दलहनी फसलों में मोठ सबसे अधिक सुखा सहन कर सकती है| इसलिए यह सुखाग्रस्त रेगिस्थान क्षेत्रों की महत्वपूर्ण फसल हैं| मोठ की फसल का उपयोग दाने, हरी खाद, पशुओं के लिए चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है| मोठ की फसल कम वर्षा व रेतीली भूमि में आसानी से उगाई जा सकती हैं| इसकी जड़ें भूमि में गहराई तक जाकर भूमि से नमी प्राप्त कर लेती है|
इसकी जड़ों में पाया जाने वाला राईजोबियम जीवाणु वातावरण की नाइट्रोजन को भूमि में इकट्ठा करता है| इसकी फसल फैलावदार होने के कारण मिटटी कटाव को भी रोकती है| उन्नत तकनीकों द्वारा खेती करने पर 25 से 50 प्रतिशत अधिक पैदावार प्राप्त की जा सकती है| इस लेख में मोठ की आधुनिक तकनीक से खेती का उल्लेख है|
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मोठ की खेती के लिए उन्नत किस्में
आर एम ओ- 40, आर एम ओ- 225, आर एम ओ- 257, जड़िया, ज्वाला, काजरी मोठ- 3, काजरी मोठ- 2 आदि प्रमुख है|
मोठ की खेती के लिए खेत की तैयारी
मोठ की खेती हल्की भूमियों में अच्छी होती है| मोठ के लिए बलुई और बलुई दोमट मिटटी अच्छी होती है| भूमि में जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए| मोठ की खेती के लिए दो बार हैरो से जुताई कर पाटा लगा देना चाहिए और एक जुताई कल्टीवेटर से करनी चाहिए|
मोठ की खेती के लिए बीज और बुवाई
मोठ की बुवाई 15 जुलाई तक कर देनी चाहिए, लेकिन शीघ्र पकने वाली किस्मों की 30 बुवाई जुलाई तक की जा सकती हैं| मोठ की बुवाई के लिए पंक्तियों से पंक्तियों की दूरी 45 सेंटीमीटर रखते है|
मोठ की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक
दलहनी फसल होने के कारण इसे नत्रजन की कम मात्रा में आवश्यकता होती हैं| एक हैक्टर क्षेत्र के लिए 20 किलोग्राम नत्रजन और 40 किलोग्राम फास्फोरस की आवश्यकता होती हैं| मोठ के लिए समन्वित पोषक प्रबंधन की आवश्यकता रहती है| इसके लिए खेत को तैयार करते समय 2.5 टन गोबर की खाद भूमि में अच्छी प्रकार से मिला देनी चाहिए| बुवाई से पहले 600 ग्राम राइजोबियम कल्चर को 1 लीटर पानी में और 250 ग्राम गुड़ के गोल में मिलाकर बीज को उपचारित कर छाया में सुखाकर बोना चाहिए|
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मोठ की फसल में खरपतवार नियंत्रण
मोठ की फसल को खरपतवार बहुत हानि पहुंचाते है| खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के तुरन्त बाद, लेकिन फसल उगने से पूर्व पेन्डीमैथालीन की 3.30 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रत्येक हैक्टर की दर से सम्मान रूप से छिडकाव कर देना चाहिए| फसल जब 25 से 30 दिन की हो जाये तो एक गुड़ाई हाथ से कर देनी चाहिए|
मोठ फसल में कीट और रोग नियंत्रण
दीमक- पौधों की जड़ें काटकर दीमक बहुत नुकसान पहुंचाती है| इससे पौधा कुछ दिनों में सुख जाता है| दीमक की रोकथाम के लिए अंतिम जुताई के समय क्लोरापाईरिफॉस पाउडर की 20 से 25 किलोग्राम की मात्रा प्रत्येक हैक्टर की दर से मिट्टी में मिला देनी चाहिए और बीज को बुवाई से पूर्व क्लोरापाईरिफॉस की 2 मिलीलीटर लीटर मात्रा को प्रति किलो ग्राम बीज दर से उपचारित करना चाहिए|
फली छेदक- इस कीट की रोकथाम के लिए मैलाथियोन 50 ई सी या क्यूनालफॉस 25 ई सी, आधा लीटर प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करना चाहिए|
मोयल, हरा तेला व मक्खी- ये कीट पौधों की पतियों से रस चुसकर फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं, इन कीटों की रोकथाम के लिए मैलाथियोन 50 ई सी, 1 लीटर या डायमिथोएट 30 ई सी आधा लीटर प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करना चाहिए|
पीला मौजेक विशाणु रोग- यह रोग फसल को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाता हैं| इसमें प्रभावित पतियां पूरी तरह पीली हो जाती है और आकार में छोटी रह जाती है| इस रोग को सफेद मक्खी द्वारा फैलाया जाता है और इसके नियंत्रण के लिए मैलाथियोन 50 ई सी, 1 लीटर या डायमिथोएट 30 ई सी आधा लीटर प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करना चाहिए|
तना झुलसा रोग- इस रोग के कारण पौधे मुरझाने लगते हैं, इसके लक्षण दिखाई देने पर 2 किलो ग्राम मैन्कोजेब को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए|
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मोठ फसल की कटाई व गहाई
जब इसकी फलियां पक कर भूरी हो जाये और पौधा पीला पड़ जाये तो फसल की कटाई कर देनी चाहिए| फसल को अच्छी प्रकार सूखने के पश्चात् श्रेसर द्वारा दाने को अलग कर लिया जाता हैं|
मोठ की खेती से पैदावार
मोठ की उन्नत तकनीकों द्वारा खेती करने पर 6 से 8 किंवटल प्रति हैक्टर दाने की पैदावार प्राप्त की जा सकती है और 8 से 10 क्विंटल भूसा प्रति हैक्टर प्राप्त हो जाता हैं|
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