इस लेख में आप जानेगे की मशरूम की रोग रोकथाम कैसे करें, जैसा की आप सभी जानते है, मशरूम की सफल खेती में कुछ जीवित कारक जैसे कवक, जीवाणु, विषाणु और कीट व कुछ अजीवित कारक जैसे पानी, तापक्रम, अपेक्षित आर्द्रता जो मशरूम की उपज और उसकी गुणवत्ता दोनों को प्रभावित करते हैं| मशरूम की उपज और गुणवत्ता में कमी का मुख्य कारण मशरूम की खेती में विभिन्न रोगों का संक्रमण है| जो कि उपरोक्त जीवित कारकों द्वारा होते हैं| आइए जानते है, की उपरोक्त मशरूम की रोग रोकथाम कैसे करें, इनके कारण और सावधानियां किस प्रकार करें|
मशरूम के मुख्य कवक जनित, जीवाणु जनित, विषाणु जनित और अजीवित कारकों द्वारा उत्पन्न होने वाले मशरूम रोग इस प्रकार है, जैसे-
कवक द्वारा उत्पन्न रोग- कवक मशरूम उत्पादन की दो अवस्थाओं को हानि पहुँचाकर रोग उत्पन्न करते हैं|
मशरूम फलन काय में होने वाले रोग- यह मृदुगलन या काब बेव रोग, वेट ववल या माईक्रोगोन रोग, ड्राई ववल या भूरा दाग या वर्टिसीलियम रोग, आभासी ट्रफल या फाल्स ट्रफल आदि|
कम्पोस्ट वेड और केसिंग मृदा में उत्पन्न होने वाले रोग- जैसे हरी फफूद या ट्राइकोडरमा रोग, भूरा मोल्ड या ब्राउन प्लास्टर मोल्ड, सफेद प्लास्टर मोल्ड, आलिव ग्रीन मोल्ड, पीली फफूद या यलो मोल्ड, इंकी कैप रोग, इस प्रकार के रोग उत्पन्न करने वाले कवकों को मशरूम के प्रतिस्पर्धी कवक कहा जाता है|
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मृदुगलन, काब बेव रोग या जाली रोग
पहचान और लक्षण- केसिंग मृदा के ऊपर छोटे गोल व सफेद चकते बनते हैं, जो धीरे-धीरे केसिंग मृदा के ऊपर रूई की तरह बढ़कर मशरूम के फलनकाय को भी पूरी तरह ढक लेते हैं, इस प्रकार परजीवी कवक द्वारा घेरा या कवर किया हुआ संक्रमित मशरूम भूरे या गुलाबी भूरे रंग का होकर सड़ जाता है|
रोग के कारण- यह रोग हाइपोमाइसीज रोजिलस या डिक्टिलियम डेन्डोआईडिज प्रर्यायक्लाडोवोट्राइयम डेन्डोआइडेज नामक कवक है| उनके अनुकूल पर्यावरण अधिक तापमान और नमी इस रोग के लिए अनुकूल पर्यावरण स्थितियां हैं| केसिंग मृदा में कवक द्वारा संक्रमण होने पर यह रोग फैलता है, मशरूम तोड़ते समय पीछे छूट गये असावधानीवश मशरूम के अवशेषों या टुकड़ों से यह रोग अधिक तीव्रता से फैलता है|
रोग रोकथाम-
1. मशरूम कक्ष की आपेक्षित आर्द्रता और तापक्रम रोग का संक्रमण होने पर कम रखनी चाहिए|
2. मशरूम तोड़ने के पश्चात् मशरूम के बचे हुए तने या टुकड़ों को और मेरे व सड़े मशरूम को निकाल दें|
3. इस रोग से मशरूम की रोग रोकथाम के लिए, निजकृत आवरण मृदा को ही उपयोग में लायें|
4. कारबेन्डाजिम 0.05 प्रतिशत या वेन्डामाइजोल 0.05 प्रतिशत या मैंकोजब 0.2 प्रतिशत का घोल बनाकर केसिंग करने के 7 दिन के बाद छिड़काव करें|
5. कैल्सियम होइपोक्लोराइट 70 प्रतिशत के घोल को रोगी स्थानों पर डालने मशरूम की रोग रोकथाम में व्यापक सुधार देखने को मिलता है|
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वेट बबल या माइकोगोन रोग
पहचान और लक्षण- रोगजनक का संक्रमण यदि मशरूम (खुम्ब) अंकुरण या कलिकाएं बनते समय होता है, तो मशरूम का आकार टेढ़ा-मेढ़ा हो जाता है, व मशरूम विकृति नजर आते हैं| लेकिन जब तना बनने के बाद संक्रमण होता है, तो तना मोटा हो जाता है, एवं टोपी भी विकृति हो जाती है|
कई बार मशरूम (खुम्ब) के ऊपर सफेद रूई के समान फफूद उग जाता है, तथा धीरे-धीरे इसका रंग भूरा हो जाता है, जिसके कारण मशरूम सड़ जाता है व दुर्गन्ध पैदा करता है| सड़े हुए मशरूम (खुम्ब) से या भागों से भूरा तरल पदार्थ इकट्ठा होने लगता है, एवं नमी की अधिकता में टपकने लगता है| शुष्क दशा में सूखा सड़ने के लक्षण दिखाई पड़ते हैं| आवरण मृदा की सतह पर कवक वृद्धि सफेद पदार्थ के रूप में दिखाई पड़ती है|
रोग के कारण- यह रोग माइकोगोन पर्निसिओसा नामक कवक से होता है, इसके अनुकूल पर्यावरण रोगजनक कवक मृदावासी है, जो क्लेमाइडो बीजाणु के रूप में 3 वर्ष तक उत्तरजीवी बना रहता है, नये स्थानों पर रोगजनक या रोग का संक्रमण संदूषित आवरण मृदा के द्वारा होता है| उत्पादन कक्ष में रोग का फैलाव मशरूम पर स्थित रोगजनक बीजाणुओं द्वारा होता है, जो हवा, पानी, मक्खी और कीट द्वारा फैलते हैं|
रोग रोकथाम-
1. इस रोग से मशरूम की रोग रोकथाम के लिए स्वच्छ, रोगरहित या निजर्मीकृत आवरण मृदा को उपयोग में लायें|
2. केसिंग मिट्टी को भाप द्वारा 54.4 डिग्री सेल्सियस पर 15 मिनट तक उपचार करने से उसके बाद प्रयोग में लाने से इस रोग को रोका जा सकता है|
3. मशरूम उत्पादन के समय संक्रमित वैगों को प्लास्टिक से ढकने से इस रोग के फैलाव या विस्तार को कम किया जा सकता है|
4. केसिंग के तुरन्त बाद तथा उसके नौवें दिन बाद कारवेन्डाजिम या वेनलेट या स्वोरगोन का 0.8 प्रतिशत फार्मलीन के साथ छिड़काव करें|
5. मशरूम को मक्खियों से बचाये रखें|
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ड्राई बवल, भूरा दाग या वर्टिसिलियम रोग
पहचान और लक्षण- इस रोग का प्रभाव दो माह पुरानी मशरूम की खेती पर सबसे ज्यादा होता है| इस रोग संक्रमण से करीब 2 से 3 सप्ताह के अन्दर पूरी खेती नष्ट हो जाती है| रोग के लक्षण सर्वप्रथम उपर की मृदा पर रोग जनक के कवक तंतु सफेद या फिर पीले-भूरे रूप में दिखाई पड़ते है| यदि रोगजनक का संक्रमण मशरूम वृद्धि की प्रारम्भिक अवस्था में होता है एवं रोगी मशरूम की बढ़वार रूक जाती है|
परन्तु यदि इसके बाद रोग जनक का संक्रमण होता है, तो मशरूम की टोपी पर छोटे-छोटे भूरे धब्बे दिखाई देते है| बाद में कई धब्बे मिलकर बड़े भूरे रंग के कुछ अंदर धंसे हुए से दिखाई पड़ते है| मशरूम या मशरूम का तना फटने लगता है| टोपी की आकृति खराब होकर एक ओर झुक जाती है|
रोग के कारण- उपरोक्त रोग वर्टिसिलियम फंजाइकोला नामक कवक से होता है, अनुकूल पर्यावरण रोग जनक कवक के बीजाणु नमीयुक्त मृदा में 1 वर्ष तक उत्तरजीवी बने रहते हैं, जनक का संक्रमण संदूषित आवरण मृदा के द्वारा होता है| उत्पादन कक्ष में रोग का फैलाव हवा, अत्याधिक नमी, संदूषित यंत्रों, श्रमिकों के हाथों, कपड़ों और मक्खियों के माध्यम से होता है, मशरूम फसल की तोड़ाई में देरी करने से यह रोग और अधिक फैलता है|
रोग रोकथाम-
1. मशरूम की रोग रोकथाम के लिए, साफ़ स्वच्छ रोगरहित और निजर्मीकृत केसिंग मृदा को उपयोग में लायें|
2. इस मशरूम की रोग और वेट बबल रोग में कुछ समानता है, इसलिए अन्य सभी उपाय वेट बबल प्रबन्धन के अनुसार करें|
3. मशरूम या खुम्ब उत्पादन के समय संक्रमित वैगों को प्लास्टिक से ढकने से इस रोग के फैलाव या विस्तार को कम किया जा सकता है|
4. मिट्टी आवरण या केसिंग के तुरन्त बाद और उसके नौवें दिन बाद कारवेन्डाजिम या वेनलेट या विनोमाईल का 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें|
5. मशरूम की रोग रोकथाम के लिए, मिट्टी आवरण के बाद 0.8 प्रतिशत फार्मलीन का छिड़काव करें|
6. इस रोग से मशरूम की रोग रोकथाम हेतु खड़ी फसल पर कारवेन्डाजिम 0.05 प्रतिशत या डाइनेथ एम- 45, 0.2 प्रतिशत के घोल का छिड़काव करें|
7. मशरूम की रोग रोकथाम के लिए, उत्पादन लेने के बाद खाद को उत्पादन केन्द्र के पास मत फेंके|
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आभासी ट्रफल
पहचान और लक्षण- इस रोग के प्रारम्भिक लक्षण कम्पोस्ट और केसिंग मिट्टी पर दिखाई पड़ते हैं, प्रारम्भ में इस रोगजनक की वृद्धि सफेद रंग की मशरूम कलिकाओं के समान दिखाई पड़ती है, जो बाद में क्रीम पीली हो जाती है, समयानुसार कवक तन्तु मोटे होने लगते हैं, जो एक ठोस, सिकुड़े हुए गोल व अनियमित आकार की संरचना बनाते है, जिसे एस्कोकार्प कहते हैं|
यह एस्कोकार्प परिपक्व होने पर गुलाबी और सूखने पर लाल हो जाते हैं| बाद में ये फटकर चूर्ण के रूप में बिखर जाते हैं और इसमें से क्लोरीन की तरह गंध आती है| अन्त में जनक के कारण मशरूम की बढ़वार रूक जाती है एवं कम्पोस्ट का रंग हल्का भूरा हो जाता है|
रोग का कारण- इस रोग का जनक डाईक्लिओमाइसीज माइक्रोस्पोरस नामक कवक होता है| इसके अनुकूल पर्यावरण यह कवक एस्कस बीजाणु व कवकतन्तु के रूप में उत्तरजीवी बना रहता है| रोग का संक्रमण मुख्यतः उपर की मिट्टी द्वारा होता है, विशेषज्ञों का कहना है, की 20 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान होने पर रोग के लक्षण आने लगते हैं|
रोग रोकथाम-
1. मशरूम की रोग रोकथाम के लिए, कम्पोस्ट बनाने हेतु पक्की फर्श का ही प्रयोग करें|
2. मशरूम उत्पादन में प्रयोग होने वाली कम्पोस्ट का निजकृत अवश्य करें|
3. मशरूम की रोग रोकथाम के लिए, केसिंग के मिश्रण को निजकृत करने बाद ही प्रयोग में लायें|
4. मशरूम फसल के समय उत्पादन कक्ष का तापमान 18 डिग्री सेल्सियस के नीचे रखें|
5. रोगी भागों कम्पोस्ट, आवरण मिश्रण पर 2 प्रतिशत फार्मलीन का छिड़काव करें|
6. फसल या सामग्री में रोग लक्षण प्रकट होते ही काबोन्डाजिम 0.05 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें|
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ट्राइकोडर्मा या हरी फफूद रोग
पहचान और लक्षण- इस रोग के लक्षण केसिंग मिश्रण पर, कम्पोस्ट पर, बीज की बोतलों में या वैगों में, स्पानिंग के बाद बीजों पर हरे रंग की कवक वृद्धि के रूप में दिखाई पड़ते हैं| रोगजनक की अन्य किस्मों द्वारा रोग के लक्षण कभी-कभी मशरूम की ऊपरी सतह पर गहरे भूरे रंग धब्बे के रूप में दिखाई पड़ते हैं| यह रोगजनक मशरूम को पूर्णरूपेण ढक लेते हैं, फलस्वरूप मशरूम मुलायम होकर सड़ने लगता है, इसके बाद में मशरूम के रोगी भाग पर कटकर सूखी दरारें बन जाती है| इससे सम्पूर्ण फसल नष्ट हो जाती है|
रोग के कारण- मशरूम की फसल में यह रोग ट्राइकोडर्मा हार्जियेनम, ट्राइकोडर्मा विरिडी, ट्राइकोडर्मा, पेनिसिलियम साइक्लोपियम और एसपरजिलस प्रजाति नामक कवक द्वारा होता है| ये कवक मृदा वासी हैं| इनके अनुकूल पर्यावरण रोगजनक का संक्रमण संदूषित कम्पोस्ट, आवरण मृदा द्वारा होता है और रोगजनक फैलाव हवा तथा नमी द्वारा होता है| पूरे तौर पर तैयार कम्पोस्ट को प्रयोग में न लाने पर यह रोग और फैलाता है|
रोग रोकथाम-
1. केसिंग, कम्पोस्ट पूर्णतया निजकृत करके ही प्रयोग में लाये, साथ ही कम्पोस्ट पूर्णतया सड़ी हुई ही उपयोग में लायें|
2. मशरूम की रोग रोकथाम के लिए, इस मशरूम की रोग रोकथाम हेतु नष्ट या मरे हुए मशरूम को निकालकर फेंक दें|
3. उपरोक्त रोग के लक्षण दिखाई पड़ते ही कार्वेन्डाजिम 0.05 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें|
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ब्राउन प्लास्टर मोल्ड या भूरा मोल्ड
पहचान और लक्षण- मशरूम बीज मिलाये हुए कम्पोस्ट पर या आवरण मृदा पर आटे के समान सफेद गोले घेरे दिखाई देते हैं, जो बाद में भूरे रंग के हो जाते हैं|
रोग के कारण- मशरूम की फसल में यह रोग पेपुलास्पोरा वाइसिना नामक कवक द्वारा होता है| इसके अनुकूल पर्यावरण कम्पोस्ट में स्पानिग करते समय अत्यधिक नमी का होना, बीज अंकुरण के समय तापमान 28 से 30 डिग्री सेल्सियस का होना, फसल के समय में उत्पादन कक्ष का तापमान 18 डिग्री सेल्सियस से अधिक होना रोग के फैलाव में सहायक है|
रोग रोकथाम-
1. मशरूम की खेती के लिए निजमीकृत कम्पोस्ट व आवरण मृदा को उपयोग में लें|
2. कम्पोस्ट में संतुलित मात्रा में जिप्सम मिलाना चाहिए, और अधिक मात्रा में पानी न डालें|
3. मशरूम की रोग रोकथाम के लिए, पीक हीटिंग से पहले व बाद में कम्पोस्ट ज्यादा गीला नही होना चाहिए|
4. सुनिश्चित करें, की स्पानिंग करते समय कम्पोस्ट में नमी 60 से 65 प्रतिशत से अधिक न हो|
5. रोग ग्रसित भागों को हटाकर उस पर दो प्रतिशत फार्मलीन या 0.05 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम घोल का छिड़काव करें|
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सफेद प्लास्टर मोल्ड
पहचान और लक्षण- प्रारम्भिक अवस्था में कम्पोस्ट या आवरण मृदा पर आटे की तरह सफेद जाल चकत्तों के रूप में दिखाई देता है और अंतिम समय तक सफेद ही बना रहता है|
रोग के कारण- इस रोज का जनक स्कोपुलेरिओपसिस प्यूमिकोला नाम कवक होता है| यह अनुकूल पर्यावरण कम्पोस्ट का पीएच 8 से अधिक होने पर तेजी से फैलता है|
रोग रोकथाम-
1. मशरूम के लिए कम्पोस्ट को तैयार करते समय पानी और जिप्सम की संतुलित मात्रा मिलाए|
2. मशरूम की रोग रोकथाम के लिए, तैयार कम्पोस्ट से अमोनिया की गन्ध नहीं आनी चाहिए|
3. मशरूम की रोग रोकथाम के लिए, तैयार कम्पोस्ट का पीएच 8 से कम होना चाहिए|
4. मशरूम की रोग रोकथाम हेतु कार्बेन्डाजिम 0.05 प्रतिशत का छिड़काव या बिनोमिल 0.05 प्रतिशत का छिड़काव 10 दिन के अन्तराल पर करें|
5. सफेद जाल के चकत्तों पर फार्मलीन 4 प्रतिशत लगाने से यह कवक नष्ट हो जाता है|
आलिव ग्रीन मोल्ड
पहचान और लक्षण- आरम्भ में ही कम्पोस्ट या केसिंग मृदा पर बहुत छोटा गोलाकार सफेद संरचना बनती है, जो अन्त में आलिव ग्रीन रंग में बदल जाती है| अनुकूल पर्यावरण इस रोग का संक्रमण संदूषित कम्पोस्ट या केसिंग मृदा द्वारा होता है|
रोग के कारण- कम्पोस्ट बनाते समय ऑक्सीजन की कमी होने पर यह रोग अधिक फैलता है|
रोग रोकथाम-
1. मशरूम की रोग रोकथाम के लिए, साफ़ स्वच्छ रोगरहित निजकृत कम्पोस्ट और केसिंग मृदा को उपयोग में लायें|
2. मशरूम की रोग रोकथाम के लिए, रोग से संक्रमित कम्पोस्ट या केसिंग मृदा को निकाल कर फेंक दें|
3. मशरूम की रोग रोकथाम के लिए, ग्रसित भाग पर 2 प्रतिशत फार्मलीन या 0.05 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम के घोल का छिड़काव करें|
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यलो मोल्ड या पीली फंफूद
पहचान और लक्षण- आरम्भिक अवस्था में सफेद रंग का कवकजाल कम्पोस्ट पर दिखाई पड़ता है, जो बाद में पीले-भूरे रंग में परिवर्तित हो जाता है| यह कम्पोस्ट और केसिंग मृदा के बीच के हिस्से में भी पीले-भूरे रंग का दिखाई पड़ता है| इस रोग के कारण मशरूम फसल के उत्पादन में बाधा उत्पन्न होती है| अनुकूल पर्यावरण इस कवक का संक्रमण मुर्गी की खाद, केसिंग मृदा व स्पेंट कम्पोस्ट को उचित प्रकार से निर्जमीकृत न करने से आता है|
रोग के कारण- मशरूम की फसल में इस रोग का कारक माइसीलियोक्थोरा ल्यूटिया, माइसीलियोपथोरा क्राइसोस्पोरियम, माइसीलिपोपथोरा सल्फ्यूरियम व सेपेडोनियम नामक कवक होता हैं|
रोग रोकथाम-
1. आवरण मृदा का पास्चुरीकरण उचित ढंग से करें 64 डिग्री सेल्सियम तापमान पर चार घंटे के लिए आवरण मृदा पास्चुरीकरण करने पर कवक मर जाता है|
2. मशरूम की रोग रोकथाम हेतु वेनोमिल 400 से 500 पीपीएम या व्लाइटाक्स- 50 400 से 500 पीपीएम या कैल्शियम हाइपोक्लोराइट 0.15 प्रतिशत के घोल का छिड़काव करें|
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इंकी कैप रोग
पहचान व लक्षण- इससे कम्पोस्ट और आवरण मृदा पर मशरूम के स्थान पर लम्बे तने व नीली टोपियो वाले मशरूम निकलते हैं, तथा कुछ समय बाद इनकी टोपियां खुलकर फैल जाती है, जिनसे असंख्य बीजाणु निकलकर पूरी कम्पोस्ट को बेकार कर देते हैं| यह अनचाहे मशरूम, कम्पोस्ट से अमोनिया गैस के ठीक प्रकार से न निकलने का संकेत देता है, इससे उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है, व कभी-कभी उत्पादन बिल्कुल ही प्राप्त नहीं होता है|
रोग के कारण- मशरूम की फसल में यह रोग कोपराइनस लेगोपस, कोपराइनस अट्रामेन्टेरियस, कोपराइवस मिकासियस नामक कवकों द्वारा होता है|
रोग रोकथाम-
1. कम्पोस्ट खाद से अमोनिया गैस की गंध समाप्त होने के बाद ही मशरूम की बीजाई करनी चाहिए|
2. आवरण मृदा बिछाने के पश्चात् डाइथेन जेड- 78 के 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिए|
3. मशरूम की रोग रोकथाम हेतु कम्पोस्ट और केसिंग मृदा को पास्चुरीकरण ठीक प्रकार से करें|
4. मशरूम की रोग रोकथाम के लिए अनचाहे कवक को, टोपियाँ खुलने के पूर्व ही उखाड़कर दूर मिट्टी में गाड़ दें|
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जीवाणु जनित रोग
वैक्टीरियल ब्लाच या जीवाणु दाग रोग-
पहचान और लक्षण- इस रोग के कारण मशरूम के तनों पर आरम्भिक अवस्थाओं में गहरे पीले रंग के धब्बे बनते हैं, जो बाद में सुनहरे या चाकलेटी भूरे रंग के हो जाते है, ये धब्बे तनों पर 2 से 3 मिलीमीटर तक गहरे होते है| जिसके कारण मशरूम ऊतकों से भूरा-पीला सा पानी निकलने लगता है| ये धब्बे मशरूम की टोपी पर बटन अवस्था में प्रकट होते है| इन्हे मशरूम वृद्धि की किसी भी अवस्था में देखा जा सकता है|
कभी-कभी नमी की उपस्थिति में भण्डारित मशरूम पर भी जीवाणु पाये जा सकते हैं| नमी की अधिकता से इन धब्बो का आकार बढ़ना शुरू हो जाता है, एवं अन्त में धब्बे आपस में मिल जाते है और मशरूम की कैप पूरी तरह धब्बों से ढक जाती है| ग्रसित मशरूम टेढ़े-मेढे हो जाते हैं और उनकी कैप फट जाती है| आरम्भिक अवस्था में कवक का संक्रमण होने पर पिन हेड भूरे होकर बढ़ना बन्द कर देते हैं, और इनमें चिपचिपा पानी भर जाता है|
रोग के कारण- इस रोग का जनक स्यूडोमोनास टोलेसाई नामक जीवाणु होता है| रोगजनक जीवाणु का संक्रमण कम्पोस्ट, केसिंग मृदा मशरूम उत्पादन में लगे कृषकों, औंजारों, मक्खी और कीट द्वारा होता है, मशरूम की कैप पर संक्रमण के पशचात् नमी की उपस्थिति में जीवाणु वृद्धि करता है|
यदि मशरूम पर पानी का छिड़काव करने के पश्चात् 3 घण्टे तक नमी बने रहे, तो कैप और तनों को काफी नुकसान पहुचता है| इसके अतिरिक्त अधिक आपेक्षित आर्द्रता पर बाहर से आने वाली हवा कमरों की हवा अपेक्षा अधिक गर्म हो, तो मशरूम सतह पर नमी अधिक होती है, परिणाम स्वरूप रोग की व्यापकता बढ़ जाती है|
रोग रोकथाम-
1. मशरूम की रोग रोकथाम हेतु कम्पोस्ट और केसिंग मृदा को अच्छी तरह पास्चुरीकरण करें|
2. कम्पोस्ट को मशरूम की खेती हेतु हमेशा पक्के फर्श पर बनाना चाहिए, खाद बनाने से पहले फर्श को 2 प्रतिशत फार्मलीन घोल से उपचारित कर लेना चाहिए|
3. मशरूम की रोग रोकथाम के लिए मशरूम बैगों पर पानी के छिड़काव के पश्चात् मशरूम कैपों पर से जल्दी पानी सुखाने के लिए उचित प्रबन्ध होना चाहिए|
4. प्रभावित मशरूम को निकालकर ब्लीचिंग पाउडर 0.05 प्रतिशत घोल कर छिड़काव करें, इसके साथ साथ टेरामाइसीन या स्ट्रप्टोमाइसीन 200 पीपीएम या आक्सीटेट्रासाइक्लिन 300 पीपीएम का भी छिड़काव रोग को नियंत्रित करता है|
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जिन्जर ब्लाच रोग-
पहचान और लक्षण- मशरूम की खेती में इस रोग के लक्षण भूरा दाग रोग के समान ही होते है, अन्तर बस इतना है, इसमें अदरक के रंग के धब्बे जो 1 से 2 मिलीमीटर गहरे होते हैं, मशरूम के तनों और कैप पर बनते हैं, यह अदरक के रंग के धब्बे बाद तक नहीं बदलते हैं, तथा न किसी रंग का मशरूम से कोई पदार्थ निकलता है|
रोग के कारण- इस रोग का जनक स्युडोमोनास टोलेसाई नाशक जीवणु होता है|
रोग रोकथाम- इस मशरूम की रोग रोकथाम जीवाणु दाग रोग की तरह संभव है|
विषाणु जनित रोग
यह जनित रोग लगने पर मशरूम घने गुच्छे में अंकुरित होते हैं| मशरूम कलिकाएं देर से बनती हैं, कई मशरूम कलिकाएं आवरण परत के अन्दर ही बनती है, मशरूम मटमैला हो जाता है तथा इसकी कैप जल्द ही खुल जाती है, तना लम्बा और कमान की तरह मुड़ जाता है, मशरूम छुने पर गिर जाता है|
रोग रोकथाम-
1. सफाई का विशेष ध्यान रखें और मशरूम बीज वाइरस रहित उपयोग में लायें|
2. फसल बक्सों और बैगों को 2 प्रतिशत सोडियम पेन्टाक्लोरोफिनेट और 0.05 प्रतिशत सोडियम कार्बोनेट (सोडा) के मिश्रण से उपचारित करें|
3. मशरूम की रोग रोकथाम के लिए मशरूम की फसल लेने के बाद फसल कक्ष और प्रयोग होने वाले औजारों आदि को उपचारित करें|
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