मिर्च एक नकदी फसल है, तथा हमारे भोजन का प्रमुख अंग है| इसलिए मिर्च की जैविक खेती समय की आवश्यकता है| क्योंकि मिर्च की रसायनिक खेती से प्राप्त फलों से मानव शरीर में अनेक विकार जन्म लेते है और पर्यावरण को भी इससे नुकसान होता है| जबकि मिर्च की जैविक खेती से मानव और पर्यावरण पर कोई दुष्प्रभाव नही होता है| स्वास्थ्य की दृष्टि से मिर्च में विटामिन ए व सीं पाये जाते है एवं कुछ खनिज लवण भी होते है| मिर्च पर पाले का प्रकोप अधिक होता है|
अतः पाले की आशंका वाले क्षेत्रों में इसकी अगेती फसल लेनी चाहिए| उत्पादक मिर्च की जैविक खेती को यदि उन्नत तकनीक से करें तो न केवल उनको अधिकतम उत्पादन प्राप्त होगा बल्कि उनकी उत्पादन लागत भी कम होगी| इस लेख में मिर्च की जैविक खेती कैसे करें उसके लिए उन्नत व् संकर किस्में कौन-कौन सी है और फसल की देखभाल कैसे करें, तथा इस उन्नत तकनीक से मिर्च उत्पादकों को पैदावार कितनी प्राप्त हो सकती है का विस्तृत उल्लेख किया गया है|
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मिर्च की जैविक खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
मिर्च गर्म तथा आर्द्र जलवायु में भली-भाँति उगती है| परन्तु फलों के पकते समय शुष्क मौसम का होना आवश्यक है| गर्म मौसम की फ़सल होने के कारण इसे उस समय तक नहीं उगाया जा सकता, जब तक कि मिट्टी का तापमान बढ़ न गया हो तथा पाले का प्रकोप टल न गया हो| बीजों का अच्छा अंकुरण 18 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तापामन पर होता है|
यदि फूलते समय व फल बनते समय भूमि में नमी की कमी हो जाती है, तो फलियाँ, फुल व छोटे फल गिरने लगते हैं| मिर्च के फूल व फल आने के लिए सबसे उपयुक्त तापमान 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट है| तेज़ मिर्च अपेक्षाकृत अधिक गर्मी सह लेती है| फूलते समय ओस गिरना या तेज़ वर्षा होना फ़सल के लिए नुकसानदायक होता है| क्योंकि इसके कारण फूल व छोटे फल टूट कर गिर जाते हैं|
मिर्च की जैविक खेती के लिए उपयुक्त भूमि
मिर्च की जैविक खेती यद्यपि अनेक प्रकार की मृदा में की जा सकती है, लेकिन अच्छी उपज के लिए अच्छी जल निकास व्यवस्था वाली कार्बनिक तत्वों से युक्त दोमट मिटटी इसके लिए सर्वेतम होती हैं| जहाँ फ़सल काल छोटा है, वहां बलुई तथा बलुई दोमट मृदा को प्राथमिकता दी जाती है| बरसाती फ़सल भारी और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में लेनी चाहिए| जिसका पी एच मान 6.0 से 7.5 होना उचित है|
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मिर्च की जैविक खेती के लिए उन्नत किस्में
मिर्च की जैविक खेती के लिए किसानों को अपने क्षेत्र की प्रचलित तथा अधिक उत्पादन देने वाली किस्म का चयन करना चाहिए और जहां तक संभव हो जैविक प्रमाणित बीज का उपयोग करना चाहिए| ताकि मिर्च की जैविक फसल से अधिकतम उपज प्राप्त की जा सके| कुछ प्रचलित उन्नत और संकर किस्मे इस प्रकार है, जैसे-
मसाले हेतु किस्में- पूसा ज्वाला, पन्त सी- 1, एन पी- 46 ए, जहवार मिर्च- 148, कल्याणपुर चमन, भाग्य लक्ष्मी, आर्को लोहित, पंजाब लाल, आंध्रा ज्योति और जहवार मिर्च- 283 आदि प्रमुख है|
आचार हेतु किस्में– केलिफोर्निया वंडर, चायनीज जायंट, येलो वंडर, हाइब्रिड भारत, अर्का मोहिनी, अर्का गौरव, अर्का मेघना, अर्का बसंत, सिटी, काशी अर्ली, तेजस्विनी, आर्का हरित और पूसा सदाबहार (एल जी- 1) आदि प्रमुख है| किस्मों की विस्तार से जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मिर्च की उन्नत व संकर किस्में, जानिए विशेषताएं और पैदावार
मिर्च की जैविक खेती के लिए बीज बुवाई (नर्सरी)
मिर्च की वर्ष में तीन फसलें ली जा सकती है, लेकिन प्रायः इसकी खरीफ की फसल हेतु मई से जून में तथा गर्मी की फसल हेतु फरवरी से मार्च में नर्सरी में बीज की बुवाई करें| मिर्च की जैविक काश्त के लिए बीजों को बुवाई से पहले ट्राइकोडर्मा विरीडी 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज व पी एस बी एवं एजेंटोबेक्टर से उपचारित करें| एक हैक्टेयर क्षेत्र के लिए पौधे तैयार करने हेतु एक से डेढ़ किलोग्राम बीज सामान्य किस्मों का और 300 से 450 ग्राम संकर किस्मों का पर्याप्त होता है|
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मिर्च की जैविक खेती के लिए नर्सरी प्रबंधन
नर्सरी के लिए मिट्टी हल्की, भुरभुरी व पानी को जल्दी सोखने वाली होनी चाहिए| पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्वों का होना भी जरूरी है| नर्सरी में पर्याप्त मात्रा में धूप का आना भी जरूरी है| नर्सरी को पाले से बचाने के लिए, पानी का अच्छा प्रबन्ध होना चाहिए| नर्सरी की लम्बाई 10 से 15 फुट तथा चौड़ाई 2.5 से 3 फुट से अधिक नहीं होनी चाहिए क्योंकि निराई व अन्य कार्यों में कठिनाई आती है|
नर्सरी की उंचाई 6 इंच या आधा फीट रखनी चाहिए| बीज की बुआई कतारों में करें, कतार से कतार का फासला 5 से 7 सेंटीमीटर रखा जाता है| बीज को एक सेंटीमीटर की गहराई से अधिक न बोयें और बोने के बाद हजारे से हल्की सिंचाई करें|
मिर्च की जैविक खेती के लिए खेत की तैयारी
मिर्च की जैविक खेती के लिए खेत की पहली गहरी जुताई कर के उसके बाद देशी हल या कल्टीवेटर से 2 से 3 जुताई कर के पाटा लगाकर खेत को समतल और मिटटी को भुरभुरा कर लिया जाता है| आवश्यक उर्वरकों और पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए गोबर की सड़ी हुई खाद 25 से 30 टन प्रति हेक्टेयर, जुताई के समय मिला देनी चाहिए| खेती की ऊपरी मिट्टी को महीन और समतल कर लिया जाना चाहिए तथा उचित आकार की क्यारियां बना लेते हैं|
मिर्च की जैविक खेती के लिए पौध रोपाई
नर्सरी में बुवाई के 4 से 6 सप्ताह बाद पौधे रोपने योग्य हो जाती है| गर्मी की फसल में कतार से कतार की दूरी 60 सेन्टीमीटर तथा पौधे से पौधे के बीच की दूरी 30 से 45 सेन्टीमीटर रखें|
खरीफ की फसल के लिए कतार से कतार की दूरी 45 सेन्टीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 30 से 45 सेन्टीमीटर रखें रोपाईं सायं के समय करे और रोपाई के बाद तुरन्त सिंचाई करें|
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मिर्च की जैविक खेती के लिए सिंचाई प्रबंधन
मिर्च की जैविक खेती में पहली सिंचाई पौध प्रतिरोपण के तुरन्त बाद की जाती है| इसके बाद यदि बरसात नही होती है, तो गर्म मौसम में हर 5 से 7 दिन तथा सर्दी में 10 से 12 दिनों के अन्तर पर फ़सल को सींचा जाता है|
मिर्च की जैविक फसल में निराई-गुड़ाई
पौधों की वृद्धि की आरम्भिक अवस्था में खरपतवारो पर नियंत्रण पाने के लिए दो से तीन सप्ताह बाद निराई करना आवश्य होता है| पहली निराई के बाद आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए| खरपतवार रोकथाम के लिए पलावर (मल्चिंग) का भी उपयोग किया जा सकता है, इससे नमी का भी संरक्षण होगा| पहली निराई या दूसरी निराई के साथ पौधों को मिटटी अवश्य चढ़ाएं|
मिर्च की जैविक फसल में पोषक तत्व प्रबंधन
मिर्च की जैविक खेती में नीम की खली 1.5 टन प्रति हैक्टेयर + गोबर की खाद 25 से 30 टन प्रति हैक्टेयर के हिसाब से भूमि में मिलावे या 7 से 9 टन केंचुआ खाद प्रति हैक्टेयर उपयोग में लेवे| खड़ी फसल में पोषक तत्वों की कमी की पूर्ति हेतु वर्मीवाश या मटका खाद का प्रयोग करने पर अच्छे परिणाम प्राप्त किये जा सकते है|
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मिर्च की जैविक फसल में कीट रोकथाम
सफेद लट- इस कीट की लटें पौधों की जड़ों को खाकर नुकसान पहुंचाती है| इनके नियंत्रण के लिए 2.5 किलोग्राम ब्यूवेरिया को 100 किलोग्राम गोबर की खाद में मिलाकर संवर्धन कर भूमि में डाले|
सफेद मक्खी, पर्ण जीवी, हरा तेला व मोयला- ये कीट पत्तियों और पौधों के कोमल भाग से रस चूसकर काफी नुकसान पहुँचाते है, साथ ही वायरस के संक्रमण के लिए उत्तरदायी होते है| इनके नियंत्रण के लिए निम्नलिखित उपाय करें, जैसे-
1. गौमूत्र (100 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी) + नीम का तेल 10 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें|
2. 10 प्रतिशत गौमूत्र + सुखी नीमोली का अर्क 2.5 प्रतिशत + लहसून का अर्क 2 प्रतिशत समान अनुपात में मिलाकर खड़ी फसल में छिड़काव करें|
सूत्रकृमि- इसके प्रकोप से पौधों की जड़ों में गांठे बन जाती है तथा पौधे पीले पड़ जाते है| इनके नियंत्रण के लिए नीम की खली 1.5 टन प्रति हैक्टेयर बुवाई से पूर्व खेत में डालें| जैविक विधि से रोग रोकथाम की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मिर्च की फसल के प्रमुख रोग और उनका जैविक प्रबंधन कैसे करें
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मिर्च की जैविक फसल में रोग नियंत्रण
फल सड़न- फलों पर छोटे-छोटे पीले धब्बे बन जाते हैं और फल पूर्णत: सड़ जाते है| ऐसे ही धब्बे पत्तों पर आते हैं और वह भी सुख जाते हैं|
नियंत्रण- मिर्च की जैविक फसल हेतु रोग मुक्त बीज व पौध लगायें| सड़े फलों को एकत्रित करके नष्ट करें और वारडैक्स मिश्रण का छिड़काव करें|
चूर्ण आसिता रोग- इस रोग से प्रभावित पौधों पर फफूंद की सफेद व मटमैली हल्की रूई की तह नजर आती है|
नियंत्रण- मिर्च की जैविक खेती हेतु दूध में हींग मिलाकर (5 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें|
पाउडरी मिल्ड्यू- इस रोग के कारण पत्तों की निचली सतह पर सफेद-सफेद धब्बे बनते हैं और उनके ऊपर फफूंद चूर्ण के रूप में उभर आती है| जिसके अनुरूप पत्तों की ऊपरी सतह पर पीले धब्बे बनते हैं तथा प्रभावित पत्ते समय से पहले गिर जाते हैं|
नियंत्रण- रोगग्रस्त पत्तों को इकट्ठा करके जला दें या मिट्टी में दबा दें और मिर्च की जैविक फसल में पौधों पर रोग के लक्षण देखते ही पंचगव्य का छिड़काव करें|
मिर्च का मोजेक रोग- पत्तों पर हरे तथा पीले रंग के धब्बे प्रकट हो जाते हैं और हल्के गड्ढे तथा फफोले भी दिखाई देते हैं| कभी-कभी पत्ती का आकार अति सूक्ष्म और सूत्राकार हो जाता है| रोगी पौधों में फूल व फल कम लगते हैं तथा फल खुरदुरे व विकृत हो जाते हैं|
नियंत्रण- यदि रोगग्रस्त पौधों की संख्या कम हो तो उन्हें उखाड़ कर दूर ले जाकर जला देना चाहिए या गड्ढे में दबा देना चाहिए और एफिड की रोकथाम के लिए नीम तेल का 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें| जैविक विधि से कीट नियंत्रण की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मिर्च की फसल के प्रमुख रोग और उनका जैविक प्रबंधन कैसे करें
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मिर्च की जैविक फसल के फलों की तुड़ाई
मिर्च की जैविक खेती से हरी मिर्च रोपाई के लगभग 85 से 90 दिन बाद तोड़ने योग्य हो जाती है| इस तरह 1 से 2 सप्ताह के अन्तर पर पके फलों को तोड़ा जाता है| इस प्रकार 8 से 9 बार तोड़ाई की जाती है|
सूखी मिर्च के लिये फलों को 140 से 145 दिन बाद जब मिर्च का रंग लाल हो जाता है तब तोड़ा जाता है| लेकिन बार बार मिर्च तोड़ने से फलन अधिक होता है|
पके फलों को 8 से 10 दिन तक धूप में सुखाया जाता है| आधा सूख जाने पर फलों की सायंकाल के समय एक ढेरी में इक्कट्ठा करके दबा दिया जाता है| जिससे की मिर्च चपटी हो जाए और सूखने में आसानी रहती है| बड़े पैमाने पर मिर्ची को 53 से 54 सेंटीग्रेट तापमान पर 2 से 3 दिन तक सुखाया जाता है|
मिर्च की जैविक खेती से पैदावार
मिर्च की जैविक खेती वाले खेत में शुरूआती दो से तीन वर्षों में पैदावार में कमी पाई गई| यदि पहले रसायनिक खेती कर रहें है, तो इसके बाद उपज में धीरे-धीरे बढ़ोतरी पाई गई| हरी मिर्च की लगभग 100 से 175 क्विंटल सामान्य किस्मों से और 150 से 250 क्विंटल संकर किस्मों से प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त हो जाती है| जबकि सूखी मिर्च की पैदावार लगभग 15 से 27 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है|
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