फ्रांसबीन (फ्रेंचबीन) की जैविक फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए रोग एवं कीट से होने वाली हानी की रोकथाम जरूरी है| फ्रांसबीन (फ्रेंचबीन) फसल के रोगों में जड़ सड़न तथा अंगमारी, श्याम वर्ण, पत्तों का कोणदार धब्बा, फ्लावरी लीफ स्पॉट, क्राऊन सड़न, जीवाणु अंगामरी और मौजेक आदि प्रमुख है, जबकि कीटों में माईट, व्हाईट फलाई, बीन बग और दीमक प्रमुख है| इन सब की जैविक रोकथान के साथ सूत्रकृमि नियंत्रण कर के फ्रांसबीन (फ्रेंचबीन) उत्पादक अच्छी उपज प्राप्त कर सकते है|
जैविक पद्धति में फसल संरक्षण की पहल फसल परिचक्रण से की जा सकती है| जो रोग और सूत्रकृमि के प्रकोप को रोकता है और खरपतवार को समाप्त करता है| यह कीट चक्र को तोड़ने में भी मदद करता है| इस लेख में फ्रांसबीन फसल के प्रमुख रोग एवं कीट और उनका जैविक नियंत्रण कैसे करें की जानकारी का वर्णन किया गया है| फ्रेंचबीन की जैविक खेती कैसे करें की विस्तृत जानकारी के लिए यहाँ पढ़े- फ्रांसबीन (फ्रेंचबीन) की जैविक खेती कैसे करें
फ्रांसबीन फसल के कीटों का जैविक प्रबंधन
माईट- शिशु व व्यस्क माईट पौधे की कोमल पत्तियों और फलों से रस चूसते हैं| जिससे उनका हरापन नष्ट हो जाता है| पत्तियों की ऊपरी सतह पर अत्यंत छोटे-छोटे हल्के पीले रंग के चकत्ते बन जाते हैं| प्रकोप अधिक होने पर पौधा सूखकर नष्ट हो जाता है|
नियंत्रण-
1. फ्रांसबीन फसल के रोग ग्रसित पौधों या पत्तियों को नष्ट करें|
2. इस कीट की रोकथाम के लिए नीम के बीजों को पीसकर पाउडर बना लें, पाउडर पानी में घोलकर तथ घोल को कपड़े से छानकर पांच प्रतिशत के हिसाब से पानी में मिलकर हर 10 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें|
3. फ्रांसबीन फसल में 15 से 20 दिन पुरानी छाछ और गोमूत्र का तर छिडकाव करें|
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व्हाईट फलाई- यह रस चूसकर पौधों को हानि पहुंचाती है| शिशु और प्रौढ़ पत्तों की निचली सतह से रस चूसते हैं, अति प्रभावित भाग हल्के पीले जाते हैं और पत्ते गिर जाते हैं|
नियंत्रण- वरटी सीलियम 0.3 प्रतिशत घोल का सप्ताह के अन्तराल पर प्रयोग करें|
बीन बग- इस कीट के शिशु व वयस्क दोनों ही फ्रेंचबीन के लगभग सभी भागों को हानि पहुँचाते हैं|
नियंत्रण-
1. रोपण के बाद 45, 60 और 75 वें दिन 10 प्रतिशत लहसून- मिर्च- अदरक के सत्त के छिड़काव की सिफारिश की जाती है|
2. फ्रांसबीन फसल में 4 प्रतिशत नीम के पाउडर घोल का छिड़काव करें|
3. 4 किलोग्राम नीम बीज का पाउडर लें और 10 लीटर पानी में मिलाकर पूरी रात रखें| अगले दिन सुबह छान लें और 100 लीटर पानी में मिला लें और छिड़काव करें या 3 प्रतिशत नीम के तेल का छिड़काव करें|
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दीमक- दीमक एक खतरनाक एवं बहुजातीय कीट है| दीमक बोये हुए बीजों तथा अंकुरित पौधों की जड़ों को नष्ट कर देती हैं| जिसके कारण पौधे मुरझाकर सूख जाते हैं, एवं खींचने पर आसानी से उखड़ जाते हैं|
नियंत्रण-
1. फसल बिजाई के समय जमीन में नीम के पत्तों से तैयार की गई खाद (5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर) या नीम के बीज से तैयार की गई खाद (1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर) का प्रयोग करने से दीमक का प्रकोप कम हो जाता है|
2. चूना और गंधक का मिश्रण जमीन में डालने से भी दीमक के प्रकोप में भारी कमी आती है|
3. लकड़ी से प्राप्त राख को पौधों के तनों के मूल में डालने से दीमक के प्रकोप में कमी आती है|
4. पशु-मूत्र को पानी के साथ 1:6 में मिलाकर बार-बार दीमक के घरों में डालने से इनका प्रसार रोका जा सकता है|
5. विवेरिया या मेटाराइजियम फफूंद का कण अवस्था में (6 ग्राम प्रति वर्ग मीटर) प्रयोग करें|
सूत्रकृमि- फ्रांसबीन फसल के गग्रस्त पौधों की पत्तियां पीली पड़ जाती है, पौधा मुरझा जाता है तथा पौधा बौना रह जाता है| पौधों को उखाड़कर देखने पर जड़े सीधी न होकर आपस मे गुच्छा बना लेती है, जड़ों पर गांठें बनकर फूल जाती हैं|
नियंत्रण- फ्रांसबीन की फसल के लिए खेत तैयार करते समय 250 किलोग्राम नीम की खली के साथ 8 प्रतिशत तेल का इस्तेमाल करें और बीज को अच्छे से उपचारित कर के बोयें|
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फ्रांसबीन फसल के रोगों का जैविक प्रबंधन
जड़ सड़न तथा अंगमारी- इस रोग के लक्षण पौधों के तनों पर भूमि के साथ एक विशेष किस्म के लाल भूरे रंग के धंसे हुए धब्बे के रूप में दिखाई देते हैं| जिसके परिणामस्वरूप पौधे कमजोर हो जाते हैं| यदि नमी पर्याप्त हो तो पत्तियों तथा फलियों पर झुलसे के लक्षण दिखाई देते हैं और यदि नमी कम हो तो उन भागों पर भूरे रंग के छोटे-छोटे धब्बे बन जाते हैं| रोगग्रस्त फलियों में पनपने वाले बीज भी इस रोग से प्रभावित होकर छोटे तथा सिकुड़े बन जाते हैं, जिन पर भूरे धब्बे दिखाई देते हैं| बारिश का मौसम तथा 25 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान इस रोग को बढ़ावा देता है|
नियंत्रण-
1. बहुवर्षीय फसल चक्र अपनाएं|
2. रोगमुक्त बीज का प्रयोग करें|
3. बीज को बिजाई से पहले ट्राइकोडर्मा तथा राइजोबियम कल्चर से उपचारित करें|
श्याम वर्ण- इस रोग से फलियों पर विशेष प्रकार के गोल गड्ढे विकसित होते हैं, जिनके बीच का भाग हल्के भूरे रंग का तथा किनारे लाल से भूरे रंग के होते हैं| नमी वाले मौसम में यह धब्बे हल्के गुलाबी रंग के फफूंद से ढक जाते हैं| बारिश व नमी वाले मौसम इस रोग के संक्रमण तथा वृद्धि के लिए उपयुक्त हैं|
नियंत्रण-
1. दो से तीन साल फसल चक्र अपनाएं|
2. फ्रांसबीन फसल के लिए स्वस्थ बीज का चयन करें|
3. बीज का बिजाई से पहले ट्राइकोडर्मा और राइजोबियम कल्चर तथा बीजामृत से उपचारित करें|
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पत्तों का कोणदार धब्बा- इस रोग से पत्तियों पर 3 से 5 कोण वाले भूरे रंग व लाल रंग के धब्बे बनते हैं, जो कि अनुकूल वातावरण में आपस में मिल जाते हैं तथा रोगग्रस्त पत्तियां समय से पूर्व पीली पड़कर जमीन पर गिर जाती हैं| फलियों की सतह पर गहरे भूरे रंग के गोलाकर धब्बे बनते हैं, जो बाद में फली का आकार बढ़ने पर लंबाई तथा चौड़ाई में बढ़ जाते हैं| इन धब्बों पर मखमली रंग की फफूंद की परत बन जाती है| रोगग्रस्त फलिया में बन रहे बीजों पर भी पीले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं| ज्यादा तापमान तथा नमी वाला मौसम इस रोग के पनपने में सहायता करता है|
नियंत्रण-
1. रोगग्रस्त पौधों के अवशेषों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें|
2. 2 से 3 वर्ष का फसल चक्र चलाएं|
3. फ्रांसबीन फसल हेतु स्वस्थ बीज का चयन करें|
4. बिजाई से पहले बीज का उपचार ट्राइकोडर्मा और राइजोबियम कल्चर और बीजामृत से करें|
5. वर्षा ऋतु में पानी की निकासी पर पूरा ध्यान दें।
फ्लावरी लीफ स्पॉट- इस रोग के लक्षण केवल पत्तों पर ही पाए जाते हैं| पत्तों की निचली सतह पर छोटे-छोटे आटे के रंग के चूर्णिल धब्बे पड़ जाते हैं| इन्हीं धब्बों की ऊपरी सतह पर पीले रंग के धब्बे बन जाते हैं| बाद में यह धब्बे पत्तों की दोनों सतह पर आकार में बढ़ जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप पत्तियां समय से पहले पीली पड़ जाती हैं और जमीन पर गिर जाती हैं, जिससे पौधा कमजोर पड़ जाता है| वर्षा व नमी वाला मौसम इस रोग के फैलने में सहायता करता है|
नियंत्रण-
1. रोगग्रस्त पौधों के अवशेषों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें|
2. तीन वर्ष का फसल चक्र चलाएं|
3. वर्षा ऋतु में पानी की निकासी पर पूरा ध्यान दें|
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क्राऊन सड़न- इस रोग के प्रकोप से फ्रांसबीन फसल पौधों के तनों पर जमीन के साथ भूरे रंग के धब्बे के रूप में दिखाई देते हैं| रोगग्रस्त तने के चारों तरफ कवक का कपासीय जाल भी देखा जा सकता है| कवक जाल की वृद्धि के साथ पत्तियां पीली होकर समय से पूर्व जमीन पर गिरने लगती हैं| रोगग्रस्त पौधों की जड़ों का विगलन हो जाता है| कवक जाल पर अनेक गोलाकार गहरे भूरे रंग के धब्बे बनते हैं| अधिक तापमान तथा अधिक नमी इस रोग के फैलने में सहायता करती है|
नियंत्रण-
1. बहुवर्षीय फसल चक्र चलाएं|
2. फ्रांसबीन फसल के रोगग्रस्त पौधों के अवशेषों को नष्ट कर दें|
3. फ्रांसबीन फसल में गोमूत्र का छिडकाव करें|
जीवाणु अंगामरी- इस रोग के मुख्य लक्षणों में छोटे जलसिक्त धब्बों का बनना तथा पत्तों पर शिराओं के मध्य भाग का पीला होना है| तनों पर लाल रंग की धारियां तथा गहरे धब्बे बनते हैं| फलियों पर छोटे जलसिक्त धब्बे बनते हैं, जो कि स्पष्ट लाल, भूरे अथवा गहरे भूरे रंग के पतले भागों द्वारा घिरे होते हैं| बीजों का विशेष रूप से हाइलम क्षेत्र का रंग बदल जाता है| 24 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान तथा 50 प्रतिशत से अधिक नमी इस रोग की वृद्धि के कारण बनते है|
नियंत्रण-
1. फ्रांसबीन फसल के संक्रमित पौधों के अवशेषों और खरपतवारों को नष्ट कर दें|
2. बहुवर्षीय फसल चक्र अपनाएं|
3. फ्रांसबीन फसल के लिए स्वस्थ बीज का चयन करें|
4. बीज को बिजाई से पहले ट्राइकोडर्मा तथा बीजामृत से उपचारित करें|
5. फ्रांसबीन फसल में रोग के लक्षण दिखाई देते ही पंचगव्य का छिड़काव करें|
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मौजेक- यह बिजाणु फ्रांसबीन फसल में सडन करता है, जिसके लक्षणों में पत्तों का मुड़ना या छाले पड़ना, हल्के और गहरे हरे धब्बों का बनना, शिराओं का पीला होकर मुड़ना और वृद्धि में रूकावट आना इत्यादि हैं| संक्रमित पौधों में छोटी व कम फलियां लगती हैं तथा कई बार गहरे हरे धब्बों से ढक जाती हैं और स्वस्थ फलियों की अपेक्षा देर से पकती हैं|
नियंत्रण-
1. फ्रांसबीन फसल खेत के चारों तरफ से धतूरा तथा मुकोह आदि खरपतवारों को निकालकर जला दें|
2. रोग व कीट नियंत्रण के लिए नीम तेल का छिड़काव 10 से 12 दिन के अंतराल पर करें|
3. फ्रांसबीन फसल हेतु स्वस्थ बीज का उपयोग करें तथा बिजाई से पहले बीज का उपचार ट्राइकोडर्मा तथा बीजामृत से करें|
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