भारी कमी आ जाती है| इस कीट के प्रकोप से प्याज व लहसुन के पौधों में बीमारियाँ अधिक आने लगती है|
यह कीट वर्ष भर सक्रिय रहता है, इस जाति का मादा 50 से 70 अण्डे पत्तियों की बाह्म परत में गढडा बनाकर देती है| अण्डों से 5 से 10 दिन बाद छोटे-छोटे अर्भक निकलते हैं| ये पत्तियों के मुलायम भागों से रस चूसना शुरू कर देते हैं| तत्पश्चात जमीन में प्यूपा पूर्व और प्युपावस्था गुजारते हैं, जो आमतौर पर 2 से 3 व 4 से 9 दिन की होती है, प्युपा से पंखदार वयस्क निकलते हैं, जो पौधों को क्षति पहुँचाते हैं तथा प्रजनन करते हैं| इसका पूरा जीवन-चक्र 14 से 30 दिनों में पूरा होता हैं|
प्रबंधन के उपाय-
1. रोपाई हमेशा समय पर ही करनी चाहिए|
2. शुष्क वातावरण वाली जगहों पर 2 से 6 सप्ताह के अन्तर पर प्याज की रोपाई करनी चाहिए, जिससे थ्रिप्स के जीवन-चक्र को नियंत्रित किया जा सके|
3. थ्रिप्स कीट को बौछारीय सिंचाई द्वारा भी कम कर सकते हैं, क्योकि बौछारीय सिंचाई से यह कीट मर जाते हैं|
4. प्रोफेनोफास 0.1 प्रतिशत या फिप्रोनिल 0.1 प्रतिशत या स्पिनोसैड 0.1 प्रतिशत का छिड़काव करने पर इसको नियंत्रित किया जा सकता है|
5. प्याज के बीज उत्पादन वाली फसल में उपरोक्त सभी कीटनाशकों का छिड़काव फूल आने से पहले करना चाहिए|
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प्याज का मैगट (अनियन मैगट)- इस कीट के मैगट क्षति पहुँचाते हैं| बड़े कंदो में 9 से 10 मैगट एक साथ प्रकोप करके उसे खोखला बना देते हैं| जिस पर अन्य जीवाणुओं के संक्रमण से मृदु विगलन रोग हो जाता है| क्षतिग्रस्त कंद भंडार गृह में ही सड़ जाते हैं| ठंडा व नम वातावरण इसके लिए अनुकूल होता है| क्षतिग्रस्त पौधों की पत्तियाँ सूख जाती हैं तथा अन्त में पौधे मर जाते है| यह कीट घरेलू मक्खी की तरह होता है| इसकी लम्बाई लगभग 6 मिलीमीटर होती है| इसके मैगट लगभग 9 मिलीमीटर लम्बे और सफेद होते हैं|
प्रबंधन के उपाय-
1. रोपाई के समय क्लोरोपाइरीफास 3 से 4 लीटर प्रति हेक्टेयर की ट्रेचिंग करने से 9 सप्ताह तक नियंत्रण पाया गया है|
2. फोरेट 10 जी का प्रयोग 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई से पहले करने पर इस कीट का नियंत्रण किया जा सकता है|
हेलीकोवरपा कीट (ग्राम पॉड बोरर)- यह प्याज की बीज उत्पादन वाली फसल में नुकसान करते है| जिससे प्याज की बीजोत्पादन प्रभावित होता है, हालांकि यह प्याज की फसलों का प्रमुख कीट नहीं है फिर भी इससे नुकसान पाया गया है|
प्रबंधन के उपाय-
1. फेरोमोन ट्रैप(हेलिल्योर) का प्रयोग करना चाहिए|
2. एच एन पी वी की 250 से 300 हूंड़ी समतुल्य मात्रा का प्रयोग प्रति हेक्टेयर की दर से शाम के समय छिड़काव करने पर अच्छा नियंत्रण होता है|
3. नीमायुक्त कीटनाशक का प्रयोग करना चाहिए|
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पर्ण सुरंगक कीट (लीफ माइनर)- इस कीट के मैगट पत्तियों में ऊपरी सिरे की ओर सुरंग बनाकर उसके हरे ऊतकों को खाकर क्षति पहुँचाते हैं| परिणाम स्वरूप प्याज की पत्तियाँ सूख जाती है| क्षतिग्रस्त पौधों की पत्तियों में टेढ़ी-मेढ़ी सुरंगे बन जाती हैं| प्याज व लहसुन ज्यादा प्रकोप होने पर पौधों की बढ़वार पर प्रतिकूल असर पड़ता है तथा वे अपेक्षाकृत छोटे रह जाते हैं|
प्रबंधन के उपाय-
1. चूँकि इस कीट का प्रकोप पत्तियों की चोटी से शुरू होता है, इसलिए ऐसे पौधों की पत्तियों की चोटी को काटकर नष्ट कर देना चाहिए|
2. प्रारम्भिक अवस्था में प्रकोप होने पर ट्राइजोफास 0.2 प्रतिशत का छिड़काव करने पर अच्छा नियंत्रण होता है|
3. नीमगिरी कीटनाशक 5.0 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए|
4. फसल अवशेष को एकत्र करके जला देना चाहिए|
5. बीज के लिए स्वस्थ कंद का चुनाव करना चाहिए या प्रमाणित बीज का ही प्रयोग करें|
6. उचित फसल-चक्र अपनाना चाहिए|
7. गर्मी के महीने मई से जून में खेत की हल्की सिंचाई करने के बाद गहरी जुताई करना चाहिए, जिससे कीटों के अण्डों, ग्रव व प्यूपा और बीमारियों के रोगाणुओं की संख्या में कमी की जा सकती है|
8. स्यूडोमोनास फ्लूओरिसेन्स की 5.0 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से खेत में मिलाना चाहिए|
9. रोपाई से पहले प्याज की पौध और बीज कन्दों को 0.1 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम के घोल में डुबाकर लगायें|
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