हमारे देश में उगाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की सब्जियों में मिर्च व शिमला मिर्च की फसल का प्रमुख स्थान है| यह लोगों के भोजन का प्रमुख अंग होने के अतिरिक्त, किसानों की आय बढ़ाने में भी मुख्य भूमिका निभाती है| लेकिन मिर्च व शिमला मिर्च का उत्पादकता स्तर काफी कम है| इनके उत्पादन में कमी का एक प्रमुख कारण फसलों पर कीट, रोग तथा सूत्रकृमियों का अधिक प्रकोप होना है| मिर्च व शिमला मिर्च के मुलायम तथा कोमल होने की वजह से और इसकी खेती के दौरान वातावरण में उच्च नमी एवं अत्यधिक उर्वरकों आदि का प्रयोग होने के कारण भी इन फसलों पर कीट व रोगों का प्रकोप अधिक होता है|
जिसके कारण उत्पादन में 25 से 45 प्रतिशत तक या इससे अधिक की कमी हो जाती है, अधिक उपज देने वाली, कम समय में पकने वाली, बेमौसमी संकर किस्मों का उपयोग नाशीजीवों के परिदृश्य में केवल बदलाव ही नहीं लाते हैं, अपितु इसके परिणाम स्वरूप कीटों, बीमारियों तथा सूत्र कृमियों को प्रचुर मात्रा में लगातार भोजन मिलता रहता है| जिससे इनकी उपस्थिति स्थाई बनी रहने के साथ-साथ अधिक तेजी से बढ़ती है| इन नाशीजीवों के प्रकोप की रोकथाम करने के लिए मिर्च व शिमला मिर्च फसलों पर किसानों द्वारा जहरीले कीटनाशकों का अन्धाधुन्ध प्रयोग किया जाता है| यहां तक कि मिर्च व शिमला मिर्च की फसल पर, पर्याप्त उपज बढ़ोत्तरी के बिना 10 से 12 छिड़काव करना एक आम प्रचलन है|
जिसके कारण विषैले कीटनाशकों का समावेश मिर्च व शिमला मिर्च सब्जी के खाए जाने वाले भाग में हो जाने के कारण उपभोगताओं के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव तो पड़ता ही है तथा साथ में निर्यात गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। इसलिए उपरोक्त समस्याओं को ध्यान में रखते हुए एवं किसानों में जागरूकता लाने के लिए तथा इन फसलों के नाशीजीवों के बेहतर नियंत्रण के लिए समेकित नाशीजीव प्रबन्धन तकनीकी (आई पी एम) का विकास किया गया है| इस लेख में मिर्च व शिमला मिर्च की फसल में समेकित नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें का विस्तृत उल्लेख है|
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मिर्च व शिमला मिर्च की फसल के कीट नाशीजीव
थ्रिप्स- थ्रिप्स छोटे तथा पतले कीट होते हैं और नर्सरी के साथ मुख्य खेत में भी दिखाई देते हैं व अपने पूरे जीवनभर वे मिर्च व शिमला मिर्च फसल को प्रभावित करते हैं| वयस्क तथा निम्फ दोनों फसल को नुकसान पहुंचाते हैं| पत्तीयों के ऊतकों के चिथड़े कर देते हैं और रस को चूसते हैं| इनके द्वारा नर्म प्ररोहों, कलियों तथा फूलों पर आक्रमण किया जाता है जिसके परिणामस्वरूप वे मुड़ जाते हैं व विरूपित हो जाते हैं, पत्तियों का ऊपरी हिस्सा भी मुड़ जाता है| ग्रीष्म मौसम में नाशीजीवों का संक्रमण बढ़ जाता है|
चेपा- ये आमतौर पर शुष्क, बादलों वाले ठण्डे तथा आर्द्र मौसम की स्थितियों में प्रकट होते हैं, जबकि भारी वर्षा चेपा की कालोनियों को धो डालती हैं| ये फरवरी से अप्रैल के दौरान तेजी से बढ़ते हैं| ये मिर्च व शिमला मिर्च के नर्म प्ररोहों तथा पत्तियों की निचली सतह पर दिखाई देते हैं| रस को चूसते हैं तथा पौधों की वृद्धि को कम करते हैं| ये मीठा पदार्थ छोड़ते हैं, जो कि चींटियों को आकर्षित करता है, जिससे काली फंफूद विकसित हो जाती है|
तम्बाकू की इल्ली- तम्बाकू की इल्ली का वयस्क भूरे रंग का होता है| दूसरे और तीसरे इनस्टार के लार्वे कैलिक्स के पास छेद बनाकर मिर्च व शिमला मिर्च की फलियों में प्रवेश करते हैं तथा मिर्च के बीज से अपना भोजन प्राप्त करते हैं| प्रभावित फलियां गिर जाती हैं या सूखने पर सफेद रंग की हो जाती हैं| ये आदत से रात्रिचर होते हैं, लेकिन इन्हें दिन के समय भी देखा जा सकता है|
फल वेधक- यह कीट वर्षा काल के बाद वाले मौसम में (अक्तूबर से मार्च) बहुत सक्रिय होता है, जो कि मिर्च व शिमला मिर्च की फसल की पुनरुत्पादक स्थिति भी है| लार्वा फलों का वेधन कर उन्हें क्षतिग्रस्त करता है तथा फलियों के भीतरी हिस्सों से अपना भोजन प्राप्त करता है| शिमला मिर्च में अप्रैल से जून के समय में फलों को नुकसान पहुंचाता है|
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मिर्च व शिमला मिर्च की फसल के रोग नाशीजीव
डैम्पिंग आफ- यह रोग खराब निकासी वाली तथा आर्द्रता वाली भारी मिट्टी को सबसे अधिक क्षतिग्रस्त करता है| बीज सड़ सकता है व मिट्टी में से निकलने से पहले ही पौधे मर सकते हैं| नए पौध या मृदुलण और कालर क्षेत्र में ऊतकों के नष्ट होने के कारण अलग-अलग खण्डों में मर जाते हैं|
पर्ण चित्ती- इसकी मिर्च व शिमला मिर्च पत्तियों पर विक्षति भूरी तथा वृत्ताकार होती है| जिसके बीच में छोटे से बड़े हल्के धूसर रंग के तथा गहरे भूरे किनारे होते हैं| गंभीर रूप से संक्रमित पत्तियां पकने से पहले ही गिर जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप पैदावार में कमी होती है|
डाई-बैक और एन्थ्राक्नोज- रोग के लक्षण अधिकांशतः पके हुए फलों पर दिखाई देते हैं तथा इसलिए इस रोग को पके हुए फलों का सड़न भी कहा जाता है| चित्तियां सामान्यतः वृत्ताकार, जलमग्न एवं काले किनारे के साथ डूबी हुई होती हैं| जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, ये चित्तियां फैलती हैं तथा इनसे गहरे फलन के साथ निश्चित मार्किंग बनती है| अनेक चित्तियों वाले फल पकने से पहले ही गिर जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप पैदावार का भारी नुकसान होता है| कवक फल के डंठलों पर भी आक्रमण कर सकते हैं तथा तने के साथ-साथ फैल सकते हैं| जिससे पश्चमारी के लक्षण बन जाते हैं|
फ्यूजेरियम मुझन- यह रोग अधिकांशतः खराब निकासी वाली मिटटी में होता है, पौधे के मुरझाने और पत्तियों के ऊपर की तरफ तथा अंदर की तरफ मुड़ने से फ्यूजेरियम मुरझान का पता चलता है| पत्तियां पीली होकर मर जाती हैं| आमतौर पर यह रोग खेत के नीचे वाले पानी रुकने वाले क्षेत्रों में दिखाई देता है तथा जल्दी ही सिंचाई के साथ पानी की नाली के साथ फैल जाता है| उपरोक्त समय तक जब भूमि के ऊपर लक्षण दिखाई देने लगते हैं| तब तक पौधे की संवहनी प्रणाली विशेष रूप से निचले तने तथा जड़ें भी विरुपित होने लगती हैं|
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चूर्णिल फंफूद- यह रोग तीखी मिर्च में बहुत आम रोग है| रोग शुष्क तथा आर्द्र दोनों प्रकार के मौसम स्थितियों के तहत गर्म जलवायु में पैदा होता है| पत्तियों की ऊपरी सतह पर हरिमाहीन धब्बे दिखाई देने लगते हैं| पत्तियों की निचली सतह पर विक्षतियां सफेद से धूसर चूर्णिल बढ़वार से ढक जाती हैं| यह रोग पुरानी से नई पत्तियों की ओर बढ़ता है तथा पर्ण-समूह का झड़ना इसका सबसे प्रमुख लक्षण है|
विषाणु काम्प्लैक्स- इस विषाणु के कारण मिर्च व शिमला मिर्च पत्तियों का आकार छोटा हो जाता है, जिससे पौधे बौने दिखाई देने लगते हैं| रोग बढ़ने की अवस्था में पौधों की बढ़वार रुकी हुई दिखाई देती है तथा पौधा झाड़ी जैसा दिखाई देने लगता है और फूलों का उत्पादन भी कम हो जाता है| विकृत बीजों के साथ फल छोटे आकार के पैदा होते हैं| गंभीर संक्रमण होने पर फसल का पूरी तरह से नष्ट होना समान्य है|
कुटकी- चौड़ी कुटकी, यह नवम्बर के महीने में फैलती है| निम्फ तथा वयस्क पत्तियों से रस चूसते हैं| प्रभावित पत्तियां सिरों से नीचे की ओर मुड़ जाती हैं एवं उनकी आकृति मुड़ी हुई नौका के रूप में बन जाती है| पर्ण वृन्त दीर्घाकृत हो जाते हैं तथा छोटी पत्तियां दंदानेदार बन जाती हैं, जिससे वे झाड़ियों के रूप में दिखाई देती हैं| पत्तियों के घटे हुए मुतान के साथ वे गहरे धूसर रंग की हो जाती हैं, पौधों में पुष्पन रुक जाता है तथा उत्पादन में बहुत अधिक कमी हो जाती है|
झुलसा- यह मिर्च व शिमला मिर्च का एक क्रियात्मक विकार है| जिसमें फल सूर्य की सीधी किरणें पड़ने के कारण प्रभावित होते हैं| उन पर सफेद रंग के परिगलित चकते बन जाते हैं तथा जो हिस्सा सीधे सूर्य के संपर्क में आता है, उसकी उपरी सतह पतली और सूखी तथा कागज जैसी हो जाती है|
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मिर्च व शिमला मिर्च में समेकित नाशीजीव प्रबंधन
1. डेम्पिंग आफ से बचने के लिए अच्छी निकासी के लिए भूमि स्तर से लगभग 10 से 15 सेंटीमीटर ऊपर उठी हुई नर्सरी की क्यारियां तैयार करें|
2. भूमि से पैदा होने वाले नाशीजीवों के लिए मिटटी सौर्गीकरण के लिए क्यारियों को 45 गेज (0.45 मिलीमीटर) मोटाई की पालीथीन शीट से तीन सप्ताह के लिए ढकें| मिटटी सौर्गीकरण के दौरान मिट्टी में पर्याप्त नमी होनी चाहिए|
3. 3 किलोग्राम की घूरे की खाद में कवकीय विरोधी टी. हारजेनियम (सी एफ यू 2 x 10\9 प्रति ग्राम) मिलाएं तथा समृद्धिकरण के लिए उसे लगभग 7 दिनों के लिए छोड़ दें, 7 दिनों के बाद 3 वर्ग मीटर की क्यारियों में मिट्टी में मिलाएं|
4. मिर्च व शिमला मिर्च में डेपिंग ऑफ तथा चूसकनाशी जीवों का प्रबंधन करने के लिए विश्वसनीय स्त्रोत से प्राप्त ट्राईकोडर्मा से 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से या इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यू एस का 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोंपचार करें, जिससे कि प्रारंभिक स्थितियों में ही नाशीजीवों का प्रबंधन किया जा सके|
5. स्यूडोमोनास फ्लुओरिसेन्स (टीएनऐयु स्ट्रेन, आईटीसीसी बी ई 0005 का 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज) या ट्राईकोडर्मा विरिडी (टीएनऐयु स्ट्रेन, आईटीसीसी बीई 6914 का 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज) से मिर्च व शिमला मिर्च का बीजोपचार करें|
6. डंपिंग ऑफ या सडन के प्रबंधन के लिए आवश्यकतानुसार कैप्टान 70 डब्ल्यू पी 0.25 प्रतिशत या 70 डब्ल्यू एस 0.2 से 0.3 प्रतिशत या मेन्कोजेब 75 डब्ल्यू पी 0.3 प्रतिशत की दर से मिटटी उपचार के लिए प्रयोग करें|
7. सर्दी के मौसम के दौरान (दिसम्बर से जनवरी) ठण्ड या पाले से बचाने के लिए नर्सरी की क्यारियों के एक सिरे पर खसखस का शेड लगाएं| क्यारियों को पाले से होने वाली क्षति से बचाने के लिए रात के समय पालीथीन की शीटों से ढक दें, और दिन के समय इन शीटों को हटा दें, जिससे कि वे सूर्य की गर्मी प्राप्त कर सकें|
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मुख्य फसल में-
1. रोपाई के समय दस मिनट के लिए मिर्च व शिमला मिर्च के पौधों को 5 मिलीलीटर प्रति लीटर की दर से स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस के घोल में डुबोएं|
2. मिर्च व शिमला मिर्च की फसल में परभक्षी पक्षियों की सुविधा के लिए 10 प्रति एकड़ की दर से पक्षियों के ठिकाने स्थापित करें|
3. शिमला मिर्च की फसल में हापर, चेपा तथा सफेद मक्खी आदि के लिए 2 प्रति एकड़ की दर से डेल्टा जाल स्थापित करें|
4. शिमला मिर्च की फसल में चेपो, थ्रिप्स, हापर तथा सफेद मक्खी के विरुद्ध नीम उत्पाद एनएसकेई 5 प्रतिशत का छिड़काव करें|
5. प्रतिरोपण के 15 से 20 दिनों के बाद जबकि रेटिंग 1 से 2 के बीच होती है, थ्रिप्स के विरुद्ध एनएसकेई 5 प्रतिशत का छिड़काव 2 से 3 बार करें| यदि थ्रिप्स तथा सफेद मक्खी की संख्या फिर भी अधिक रहे तब फॅप्रोपथ्रिन 30 ई सी का 250 से 340 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर 750 से 1000 लीटर पानी या पाइरीप्रोक्सिफेन 10 ई सी का 500 मिलीलीटर या स्पिनोसेड 45 एस सी का 160 ग्राम प्रति हेक्टेयर 500 लीटर (थ्रिप्स के लिए) या फिप्रोनिल 5 एस सी का 800 से 1000 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी के साथ छिडकाव करें|
6. यदि थ्रिप्स तथा कुटकियां दोनों एक साथ दिखाई दें, तो फेनप्रौपैथ्रिन 30 ई सी का 250 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर या इथियोन 50 ई सी का 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव उपयोगी होता है|
7. पर्ण कुंचन रोग या मोजेक काम्प्लैक्स से प्रभावित पौधों की आवधिक रूप से छटाई करते हुए उन्हें नष्ट करना चाहिए|
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8. मिर्च व शिमला मिर्च की फसल में अण्डे देने के दौरान वयस्कों की निगरानी के लिए एच आर्मीजेंरा या एस लियूटेरा के लिए 5 प्रति हेक्टेयर की दर से फैरोमोन जाल लगाएं|
9. फल वेधक (एच आर्मीजेंरा) के लिए 1.5 लाख प्रति हेक्टेयर की दर से ट्राइकोगर्मा प्रजाति के परजीवी अण्डों को आवधिक रूप से छोड़ें|
10. प्रारंभिक स्थिति में या जब जैसे आवश्यकता हो तो एचएएनपीवी या एसएलएनपीवी (250 एल ई प्रति हेक्टेयर) (2 x 10\9 पीओबी) के 2 से 3 छिड़काव करें|
11. फूल और फल की प्रारंभिक अवस्था के दौरान फल बेधक के लिए स्पिनोसेड 45 एस सी का 60 मिलीलीटर या एमेमेक्टिन बेंजोएट 5 एस जी का 200 ग्राम या इन्डोकसकार्ब 14.5 एस सी का 400 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी के साथ केवल आवश्यकतानुसार छिडकाव करें| क्योंकि फल भेदक केवल छोटे लार्वे के रूप में ही प्रभावी हैं, इन कीटनाशकों का छिडकाव शाम के समय करना ही उचित है|
12. मिर्च व शिमला मिर्च की फसल में बेधक के कारण क्षतिग्रस्त फलों को समय-समय पर हटाकर उनको नष्ट किया जाना चाहिए|
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13. फल सड़न तथा डाई बैक के नियंत्रण हेतु मेन्कोजेब 75 डब्ल्यू पी या प्रोपिनेब 70 डब्ल्यू पी का 1.5 से 2.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 750 से 1000 लीटर पानी के साथ या जिनेब 70 डब्ल्यू पी का 0.5 प्रतिशत की दर से सुरक्षात्मक छिडकाव व आवश्यकता आधारित डायफेनकोनाजोल 25 ईसी का 0.05 प्रतिशत या मायक्लोब्युटानिल 10 डब्ल्यू पी का 0.04 प्रतिशत या केप्टान 70 प्रतिशत + हेक्साकोनाजोल 5 डब्ल्यू पी का 500 से 1000 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें|
14. मिर्च व शिमला मिर्च में चूर्णिल आसिता की रोकथाम के लिए सल्फर 52 एस सी का 2 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 400 लीटर पानी में या सल्फर 80 डब्ल्यू पी का 3.15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी के घोल के साथ छिडकाव करें|
15. चर्णिल आसिता तथा फल सडन के नियंत्रण के लिए आवश्यकता आधारित हेक्सकोनाजोल 2 एस सी का 3 लीटर प्रति हेक्टेयर या टेब्युक्युनाजोल 25.9 प्रतिशत एम एम ई सी का 500 मिलीलीटर या एजोक्सीट्रोबिन 11 प्रतिशत + टेब्युक्युनाजोल 18.3 प्रतिशत एस सी डब्ल्यू डब्ल्यू का 600 से 700 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 500 से 700 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें|
16. मिर्च व शिमला मिर्च में डाई-बैक के लिए पी फ्लोरोसेंस (जैव रासायनिक दवाइयां) का सामान्य छिड़काव भी किया जा सकता है| विभिन्न रोगों के लिए पी फलोरोसेंस या ट्राइकोडर्मा (जैव नाशकनाशीजीव) का सामान्य रूप से छिड़काव किया जा सकता है|
17. फ्यूजेरियम मुझन नियंत्रण के लिए खेत तैयार करते समय मिटटी में घूरे की खाद (250 किलोग्राम) में विश्वशनीय स्त्रोत से लिए गए ट्राइकोडर्मा (5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) को मिला कर प्रयोग करें, यदि मुझन प्रतिवर्ष नियमित रूप से होता है तो फसल चक्र अपनाया जा सकता है|
मित्र कीटों का संरक्षण-
मिर्च व शिमला मिर्च में नाशीजीवों के प्रचलित रूप से दिखाई देने वाले प्राकृतिक शत्रुओं को रासायनिक दवाइयां के अवांछित तथा अत्यधिक छिड़कावों से बचाना चाहिए|
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