बेमौसमी सब्जियाँ नगदी फसल होने के कारण विभिन्न क्षेत्रों में व्यावसायिक स्तर पर उगाई जाती हैं| बेमौसमी सब्जियों का उत्पादन बढ़ाने व अधिक आय प्राप्त करने के लिए इन में लगने वाली अनेक बीमारियों का उचित नियंत्रण आवश्यक है| उचित तापमान व नमी के कारण कुछ रोगों के संकमण व फैलाव में तेजी आती है, जिससे गुणवत्ता एवं सब्जियों के उत्पादन में कमी आना स्वाभाविक है| इस लेख में बेमौसमी सब्जियों में लगने वाले मुख्य रोगों के लक्षण एवं समेकित नियंत्रण विधियों की जानकारी दी गयी है|
बेमौसमी सब्जियों की पौधशाला में रोग प्रबन्धन
आर्द्रगलन रोग- इस रोग के प्रकोप से बीज जमीन के नीचे अंकुरण से पहले या अंकुरण के 10 से 15 दिन बाद जमीन की सतह से गलकर मर जाते हैं| यह समस्या वर्षा ऋतु में अधिक गम्भीर हो जाती है|
नियंत्रण-
1. बीज का उपचार थाइरम 75 डब्ल्यू एस नामक फंफूदीनाशक या मेटालेक्सिल व थाइरम (1:1 अनुपात में मिलाकर) 2.5 ग्राम प्रति किलाग्राम बीज की दर से करें|
2. बुवाई से पहले जमीन से उठी हुयी क्यारियों (15 से 20 सेंटीमीटर) की ऊपरी सतह में थाइरम 75 डब्ल्यू एस या कैप्टान 50 डब्ल्यू पी 4.5 से 5.0 ग्राम प्रति वर्ग मीटर की दर से मिलायें अथवा 20 मिलीलीटर फॉर्मेलीन प्रति लीटर पानी के घोल की दर से कीटाणु रहित करें|
3. बेमौसमी सब्जियों हेतु बीज उपचार ट्राइकोडर्मा विरिडी 4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से करें|
4. बुवाई 5 से 7 सेंटीमीटर की दूरी पर कतारों में तथा 1.5 से 2.0 सेंटीमीटर की गहराई पर करें|
5. बुवाई के बाद पौधशाला को बारीक छनी हुई गोबर की खाद से ढक दें और फिर क्यारियों को सूखी घास या पुवाल से ढक कर फव्वारे से पानी डालें|
6. बीज उगने तक पानी फव्वारे से ही दें और 65 प्रतिशत जमाव होने पर पुवाल हटा दें|
7. बुवाई के 15 दिन बाद कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी 1 ग्राम प्रति लीटर पानी या थाइरम 75 डब्ल्यू एस या कैप्टान 50 डब्ल्यू पी 2 ग्राम प्रति लीटर पानी अथवा ट्राइकोडर्मा विरिडी (4 ग्राम) या ट्राइकोडर्मा हरजियानम (10 ग्राम) प्रति लीटर की दर से घोल बनाकर पौध की जड़ों के पास जमीन को तर करें| इसी प्रकार बुवाई के 25 दिन बाद इनमें से किसी एक दवा के घोल से उसी तरह जमीन को तर करें|
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बेमौसमी सब्जियों के खेत के रोग और नियंत्रण
फूल गोभी, पत्ता गोभी व ब्रोकोली
तना विगलन- इसके लक्षण फूल व पत्ता गोभी में पत्तियों व तनों पर जलीय दाग के रुप में दिखाई पड़ते हैं| रोगी पत्तियां शीघ्र मुरझाकर मर जाती हैं| रोगी पौधों के तने पर रुई के समान रंग की कवक दिखाई पड़ती हैं, जिससे तने के भीतर की गूदा नष्ट हो जाती है| इस रोग का प्रभाव जाड़ों में कम तापमान और मृदा में अधिक नमी होने पर व्यापक होता है|
नियंत्रण-
1. रोगी पौधों के अवशेषों को इकट्ठा करके नष्ट कर देना चाहिए|
2. कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में बने घोल से दो छिड़काव करें|
काला सड़न रोग- पत्तियों की शिराएं काले भूरे रंग की तथा पत्तियों में वी (अंग्रेजी में वी) के आकार के धब्बे दिखाई पड़ते हैं|
नियंत्रण-
1. बीज को बोते समय स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 0.01 प्रतिशत (100 मिलीग्राम प्रति प्रति किलोग्राम बीज) से उपचार करना चाहिए|
2. खड़ी फसल में स्ट्रेप्टोसाइक्लिन एक ग्राम प्रति 10 लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर तीन छिड़काव करें|
मृदुविगलन- पौधों का ऊपरी भाग मुलायम होकर सड़ने लगता है| सड़न की गति नमी की मात्रा पर निर्भर करती है|
नियंत्रण-
1. खड़ी फसल में ब्लीचिंग पाउडर 12 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से पानी में मिलाकर देने से रोग का प्रकोप कम हो जाता है|
2. 10 से 15 दिन के अन्तराल पर फिर से दवा का प्रयोग करना चाहिए|
3. रोगी पौधौं के अवशेषों को नष्ट कर दें|
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टमाटर
पछेती झुलसा- पत्तियों की निचली सतह में भूरे बैगनी रंग के धब्बे बनते हैं| जिससे पौधे झुलसे हुए दिखाई पड़ते हैं| फलों में जैतूनी रंग के चिकनाई लिए हुए धब्बे बनते हैं एवं अधिक प्रकोप होने पर फल पूरे सड़ जाते हैं| अधिक नमी वाले वातावरण में यह रोग तेजी से फैलता है और कभी-कभी पूरी फसल नष्ट हो जाती है|
नियंत्रण-
1. रोगी पौधों के अवशेषों को जला देना चाहिए|
2. शुरूआती लक्षण दिखाई देने पर मैंकोजेब 2.5 ग्राम या रिडोमिल एम जेड- 72 की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से जरूरत अनुसार 3 से 4 छिड़काव 10 से 15 दिन के अन्तराल पर दवा बदल-बदल कर पत्तियों के दोनों तरफ व पूरे पौधे पर करना चाहिए|
3. यदि मौसम अनुकूल हो तो छिड़काव 6 से 8 दिन के अन्तराल पर करना चाहिए|
4. पौधों को डंडियों के सहारे जमीन से ऊपर सीधा रखें एवं जमीन से 9 इंच तक की पत्तियां तोड़ दें|
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अगेती झुलसा- पत्तियों में गोल या अण्डाकार भूरे से काले रंग के धब्बे बनते हैं तथा उनके बीच में गोलाकार छल्लेनुमा संरचना बन जाती हैं|
नियंत्रण-
1. रोगी पौधों के अवशेषों को जला देना चाहिए|
2. शुरूआती लक्षण दिखाई देने पर 2 ग्राम क्लोरोथैलोनिल या मैंकोजेब 2.5 ग्राम की मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से जरूरत अनुसार 2 से 3 छिड़काव 10 से 15 दिन के अन्तराल पर पत्तियों के दोनों तरफ व पूरे पौधे पर करना चाहिए|
3. पौधों को डंडियों के सहारे जमीन से ऊपर सीधा रखें एवं जमीन से 9 इंच तक की पत्तियां तोड़ दें|
फल सड़न- इस रोग में टमाटर के फलों में पीले भूरे रंग के संकेन्द्रीय छल्लेयुक्त धब्बे बनते हैं| जो धीरे -धीरे पूरे फल को ढक लेते हैं| फल का गूदा सड़ जाता है, परिणामस्वरूप पूरा फल सड़ जाता है|
नियंत्रण-
1. रोगजनक मुख्यतः मिट्टी में लम्बे समय तक जीवित रहते हैं| अतः रोगी फल, पत्ती आदि को नष्ट कर देना चाहिए|
2. साफ सुथरी खेती, खरपतवार नियंत्रण और उचित जल प्रबन्धन रोग को बढ़ने से रोकता है|
3. टमाटर के पौधों को सहारा देने के लिए लकड़ियों को लगाना चाहिए एवं जमीन से 9 इंच तक की पत्तियाँ तोड़ दें ताकि फूल, पत्ती, फल आदि भूमि से न छूने पाये|
4. झुलसा रोग में दी गयी दवायें प्रयोग करनी चाहिए| उसमें 100 मिलीग्राम सेम्टोविट या एक मिलीलीटर ट्रिटान (चिपकने वाला पदार्थ) प्रति लीटर पानी की दर से मिला लेना चाहिए|
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जीवाणु जनित उकठा रोग- पूरा पौधा अचानक मुरझा कर सूख जाता है| रोगी पौधों की जड़ें सड़ जाती हैं तथा उनमें एक प्रकार की दुर्गन्ध आने लगती है|
नियंत्रण-
1. उचित फसल चक अपनाएँ|
2. खेत की गहरी जुताई, उचित जल निकास एवं नमी को नियंत्रित करने से इस रोग के प्रकोप में काफी कमी लाई जा सकती है|
3. प्रारम्भिक अवस्था में रोग की पहचान हो जाए तो 30 ग्राम कापर आक्सीक्लोराइड (ब्लाइटाक्स- 50) के साथ 1 ग्राम स्ट्रेप्टोसायक्लीन का 10 लीटर पानी में घोल बनाकर पौधों की जड़ों को 10 से 15 दिन के अन्तराल पर सिंचित करने से रोग की रोकथाम सम्भव है|
मटर
बीज एवं जड़ विगलन- इस रोग में बुवाई के बाद बीज अंकुरण से पूर्व ही सड़ जाते हैं या उगने के बाद मर जाते हैं| यदि पौधे बड़े हो जाएँ तो उनकी जड़े सड़ जाती हैं तथा पौधों की वृद्धि रुक जाती है और पौधे मरी हुई अवस्था में देखे जा सकते हैं| खेत में समुचित जल निकास न होने पर यह रोग अधिक लगता है|
नियंत्रण-
1. बीजों को कवकनाशी, जैसे-कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम या थाइरम 2.5 ग्राम या जैव फफूंदीनाशी ट्राइकोडर्मा विरिडी के 4.0 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करें|
2. बेमौसमी सब्जियों में उचित जल निकास करें|
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उकठा या ग्लानि रोग- इस रोग में संक्रमित पौधे सूख जाते हैं और जड़ को चीर कर देखने पर बीच का भाग भूरा दिखायी देता है|
नियंत्रण-
1. बीजों को कार्बेन्डाजिम के 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से या ट्राइकोडर्मा विरिडी के 4 से 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें|
2. उचित फसल चक अपनाएँ|
चूर्णिल आसिता- पत्तियों, फलियों, तनों एवं पौधे के अन्य भागों पर सफेद चूर्ण की तरह आसिता टुकड़ों में फैली हुई दिखायी पड़ती है| अधिक प्रकोप होने पर पौधे धूल भरे दिखाई देते हैं|
नियंत्रण-
1. रोगी पौधों एवं उनके अवशेषों को नष्ट करें|
2. रोग के अधिक प्रकोप होने पर फसल में बारीक गंधक (25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर) का भुरकाव अथवा घुलनशील गंधक (2 ग्राम प्रति लीटर पानी) या कैराथेन आधा मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें|
3. प्रतिरोधी किस्में जैसे- विवेक मटर 11 व विवेक मटर 12 आदि लगाएँ|
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सफेद विगलन- पौधे के निचले वायवीय भागों में फरवरी से मार्च में सफेद रूई के समान कवक वृद्धि दिखाई देती है तथा पौधे पीले सफेद होकर गल जाते हैं| पौधे के ग्रसित तनों के अन्दर व बाहर काले रंग के कवक के दाने (स्क्लेरोशिया) दिखाई देते हैं, जो जमीन में पड़े रहकर अगली फसल को ग्रसित करते हैं|
नियंत्रण-
1. उचित फसल चक अपनायें|
2. पौधों में उचित दूरी रखें व उचित सस्य विधियां अपनायें|
3. कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी 1 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल से निचले भागों पर 10 से 15 दिन के अन्तर सेर आवश्यकतानुसार छिड़काव करें|
फ्रासबीन
श्यामव्रण- बेमौसमी सब्जियों में सर्वप्रथम रोग के लक्षण बीज पत्राधारों पर जंग के रंग के छोटे-छोटे धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं| फलियों पर विशेष प्रकार के गड्ढे विकसित होते हैं, जिनके बीच का भाग गहरे भूरे या स्लेटी रंग का तथा किनारे लाल से भूरे रंग के होते हैं|
नियंत्रण-
1. स्वस्थ बीज का उपयोग करें और थाइरम (2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज) फफूंदनाशक दवाई से बीजोपचार करें|
2. आठ से दस दिन के अन्तराल पर मैन्कोजेब 2.5 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी या कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी 1 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें|
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कोणदार पर्णचित्ती- पत्तियों में कोणदार धब्बे बन जाते हैं और ऐसे धब्बों पर मखमली रंग की फफूंद की पर्त बन जाती है| फलियों की सतह पर भूरे रंग के गोलाकार धब्बे दिखाई देते हैं, परन्तु इनमें गड्ढे नहीं बनते है|
नियंत्रण-
1. बेमौसमी सब्जियों के लिए स्वस्थ बीजों का प्रयोग करें व संक्रमित क्षेत्रों में फसल चक्र अपनायें|
2. बीजों को थाइरम या जैविक फफूंदीनाशी (ट्राइकोडर्मा विरिडी) 4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज या ट्राइकोडर्मा विरिडी + कार्बेन्डाजिम (1:1) के 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से उपचारित करें|
3. श्यामवर्ण रोग में दी गई दवाओं का प्रयोग करें|
राइजोक्टोनिया अंगमारी- पौधों के तनों पर भूमि के साथ लाल भूरे रंग के धंसे हुए धब्बे दिखाई देते हैं एवं नमी वाले वातावरण में फफूंद तनों से जड़ों तक फैल जाती है| जड़ें सड़ने लगती हैं और पौधा निर्बल हो जाता है| अधिक नमी में रोगग्रस्त पत्तियों तथा फलियों पर झुलसे के लक्षण दिखाई देते हैं| नमी वाले मौसम में फलियों पर भूरे रंग का कवकजाल भी दिखाई देता है, जिससे इसमें छोटे-छोटे स्क्लेरोशिया भी बन जाते हैं| फलियों में बीज छोटे तथा सिकुड़े बनते हैं|
नियंत्रण-
1. बेमौसमी सब्जियों के लिए बहुवर्षीय फसलचक अपनायें|
2. रोग मुक्त बीज का उपयोग करें तथा बीजोपचार कोणदार पर्णचित्ती हेतु संस्तुत दवाओं से करें|
3. बेमौसमी सब्जियों में रोग के लक्षण दिखते ही मैंकोजेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें|
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जीवाणु अंगमारी- आरम्भ में पत्तों के नीचे वाली सतह पर पीले-हरे रंग के जलसिक्त धब्बे बनते हैं, जो बड़े होकर मिल जाते हैं| ऐसे धब्बे भूरे, सूखे व सख्त होते हैं, जिनके बाहर संकुचित पीला छल्ला दिखाई देता है| फलियों पर गहरे रंग के धब्बे बनते हैं, रोग ग्रस्त फलियों में बीज सिकुड़े हुए व रंगहीन बनते हैं| यह रोग बीज जनित है|
नियंत्रण-
1. बीज को बोते समय स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 0.01 प्रतिशत (100 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम बीज) से उपचार करना चाहिए|
2. खड़ी फसल में स्ट्रेप्टोसाइक्लिन एक ग्राम प्रति 10 लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर तीन छिड़काव करें|
रतूआ- यह रोग मुख्यतः पत्तियों पर फैलता है| पत्तियों की निचली सतह पर लाल से भूरे रंग के धब्बे बनते है, जो कि पत्तियों पर जंग लगे निशान के रूप में उभरते हैं| इस रोग के प्रकोप से पत्तियाँ पीली पड़ जाती है तथा सूखकर गिरने लगती है|
नियंत्रण-
बेमौसमी सब्जियों में इस रोग की रोकथाम के लिए एजोक्सीस्ट्रोबिन 0.1 प्रतिशत (1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से) या डाइफेनोकोनाजोल 0.05 प्रतिशत का घोल बनाकर 10 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करें|
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सफेद विगलन- पौधे के निचले वायवीय भागों में सफेद रूई के समान कवक वृद्धि दिखाई देती है तथा पौधे पीले सफेद होकर गल जाते हैं| पौधे के ग्रसित तनों के अन्दर व बाहर काले रंग के कवक के दाने (स्क्लेरोशिया) दिखाई देते हैं, जो जमीन में पड़े रहकर अगली फसल को ग्रसित करते हैं|
नियंत्रण-
1. बेमौसमी सब्जियों के लिए उचित फसल चक अपनायें|
2. पौधों में उचित दूरी रखें व उचित सस्य विधियां अपनायें|
3. कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी 1 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल से निचले भागों पर 10 से 15 दिन के अन्तर पर आवश्यकतानुसार छिड़काव करें|
शिमला मिर्च
फल सड़न तथा श्यामव्रण- पौधों की पत्तियों, तनों तथा फलों पर भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं| प्रकोप की अधिकता होने पर पौधों की शाखाओं का शीर्ष भाग सूखना आंरभ हो जाता है और फल सड़ने लगते हैं| अधिक नमी होने पर यह रोग ज्यादा फैलता है|
नियंत्रण-
1. बेमौसमी सब्जियों में उचित जल निकास व स्वच्छ खेती अपनायें|
2. कार्बेन्डाजिम 50 डब्लू पी 1 ग्राम दवा प्रति लीटर या मैंकोजेब 2.5 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव 8 से 10 दिन के अंतराल पर करें|
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पर्ण कुंचन एवं मोजेक- बेमौसमी सब्जियों में यह विषाणु जनित रोग है, जो छोटे-छोटे चूसक कीड़ों द्वारा फैलता है| प्रभावित पत्तियाँ टेढ़ी-मेढ़ी तथा हरी-पीली होकर सिकुड़ने लगती है। पौधों की बढ़वार रूक जाती है तथा फूल-फल भी गिरने लगते हैं|
नियंत्रण-
1. बेमौसमी सब्जियों में रोगी पौधे दिखाई देने पर उन्हें जड़ से उखाड़कर गड्ढे में दबा दें|
2. पौधों पर मेटासिस्टॉक्स (1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी) या इमिडाक्लोप्रिड (0.3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी) की दर से 10 से 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें|
चूर्णिल आसिता- पत्तियों, फलियों, तनों एवं पौधे के अन्य भागों पर सफेद चूर्ण की तरह आसिता टुकड़ों में फैली हुई दिखायी पड़ती है एवं अधिक प्रकोप होने पर बेमौसमी सब्जियों के पौधे धूल भरे दिखाई देते हैं|
नियंत्रण-
1. बेमौसमी सब्जियों हेतु रोगी पौधों और उनके अवशेषों को नष्ट करें|
2. रोग के अधिक प्रकोप होने पर फसल में बारीक गंधक (25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर) का भुरकाव या घुलनशील गंधक (2 ग्राम प्रति लीटर पानी) या कैराथेन आधा मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें|
उकठा या ग्लानि रोग- इस रोग से बेमौसमी सब्जियों के संक्रमित पौधे सूख जाते हैं और तने को चीर कर देखने पर बीच का भाग भूरा दिखायी देता है|
नियंत्रण-
1. बीजों को कार्बेन्डाजिम के 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से या ट्राइकोडर्मा विरिडी के 4 से 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें|
2. उचित फसल चक अपनाएँ|
निष्कर्ष
बेमौसमी सब्जियों में उपरोक्त वर्णित विधियों का प्रयोग रोग के प्रकोप के अनुसार ही करें| विभिन्न नियंत्रण विधियों का समेकित प्रयोग करें और उनका प्रयोग करते समय इस बात का ध्यान रखें, कि रासायनिक दवाओं का प्रयोग कम से कम हो तथा फसल से आर्थिक लाभ रोग प्रबन्धन विधियों पर आने वाले व्यय से अधिक हो|
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