फ्रेंच बीन की फसल दलहनी और फलियों वाली सब्जियों में अपना प्रमुख स्थान रखती है| फ्रेंच बीन की फसल से अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए इस फसल की अन्य कृषि क्रियाओं के साथ-साथ कीट एवं रोगों की रोकथाम भी आवश्यक है| इस फसल को हानी पहुँचाने वाले अनेक कीट और रोग है, लेकिन फ्रेंच बीन की फसल में आर्थिक स्तर से अधिक नुकसान पहुँचाने वाले कुछ प्रमुख कीट एवं रोगों की पहचान और रोकथाम की जानकारी का उल्लेख इस लेख में किया गया है| फ्रेंचबीन की उन्नत खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- फ्रेंचबीन (फ्रांसबीन) की खेती कैसे करें
फ्रेंच बीन फसल के कीटों की रोकथाम
तना छेदक कीट (स्टेम बोरर)- यह फ्रेंच बीन की फसल को नुकसान पहुँचाने वाला महत्वपूर्ण कीट है| इस कीट का मैगट क्षतिकारक होता है| जो तने में छेद करके सुरंग बनाकर क्षति पहुँचाता है| जिससे पौधे का ऊपरी भाग सूख जाता है| इस कीट का प्रकोप शुरू की अवस्था में ज्यादा होता है|
रोकथाम- फ्रेंच बीन की बुआई के समय इमिडाक्लोप्रिड 48 एफ एस, 5 से 9 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीजदर या इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्लू एस, 5 से 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीजदर या थायोमेथोक्जाम 70 डब्लू एस 3 से 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें| क्षतिग्रस्त तनों और शाखाओं को खेत से नष्ट कर देना चाहिए|
बीन बिटिल- इस कीट के प्रौढ़ व सुंडी दोनों फ्रेंच बीन की फसल के पौधे के पत्तियों को खाकर क्षति पहुँचाते हैं| जिससे पत्तियां छलनीनुमा हो जाती है और अंत में सुख कर गिर जाती है|
रोकथाम- इस कीट के नियंत्रण के लिए मैलाथियान 50 ई सी, 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर या क्लोरपारीफॉस 20 ई सी, 2 मिलीलीटर प्रति लीटर या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल, 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर या डाइमेथोएट 30 ई सी, 2.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए|
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फ्रेंच बीन फसल के रोगों की रोकथाम
कालर रॉट- इस रोग के प्रारम्भिक लक्षण फ्रेंच बीन फसल के पौधों पर दिखाई देते है, जो की नमी की अधिकता के कारण जमीन की सतह से प्रारम्भ होते है और सम्पूर्ण छाल सड़न से ढक जाती है| जिससे संक्रमित भाग पर सफेद फफूंद की वृद्धि हो जाती है| जो छोटे-छोटे टुकड़ों में बनकर धीरे-धीरे स्क्लेरोटिनिया में बदल जाती है| यह मिट्टी में जीवित रहती है और उपयुक्त वातावरण मिलने पर पुनः सक्रिय हो जाती है|
रोकथाम- इस रोग के नियंत्रण के लिए फ्रेंच बीन के बीजों का उपचार बुआई से पूर्व ट्राईकोडर्मा 5 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से करना चाहिए| बुआई के 20 दिन उपरान्त, ट्राईकोडर्मा के घोल से (10 ग्राम प्रति लीटर पानी) जड़ों को तर करना चाहिए| त्वरित रोग नियंत्रण के लिए, संध्या के समय जड़ के समीप कॉपर आक्सीक्लोराईड 4 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से जड़ों का तर करें|
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रस्ट- यह फफूंद जनित रोग है, जो पौधों के सभी ऊपरी भाग पर छोटे, हल्के उभरे हुए धब्बे के रूप में दिखाई देते है तने पर साधारणतः लम्बे उभरे हुए धब्बे बनते हैं| अंत ये दब्बे पत्तियों पर फ़ैल जाते है और पत्तियां सुख कर पौधे से झड़ जाती है|
रोकथाम- इस रोग के नियंत्रण के लिए फ्रेंच बीन के प्रति पौधे पर औसतन दो धब्बे प्रति पत्तियों के दिखने पर, फफूदनाशक जैसे-फ्लूसिलाजोल या हेक्साकोनाजोल या बीटरटेनॉल या ट्राईआडीमेफॉन 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी का 5 से 7 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिये|
स्क्लेरोटीना ब्लाईट- यह भी फफूंद जनित रोग है, जो फ्रेंच बीन की फसल को काफी हानि पहुँचाता है| प्रारम्भिक अवस्था में लक्षण सफेद होकर सड़ना, बाद में सड़े भाग पर फफूंद का बढ़ना व संक्रमित भाग और फलों एवं छिलके के अंदरूनी भाग में जालीनुमा स्क्लेरोटीना का सफेद माइसीलीयम (फफूंद) में परिवर्तित हो जाता है| संक्रमण प्रायः फूलों से शुरू होकर बाद में फलियों तक पहुँचता जाता है|
रोकथाम- इस रोग के नियंत्रण के लिए पौधों में पुष्पधारण करने के साथ फफूंदनाशक जैसे कार्बेन्डाजिम (1 ग्राम प्रति लीटर पानी) और मैंकोजेब (2.5 ग्राम या कार्बेन्डाजिम + मैंकोजेब 1.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) के घोल का 7 से 10 दिन के अन्तराल पर क्रम से छिड़काव करना चाहिए|
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विषाणु रोग (गोल्डेन मोजैक)- यह फ्रेंच बीन फसल का वायरस जनित रोग है| लक्षण में ऊपरी पत्तियों पर पीले एवं हरे रंग के धब्बे बनते हैं और बाद में अधिकांश पत्तियाँ पूर्णतया पीली पड़ जाती है| संक्रमित फलियाँ साधारण हरे रंग से पीली पड़ जाती है तथा अंत में सुख कर जमीन पर गिर जाती है|
रोकथाम- इसके नियंत्रण के लिए प्रभावित भूमि में कार्बोफ्यूरॉन 3 जी की 1.5 किलोग्राम सक्रिय तत्व की मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिलाने के उपरान्त बुआई करनी चाहिए| इमिडाक्लोप्रिड 0.3 मिलीलीटर प्रति लीटर या थायमेथोक्जोन 1 मिलीलीटर प्रति 3 लीटर पानी के घोल का छिड़काव फूल आने तक 15 दिन के अंतराल पर करते रहना चाहिए|
बैक्टीरीयल ब्लाईट्स- यह फ्रेंच बीन फसल का जीवाणु जनित रोग है, जिसमें संक्रमित उत्तक पीले पड़ जाते हैं और सूखने के उपरान्त विभिन्न आकार एवं नाप के उभार या धब्बे बनाते हैं| जो बाद में (वर्षा ऋतु) बड़े धब्बे के समान लक्षण पत्तियों पर दिखते हैं| वर्षा ऋतु में, फलियों पर भी छोटे धब्बे बनते हैं|
रोकथाम- इस रोग के नियंत्रण के लिए बुआई के पूर्व बीजों को स्ट्रेप्टोसाइक्लीन घोल (100 पी पी एम) में 30 मिनट के लिए डुबोने के उपरान्त बुआई करें| साफ, रोगमुक्त एवं अवरोधी बीजों का प्रयोग करें|
पत्ती का धब्बा रोग- इसके लक्षण फ्रेंच बीन की फसल में छोटे धब्बों के रूप बनते है और धब्बों को घेरे हुए हल्की वृत्ताकार की आकृति होती है| पत्तियाँ भूरे रंग की होकर सूख जाती हैं|
रोकथाम- इस रोग के नियंत्रण के लिए डाईफेनोकोनाजोल 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या थायोफेनेट मिथाईल 1 ग्राम प्रति लीटर पानी के दो छिड़काव 10 दिनों के अंतराल पर करना चाहिए|
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