दलहनी कुल की सब्जियों में फ्रेंचबीन (फ्रांसबीन) का प्रमुख स्थान है| इसकी खेती हमारे देश के सम्पूर्ण मैदानी क्षेत्रों में सर्दियों के मौसम में व पहाड़ी क्षेत्रों में गर्मियों के मौसम में की जाती है| दक्षिणी भारत में इसकी खेती पूरे वर्ष की जाती है| फ्रेंचबीन (फ्रांसबीन) की हरी फलियों का उपयोग सब्जी के रूप में तथा सूखे दानों का उपयोग दालों के रूप में किया जाता है| इसकी हरी फलियों व सूखे दानों में प्रोटीन, कार्बोहाड्रेट्स कैरोटीन, विटामिन्स व फोलिक अम्ल प्रचुर मात्रा में पाया जाते है|
भारत में इसकी खेती हिमाचल प्रदेश, जम्मू व काश्मीर, उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, पश्चिमी बंगाल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश और पर्वोत्तर राज्यों में सफलतापर्वक की जाती है| फ्रेंचबीन की जैविक खेती कैसे करें की विस्तृत जानकारी के लिए यहाँ पढ़े- फ्रांसबीन (फ्रेंचबीन) की जैविक खेती कैसे करें
फ्रेंचबीन की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
फ्रेंचबीन (फ्रांसबीन) मूलतः सम जलवायु की फसल है| अच्छी बढ़वार व उपज के लिए 18 से 20 डिग्री सेन्टीग्रेट तापमान उपयुक्त होता है| 16 डिग्री सेन्टीग्रेट से कम व 22 डिग्री सेल्शियस से अधिक तापक्रम का फसल की वृद्धि व उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है| फ्रेंचबीन (फ्रांसबीन) की फसल पाला व अधिक गर्मी के प्रति संवेदनशील होती है|
फ्रेंचबीन की खेती के लिए भूमि का चयन
फ्रेंचबीन (फ्रांसबीन) की खेती लगभग सभी प्रकार की मिटटी में की जा सकती हैं| अच्छे जल निकास वाली जीवांशयुक्त बलुई-दोमट से लेकर दोमट मिटटी जिसका पी एच मान 6 से 7 के मध्य हो फ्रेंचबीन (फ्रांसबीन) की खेती के लिए उपयुक्त होती है| जल ठहराव की अवस्था इस फसल के लिए अति हानिकारक होती है|
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फ्रेंचबीन की खेती के लिए खेत की तैयारी
यदि खेत में नमी की कमी हो तो बुवाई से पूर्व खेत का पलेवा कर लेना चाहिए| बुवाई के पूर्व खेत की अच्छी तरह जुताई व पाटा लगाकर तैयार कर लेना चाहिए| बुवाई के समय बीज अंकुरण के लिए खेत मे पर्याप्त नमी होनी आवश्यक है|
फ्रेंचबीन की खेती के लिए उन्नत किस्में
फ्रेंचबीन (फ्रांसबीन) की खेती के लिए किसानों को अपने क्षेत्र की प्रचलित और अधिक उपज वाली किस्म चयन के साथ-साथ विकार रोधी का उपयोग करना चाहिए| कुछ प्रचलित किस्में इस प्रकार है, जैसे-
बौनी (झाड़ीनुमा) किस्में- कटेन्डर, पूसा पार्वती, वी एल बोनी- 1, काशी परम, काशी सम्पन्न, काशी राजहंस, अर्को सुविधा, पन्त अनुपमा, प्रीमियर और अर्का कोमल आदि प्रमुख है|
बेलनुमा किस्म- पूसा हेमलता, स्वर्ण लता, एस वी एम- 1, लक्ष्मी (पी- 37) और केन्टुकी वन्डर आदि प्रमुख है| किस्मों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- फ्रेंचबीन की उन्नत किस्में, जानिए उनकी विशेषताएं और पैदावार
फ्रेंचबीन की खेती के लिए बीज की मात्रा
फ्रेंचबीन की बौनी (झाड़ीनुमा) किस्मों के लिए 70 से 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और लता वाली किस्मों के लिए 40 से 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है|
फ्रेंचबीन की खेती के लिए बीजोपचार
फ्रेंचबीन के बीज को बुवाई से पहले फफूंदनाशी रसायन कार्बेन्डाजिम की 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर बुवाई करनी चाहिए| इससे फसल की प्रारम्भिक अवस्था में मिटटी जनित बीमारियों से सुरक्षा हो जाती है|
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फ्रेंचबीन की खेती के लिए बुवाई का समय
उत्तरी भारत के मैदानी क्षेत्रों में फ्रेंचबीन (फ्रांसबीन) की बुवाई का सबसे उपयुक्त समय 25 अक्टूबर से 07 नवम्बर तथा तराई क्षेत्रों में फरवरी से मार्च है| पहाड़ी क्षेत्रों में फ्रेंचबीन की खेती ग्रीष्म व वर्षा ऋतु में की जाती है| इसके लिए कम ऊँचाई वाले क्षेत्रों में फरवरी से मार्च व अगस्त का महीना, मध्यम ऊँचाई वाले क्षेत्रों में मार्च से जुलाई और अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों में अप्रैल से जुन का समय सर्वोत्तम होता है|
फ्रेंचबीन की खेती के लिए बुवाई की विधि
बीज की बुवाई समतल खेत में या उठी हुई मेड़ों या क्यारियों में की जाती है| उठी हुई मेड़ों या क्यारियों में बुवाई करना पौधों की अच्छी वृद्धि व अधिक उत्पादन के लिए उपयुक्त पाया गया है| झाड़ीनुमा (बौनी) किस्मों के लिए कतार से कतार की दूरी 45 से 60 सेंटीमीटर तथा कतार में पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 सेंटीमीटर रखते हैं| लता वाली किस्मों के लिए कतार से कतार की दूरी 75 से 100 सेंटीमीटर तथा कतार में पौध से पौध की दूरी 25 से 30 सेंटीमीटर रखते है|
फ्रेंचबीन की खेती के लिए खाद और उर्वरक
अन्य दलहनी सब्जियों की आपेक्षा फ्रेंचबीन की जड़ों में वायुमण्डल से नत्रजन एकत्रित करने वाली ग्रन्थियों का निर्माण बहुत कम होता है| जिसके कारण इस फसल को खाद और उर्वरक की आवश्यकता अधिक होती है| अच्छे उत्पादन के लिए 20 से 25 टन सड़ी गोबर की खाद खेत की तैयारी के समय मिटटी में अच्छी तरह मिला देते हैं|
इसके अतिरिक्त 80 से 120 किलोग्राम नाइट्रोजन 50 किलोग्राम फास्फोरस और 50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देते हैं| नाइट्रोजन की आधी मात्रा, फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई से पहले या बुवाई के समय आधारीय खुराक के रूप में देते हैं| नाइट्रोजन की शेष मात्रा दो बराबर भागों में बाँटकर बुवाई के लगभग 20 से 25 दिन व 35 से 45 दिन बाद टाप ड्रेसिंग के रूप में देना चाहिए|
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फ्रेंचबीन की फसल में पौधों को सहारा देना
फ्रेंचबीन की लता वाली किस्मों को सहारा देना आवश्यक है| सहारा न देने की अवस्था में पौधे भूमि पर ही फैल जाते हैं और उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है| जिसके कारण गुणवत्तायुक्त उत्पादन में भारी गिरावट आ जाती है| सहारा देने के लिए पौधों की कतारों के समानान्तर 2 से 3 मीटर लम्बे बाँस या लकड़ी या आयरन के खम्भों को 5 से 7 मीटर की दूरी पर गाड़ देते है| इन पर रस्सी या लोहे के तार खींचकर ट्रेलिस बनाकर लताओं को चढ़ा देते है| पौधों की बढ़वार के अनुसार रस्सी या तार की कतारों की संख्या 30 से 45 सेंटीमीटर के अन्तराल पर बढ़ाते जाते है|
फ्रेंचबीन की फसल में सिंचाई प्रबंधन
फ्रेंचबीन (फ्रांसबीन) की फसल मिटटी की नमी के प्रति अति संवेदनशील होती है| अतः खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए| अपर्याप्त नमी होने पर पौधे मुरझा जाते हैं| जिसके कारण उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ता है| इसके लिए मिटटी की नमी को ध्यान में रखते हुए नियमित अन्तराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए|
फ्रेंचबीन की फसल में खरपतवार नियंत्रण
फ्रेंचबीन (फ्रांसबीन) फसल की प्रारम्भिक अवस्था में खेत को खरपतवार मुक्त रखने के लिए एक से दो निराई-गुड़ाई पर्याप्त होती है| निराई-गुड़ाई अधिक गहराई तक नहीं करनी चाहिए| वैसे खरपतवार नियंत्रण के लिए पूर्व निर्गमन खरपतवारनाशी रसायनों जैसे पेन्डामेथालीन 3.5 लीटर मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर बुवाई के 48 घंटे के अन्दर छिड़काव करें| इससे 40 से 45 दिनों तक मौसमी खरपतवारों का नियंत्रण हो जाता है| इसके बाद यदि आवश्यक हो तो एक निराई कर देनी चाहिए|
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फ्रेंचबीन की फसल में कीट और रोग की देखभाल
फ्रेंचबीन की फसल से अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए इस फसल की अन्य कृषि क्रियाओं के साथ-साथ कीट एवं रोगों की रोकथाम भी आवश्यक है| इस फसल को हानी पहुँचाने वाले अनेक कीट और रोग है, लेकिन फ्रेंचबीन की फसल में आर्थिक स्तर से अधिक नुकसान पहुँचाने वाले कुछ प्रमुख कीट एवं रोगों की पहचान और रोकथाम की विस्तृत जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- फ्रेंच बीन फसल के कीट एवं रोग और उनकी रोकथाम कैसे करें
फ्रेंचबीन फसल की फलियों की तुड़ाई
फलियों की तुड़ाई हमेशा मुलायम अवस्था में करनी चाहिए| देर से तुड़ाई करने पर फलियों में सख्त रेशे बन जाते है| जिससे इनका बाजार भाव घट जाता है| बौनी (झाड़ीनुमा) किस्मों की 3 से 4 तुड़ाई मिल जाती है| जबकि लता (बेल) वाली किस्मों से लम्बे समय तक फलत मिलती रहती है| यदि फ्रेंचबीन की खेती सूखे दानों के लिए की गयी हो तो फलियों की तुड़ाई सूखी अवस्था में जब वे चटकने के करीब हो करनी चाहिए|
फ्रेंचबीन की खेती से पैदावार
फ्रेंचबीन (फ्रांसबीन) की फसल से पैदावार किस्म चयन, खाद और उर्वरक की मात्रा, फसल देखभाल और अन्य कृषि परिस्थितियों पर निर्भर करती है| लेकिन सामान्यत: उपरोक्त वैज्ञानिक विधि से खेती करने पर फ्रेंचबीन की झाड़ीनुमा (बौनी) किस्मों से हरी फलियों की उपज 80 से 230 कुन्तल व लता वाली (बेल) किस्मों की 80 से 250 कुन्तल प्रति हेक्टेयर होती है| सूखे दानों की औसत उपज 10 से 21 कुन्तल प्रति हेक्टेयर होती है|
फ्रेंचबीन फसल फलियों की तुड़ाई उपरान्त प्रबंधन
हरी फलियों को तुड़ाई के पश्चात् ठंडे छायादार स्थानों पर रखना चाहिए| क्षतिग्रस्त, सड़ी-गली, कीड़ों मकोड़ों से प्रभावित व विकृति फलियों को छाँटकर निकाल देते है| जूट के बैग में भरकर फलियों को यथाशीघ्र बाजार में विक्रय हेतु भेज देते है| फलियों को ताजा बनाये रखने के लिए बीच-बीच में पानी का हल्का छिड़काव कर सकते हैं| हरी मुलायम फलियों को 4 से 5 डिग्री सेन्टीग्रेट तापमान व 95 प्रतिशत सापेक्षित आर्द्रता पर 6 से 8 दिनों तक भण्डारित कर सकते हैं|
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