व्यवसायिक जागरूकता और बाजार में माँग बढ़ने के कारण सब्जी वाली फली ग्वार के उत्पादन पर किसान बन्धु ध्यान देने लगे हैं| सब्जी वाली ग्वार फली की फसल में बुवाई के 50 से 55 दिनों बाद कच्ची फलियाँ तुड़ाई पर आ जाती हैं, जिससे किसान को एक लम्बे समय तक नगदी फसल के रूप में लाभ प्राप्त होता रहता है| इसकी खेती सब्जी, चारा, दाना, हरी खाद, भूमि संरक्षण आदि के लिए की जाती है| ग्वार फली की सब्जियाँ शाकाहारी लोगों का संतुलित आहार है| प्रोटीन और रेशा युक्त होने के कारण इसे सब्जियों में प्रमुखता दी जाती है|
इसकी ताजा व सूखी ग्वार फली को अन्य सब्जियों के साथ मिलाकर तरह-तरह की सब्जियाँ बनाते हैं| लेकिन किसान भाई फली ग्वार की उन्नत किस्मों की जानकारी के आभाव में इसकी खेती से इच्छित पैदावार प्राप्त नही कर पाते है| इस लेख में फली ग्वार की उन्नत किस्मों और उनकी विशेषताएं तथा पैदावार की जानकारी का उल्लेख है| ग्वार फली की खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- ग्वार फली की खेती कैसे करें
फली ग्वार की किस्में- विशेषताएं और पैदावार
पूसा मौसमी
इसके पौधों में बहुत शाखाएं आती हैं तथा यह वर्षा ऋतु के लिए उपयुक्त किस्म है| फली चिकनी, चमकदार, हरी, मुलायम तथा 10 से 12 सेंटीमीटर लम्बी होती हैं| बुवाई के 65 से 70 दिन बाद हरी फली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती हैं| इस किस्म द्वारा लगभग 35 से 40 क्विटल हरी फलियाँ प्रति हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती हैं|
पूसा सदाबहार
यह किस्म बिना शाखाओं वाली होती है और गर्मी तथा वर्षा ऋतु में खेती के लिए उपयुक्त है| इसकी फली हरी, 10 से 13 सेंटीमीटर लम्बी और रेशे रहित तथा नर्म होती हैं| बुवाई के लगभग 55 दिन बाद कच्ची फलियों की पहली तुड़ाई प्रारम्भ हो जाती है|
पूसा नवबहार
इस किस्म में भी शाखाएं नहीं होती हैं और वर्षा तथा गर्मी में खेती के लिए उपयुक्त है| फली 12 से 15 सेंटीमीटर लम्बी और अच्छी गुणवत्ता वाली होती हैं| फलियाँ बुवाई के 55 दिन बाद तुड़ाई के उपयुक्त होती हैं| इस किस्म से 55 से 85 किंवटल तक फली उत्पादन लिया जा सकता है|
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दुर्गा बहार
यह शाखा रहित किस्म है और बुवाई के 50 से 55 दिन बाद फलियाँ तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है| फलियाँ काफी लम्बी, गूदेदार, गहरे हरे रंग की और चिकनी होती हैं| इस किस्म की प्रति हेक्टेयर उपज 75 से 80 क्विण्टल फलियाँ होती हैं|
शरद बहार
यह किस्म देर से पकने वाली है| इसमें बीमारियों के प्रति कुछ हद तक रोधक क्षमता होती है| सब्जी के लिए फली बुवाई के 70 से 85 दिन बाद तुड़ाई पर आती हैं| एक हेक्टेयर में 140 से 150 किंवटल तक फली उत्पादन हो सकता है|
एम- 83
वर्षा और गर्मी ऋतु के लिए यह किस्म उपयुक्त है| इसमें फली बुवाई के 55 से 60 दिन बाद तुड़ाई पर आती हैं और 120 किंवटल तक पैदावार देने में सक्षम है|
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गोमा मंजरी
इसके पौधे काफी लम्बे होते हैं और फलियाँ नीचे से ही लगना प्रारम्भ हो जाती हैं| बुवाई के 75 से 80 दिन बाद पहली तुड़ाई आती है और एक हेक्टेयर से 85 से 105 क्विटल फलियाँ प्राप्त की जा सकती है| फलियाँ लम्बी, पतली, नर्म, रेशेरहित, चिकनी और हरी होती हैं| यह किस्म अर्धशुष्क क्षेत्रों में वर्षा और गर्मी ऋतु के लिए उपयुक्त है|
ए एच जी 13
यह किस्म मरु क्षेत्र की अत्यधिक कठोर जलवायु में भी अच्छी गुणवत्ता युक्त फलियों की उपज देती है| वर्षा आधारित बारानी खेती और गर्मी में सिंचाई द्वारा खेती के लिए उपयुक्त है| बुवाई के 50 दिन बाद फलियों की पहली तुड़ाई प्रारम्भ हो जाती है| पौधे 75 से 145 सेंटीमीटर तक लम्बे हो सकते हैं| फलियाँ पौधे की 2 से 3 गाँठ से ही प्रारम्भ हो जाती हैं| एक पौधे पर 7 से 15 फलियों के गुच्छ होते हैं और एक गुच्छ में 9 से 21 तक फलियाँ लगती हैं|
इसकी मध्यम आकार की हल्की हरी फलियाँ नरम, चिकनी एवं खाने में स्वादिष्ट होती हैं| कच्ची फलियाँ 6.5 से 8.5 सेंटीमीटर लम्बी और 0.38 से 0.45 सेंटीमीटर के करीब चौड़ी होती हैं| आधुनिक फसल तकनीक अपनाकर लगभग 120 किंवटल फलियों का प्रति हेक्टेयर उत्पादन लिया जा सकता है|
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